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पुलवामा के पायर के सदियों पुराने मंदिर को सुरक्षित रखे हैं मुस्लिम परिवार

जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले के पयार गांव में स्थित सदियों पुराने मंदिर को यहां के मुस्लिम परिवारों द्वारा सुरक्षित रखा गया है. इतना ही नहीं यहां के मुस्लिम लोगों के द्वारा इसकी देखरेख की जाती रही है, हालांकि 2020 से इस मंदिर का प्रबंधन एएसआई के द्वारा संभाला जा रहा है. खास बात यह है कि इस गांव में एक भी हिंदू नहीं परिवार नहीं है. फिर भी यहां के लोग मंदिर के रखरखाव में पूरा योगदान देते हैं. पढ़िए पूरी रिपोर्ट.

Temple at Pair of Pulwama
पुलवामा के पायर स्थित मंदिर
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Published : Aug 20, 2022, 10:08 PM IST

Updated : Aug 20, 2022, 10:14 PM IST

पुलवामा : जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित पुलवामा बेहद सुंदर है, जिसे कश्मीर का धान का कटोरा कहा जाता है. यहां स्थित पायेर मंदिर लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है. इसे पेटेक मंदिर भी कहा जाता है. पुलवामा जिले के सबसे आकर्षक विरासत स्थलों में एक इस मंदिर को 10वीं शताब्दी में इसे एक पत्थर से बनाया गया था. आठ विशाल पत्थरों में तराशे गए इस मंदिर की देखभाल स्थानीय मुसलमान कर रहे हैं. भले ही मंदिर का प्रबंधन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किया जाता है, लेकिन ग्रामीण बड़े पैमाने पर मंदिर के रखरखाव में योगदान करते हैं.

एक रिपोर्ट

पुलवामा जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर पयार गांव में स्थित इस मंदिर ने सदियों से चली आ रही मौसम की अनिश्चितता और परिस्थितियों को झेला है. ऐतिहासिक मंदिर का उल्लेख सर वाल्टर लॉरेंस की प्रसिद्ध पुस्तक द वैली ऑफ कश्मीर में भी मिलता है. उस समय ब्रिटिश बंदोबस्त आयुक्त लॉरेंस, जिन्हें 1880 के दशक में सामंती शासकों द्वारा कश्मीर में भूमि अभिलेखों को अनुशासित करने के लिए नियुक्त किया गया था. उन्होंने मंदिर के निर्देशांकों का उल्लेख किया था जो अभी भी बरकरार है. चार तराशे हुए प्रवेश द्वारों वाला मंदिर नरेंद्रादित्य के शासनकाल के दौरान बनाया गया था, जिन्होंने 483 ईस्वी से 490 ईस्वी तक शासन किया था. इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की मूर्तियां हैं, जबकि इस मंदिर के अंदर लिंगम नामक एक बड़ा पत्थर भी है. एक अन्य लेखक बैरन ह्यूगल का कहना है कि यह कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. पुलवामा जिले के सबसे लोकप्रिय धार्मिक आकर्षणों में से एक इस मंदिर को यात्रियों द्वारा पायच मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर की वास्तुकला पत्थर की नक्काशी से बनी है.

इस बारे में एक इतिहास शोधकर्ता रौफ भट ने कहा, यह एक पुरातात्विक रूप से महत्वपूर्ण गांव है. यह हमें बताता है कि यह गांव पाषाण युग के दौरान बसा हुआ था. उन्होंने कहा कि इतिहास की किताबों में मंदिर की ज्यादा चर्चा नहीं है, लेकिन अतीत में ज्यादातर यात्रियों ने इस जगह का भ्रमण किया है. दिलचस्प बात यह है कि मंदिर बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी से घिरा हुआ है. वहीं ग्रामीण मुख्य संरचना और परिवेश के रखरखाव में योगदान करते हैं. हालांकि कश्मीर में कई मंदिरों का रखरखाव की कमी के कारण नुकसान हुआ क्योंकि कश्मीरी हिंदू आबादी जिसमें कश्मीरी पंडित शामिल हैं कश्मीर में उग्रवाद के बढ़ने की वजह से 1990 के दशक के शुरू में ही घाटी छोड़कर चली गई. अधिकारियों का कहना है कि पिछले तीन दशकों में 208 मंदिरों को नुकसान पहुंचा है. लेकिन इस मंदिर को स्थानीय मुसलमानों द्वारा संरक्षित किया गया है और इसे अपने मूल रूप में रखा गया है.

इस बारे में ईटीवी भारत से बात करते हुए स्थानीय लोगों ने बताया कि इस गांव में कोई पंडित परिवार नहीं रहता है लेकिन अन्य पड़ोसी गांवों के पंडित यहां आकर पूजा करते थे. गांव के मुखिया गुलाम मुहम्मद ने कहा, हम इस मंदिर की हमेशा से देखभाल कर रहे हैं. यह हमारी अपनी विरासत है, सांप्रदायिक सद्भाव और सहिष्णुता का एक उदाहरण है. उन्होंने कहा कि देसी और विदेशी पर्यटक भी यहां अक्सर आते हैं क्योंकि मंदिर अपनी सुंदर वास्तुकला और शिव की नक्काशीदार मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है. वे यहां आने और इसके इतिहास के बारे में जानने में बहुत रुचि दिखाते हैं. बता दें कि साल 2020 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे चारों तरफ से सील कर दिया और इसका रखरखाव और संरक्षण शुरू कर दिया, लेकिन पहले इसे स्थानीय लोगों द्वारा बनाए रखा गया था.अब इसके मुख्य द्वार पर ताला लगा हुआ है और किसी को भी बिना अनुमति के प्रवेश की अनुमति नहीं है.

ये भी पढ़ें - 9 अरब रुपये से बदलेगी श्रीराम जन्मभूमि कॉरिडोर की सूरत, योगी सरकार ने जारी की पहली किस्त

पुलवामा : जम्मू-कश्मीर राज्य में स्थित पुलवामा बेहद सुंदर है, जिसे कश्मीर का धान का कटोरा कहा जाता है. यहां स्थित पायेर मंदिर लोकप्रिय धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है. इसे पेटेक मंदिर भी कहा जाता है. पुलवामा जिले के सबसे आकर्षक विरासत स्थलों में एक इस मंदिर को 10वीं शताब्दी में इसे एक पत्थर से बनाया गया था. आठ विशाल पत्थरों में तराशे गए इस मंदिर की देखभाल स्थानीय मुसलमान कर रहे हैं. भले ही मंदिर का प्रबंधन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा किया जाता है, लेकिन ग्रामीण बड़े पैमाने पर मंदिर के रखरखाव में योगदान करते हैं.

एक रिपोर्ट

पुलवामा जिला मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर पयार गांव में स्थित इस मंदिर ने सदियों से चली आ रही मौसम की अनिश्चितता और परिस्थितियों को झेला है. ऐतिहासिक मंदिर का उल्लेख सर वाल्टर लॉरेंस की प्रसिद्ध पुस्तक द वैली ऑफ कश्मीर में भी मिलता है. उस समय ब्रिटिश बंदोबस्त आयुक्त लॉरेंस, जिन्हें 1880 के दशक में सामंती शासकों द्वारा कश्मीर में भूमि अभिलेखों को अनुशासित करने के लिए नियुक्त किया गया था. उन्होंने मंदिर के निर्देशांकों का उल्लेख किया था जो अभी भी बरकरार है. चार तराशे हुए प्रवेश द्वारों वाला मंदिर नरेंद्रादित्य के शासनकाल के दौरान बनाया गया था, जिन्होंने 483 ईस्वी से 490 ईस्वी तक शासन किया था. इस मंदिर में ब्रह्मा, विष्णु और शिव की मूर्तियां हैं, जबकि इस मंदिर के अंदर लिंगम नामक एक बड़ा पत्थर भी है. एक अन्य लेखक बैरन ह्यूगल का कहना है कि यह कश्मीर के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है. पुलवामा जिले के सबसे लोकप्रिय धार्मिक आकर्षणों में से एक इस मंदिर को यात्रियों द्वारा पायच मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि इस मंदिर की वास्तुकला पत्थर की नक्काशी से बनी है.

इस बारे में एक इतिहास शोधकर्ता रौफ भट ने कहा, यह एक पुरातात्विक रूप से महत्वपूर्ण गांव है. यह हमें बताता है कि यह गांव पाषाण युग के दौरान बसा हुआ था. उन्होंने कहा कि इतिहास की किताबों में मंदिर की ज्यादा चर्चा नहीं है, लेकिन अतीत में ज्यादातर यात्रियों ने इस जगह का भ्रमण किया है. दिलचस्प बात यह है कि मंदिर बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी से घिरा हुआ है. वहीं ग्रामीण मुख्य संरचना और परिवेश के रखरखाव में योगदान करते हैं. हालांकि कश्मीर में कई मंदिरों का रखरखाव की कमी के कारण नुकसान हुआ क्योंकि कश्मीरी हिंदू आबादी जिसमें कश्मीरी पंडित शामिल हैं कश्मीर में उग्रवाद के बढ़ने की वजह से 1990 के दशक के शुरू में ही घाटी छोड़कर चली गई. अधिकारियों का कहना है कि पिछले तीन दशकों में 208 मंदिरों को नुकसान पहुंचा है. लेकिन इस मंदिर को स्थानीय मुसलमानों द्वारा संरक्षित किया गया है और इसे अपने मूल रूप में रखा गया है.

इस बारे में ईटीवी भारत से बात करते हुए स्थानीय लोगों ने बताया कि इस गांव में कोई पंडित परिवार नहीं रहता है लेकिन अन्य पड़ोसी गांवों के पंडित यहां आकर पूजा करते थे. गांव के मुखिया गुलाम मुहम्मद ने कहा, हम इस मंदिर की हमेशा से देखभाल कर रहे हैं. यह हमारी अपनी विरासत है, सांप्रदायिक सद्भाव और सहिष्णुता का एक उदाहरण है. उन्होंने कहा कि देसी और विदेशी पर्यटक भी यहां अक्सर आते हैं क्योंकि मंदिर अपनी सुंदर वास्तुकला और शिव की नक्काशीदार मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है. वे यहां आने और इसके इतिहास के बारे में जानने में बहुत रुचि दिखाते हैं. बता दें कि साल 2020 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे चारों तरफ से सील कर दिया और इसका रखरखाव और संरक्षण शुरू कर दिया, लेकिन पहले इसे स्थानीय लोगों द्वारा बनाए रखा गया था.अब इसके मुख्य द्वार पर ताला लगा हुआ है और किसी को भी बिना अनुमति के प्रवेश की अनुमति नहीं है.

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Last Updated : Aug 20, 2022, 10:14 PM IST
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