बिलासपुर : साउथ ईस्टर्न सेंट्रल रेलवे का बिलासपुर जोन रेलवे का कमाउ पूत कहलाता है. इस जोन से लदान के माध्यम से रेलवे करोड़ों का लाभ अर्जित करता है.बावजूद इसके सबसे ज्यादा यात्री ट्रेनें इसी जोन से पिछले कुछ सालों में रद्द की गई हैं. अचानक ट्रेनें रद्द करने से यात्रियों को मुसीबत तो उठानी पड़ी ही,साथ ही साथ रेल के माध्यम से रोजाना कमाई करने वाले वेंडर्स और कुली भी प्रभावित हुए. क्योंकि ट्रेनें रद्द होने से स्टेशन वीरान हो गए और स्टेशन के जरिए कमाई की आस लगाए लोगों का जीवन कठिनाईयों से घिर गया.बिलासपुर रेलवे स्टेशन की बात करें तो इस स्टेशन पर काम करने वाले कुली इन दिनों मुसीबत में हैं. कमाई नहीं होने से अब कुलियों का परिवार आर्थिक संकट का सामना कर रहा है.
कुलियों के बीच पहुंचा ईटीवी भारत : रेलवे स्टेशन में लोगों का सामान ढोने वाले कुलियों की कमाई यात्री ट्रेनों के भरोसे ही होती है. लेकिन पिछले कुछ दिनों में हजारों की संख्या में ट्रेनें रद्द होने से कुलियों की आर्थिक स्थिति डगमगा गई. बिलासपुर रेलवे स्टेशन में कुली संगठित होकर एक दूसरे की मदद करते हुए कमाई करते हैं. जिसमें पुरुष से लेकर महिला कुली भी शामिल हैं. ईटीवी भारत की टीम कुलियों के बीच पहुंची. इसके बाद जो कहानी सामने आई वो काफी हैरान करने वाली थी. कुलियों की हालत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि रोजाना के सौ रुपए कमाना भी एक कुली के लिए मुश्किल है. कुलियों की माने तो वो जो काम कर रहे हैं,उसे वो अपने बच्चों को नहीं करवाना चाहते.लेकिन अब कमाई नहीं होने से बच्चों के शिक्षा पर भी असर पड़ने लगा है.
पांच बच्चों को पालना हो रहा मुश्किल : बिलासपुर रेलवे स्टेशन में महिला कुली अनूपा यादव पिछले 15 साल से काम कर रही हैं. अनूपा के पति बिलासपुर स्टेशन में ही कुली का काम करते थे. बच्चों को पढ़ाकर काबिल बनाने के लिए अनूपा के पति ने सभी बच्चों का दाखिला अच्छे स्कूल में कराया.लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था.अनूपा के पति का अचानक देहांत हो गया.जिसके बाद परिवार की जिम्मेदारी के साथ बच्चों की पढ़ाई लिखाई का जिम्मा भी अनूपा के सिर आ गया.लिहाजा पति के काम को ही अनूपा ने चुना और कुली बन गई.लेकिन ट्रेनें रद्द होने से यात्री नहीं आ रहे जिससे रोजाना की कमाई पर असर पड़ा है.अनूपा के मुताबिक अब उसे समझ में नहीं आ रहा है कि बच्चों की पढ़ाई के लिए फीस का इंतजाम कैसे होगा.
स्टेशनों में यात्री सुविधाएं बढ़ने से कुली हुए कम : अनूपा की माने तो स्टेशनों में यात्री सुविधाएं बढ़ रहीं हैं. पहले एक्सीलेटर और अब लिफ्ट लगने से यात्री अपने सामान को खुद एक जगह से दूसरे जगह लेकर जा रहे हैं.ऊपर से बची हुई कसर यात्री ट्रेनों के कैंसिलेशन ने पूरी कर दी. हम लोग चाहते हैं कि रेलवे हमें स्थायी काम दे दें.
''आए दिन यात्रियों की सुविधाएं बढ़ाने के लिए रेलवे कुछ ना कुछ कर रहा है. जैसे प्लेटफॉर्म में लिफ्ट लगा दिया गया है. एक्सीलेटर लगाया गया है. जिसकी वजह से यात्री अपना सामान खुद ही बाहर से ट्रेन तक ले जाते हैं. ट्रेनों के कैंसिल होने की वजह से काम ज्यादा मिलता नहीं है, अब यात्रियों को कुलियों की जरूरत नहीं पड़ती.'': अनूपा यादव, महिला कुली
रेलवे से ग्रुप डी में भर्ती करने की अपील: कोविड काल के दौरान यात्री ट्रेनें कई महीनों तक बंद थी.ऐसे में कुलियों के लिए ये दौर किसी आपातकाल से कम नहीं था. कुली हरेंद्र धृतलहरे की मानें तो उन्हें अब रेलवे से ही उम्मीद है. क्योंकि घर पर तीन बच्चे हैं. कमाई नहीं हो रही.ऐसे में बच्चों की पढ़ाई और घर का खर्च कैसे चलेगा. इस बात को लेकर हमेशा चिंता सताए रहती है. हरेंद्र ने बताया कि कुली के संगठन ने कोर्ट में केस भी लड़ा कि उनके लिए रेलवे कुछ करें. लेकिन वहां भी निराशा हाथ लगी. अब तो हमें ऐसे किसी का इंतजार है,जो हमारी तकलीफों को समझे.
''घर में तीन बच्चे हैं. रेलवे हम पर ध्यान नहीं देता क्या कमाते हैं क्या खाते हैं.बहुत स्थिति खराब है. हम लोग चाहते हैं रेलवे हम पर ध्यान दे,ग्रुप डी में नौकरी दे दे तो परिवार चल जाता. कई बार पूरे दिन एक भी पैसा नहीं आने की वजह से रात में घर में चूल्हा नहीं जलता.पैसे नहीं होने से आर्थिक स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.'' हरित धृतलहरे, कुली
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कुलियों को हालात सुधरने का इंतजार : बिलासपुर रेलवे स्टेशन के जैसे ही देश के कई स्टेशनों में काम करने वाले कुलियों का हाल है. कुली तब ही कमाई कर पाते हैं. जब ट्रेनें स्टेशनों पर यात्रियों को लेकर आती है.लेकिन यात्री ट्रेनें रद्द होने से अब ये कुली बिना काम के हो गए हैं.जो ट्रेनें चल भी रही हैं,उनमें भी कई यात्री स्टेशन में मिल रही सुविधाओं के कारण अपना सामान खुद उठाते हैं. ऐसे में कुलियों का जीवन संकट में है.दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कुलियों के बीच जाकर उनका दर्द साझा किया.जिसके बाद अब एक बार फिर लोगों का ध्यान कुलियों के हालत पर गया है.कुली भी अब उस वक्त का इंतजार कर रहे हैं,जब सरकार और रेलवे उनके बारे में कोई बड़ा फैसला लेगी.लेकिन तब तक इनका जीवन कैसे कटेगा,इसका जवाब जिम्मेदारों के पास भी नहीं है.