नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए निर्धारित कोटा अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) को देने के राज्य के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका पर असम सरकार और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) से जवाब मांगा है. हदीउज्जमान लस्कर और अन्य की याचिका में आरोप लगाया गया कि राज्य सरकार का यह कदम ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचाता है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि एनआरआई छात्रों के लिए सीट सुनिश्चित करने के लिए ऐसा फैसला किया गया है.
न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने 25 अगस्त को राज्य और एनएमसी को नोटिस जारी किया. इसके साथ ही न्यायालय ने एक अंतरिम निर्देश पारित किया कि ईडब्ल्यूएस कोटा में कोई और सीट आवंटन नहीं किया जाना चाहिए, जिसे अब एनआरआई कोटा में बदल दिया गया है. न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि नोटिस जारी करें, जिसका जवाब दो सप्ताह के भीतर दिया जाये. असम राज्य के स्थायी वकील को सेवा देने की भी स्वतंत्रता दी जाती है.
शीर्ष अदालत का निर्देश हदीजुमान लस्कर और अन्य द्वारा वकील फुजैल अहमद अय्यूबी के माध्यम से दायर याचिका पर आया. वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने अदालत के समक्ष याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व किया. याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने एनआरआई/एनआरएल प्रायोजित उम्मीदवारों के लिए सीटों में 7% कोटा की एक नई व्यवस्था शुरू की है जिससे राज्य के प्रमुख मेडिकल कॉलेजों में ईडब्ल्यूएस श्रेणी से संबंधित उम्मीदवारों पर ऐसे उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा सके.
ये भी पढ़ें |
याचिकाकर्ताओं ने सरकारी नियमों को चुनौती देते हुए अदालत का रुख किया है. नये सरकारी आदेश के मुताबिक, पहले एनआरआई के लिए सीटें निर्धारित करने के बाद ही 10 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस श्रेणी के तहत प्रवेश दिया जाना है. याचिका में कहा गया है कि असम में निजी मेडिकल कॉलेज नहीं हैं और एनआरआई प्रवेश संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के दायरे से बाहर होगा क्योंकि यह ईडब्ल्यूएस श्रेणी के आवेदकों के साथ अलग व्यवहार करते हुए एनआरआई वर्ग को प्राथमिकता देता है.