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छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए केंद्रीय बोर्ड का समर्थन - राज्य केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की प्रणाली

स्कूली शिक्षा में पाठ्यक्रम बहुत महत्वपूर्ण होता है. देश के अलग-अलग राज्यों में अलग पाठ्यक्रम संचालित हो रहे हैं, जिससे राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं में उत्कृष्टता नहीं आ पाती. यही वजह है कि पूरे देश में केंद्रीय बोर्ड के पाठ्यक्रम संचालित करने की योजना बनाई जा रही है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल एक ड्रेस व एक पाठ्यक्रम की अवधारणा को खारिज कर दिया है. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

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Published : Mar 16, 2021, 4:09 PM IST

हैदराबाद : कोई भी पाठ्यक्रम छात्र की शिक्षा और उनके समग्र विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. स्कूल, प्रशिक्षक, शिक्षण और अध्ययन के पाठ्यक्रम ज्ञान अर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने एक तरह के ड्रेस और सामान्य पाठ्यक्रम की एक दलील को मानने से इनकार कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत जैसे विविधता भरे देश में इस तरह का प्रस्ताव असंभव है.

देश के कुछ राज्यों में शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण (councils of education research and training) की स्वतंत्र परिषदें हैं. अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, जम्मू और कश्मीर, सिक्किम, उत्तराखंड, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे राज्य केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश इस सूची में शामिल होने के लिए पूरी तरह तैयार है, क्योंकि राज्य सरकार ने सभी स्कूलों में 2021-22 से ग्रेड 1 से 7 के लिए सीबीएसई प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया है. आने वाले शैक्षणिक वर्षों में धीरे-धीरे 8वीं से 10वीं तक के कक्षा को भी शामिल किया जाएगा.

रचनात्मकता को सुगम बनाना

NCERT राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) के अनुसार तैयार करता है. जो भारत में स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकों और शिक्षण प्रथाओं के लिए एक दिशा-निर्देश तैयार करता है. 1961 में स्थापित NCF ने पाठ्यक्रम को 1975, 1988 और आखिरी बार 2000 में संशोधित किया था. यह 2021-22 में कुछ सुधार लाने की प्रक्रिया में है. चूंकि एनसीईआरटी, जेईई और एनईईटी जैसी राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं के लिए विभिन्न राज्य बोर्डों के पाठ्यक्रम को संहिताबद्ध करना कठिन है. इसलिए CBSE पाठ्यक्रम के आधार पर प्रश्न पत्र तैयार किया जाता है.

दूर होगी रट्टा मारने की बीमारी

ओडिशा, केरल और कर्नाटक में राजकीय पाठ्यक्रम हैं और उन्हें समय-समय पर संशोधित करने की दिशा में काम किया जा रहा है. छात्रों में रचनात्मकता को बढ़ावा देना चाहिए और सीखने के लिए रुचि जगाना चाहिए. अत्यधिक पाठ्यक्रम छात्रों पर बोझ डालते हैं. उन्हें अवधारणा को समझने के बजाय याद करने के लिए मजबूर करते हैं. यदि छात्र परीक्षाओं में स्मृति-परीक्षण के बजाय समझने वाले प्रश्नों को शामिल करते हैं, तो वे अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करेंगे. शिक्षाविदों की राय है कि केंद्रीय पाठ्यक्रम उपयुक्त और समग्र है, जबकि राज्य बोर्डों में रट्टा मारकर सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.

सीबीएसई दुनियाभर में मान्य प्रणाली

सामाजिक कार्य, रचनात्मकता, संगठनात्मक कौशल, पढ़ना, सांस्कृतिक गतिविधियों, संगीत, कला, खेल और सार्वजनिक स्पीच को केंद्रीय पाठ्यक्रम में समान रूप से प्राथमिकता दी जाती है. इसके अलावा सीबीएसई प्रणाली दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है. यह अमेरिका, यूरोप और सिंगापुर में शिक्षा प्रणालियों के अनुकूल है.

कंधे से कंधा मिलाकर चलें शिक्षक

अगर राज्य केंद्रीय पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए तैयार हैं, तो भी उन्हें योग्य शिक्षकों की कमी और खराब बुनियादी ढांचे की चुनौती को दूर करने की आवश्यकता है. ग्रामीण छात्रों के लिए अंग्रेजी और तेलुगु में पाठ्य पुस्तकें छापना फायदेमंद हो सकता है. तेलुगु में अनुवाद संबंधित शिक्षकों और विद्वानों के मार्गदर्शन से सरलतम तरीके से किया जाना चाहिए. कई अध्ययनों से पता चला कि भारतीय ग्रामीण छात्रों में अंग्रेजी शब्दावली सीमित है. इस संदर्भ में शिक्षकों को गणित, सामान्य और सामाजिक विज्ञान में प्रमुख शब्दावली को लोकप्रिय बनाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

अभिभावकों में जानकारी का अभाव

छात्रों को हाईस्कूल के बाद करियर विकल्प के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए. अधिकांश माता-पिता को अपने बच्चे के लिए उपयुक्त व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. अमेरिका और यूरोप में शिक्षा सलाहकार छात्रों के हितों पर ध्यान देते हैं और उपयुक्त पाठ्यक्रम सुझाते हैं. यहां भारत में स्कूली छात्रों की प्रतिभा को समझने और उच्च शिक्षा में विभिन्न विकल्पों की सिफारिश करने के लिए अभिभावक-शिक्षक बैठक आयोजित कर सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में चेतावनी दी है कि कोविड-19 स्थिति के कारण छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है.

यह भी पढ़ें-रेल मंत्री का देश को आश्वासन, रेलवे भारत की सम्पत्ति, नहीं होगा निजीकरण

इसलिए छात्रों के लिए तनाव मुक्त शैक्षणिक वर्ष सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता और शिक्षकों को अतिरिक्त प्रयास करना चाहिए.

हैदराबाद : कोई भी पाठ्यक्रम छात्र की शिक्षा और उनके समग्र विकास के लिए सबसे महत्वपूर्ण है. स्कूल, प्रशिक्षक, शिक्षण और अध्ययन के पाठ्यक्रम ज्ञान अर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने एक तरह के ड्रेस और सामान्य पाठ्यक्रम की एक दलील को मानने से इनकार कर दिया है. ऐसा इसलिए क्योंकि भारत जैसे विविधता भरे देश में इस तरह का प्रस्ताव असंभव है.

देश के कुछ राज्यों में शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण (councils of education research and training) की स्वतंत्र परिषदें हैं. अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, बिहार, जम्मू और कश्मीर, सिक्किम, उत्तराखंड, केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह जैसे राज्य केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम का पालन कर रहे हैं. आंध्र प्रदेश इस सूची में शामिल होने के लिए पूरी तरह तैयार है, क्योंकि राज्य सरकार ने सभी स्कूलों में 2021-22 से ग्रेड 1 से 7 के लिए सीबीएसई प्रणाली लागू करने का निर्णय लिया है. आने वाले शैक्षणिक वर्षों में धीरे-धीरे 8वीं से 10वीं तक के कक्षा को भी शामिल किया जाएगा.

रचनात्मकता को सुगम बनाना

NCERT राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (NCF) के अनुसार तैयार करता है. जो भारत में स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकों और शिक्षण प्रथाओं के लिए एक दिशा-निर्देश तैयार करता है. 1961 में स्थापित NCF ने पाठ्यक्रम को 1975, 1988 और आखिरी बार 2000 में संशोधित किया था. यह 2021-22 में कुछ सुधार लाने की प्रक्रिया में है. चूंकि एनसीईआरटी, जेईई और एनईईटी जैसी राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं के लिए विभिन्न राज्य बोर्डों के पाठ्यक्रम को संहिताबद्ध करना कठिन है. इसलिए CBSE पाठ्यक्रम के आधार पर प्रश्न पत्र तैयार किया जाता है.

दूर होगी रट्टा मारने की बीमारी

ओडिशा, केरल और कर्नाटक में राजकीय पाठ्यक्रम हैं और उन्हें समय-समय पर संशोधित करने की दिशा में काम किया जा रहा है. छात्रों में रचनात्मकता को बढ़ावा देना चाहिए और सीखने के लिए रुचि जगाना चाहिए. अत्यधिक पाठ्यक्रम छात्रों पर बोझ डालते हैं. उन्हें अवधारणा को समझने के बजाय याद करने के लिए मजबूर करते हैं. यदि छात्र परीक्षाओं में स्मृति-परीक्षण के बजाय समझने वाले प्रश्नों को शामिल करते हैं, तो वे अवधारणा पर ध्यान केंद्रित करेंगे. शिक्षाविदों की राय है कि केंद्रीय पाठ्यक्रम उपयुक्त और समग्र है, जबकि राज्य बोर्डों में रट्टा मारकर सीखने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है.

सीबीएसई दुनियाभर में मान्य प्रणाली

सामाजिक कार्य, रचनात्मकता, संगठनात्मक कौशल, पढ़ना, सांस्कृतिक गतिविधियों, संगीत, कला, खेल और सार्वजनिक स्पीच को केंद्रीय पाठ्यक्रम में समान रूप से प्राथमिकता दी जाती है. इसके अलावा सीबीएसई प्रणाली दुनिया भर में मान्यता प्राप्त है. यह अमेरिका, यूरोप और सिंगापुर में शिक्षा प्रणालियों के अनुकूल है.

कंधे से कंधा मिलाकर चलें शिक्षक

अगर राज्य केंद्रीय पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए तैयार हैं, तो भी उन्हें योग्य शिक्षकों की कमी और खराब बुनियादी ढांचे की चुनौती को दूर करने की आवश्यकता है. ग्रामीण छात्रों के लिए अंग्रेजी और तेलुगु में पाठ्य पुस्तकें छापना फायदेमंद हो सकता है. तेलुगु में अनुवाद संबंधित शिक्षकों और विद्वानों के मार्गदर्शन से सरलतम तरीके से किया जाना चाहिए. कई अध्ययनों से पता चला कि भारतीय ग्रामीण छात्रों में अंग्रेजी शब्दावली सीमित है. इस संदर्भ में शिक्षकों को गणित, सामान्य और सामाजिक विज्ञान में प्रमुख शब्दावली को लोकप्रिय बनाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.

अभिभावकों में जानकारी का अभाव

छात्रों को हाईस्कूल के बाद करियर विकल्प के बारे में अवगत कराया जाना चाहिए. अधिकांश माता-पिता को अपने बच्चे के लिए उपयुक्त व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. अमेरिका और यूरोप में शिक्षा सलाहकार छात्रों के हितों पर ध्यान देते हैं और उपयुक्त पाठ्यक्रम सुझाते हैं. यहां भारत में स्कूली छात्रों की प्रतिभा को समझने और उच्च शिक्षा में विभिन्न विकल्पों की सिफारिश करने के लिए अभिभावक-शिक्षक बैठक आयोजित कर सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में चेतावनी दी है कि कोविड-19 स्थिति के कारण छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हुआ है.

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इसलिए छात्रों के लिए तनाव मुक्त शैक्षणिक वर्ष सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता और शिक्षकों को अतिरिक्त प्रयास करना चाहिए.

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