नई दिल्ली : केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आठ राज्यों से रिकॉर्ड डेटा पेश किया है. इसमें दावा किया गया है कि देश भर में ईसाइयों पर बढ़ते हमलों का आरोप लगाने वाली याचिका याचिकाकर्ताओं द्वारा एक झूठी तस्वीर पेश करने का प्रयास है. केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और छत्तीसगढ़ सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी ने मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कोलिन गोंजाल्विस के तर्को का विरोध किया. गोंजाल्विस ने कहा कि यह गिरफ्तारी का सवाल नहीं है.
केंद्र के अनुसार, बिहार में याचिकाकर्ताओं ने 38 घटनाओं (ईसाइयों पर हमले) का दावा किया, हालांकि राज्य सरकार ने 15 घटनाओं की सूचना दी. इनमें से पांच मामलों को दोनों पक्षों के बीच सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया, 12 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया और दो मामलों में चार्जशीट दायर की गई.
छत्तीसगढ़ में, याचिकाकर्ताओं द्वारा 119 घटनाओं का दावा किया गया था, हालांकि राज्य सरकार ने 36 घटनाओं की सूचना दी और 12 घटनाओं में पारिवारिक विवाद था, जिन्हें सौहार्दपूर्ण तरीके से सुलझा लिया गया और 64 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया और 13 मामलों में आरोप पत्र दायर किया गया.
उत्तर प्रदेश में, याचिकाकर्ताओं द्वारा 150 घटनाओं का दावा किया गया था, लेकिन राज्य सरकार द्वारा 70 घटनाओं की सूचना दी गई थी. इसने कहा कि 44 एफआईआर दर्ज की गईं और 72 अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया और 33 को सीआरपीसी की धारा 41-ए के तहत नोटिस दिया गया और 30 मामलों में आरोप पत्र दायर किए गए हैं.
सुनवाई के दौरान, मेहता ने ईसाइयों पर हमलों की संख्या पर याचिकाकर्तार्ओं के आंकड़ों को गलत बताया. उन्होंने बताया कि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि बिहार में 38 घटनाओं का दावा किया, लेकिन ये पड़ोसियों के बीच झगड़े थे। मामले में कार्रवाई की गई है.
दलीलें सुनने के बाद, पीठ में शामिल न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के वकील का कहना है कि गृह मंत्रालय का हलफनामा कल रात प्राप्त हुआ था और याचिकाकर्ताओं को जवाब दाखिल करने के लिए समय दिया जाना चाहिए, और मामले को तीन सप्ताह के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. याचिका डॉ. पीटर मचाडो और अन्य द्वारा दायर की गई है. गृह मंत्रालय के हलफनामे में कहा गया है कि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा दी गई जानकारी से यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ताओं के वकील ने घटनाओं की संख्या को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है.
हलफना में कहा गया है कि दो पक्षों के बीच कई तुच्छ विवादों को धार्मिक रंग दिया गया. उदाहरण के लिए जिला जौनपुर, उत्तर प्रदेश में एक घटना के संबंध में, याचिकाकर्ताओं के वकील ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि पुलिस ने पादरी प्रेम सिंह की प्रार्थना में बाधा डाली और पादरी को अपनी सेवाएं बंद करने की चेतावनी दी और साथ ही पादरी को हिरासत में लिया. लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार की सत्यापन रिपोर्ट से पता चलता है कि पादरी प्रेम सिंह का स्थानीय निवासी विजय कुमार के बीच भूमि विवाद है. इस मामले में पुलिस कार्रवाई को ईसाइयों के उत्पीड़न के रूप में पेश किया गया था. मामले को जानबूझकर धार्मिक रंग दिया गया था.
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(आईएएनएस)