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Chandrayaan-3 : चंद्रयान-3 मिशन की सबसे बड़ी चुनौती अंतिम के 15 मिनट - 15 fifteen minutes of terror chandrayaan

चंद्रयान-3 मिशन के सबसे महत्वपूर्ण चरण अंतिम के 15 मिनट होते हैं. इस समय गति पर भी नियंत्रित रखा जाता है और लैंडर को लंबवत उतारना होता है. 2019 में इसी चरण में चूक हुई थी. इस बार कितनी तैयारी है, पूरे चरण को समझिए.

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चंद्रयान , डिजाइन फोटो
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Published : Aug 22, 2023, 1:47 PM IST

Updated : Aug 23, 2023, 12:45 PM IST

नई दिल्ली : चंद्रयान-3 इतिहास बनाने के काफी करीब पहुंच चुका है. बुधवार को शाम छह बजकर चार मिनट पर इसकी लैंडिंग निर्धारित है. करीब 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद चंद्रयान का लैंडर लैंड करेगा. यहां यह जानना बहुत जरूरी है पूरे मिशन में सबसे अधिक कठिन समय लैंडिंग की होती है. यानी अंतिम के 15 मिनट बहुत ही निर्णायक होते हैं. यह एक क्रिटिकल फेज होता है. आपको याद होगा कि पिछली बार 2019 में चंद्रयान-2 करीब-करीब अपने मिशन में कामयाब हो गया था. लेकिन अंतिम क्षण में हार्ड लैंडिंग की वजह से मिशन को झटका लगा था. सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन में समस्या आने की वजह से सही लैंडिंग नहीं हो सकी.

  • Chandrayaan-3 Mission:
    The mission is on schedule.
    Systems are undergoing regular checks.
    Smooth sailing is continuing.

    The Mission Operations Complex (MOX) is buzzed with energy & excitement!

    The live telecast of the landing operations at MOX/ISTRAC begins at 17:20 Hrs. IST… pic.twitter.com/Ucfg9HAvrY

    — ISRO (@isro) August 22, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

उस समय मिशन कक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मौजूद थे और वैज्ञानिकों के निराश होने पर उन्होंने उन्हें ढाढस बंधाया था. पीएम ने उन्हें इसे असफलता नहीं, बल्कि कामयाबी बताकर फिर से आगे की तैयारी करने को लेकर प्रेरित भी किया था. उसी का परिणाम है कि हमारे वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और उसी समय से वे इस मिशन की तैयारी में जुट गए थे. उस समय इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने इसे '15 मिनट का आतंक' बताया था. इस 15 मिनट में सौ किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है और गति पर नियंत्रण भी लगाया जाता है. उस समय चुनौती गति को नियंत्रित करने और लैंडर को लंबवत उतारने की होती है.

100 किलोमीटर के बाद जब 30 किमी की दूरी बच जाती है, तब इसका रॉकेट प्रज्वलित होता है और लैंडर को लंबवत अवस्था में रखता है, ताकि वह उसी दिशा में सरफेस पर पहुंच सके, अन्यथा लैंडर पलट भी सकता है. वैसे, यहां से भी अलग-अलग चरण होते हैं और अंतिम के 800 मीटर बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं. दरअसल, 2019 का चंद्रयान -2 मिशन चंद्रमा के पास 2.1 किलोमीटर तक पहुंच गया था. पर, मॉड्यूल में समस्या आने की वजह से मिशन पूरा नहीं हो सका.

  • Chandrayaan-3 Mission:
    🌎 viewed by
    Lander Imager (LI) Camera
    on the day of the launch
    &
    🌖 imaged by
    Lander Horizontal Velocity Camera (LHVC)
    a day after the Lunar Orbit Insertion

    LI & LHV cameras are developed by SAC & LEOS, respectively https://t.co/tKlKjieQJSpic.twitter.com/6QISmdsdRS

    — ISRO (@isro) August 10, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

क्या इस बार भी यह समस्या आ सकती है. इस पर इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि हमने पूरी तैयार की है. उन्होंने कहा कि पिछली बार हमलोगों से जो भी मामूली सी असावधानी हुई थी, उसे दुरुस्त कर लिया गया है और उस पर नजर बनी हुई है.

अब आप समझिए उतरने की प्रक्रिया इतनी मुश्किल क्यों होती है. चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है. वहां पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में छह गुना कम होता है. जब तक चंद्रयान चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के दायरे में नहीं आता है, तो उसे बूस्टर की मदद से गति पर नियंत्रण रखा जाता है. लेकिन एक बार चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के दायरे में आने के बाद उसकी गति को कंट्रोल करना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. चंद्रमा पर लैंडिंग पैराशूट की मदद से करनी होती है. इस दौरान लैंडर की गति को नियंत्रित रखना होता है, अगर गति नियंत्रित नहीं हुई, तो हार्ड लैंडिंग होगी और हार्ड लैंडिंग में लैंडर के नष्ट होने का खतरा बरकरार रहता है.

लैंडर की गति को नियंत्रित करने के लिए उसमें रॉकेट लगाया जाता है. रॉकेट प्रज्वलित होने के बाद लैंडर की गति को नियंत्रित कर लेता है. और इसकी वजह से ही लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग होती है, यानी धीमी गति से लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. पूरे मिशन पर इसरो के नियंत्रण कक्ष से मॉनिटरिंग की जा रही है. अंतिम चरण में सबकुछ ऑटोफीडेड होता है. उस समय न तो बूस्टर से मदद की जा सकती है और न ही दिशा बदली जा सकती है. लैंडिंग की प्रोग्रामिंग पहले से ही बनाई गई है और यह उसके अनुरूप अपना काम करेगा.

इस समय महत्वपूर्ण चरण होता है कि लैंडर किस एंगल पर चंद्रमा पर उतरेगा. चंद्रयान लैंडर के चारों पैर किसी लंबवत तरीके से नहीं टच कर सकता है. और जहां पर लैंडर उतरेगा, वहां का सरफेस कैसा है, इस पर निर्भर करता है. उस समय लैंडर को लंबवत उतरना होता है. यदि लैंडर इसकी सटीक लैंडिंग करता है, तभी रोवर बाहर आएगा और वह अपना काम शुरू कर सकेगा. रोवर लैंडर के अंदर है. वहां से सारा डेटा और विश्लेषण रोवर के जरिए ही भेजा जाएगा. इसरो ने बताया कि उसने इस बार लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर का उपयोग किया है. यह लैंडर की गति को मापता रहता है. 10 मीटर की ऊंचाई से पहले ही रॉकेट प्रज्वलन बंद हो जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसका राख पैनल पर पड़ सकता है और फिर चार्जिंग में समस्या आ सकती है.

ये भी पढ़ें :Chandrayaan-3 Mission : 1976 के बाद सिर्फ चीन का मिशन ही सफल रहा है

नई दिल्ली : चंद्रयान-3 इतिहास बनाने के काफी करीब पहुंच चुका है. बुधवार को शाम छह बजकर चार मिनट पर इसकी लैंडिंग निर्धारित है. करीब 40 दिनों की लंबी यात्रा के बाद चंद्रयान का लैंडर लैंड करेगा. यहां यह जानना बहुत जरूरी है पूरे मिशन में सबसे अधिक कठिन समय लैंडिंग की होती है. यानी अंतिम के 15 मिनट बहुत ही निर्णायक होते हैं. यह एक क्रिटिकल फेज होता है. आपको याद होगा कि पिछली बार 2019 में चंद्रयान-2 करीब-करीब अपने मिशन में कामयाब हो गया था. लेकिन अंतिम क्षण में हार्ड लैंडिंग की वजह से मिशन को झटका लगा था. सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी और इंजन में समस्या आने की वजह से सही लैंडिंग नहीं हो सकी.

  • Chandrayaan-3 Mission:
    The mission is on schedule.
    Systems are undergoing regular checks.
    Smooth sailing is continuing.

    The Mission Operations Complex (MOX) is buzzed with energy & excitement!

    The live telecast of the landing operations at MOX/ISTRAC begins at 17:20 Hrs. IST… pic.twitter.com/Ucfg9HAvrY

    — ISRO (@isro) August 22, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

उस समय मिशन कक्ष में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मौजूद थे और वैज्ञानिकों के निराश होने पर उन्होंने उन्हें ढाढस बंधाया था. पीएम ने उन्हें इसे असफलता नहीं, बल्कि कामयाबी बताकर फिर से आगे की तैयारी करने को लेकर प्रेरित भी किया था. उसी का परिणाम है कि हमारे वैज्ञानिकों ने हार नहीं मानी और उसी समय से वे इस मिशन की तैयारी में जुट गए थे. उस समय इसरो के अध्यक्ष के. सिवन ने इसे '15 मिनट का आतंक' बताया था. इस 15 मिनट में सौ किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है और गति पर नियंत्रण भी लगाया जाता है. उस समय चुनौती गति को नियंत्रित करने और लैंडर को लंबवत उतारने की होती है.

100 किलोमीटर के बाद जब 30 किमी की दूरी बच जाती है, तब इसका रॉकेट प्रज्वलित होता है और लैंडर को लंबवत अवस्था में रखता है, ताकि वह उसी दिशा में सरफेस पर पहुंच सके, अन्यथा लैंडर पलट भी सकता है. वैसे, यहां से भी अलग-अलग चरण होते हैं और अंतिम के 800 मीटर बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं. दरअसल, 2019 का चंद्रयान -2 मिशन चंद्रमा के पास 2.1 किलोमीटर तक पहुंच गया था. पर, मॉड्यूल में समस्या आने की वजह से मिशन पूरा नहीं हो सका.

  • Chandrayaan-3 Mission:
    🌎 viewed by
    Lander Imager (LI) Camera
    on the day of the launch
    &
    🌖 imaged by
    Lander Horizontal Velocity Camera (LHVC)
    a day after the Lunar Orbit Insertion

    LI & LHV cameras are developed by SAC & LEOS, respectively https://t.co/tKlKjieQJSpic.twitter.com/6QISmdsdRS

    — ISRO (@isro) August 10, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

क्या इस बार भी यह समस्या आ सकती है. इस पर इसरो के वर्तमान अध्यक्ष एस सोमनाथ ने कहा कि हमने पूरी तैयार की है. उन्होंने कहा कि पिछली बार हमलोगों से जो भी मामूली सी असावधानी हुई थी, उसे दुरुस्त कर लिया गया है और उस पर नजर बनी हुई है.

अब आप समझिए उतरने की प्रक्रिया इतनी मुश्किल क्यों होती है. चंद्रमा पर वायुमंडल नहीं है. वहां पर गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी की तुलना में छह गुना कम होता है. जब तक चंद्रयान चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के दायरे में नहीं आता है, तो उसे बूस्टर की मदद से गति पर नियंत्रण रखा जाता है. लेकिन एक बार चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के दायरे में आने के बाद उसकी गति को कंट्रोल करना बहुत चुनौतीपूर्ण होता है. चंद्रमा पर लैंडिंग पैराशूट की मदद से करनी होती है. इस दौरान लैंडर की गति को नियंत्रित रखना होता है, अगर गति नियंत्रित नहीं हुई, तो हार्ड लैंडिंग होगी और हार्ड लैंडिंग में लैंडर के नष्ट होने का खतरा बरकरार रहता है.

लैंडर की गति को नियंत्रित करने के लिए उसमें रॉकेट लगाया जाता है. रॉकेट प्रज्वलित होने के बाद लैंडर की गति को नियंत्रित कर लेता है. और इसकी वजह से ही लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग होती है, यानी धीमी गति से लैंडर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा. पूरे मिशन पर इसरो के नियंत्रण कक्ष से मॉनिटरिंग की जा रही है. अंतिम चरण में सबकुछ ऑटोफीडेड होता है. उस समय न तो बूस्टर से मदद की जा सकती है और न ही दिशा बदली जा सकती है. लैंडिंग की प्रोग्रामिंग पहले से ही बनाई गई है और यह उसके अनुरूप अपना काम करेगा.

इस समय महत्वपूर्ण चरण होता है कि लैंडर किस एंगल पर चंद्रमा पर उतरेगा. चंद्रयान लैंडर के चारों पैर किसी लंबवत तरीके से नहीं टच कर सकता है. और जहां पर लैंडर उतरेगा, वहां का सरफेस कैसा है, इस पर निर्भर करता है. उस समय लैंडर को लंबवत उतरना होता है. यदि लैंडर इसकी सटीक लैंडिंग करता है, तभी रोवर बाहर आएगा और वह अपना काम शुरू कर सकेगा. रोवर लैंडर के अंदर है. वहां से सारा डेटा और विश्लेषण रोवर के जरिए ही भेजा जाएगा. इसरो ने बताया कि उसने इस बार लेजर डॉपलर वेलोसीमीटर का उपयोग किया है. यह लैंडर की गति को मापता रहता है. 10 मीटर की ऊंचाई से पहले ही रॉकेट प्रज्वलन बंद हो जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसका राख पैनल पर पड़ सकता है और फिर चार्जिंग में समस्या आ सकती है.

ये भी पढ़ें :Chandrayaan-3 Mission : 1976 के बाद सिर्फ चीन का मिशन ही सफल रहा है

Last Updated : Aug 23, 2023, 12:45 PM IST
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