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जब चंद्रशेखर की 'भारत यात्रा रैली' को नाकाम करने के लिए इंदिरा ने दूरदर्शन पर चलवा दी फिल्म बॉबी - राहुल गांधी की भारत यात्रा

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व कर रहे हैं. जाहिर है इस यात्रा की चर्चा होते ही एक और भारत-यात्रा की याद ताजा हो आई है, जो आज से करीब 40 बरस पहले हुई थी. जनता पार्टी के नेता चंद्रशेखर जो बाद में प्रधानमंत्री बने, उस यात्रा के अगुआ थे. 'ईटीवी भारत' के नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने उस यात्रा के अनुभवों को जानने और उसके उद्देश्य समझने के लिए उन लोगों से बात की, जो उस यात्रा में चंद्रशेखर के साथ रहे. इनमें से एक हैं क्रांति प्रकाश, जो जैविक खेती अभियान के संस्थापक हैं और चंद्रशेखर की भारत यात्रा में शुरू से लेकर आखिर तक सहयात्री के तौर पर रहे. उनसे जानते हैं कि वह यात्रा किस तरह की थी और जनता किस तरह से चंद्रशेखर के साथ खड़ी हो गई थी.

Chandrashekhar
नेता चंद्रशेखर
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Published : Sep 9, 2022, 8:59 PM IST

नई दिल्ली : साल 1983 का जनवरी का महीना था जब युवा तुर्क कहे जाने वाले नेता चंद्रशेखर (Chandrashekhars) ने भारत यात्रा (bharat Yatra) की शुरुआत कन्याकुमारी से की थी. इस यात्रा में चंद्रशेखर के साथ शुरू से लेकर अंत तक रहे लोगों में क्रांति प्रकाश का भी नाम है. क्रांति प्रकाश पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बहुत नजदीकी लोगों में से हैं.

चंद्रशेखर की भारत यात्रा
चंद्रशेखर की भारत यात्रा

जनवरी 1983 में की उस यात्रा को याद करते हुए क्रांति प्रकाश कहते हैं 'जनवरी में कन्याकुमारी से चली वो यात्रा जून में खत्म हुई. उस यात्रा में शरद यादव, केसी त्यागी, मैं और सुबोधकांत सहाय सरीखे लोग थे. यात्रा के दौरान हम लोग रास्ते में पड़ने वाले स्कूलों में या किसी ऐसी जगह जहां गांवों में बारातें रुकवाईं जाती हों, रुक जाते थे. कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी के दरवाज़े पर ही हम लोग सो गए. हमारे पास मात्र एक गाड़ी यानी एक टेम्पो ट्रैवलर होती थी, जिसमें हम लोगों का सामान रखा रहता था. आधे हिस्से में सामान और आधे में ऑफिस चलता था. के. बाला सुब्रमण्यम उस ऑफिस के इंचार्ज होते थे और जो भी चंदा हमें मिलता था, उसका हिसाब रखते थे.'

चंद्रशेखर की भारत यात्रा रैली
चंद्रशेखर की भारत यात्रा रैली

ये पूछने पर कि चंद्रशेखर पूरे देश को पैदल क्यों नापना चाहते थे, क्रांति प्रकाश बताते हैं कि यात्रा का मूल उद्देश्य भारत के गांवों-कस्बों की समस्याओं से रूबरू होना था. खास तौर पर इस यात्रा के दौरान पानी को लेकर अध्ययन भी करना था. देश के बहुत से इलाके पानी की समस्या से दो-चार हो रहे थे. चंद्रशेखर जी कहते भी थे कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा. यात्रा को लेकर बड़ी आलोचना भी हुई कि चंद्रशेखर विनोबा भावे या महात्मा गांधी बनना चाहते हैं. अंदरूनी बात ये थी कि चंद्रशेखर उस समय इंदिरा गांधी के बराबर के नेता बनना चाहते थे. यात्रा सफल रही और उससे चंद्रशेखर जी की एक पहचान बनी.

पेड़ के नीचे ही सुस्ता लेते थे चंद्रशेखर
पेड़ के नीचे ही सुस्ता लेते थे चंद्रशेखर

एक घटना का ज़िक्र करते हुए क्रांति प्रकाश बताते हैं- 'एक दिन जब यात्रा महाराष्ट्र के बॉर्डर पर पहुंची तो गांव वालों ने आराम करने के लिए सड़क पर ही एक जगह बना दी. तभी पास के गांव की एक औरत आई, उनकी हथेली पर एक रुपये का सिक्का रख दिया और कहा कि तुम अच्छा काम कर रहे हो. उस महिला के जाने के बाद चंद्रशेखर जी ने कहा कि मेरी निगाह में बजाज या दूसरे किसी उद्योगपति से मिले पैसे से इस एक रुपये की कीमत बहुत ज्यादा है.'

यात्रा के दौरान एक पड़ाव पर चंद्रशेखर
यात्रा के दौरान एक पड़ाव पर चंद्रशेखर

क्रांति प्रकाश बताते हैं कि चंद्रशेखर की लोकप्रियता उस यात्रा से इतनी बढ़ गई थी कि 25 जून 1983 को जब दिल्ली में यात्रा की समाप्ति पर वे रामलीला मैदान पर रैली कर रहे थे, तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन पर बॉबी फिल्म चलवा दी थी, ताकि लोग फिल्म देखने के लिए घर पर ही रहें, रामलीला मैदान न जा पाएं.

चंद्रशेखर के सेक्रेटरी रहे एचएन शर्मा भी उस यात्रा में थे. वो बताते हैं- 'चंद्रशेखर जी ने पहले ही कह दिया था कि रात को सोने के लिए न किसी होटल में जाएंगे न किसी गेस्ट हाउस में. मैंने एक दिन कहा भी कि आप सर्किट हाउस के लिए एनटाइटिल्ड भी हैं, बोले नहीं सर्किट हाउस में नहीं जाना है. सड़क के किनारे जहां पेड़ होता था, वे यात्रा के दौरान वहीं आराम करते थे. पैरों में कोई स्पोर्ट्स शूज़ नहीं, साधारण चप्पल पहनते थे. रात में जिस गांव में सोने के लिए ठहरना होता था, मैं उसका इंतज़ाम करने के लिए पहले चला जाता था. तो गांव के हर घर से दो-दो लोगों का खाना आता था, जिससे किसी पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े. इसके अलावा चंद्रशेखर जी का सख्त आदेश था कि खाना वही खाएंगे जो उस गांव के लोगों का खाना हो, अलग से कुछ नहीं बनवाना. कमल मोरारका और सुनील दत्त जैसे लोग भी यात्रा में शामिल हुए. लेकिन चंद्रशेखर जी ने किसी से कुछ नही लिया. एक बार जब लोगों ने थकान बहुत हो जाने की शिकायत की, तो उन्होंने झटसे कहा कि दो-चार तख्तियां बनवा कर लाओ जिस पर लिखा हो-ये भी नहीं रहेगा-मोहनदास कर्मचंद गांधी. उनका आशय था कि तकलीफें हमेशा नहीं रहतीं.'

शर्मा बताते हैं कि यात्रा के दौरान चंद्रशेखर की लक्ज़री, बस इतनी होती थी कि पसीना आने की वजह से वे तीन बार नहाते थे, सुबह, दोपहर और शाम. यही उनकी लक्ज़री थी.

बेशक चंद्रशेखर की उस यात्रा को चार दशक हो चले हों, इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि 1983 की उस यात्रा से चंद्रशेखर का कद भारतीय राजनीति में बढ़ गया. बाद में वे देश के प्रधानमंत्री भी बने. देखने वाली बात ये होगी कि आज सोशल मीडिया के ज़माने में कांग्रेस की ये यात्रा राहुल गांधी को कितना परिपक्व बनाती है, उन्हें कितनी बढ़त दिला पाती है.

पढ़ें- भारत जोड़ो यात्रा का तीसरा दिन: कांग्रेस अध्यक्ष के सवाल पर राहुल ने दिया यह जवाब

पढ़ें- भाजपा का तंज, '41 हजार रु. की टी-शर्ट पहनकर भारत देखने निकले राहुल'

नई दिल्ली : साल 1983 का जनवरी का महीना था जब युवा तुर्क कहे जाने वाले नेता चंद्रशेखर (Chandrashekhars) ने भारत यात्रा (bharat Yatra) की शुरुआत कन्याकुमारी से की थी. इस यात्रा में चंद्रशेखर के साथ शुरू से लेकर अंत तक रहे लोगों में क्रांति प्रकाश का भी नाम है. क्रांति प्रकाश पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के बहुत नजदीकी लोगों में से हैं.

चंद्रशेखर की भारत यात्रा
चंद्रशेखर की भारत यात्रा

जनवरी 1983 में की उस यात्रा को याद करते हुए क्रांति प्रकाश कहते हैं 'जनवरी में कन्याकुमारी से चली वो यात्रा जून में खत्म हुई. उस यात्रा में शरद यादव, केसी त्यागी, मैं और सुबोधकांत सहाय सरीखे लोग थे. यात्रा के दौरान हम लोग रास्ते में पड़ने वाले स्कूलों में या किसी ऐसी जगह जहां गांवों में बारातें रुकवाईं जाती हों, रुक जाते थे. कई बार ऐसा भी हुआ कि किसी के दरवाज़े पर ही हम लोग सो गए. हमारे पास मात्र एक गाड़ी यानी एक टेम्पो ट्रैवलर होती थी, जिसमें हम लोगों का सामान रखा रहता था. आधे हिस्से में सामान और आधे में ऑफिस चलता था. के. बाला सुब्रमण्यम उस ऑफिस के इंचार्ज होते थे और जो भी चंदा हमें मिलता था, उसका हिसाब रखते थे.'

चंद्रशेखर की भारत यात्रा रैली
चंद्रशेखर की भारत यात्रा रैली

ये पूछने पर कि चंद्रशेखर पूरे देश को पैदल क्यों नापना चाहते थे, क्रांति प्रकाश बताते हैं कि यात्रा का मूल उद्देश्य भारत के गांवों-कस्बों की समस्याओं से रूबरू होना था. खास तौर पर इस यात्रा के दौरान पानी को लेकर अध्ययन भी करना था. देश के बहुत से इलाके पानी की समस्या से दो-चार हो रहे थे. चंद्रशेखर जी कहते भी थे कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा. यात्रा को लेकर बड़ी आलोचना भी हुई कि चंद्रशेखर विनोबा भावे या महात्मा गांधी बनना चाहते हैं. अंदरूनी बात ये थी कि चंद्रशेखर उस समय इंदिरा गांधी के बराबर के नेता बनना चाहते थे. यात्रा सफल रही और उससे चंद्रशेखर जी की एक पहचान बनी.

पेड़ के नीचे ही सुस्ता लेते थे चंद्रशेखर
पेड़ के नीचे ही सुस्ता लेते थे चंद्रशेखर

एक घटना का ज़िक्र करते हुए क्रांति प्रकाश बताते हैं- 'एक दिन जब यात्रा महाराष्ट्र के बॉर्डर पर पहुंची तो गांव वालों ने आराम करने के लिए सड़क पर ही एक जगह बना दी. तभी पास के गांव की एक औरत आई, उनकी हथेली पर एक रुपये का सिक्का रख दिया और कहा कि तुम अच्छा काम कर रहे हो. उस महिला के जाने के बाद चंद्रशेखर जी ने कहा कि मेरी निगाह में बजाज या दूसरे किसी उद्योगपति से मिले पैसे से इस एक रुपये की कीमत बहुत ज्यादा है.'

यात्रा के दौरान एक पड़ाव पर चंद्रशेखर
यात्रा के दौरान एक पड़ाव पर चंद्रशेखर

क्रांति प्रकाश बताते हैं कि चंद्रशेखर की लोकप्रियता उस यात्रा से इतनी बढ़ गई थी कि 25 जून 1983 को जब दिल्ली में यात्रा की समाप्ति पर वे रामलीला मैदान पर रैली कर रहे थे, तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दूरदर्शन पर बॉबी फिल्म चलवा दी थी, ताकि लोग फिल्म देखने के लिए घर पर ही रहें, रामलीला मैदान न जा पाएं.

चंद्रशेखर के सेक्रेटरी रहे एचएन शर्मा भी उस यात्रा में थे. वो बताते हैं- 'चंद्रशेखर जी ने पहले ही कह दिया था कि रात को सोने के लिए न किसी होटल में जाएंगे न किसी गेस्ट हाउस में. मैंने एक दिन कहा भी कि आप सर्किट हाउस के लिए एनटाइटिल्ड भी हैं, बोले नहीं सर्किट हाउस में नहीं जाना है. सड़क के किनारे जहां पेड़ होता था, वे यात्रा के दौरान वहीं आराम करते थे. पैरों में कोई स्पोर्ट्स शूज़ नहीं, साधारण चप्पल पहनते थे. रात में जिस गांव में सोने के लिए ठहरना होता था, मैं उसका इंतज़ाम करने के लिए पहले चला जाता था. तो गांव के हर घर से दो-दो लोगों का खाना आता था, जिससे किसी पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े. इसके अलावा चंद्रशेखर जी का सख्त आदेश था कि खाना वही खाएंगे जो उस गांव के लोगों का खाना हो, अलग से कुछ नहीं बनवाना. कमल मोरारका और सुनील दत्त जैसे लोग भी यात्रा में शामिल हुए. लेकिन चंद्रशेखर जी ने किसी से कुछ नही लिया. एक बार जब लोगों ने थकान बहुत हो जाने की शिकायत की, तो उन्होंने झटसे कहा कि दो-चार तख्तियां बनवा कर लाओ जिस पर लिखा हो-ये भी नहीं रहेगा-मोहनदास कर्मचंद गांधी. उनका आशय था कि तकलीफें हमेशा नहीं रहतीं.'

शर्मा बताते हैं कि यात्रा के दौरान चंद्रशेखर की लक्ज़री, बस इतनी होती थी कि पसीना आने की वजह से वे तीन बार नहाते थे, सुबह, दोपहर और शाम. यही उनकी लक्ज़री थी.

बेशक चंद्रशेखर की उस यात्रा को चार दशक हो चले हों, इस बात से इनकार नही किया जा सकता कि 1983 की उस यात्रा से चंद्रशेखर का कद भारतीय राजनीति में बढ़ गया. बाद में वे देश के प्रधानमंत्री भी बने. देखने वाली बात ये होगी कि आज सोशल मीडिया के ज़माने में कांग्रेस की ये यात्रा राहुल गांधी को कितना परिपक्व बनाती है, उन्हें कितनी बढ़त दिला पाती है.

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