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राजद्रोह कानून पर आखिर केंद्र ने क्यों लिया यू-टर्न, इसके पीछे सरकार की मंशा क्या है?

केंद्र सरकार की तरफ से सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में बताया गया कि राजद्रोह कानून पर फिर से विचार किया जाएगा. सरकार की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानी राजद्रोह के प्रावधानों की फिर से जांच करेगी और इस पर पुनर्विचार किया जाएगा. केंद्र सरकार दो दिन पहले हुई सुनवाई के दौरान इस कानून में फेरबदल पर असहमति जताई थी. आखिर अचानक केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना रुख क्यों बदला ? पढ़ें अनामिका रत्ना की रिपोर्ट

sedition law report
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Published : May 10, 2022, 9:47 PM IST

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून (sedition law) पर अचानक यू टर्न ने सबको हैरत में डाल दिया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में सरकार ने कहा कि उसने आईपीसी की धारा 124 ए पर पुनर्विचार करने और इस पर गंभीरता से मंथन करने का निर्णय लिया है. इससे पहले केंद्र सरकार इस बात पर अड़ी थी कि राजद्रोह कानून में वह कोई बदलाव नहीं चाहती है. पिछले शनिवार को ही सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह जवाब दिया था कि वह इस कानून में किसी भी तरह का फेरबदल नहीं करना चाहती और कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए.

सरकार की ओर कहा गया कि राजद्रोह कानून राजनीतिक अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने और असंतोष को रोकने के लिए औपनिवेशिक युग की मानसिकता को दर्शाता है. बड़े पैमाने पर इसके दुरुपयोग को देखते हुए सरकार ने अब इस पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है. हाल ही में कई गैर बीजेपी शासित राज्य में भाजपा और एनडीए के नेताओं पर भी राजद्रोह के कानून लगाए गए. माना जा रहा है कि इस कारण केंद्र सरकार ने अपने फैसले पर यू-टर्न ले लिया.

वरिष्ठ अधिवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम इसे सरकार का यू-टर्न नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि कुछ लोगों ने यह भ्रम फैला दिया था कि यह अंग्रेजों के समय का कानून है. सच यह है कि अंग्रेजों के जमाने में बने इस कानून में काफी बदलाव हो चुका है. पहले इस कानून में प्रावधान था कि यदि कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलेगा तो उस पर राजद्रोह का मुकदमा लगा दिया जाएगा. 1962 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने जब इस पर निर्णय दिया, तब इस कानून में काफी बदलाव हो गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ बोलने की इजाजत मिल गई, मगर हिंसा भड़काने की कोशिश करने पर राजद्रोह का कानून लागू करने का रास्ता साफ हो गया. उदाहरण के लिए नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद के जरिये हिंसा भड़काने पर राजद्रोह का कानून लगाया जा सकता है.

देश रतन निगम ने बताया कि राष्ट्रद्रोह कानून के बदलाव के बाद भी कई सरकारों ने इसके पुराने स्वरूप को लागू करने की कोशिश की. ऐसा नवनीत राणा और तजिंदर बग्गा के मामले में देखा जा सकता है. उन्होंने इस बात से भी सहमति जताई कि राष्ट्रद्रोह कानून का राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल होने लगा है, इस तरह इस कानून को काफी संकुचित करने की कोशिश की जा रही है. केंद्र सरकार अब इस पर विचार करेगी. इससे जुड़ा प्रस्ताव संसद में रखा जाएगा. संसद में चर्चा के दौरान जैसे विचार सामने आएंगे, उसी के हिसाब से इस कानून में बदलाव किया जाएगा. यदि संसद में कोई बदलाव नहीं चाहेगी तो यह कानून यथावत रहेगा. देश रतन निगम ने उम्मीद जताई कि अब इस कानून में बदलाव किया जा सकता है ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके.

पढ़ें : राजद्रोह कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने का फैसला लिया गया: केंद्र का SC में जवाब


नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून (sedition law) पर अचानक यू टर्न ने सबको हैरत में डाल दिया है. सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में सरकार ने कहा कि उसने आईपीसी की धारा 124 ए पर पुनर्विचार करने और इस पर गंभीरता से मंथन करने का निर्णय लिया है. इससे पहले केंद्र सरकार इस बात पर अड़ी थी कि राजद्रोह कानून में वह कोई बदलाव नहीं चाहती है. पिछले शनिवार को ही सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने यह जवाब दिया था कि वह इस कानून में किसी भी तरह का फेरबदल नहीं करना चाहती और कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए.

सरकार की ओर कहा गया कि राजद्रोह कानून राजनीतिक अभिव्यक्ति को नियंत्रित करने और असंतोष को रोकने के लिए औपनिवेशिक युग की मानसिकता को दर्शाता है. बड़े पैमाने पर इसके दुरुपयोग को देखते हुए सरकार ने अब इस पर पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है. हाल ही में कई गैर बीजेपी शासित राज्य में भाजपा और एनडीए के नेताओं पर भी राजद्रोह के कानून लगाए गए. माना जा रहा है कि इस कारण केंद्र सरकार ने अपने फैसले पर यू-टर्न ले लिया.

वरिष्ठ अधिवक्ता और राजनीतिक विश्लेषक देश रतन निगम इसे सरकार का यू-टर्न नहीं मानते हैं. उनका कहना है कि कुछ लोगों ने यह भ्रम फैला दिया था कि यह अंग्रेजों के समय का कानून है. सच यह है कि अंग्रेजों के जमाने में बने इस कानून में काफी बदलाव हो चुका है. पहले इस कानून में प्रावधान था कि यदि कोई भी व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलेगा तो उस पर राजद्रोह का मुकदमा लगा दिया जाएगा. 1962 में सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने जब इस पर निर्णय दिया, तब इस कानून में काफी बदलाव हो गया. इसके बाद सरकार के खिलाफ बोलने की इजाजत मिल गई, मगर हिंसा भड़काने की कोशिश करने पर राजद्रोह का कानून लागू करने का रास्ता साफ हो गया. उदाहरण के लिए नक्सलवाद, अलगाववाद, आतंकवाद के जरिये हिंसा भड़काने पर राजद्रोह का कानून लगाया जा सकता है.

देश रतन निगम ने बताया कि राष्ट्रद्रोह कानून के बदलाव के बाद भी कई सरकारों ने इसके पुराने स्वरूप को लागू करने की कोशिश की. ऐसा नवनीत राणा और तजिंदर बग्गा के मामले में देखा जा सकता है. उन्होंने इस बात से भी सहमति जताई कि राष्ट्रद्रोह कानून का राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल होने लगा है, इस तरह इस कानून को काफी संकुचित करने की कोशिश की जा रही है. केंद्र सरकार अब इस पर विचार करेगी. इससे जुड़ा प्रस्ताव संसद में रखा जाएगा. संसद में चर्चा के दौरान जैसे विचार सामने आएंगे, उसी के हिसाब से इस कानून में बदलाव किया जाएगा. यदि संसद में कोई बदलाव नहीं चाहेगी तो यह कानून यथावत रहेगा. देश रतन निगम ने उम्मीद जताई कि अब इस कानून में बदलाव किया जा सकता है ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके.

पढ़ें : राजद्रोह कानून के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने का फैसला लिया गया: केंद्र का SC में जवाब


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