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चीन-ईरान डील से भारत की चाबहार योजना पर खतरे के बादल

चीन और ईरान के बीच एक बड़ा रणनीतिक सौदा हुआ है, जो भारत की चाबहार परियोजना पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है. इस संबंध में पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

चीन-ईरान डील
चीन-ईरान डील
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Published : Mar 30, 2021, 6:12 PM IST

नई दिल्ली : चीनी विदेश मंत्री वांग यी और उनके ईरानी समकक्ष मोहम्मद जावेद जरीफ के बीच तेहरान में $ 400 बिलियन का एक ऐतिहासिक 'व्यापक रणनीतिक साझेदार' सौदा हुआ है. यह 25 वर्षों के लिए वैध है. शनिवार को दोनों नेताओं ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए.

इस एग्रीमेंट ने ईरान में भारत की पहले से चली आ रही चाबहार परियोजना पर अपनी अंधेरी छाया डाल दी है.

इस डील के तहत चीन ने ईरान में विशाल निवेश का वादा किया है. बदले में ईरान चीन को रियायती दरों पर तेल की नियमित आपूर्ति करेगा और 25 साल तक सैन्य क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में सहयोग करेगा.

इससे पहले कुछ अपुष्ट रिपोर्टें सामने आई थीं कि चीन ईरान में अपने निवेश और हितों की रक्षा के लिए लगभग 5,000 सैनिकों को तैनात कर सकता है.

गौरतलब है कि चीन के साथ इस डील के बाद ईरान रूस के साथ भी इसी तरह के एक और समझौते के लिए तत्पर है.

ईरानी संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति समिति के अध्यक्ष मुजतबा जोनूर ने हाल ही में कहा कि ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों और डॉलर की कमी को दूर करने के लिए रूस के साथ इसी तरह का समझौता करना चाहता है.

जोनूर ने कहा कि हम रेल सेवाओं, सड़कों, रिफाइनरियों, पेट्रोकेमिकल्स, ऑटोमोबाइल, तेल, गैस, गैसोलीन और पर्यावरण आधारित कंपनियों के क्षेत्र में इन देशों के साथ संयुक्त सहयोग और द्विपक्षीय बातचीत करने का मौका तलाश रहे हैं, क्योंकि यह विदेशी प्रतिबंधों को बेअसर करने में बहुत प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं.

चाबहार परियोजना

भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता है.

इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होने था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती.

एक ऐसे समय में जब भारत क्वाड के साथ-साथ अमेरिका के शिविर में शामिल हो रहा है, क्वाड जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. वहीं चीन रूस और ईरान के साथ गठनबंधन का संकेत दे रहा है, ऐसे में यह परियोजना काफी महत्वपूर्ण है.

चीन के साथ भारत के संबंध पूर्वी एशियाई लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बाद बेहतर हो रहे हैं हालांकि दोनों देशों के बीच कई मुद्दे अभी भी सुलझना बाकी हैं.

अमेरिका के साथ बढ़ती निकटता के कारण रूस के साथ भी भारत रिश्तों में खटास आई है.

पढ़ें - दुनियाभर के भारतीयों के लिए सरकार का बड़ा तोहफा, पासपोर्ट पर अब नहीं लागू होगा ये नियम

भारत- ईरान के संबंध

ऐतिहासिक रूप से भारत-ईरान संबंध सांस्कृतिक रूप से काफी अच्छे रहे हैं. राजनीतिक रूप से ईरान एशियाई क्षेत्र में भारत का सबसे मजबूत सहयोगी रहा है.

इसके अलावा ईरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों में इलाकों भारतीय हितों के लिए लाभकारी था. ईरान भारत के लिए मध्य एशिया का प्रवेश द्वार था ,जहां भारत हमेशा मजबूत उपस्थिति की तलाश में रहा है.

वास्तव में चाबहार परियोजना में भारत की उपस्थिति पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने में मदद करने के लिए थी.

आर्थिक रूप से भी ईरान भारतीय मुद्रा में भारत को पेट्रोल बेचने को तैयार था, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत ने ईरानी तेल खरीदना बंद कर दिया और इसके बजाय अमेरिकी तेल खरीदना शुरू कर दिया था, जिससे ईरान परेशान था.

साथ ही ईरान ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर अभूतपूर्व और तीखा विरोध किया.

दूसरी ओर चीन और ईरान संबंध अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण बहुत मजबूत हो गए हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों डर से कई देशों ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया.

इसके बाद ईरान अपनी तेल दरों को नीचे लाया है जिसके बाद चीन ने ईरान के तेल की कीमतों को फिर से ऊपर उठा दिया.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने ईरानी तेल की रिकॉर्ड मात्रा भी खरीद ली है. चीन-रूस-ईरान की बढ़ती निकटता के साथ,और इन देशों के साथ भारत के विस्तार के साथ, चाबहार पर भारतीय हित के पनपने की संभावनाएं तेजी से कम हो रही हैं.

नई दिल्ली : चीनी विदेश मंत्री वांग यी और उनके ईरानी समकक्ष मोहम्मद जावेद जरीफ के बीच तेहरान में $ 400 बिलियन का एक ऐतिहासिक 'व्यापक रणनीतिक साझेदार' सौदा हुआ है. यह 25 वर्षों के लिए वैध है. शनिवार को दोनों नेताओं ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए.

इस एग्रीमेंट ने ईरान में भारत की पहले से चली आ रही चाबहार परियोजना पर अपनी अंधेरी छाया डाल दी है.

इस डील के तहत चीन ने ईरान में विशाल निवेश का वादा किया है. बदले में ईरान चीन को रियायती दरों पर तेल की नियमित आपूर्ति करेगा और 25 साल तक सैन्य क्षेत्र के साथ-साथ अन्य क्षेत्रों में सहयोग करेगा.

इससे पहले कुछ अपुष्ट रिपोर्टें सामने आई थीं कि चीन ईरान में अपने निवेश और हितों की रक्षा के लिए लगभग 5,000 सैनिकों को तैनात कर सकता है.

गौरतलब है कि चीन के साथ इस डील के बाद ईरान रूस के साथ भी इसी तरह के एक और समझौते के लिए तत्पर है.

ईरानी संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति समिति के अध्यक्ष मुजतबा जोनूर ने हाल ही में कहा कि ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों और डॉलर की कमी को दूर करने के लिए रूस के साथ इसी तरह का समझौता करना चाहता है.

जोनूर ने कहा कि हम रेल सेवाओं, सड़कों, रिफाइनरियों, पेट्रोकेमिकल्स, ऑटोमोबाइल, तेल, गैस, गैसोलीन और पर्यावरण आधारित कंपनियों के क्षेत्र में इन देशों के साथ संयुक्त सहयोग और द्विपक्षीय बातचीत करने का मौका तलाश रहे हैं, क्योंकि यह विदेशी प्रतिबंधों को बेअसर करने में बहुत प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं.

चाबहार परियोजना

भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता है.

इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होने था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती.

एक ऐसे समय में जब भारत क्वाड के साथ-साथ अमेरिका के शिविर में शामिल हो रहा है, क्वाड जिसमें भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान शामिल हैं. वहीं चीन रूस और ईरान के साथ गठनबंधन का संकेत दे रहा है, ऐसे में यह परियोजना काफी महत्वपूर्ण है.

चीन के साथ भारत के संबंध पूर्वी एशियाई लद्दाख में सैन्य गतिरोध के बाद बेहतर हो रहे हैं हालांकि दोनों देशों के बीच कई मुद्दे अभी भी सुलझना बाकी हैं.

अमेरिका के साथ बढ़ती निकटता के कारण रूस के साथ भी भारत रिश्तों में खटास आई है.

पढ़ें - दुनियाभर के भारतीयों के लिए सरकार का बड़ा तोहफा, पासपोर्ट पर अब नहीं लागू होगा ये नियम

भारत- ईरान के संबंध

ऐतिहासिक रूप से भारत-ईरान संबंध सांस्कृतिक रूप से काफी अच्छे रहे हैं. राजनीतिक रूप से ईरान एशियाई क्षेत्र में भारत का सबसे मजबूत सहयोगी रहा है.

इसके अलावा ईरान अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों में इलाकों भारतीय हितों के लिए लाभकारी था. ईरान भारत के लिए मध्य एशिया का प्रवेश द्वार था ,जहां भारत हमेशा मजबूत उपस्थिति की तलाश में रहा है.

वास्तव में चाबहार परियोजना में भारत की उपस्थिति पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक पहुंचने में मदद करने के लिए थी.

आर्थिक रूप से भी ईरान भारतीय मुद्रा में भारत को पेट्रोल बेचने को तैयार था, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत ने ईरानी तेल खरीदना बंद कर दिया और इसके बजाय अमेरिकी तेल खरीदना शुरू कर दिया था, जिससे ईरान परेशान था.

साथ ही ईरान ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर अभूतपूर्व और तीखा विरोध किया.

दूसरी ओर चीन और ईरान संबंध अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण बहुत मजबूत हो गए हैं. अमेरिकी प्रतिबंधों डर से कई देशों ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया.

इसके बाद ईरान अपनी तेल दरों को नीचे लाया है जिसके बाद चीन ने ईरान के तेल की कीमतों को फिर से ऊपर उठा दिया.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने ईरानी तेल की रिकॉर्ड मात्रा भी खरीद ली है. चीन-रूस-ईरान की बढ़ती निकटता के साथ,और इन देशों के साथ भारत के विस्तार के साथ, चाबहार पर भारतीय हित के पनपने की संभावनाएं तेजी से कम हो रही हैं.

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