सागर। कई बार ऐसी परिस्थितियां बनती है कि इंसान को गुनाहगार ना होने के बाद भी सजा भोगना पड़ता है. ऐसा उन सैकड़ों जेलों में आसानी से देखने मिल सकता है जिन जेलों में महिला कैदियों को उनके छोटे बच्चों के साथ रखा जाता है. ऐसे में बिना किसी अपराध के एक अबोध बच्चा जब जेल के माहौल में पलता बढ़ता है, तो उन बच्चों से अलग दुनिया देखता है जो बच्चे अपने, घर, स्कूल या पार्क में देखते हैं. इसलिए सागर केंद्रीय जेल परिवार ने इस बार एक अभिनव प्रयास किया है. दरअसल केंद्रीय जेल के कर्मचारियों और अधिकारियों के परिवार के बच्चों को समर कैंप का आयोजन किया गया, तो तय किया कि इस समर कैंप में जेल की महिला कैदियों के बच्चे भी हिस्सा लेंगे और सबके साथ समर कैंप में मस्ती करेंगे. इस प्रयास का सकारात्मक असर देखने मिल रहा है. बच्चों में सकारात्मक सोच के साथ सीखने की इच्छा बढ़ रही है और वो बाहर की दुनिया देख पा रहे हैं.
बालमन पर ना पडे़ जेल की चारदीवारी का असर: सागर केंद्रीय जेल में इन दिनों करीब 100 से ज्यादा सजायाफ्ता और विचाराधीन महिला कैदी हैं. इनमें कई महिलाएं ऐसी हैं जिनके बच्चे छोटे होने के कारण मां के साथ जेल की सजा भोग रहे हैं. वैसे तो जेलों में इन बच्चों की लिखाई पढ़ाई सब व्यवस्था की जाती है और दूसरी तमाम जरूरतें पूरी की जाती हैं लेकिन जेल की चारदीवारी इनके बालमन पर क्या असर डालती होगी, ये चिंताजनक है.
सागर केंद्रीय जेल अधीक्षक दिनेश कुमार नरगावे ने एक अभिनव प्रयोग किया है. दरअसल केंद्रीय जेल का स्टाफ भी फाकी बड़ा है. ऐसे में योजना बनायी गयी कि केंद्रीय जेल परिवार के कर्मचारियों और अधिकारियों के बच्चों को समर कैंप आयोजित किया जाए. योजना पर काम करते वक्त जेल अधीक्षक नरगावे ने विचार किया कि महिला कैदियों के साथ बिना गुनाह के जेल के अनुभवों को लेने वाले बच्चों के लिए भी इस समर कैंप का हिस्सा बनाया जाए. फिर क्या था जिन महिला कैदियों के बच्चे जेल के बाहर आकर समर कैंप में स्पोर्ट्स, डांस, हैंडीक्राफ्ट्स और दूसरे हुनर सीखना चाहते थे, उन्हें इसका मौका मिला और जब जेल विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के बच्चों के साथ उन्होंने सीखा और समझा, तो उनमें सकारात्मक विकास देखने को मिल रहा है.
महिला कैदियों के 7 बच्चे है समर कैंप का हिस्सा: जेल अधिकारी और कर्मचारियों के बच्चों के साथ समर कैंप में जेल की महिला कैदियों के सात बच्चे हिस्सा लेते हैं. इन बच्चों की उम्र 3 साल से ऊपर है और जेल मैनुएल के लिहाज से इन बच्चों को पढ़ने और खेलने कूंदने का अवसर मिल सकता है. ऐसे में ये सात बच्चे समर कैंप की विभिन्न गतिविधियों में हिस्सा ले रहे हैं. इन बच्चों में समर कैंप में जाने के बाद काफी बदलाव नजर आ रहा है. बच्चे हर चीज सीखने में एक दूसरे की मदद करते हैं और जमकर मस्ती करते हैं. कोई किसी हुनर में अगर ज्यादा जानता है, तो वो एक दूसरे की मदद करते हैं. इन बच्चों में बाहरी दुनिया को समझने और जानने की इच्छा भी बढ़ रही है.
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बच्चों में बढ़ रही सहयोग भावना: समर कैंप की ट्रेनर राधिका भट्ट कहती हैं कि मेरे पास जो जेल विभाग के कर्मचारी हैं और जो महिला कैदी के बच्चे भी आ रहे हैं. दोनों तरह के बच्चों को लेकर मेरा बहुत अच्छा अनुभव रहा है. मेरा समर कैंप बहुत अच्छा रहा है. यहां पर बच्चे जुंबा, वेस्टर्न डांस, क्लासिकल डांस और नियमित रूप से एक्सरसाइज कर रहे हैं. ये बच्चे एक दूसरे की कंपनी और डांस क्लास में बहुत मस्ती कर रहे हैं. साथ ही साथ एक दूसरे को बच्चे डांस में मदद करते हैं. अगर किसी पर कुछ नहीं बनता है, तो जानने वाले बच्चे खुद आगे आकर बताते हैं. ये बहुत अच्छी बात है कि दो अलग तरह के माहौल में पले बच्चों के बीच आपस में दोस्ती बढ़ रही है.
बच्चों में सकारात्मक बदलाव: सागर केंद्रीय जेल अधीक्षक दिनेश कुमार नरगावे कहते हैं कि जैसा कि हम सब जानते हैं कि आजकल फैमिली का प्रचलन बढ़ गया है. गर्मी की छुट्टियों में चलन बढ़ गया है कि बच्चे छुट्टियों में पेंटिंग, डांसिग, हैंडीक्राफ्ट्स सिखाने के लिए समर कैंप आयोजित किए जाते हैं. तो हम लोगों ने इस बार केंद्रीय जेल सागर के स्टाफ के बच्चों के लिए समर कैंप आयोजित किया. इसमें डांस, योगा और ध्यान के अलावा कई तरह के हुनर बच्चों को सिखाए जा रहे हैं. इसी कड़ी में हमारे जेल में जो महिला कैदी निरूद्ध है, उनके बच्चे जो 3 साल से ऊपर है, उनको इस समर कैंप में शामिल किया गया है. इससे बच्चों में सकारात्मक सोच बढ़ रही है और लगातार जेल के बैरक में रहने के कारण उनके बालमन पर असर ना पडे़, इसके लिए वो बाहर जाकर समर कैंप में मस्ती कर रहे हैं, तो बेहद सकारात्मक संकेत देखने मिल रहे हैं