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चिदंबरम ने राज्य सभा के चेयर पर ही उठाए सवाल, पूछा- कहां है तटस्थता - chidambaram parliament

कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा है कि राज्य सभा में हंगामा इसलिए शुरू हुआ क्योंकि सरकार अपनी बात से मुकर गई, 'चुपके' से कानून पारित कराने की कोशिश की. दोनों सदनों में अध्यक्ष उतना तटस्थ नहीं हैं, जितना होना चाहिए; यह सदन की भावना को नहीं दर्शाता है.

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Published : Aug 13, 2021, 6:31 PM IST

Updated : Aug 13, 2021, 8:04 PM IST

नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र हंगामेदार रहा. 16 दिनों की बैठकों में महज गिनती के घंटों में सार्थक चर्चा हुई. राज्य सभा में सांसदों के अशोभनीय आचरण से सभापति वेंकैया नायडू भावुक भी हुए. इसी बीच राज्य सभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि संसद में हंगामे कारण दोनों सदनों में सभापति का तटस्थ न होने के अलावा सरकार का अपनी बातों से मुकर जाना है.

पी चिदंबरम ने संसद में जासूसी विवाद पर कोई चर्चा नहीं होने पर कहा, उच्चतम न्यायालय केवल एक उम्मीद है. उन्होंने कहा कि भाजपा से मुकाबले के लिए विपक्षी एकता बनाने में आने वाली मुश्किलें दूर होंगी और 2024 के चुनावों से पहले ऐसा हो जाएगा. पेगासस जासूसी मामले पर चिदंबरम ने कहा, 'मैं आशा करता हूं कि उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा और जांच का आदेश देगा.'

संसद में कांग्रेस के रणनीति संबंधी समूह के सदस्य चिदंबरम ने मानसून सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की 'अनुपस्थिति' को लेकर सवाल किया और यह आरोप लगाया कि भाजपा सरकार को संसद के प्रति बहुत कम सम्मान है और अगर प्रधानमंत्री मोदी एवं अमित शाह की चले तो वो 'संसद को बंद कर देंगे.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 2024 में भाजपा के मुकाबले विपक्षी एकजुटता बनाने में निश्चित तौर पर कुछ परेशानियां आएंगी, लेकिन धैर्य, बातचीत और बैठकों के जरिये यह संभव हो जाएगा.

राज्यसभा में गत बुधवार को हुए हंगामे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह स्थिति उस वक्त पैदा हुई जब सरकार अपने कहे इन शब्दों से पीछे हट गई कि ओबीसी संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद सदन की बैठक को अनिश्चिकाल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा.

उनके मुताबिक, विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया था कि वह बीमा संबंधी कानूनों में संशोधन करने वाले विधेयक के विरोध में है और इसे संसद की प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिए. इसको लेकर कोई सहमति नहीं बनी तो यह कहा गया कि इसे संसद के इस सत्र में चर्चा और पारित कराने के लिए नहीं लिया जाएगा.

चिदंबरम ने दावा किया, 'संवैधानिक संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित होने के बाद सरकार ने बीमा विधेयक और एक या दो अन्य विधेयकों को पारित कराने का प्रयास किया. यह चुपके से विधेयकों को पारित कराने की भाजपा की परिपाटी को आगे बढ़ाना था. ऐसे में विपक्ष ने सरकार का पुरजोर विरोध किया.'

उन्होंने आरोप लगाया, 'मैं यह कहते हुए माफी चाहता हूं कि आसन ने तटस्थ भूमिका नहीं निभाई और ऐसे में संसद में हंगामा हुआ. परंतु हंगामे की शुरुआत सरकार की ओर से चुपके से विधेयक पारित कराने के प्रयास से हुई.'

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू की ओर से विपक्षी सदस्यों के व्यवहार को लेकर निराश जताने पर चिदंबरम ने कहा, 'मैं बहुत भारी मन से और अफसोस के साथ कहता हूं कि आसन को जिस तरह से तटस्थ होना चाहिए वो नहीं है तथा आसन सदन की भावना को नहीं दर्शाता है.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदन सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों से बनता है तथा आसन को सदन की पूरी भावना प्रदर्शित करनी चाहिए और सिर्फ एक पक्ष की भावना को नहीं दर्शाना चाहिए.

एक सवाल के जवाब में पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि संप्रग सरकार के समय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सदन में होते थे और संसद में सवालों के जवाब देते थे, वे चर्चा में भाग लेते थे और बयानों पर स्पष्टीकरण भी देते थे. उन्होंने कहा कि इस सत्र में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री 'अनुपस्थित' रहे तथा किसी सवाल का जवाब नहीं दिया और किसी चर्चा में भी भाग नहीं लिया.

गौरतलब है कि संसद का 19 जुलाई से शुरू हुआ मानसून सत्र अपने पूर्व निर्धारित समय से दो दिन पहले ही बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. विपक्षी दलों के हंगामे के कारण लोकसभा में जहां मात्र 22 प्रतिशत वहीं राज्यसभा में महज 28 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया.

यह भी पढ़ें-विपक्षी दलों ने संसद से विजय चौक तक किया पैदल मार्च

राज्यसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के अनुसार वर्तमान सत्र में मात्र 28 प्रतिशत कामकाज हुआ. इस दौरान सदन में 28 घंटे 21 मिनट कामकाज हुआ और हंगामे के कारण 76 घंटे 26 मिनट का कामकाज बाधित हुआ. सत्र के दौरान 19 विधेयक पारित किए गये और पांच विधेयकों को पेश किया गया.

यह भी दिलचस्प है कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने संसद में हुए हंगामे को गुरुवार को कहा था कि लोग संसद में अपने मुद्दों को उठाए जाने का इंतजार करते हैं. जबकि अराजकता विपक्ष का एजेंडा रहा. उन्हें लोगों, करदाताओं के पैसे की परवाह नहीं है, जो हुआ वह निंदनीय था. घड़ियाली आंसू बहाने के बजाय देश से माफी मांगे.

अनुराग ठाकुर ने कहा कि पीएम ने नए मंत्रियों से कहा था कि वे राज्यसभा जाएं और गुणवत्तापूर्ण बहसें सुनें. लेकिन हमें उनसे फीडबैक मिला कि टेबल किस लिए हैं- डांस करने के लिए या टेबल्स का कोई और मकसद है? क्या मंत्रियों को इस राज्यसभा में आने के लिए कहा गया था जहां लोकतंत्र का अपमान किया गया था?

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : संसद का मानसून सत्र हंगामेदार रहा. 16 दिनों की बैठकों में महज गिनती के घंटों में सार्थक चर्चा हुई. राज्य सभा में सांसदों के अशोभनीय आचरण से सभापति वेंकैया नायडू भावुक भी हुए. इसी बीच राज्य सभा सदस्य और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने कहा है कि संसद में हंगामे कारण दोनों सदनों में सभापति का तटस्थ न होने के अलावा सरकार का अपनी बातों से मुकर जाना है.

पी चिदंबरम ने संसद में जासूसी विवाद पर कोई चर्चा नहीं होने पर कहा, उच्चतम न्यायालय केवल एक उम्मीद है. उन्होंने कहा कि भाजपा से मुकाबले के लिए विपक्षी एकता बनाने में आने वाली मुश्किलें दूर होंगी और 2024 के चुनावों से पहले ऐसा हो जाएगा. पेगासस जासूसी मामले पर चिदंबरम ने कहा, 'मैं आशा करता हूं कि उच्चतम न्यायालय इस मुद्दे पर सुनवाई करेगा और जांच का आदेश देगा.'

संसद में कांग्रेस के रणनीति संबंधी समूह के सदस्य चिदंबरम ने मानसून सत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की 'अनुपस्थिति' को लेकर सवाल किया और यह आरोप लगाया कि भाजपा सरकार को संसद के प्रति बहुत कम सम्मान है और अगर प्रधानमंत्री मोदी एवं अमित शाह की चले तो वो 'संसद को बंद कर देंगे.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि 2024 में भाजपा के मुकाबले विपक्षी एकजुटता बनाने में निश्चित तौर पर कुछ परेशानियां आएंगी, लेकिन धैर्य, बातचीत और बैठकों के जरिये यह संभव हो जाएगा.

राज्यसभा में गत बुधवार को हुए हंगामे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह स्थिति उस वक्त पैदा हुई जब सरकार अपने कहे इन शब्दों से पीछे हट गई कि ओबीसी संबंधी संविधान संशोधन विधेयक पारित होने के बाद सदन की बैठक को अनिश्चिकाल के लिए स्थगित कर दिया जाएगा.

उनके मुताबिक, विपक्ष ने स्पष्ट कर दिया था कि वह बीमा संबंधी कानूनों में संशोधन करने वाले विधेयक के विरोध में है और इसे संसद की प्रवर समिति के पास भेजा जाना चाहिए. इसको लेकर कोई सहमति नहीं बनी तो यह कहा गया कि इसे संसद के इस सत्र में चर्चा और पारित कराने के लिए नहीं लिया जाएगा.

चिदंबरम ने दावा किया, 'संवैधानिक संशोधन विधेयक सर्वसम्मति से पारित होने के बाद सरकार ने बीमा विधेयक और एक या दो अन्य विधेयकों को पारित कराने का प्रयास किया. यह चुपके से विधेयकों को पारित कराने की भाजपा की परिपाटी को आगे बढ़ाना था. ऐसे में विपक्ष ने सरकार का पुरजोर विरोध किया.'

उन्होंने आरोप लगाया, 'मैं यह कहते हुए माफी चाहता हूं कि आसन ने तटस्थ भूमिका नहीं निभाई और ऐसे में संसद में हंगामा हुआ. परंतु हंगामे की शुरुआत सरकार की ओर से चुपके से विधेयक पारित कराने के प्रयास से हुई.'

लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला और राज्यसभा के सभापति एम वेंकैया नायडू की ओर से विपक्षी सदस्यों के व्यवहार को लेकर निराश जताने पर चिदंबरम ने कहा, 'मैं बहुत भारी मन से और अफसोस के साथ कहता हूं कि आसन को जिस तरह से तटस्थ होना चाहिए वो नहीं है तथा आसन सदन की भावना को नहीं दर्शाता है.'

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सदन सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों से बनता है तथा आसन को सदन की पूरी भावना प्रदर्शित करनी चाहिए और सिर्फ एक पक्ष की भावना को नहीं दर्शाना चाहिए.

एक सवाल के जवाब में पूर्व गृह मंत्री ने कहा कि संप्रग सरकार के समय प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सदन में होते थे और संसद में सवालों के जवाब देते थे, वे चर्चा में भाग लेते थे और बयानों पर स्पष्टीकरण भी देते थे. उन्होंने कहा कि इस सत्र में प्रधानमंत्री और गृह मंत्री 'अनुपस्थित' रहे तथा किसी सवाल का जवाब नहीं दिया और किसी चर्चा में भी भाग नहीं लिया.

गौरतलब है कि संसद का 19 जुलाई से शुरू हुआ मानसून सत्र अपने पूर्व निर्धारित समय से दो दिन पहले ही बुधवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया. विपक्षी दलों के हंगामे के कारण लोकसभा में जहां मात्र 22 प्रतिशत वहीं राज्यसभा में महज 28 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया.

यह भी पढ़ें-विपक्षी दलों ने संसद से विजय चौक तक किया पैदल मार्च

राज्यसभा सचिवालय द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के अनुसार वर्तमान सत्र में मात्र 28 प्रतिशत कामकाज हुआ. इस दौरान सदन में 28 घंटे 21 मिनट कामकाज हुआ और हंगामे के कारण 76 घंटे 26 मिनट का कामकाज बाधित हुआ. सत्र के दौरान 19 विधेयक पारित किए गये और पांच विधेयकों को पेश किया गया.

यह भी दिलचस्प है कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने संसद में हुए हंगामे को गुरुवार को कहा था कि लोग संसद में अपने मुद्दों को उठाए जाने का इंतजार करते हैं. जबकि अराजकता विपक्ष का एजेंडा रहा. उन्हें लोगों, करदाताओं के पैसे की परवाह नहीं है, जो हुआ वह निंदनीय था. घड़ियाली आंसू बहाने के बजाय देश से माफी मांगे.

अनुराग ठाकुर ने कहा कि पीएम ने नए मंत्रियों से कहा था कि वे राज्यसभा जाएं और गुणवत्तापूर्ण बहसें सुनें. लेकिन हमें उनसे फीडबैक मिला कि टेबल किस लिए हैं- डांस करने के लिए या टेबल्स का कोई और मकसद है? क्या मंत्रियों को इस राज्यसभा में आने के लिए कहा गया था जहां लोकतंत्र का अपमान किया गया था?

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Aug 13, 2021, 8:04 PM IST
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