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देश से खत्म हो सकती है 'कांग्रेस घास' की समस्या! मनुष्य और पशुओं के लिए बहुत है घातक, जानें इससे बचने के निदान

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Published : Aug 1, 2023, 7:12 PM IST

Updated : Aug 1, 2023, 7:44 PM IST

Carrot Grass Problem: भारत में एक ऐसी घास है, जिसका नाम कांग्रेस पार्टी है. हम बात कर रहे हैं, गाजर घास या कहें कि कांग्रेस घास की. आइए जानते हैं कि इसका नाम कांग्रेस घास कैसे पड़ा और ये मनुष्यों और पशुओं के लिए कितनी घातक है. इसके साथ ही जानेंगे कि कैसे कांग्रेस घास से निदान मिल सकता है.

carrot grass problem and control of carrot grass
गाजर घास से बायोडायवर्सिटी पर खतरा
गाजर घास का होता है सबसे तेज फैलाव

जबलपुर। शहर के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने खोजा गाजर घास को खाने वाला कीड़ा वैज्ञानिकों का दावा मैक्सिकन बीटल गाजर घास को खत्म करने का प्राकृतिक उपाय और यदि सही तरीके से इसका प्रचार प्रसार किया गया तो यह पूरे देश से गाजर घास की समस्या को खत्म कर सकता है. गाजर घास भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रही है, लोगों को बीमार कर रही है और पशुओं को इसकी वजह से चारा नहीं मिल पा रहा है.

1956 में पहली बार देखी थी गाजर घास: भारत में 1955 में गेहूं की भारी कमी हो गई थी और लोगों के पास खाने के लिए अनाज नहीं था, इसलिए भारत सरकार ने अमेरिका से लाल गेहूं बुलवाया था. 1956 में महाराष्ट्र के पुणे में इसी गेहूं के भीतर गाजर घास पहली बार देखी गई थी, लाल गेहूं के साथ आया हुआ यह मैक्सिकन वीड आज भारत की एक बड़ी समस्या बन गई है और पुणे से यह गाजर घास आज पूरे देश में फैल गई है. उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक रेलवे ट्रैक के किनारे, शहरी कॉलोनियों में, खुले मैदानों में, खेती वाले खेतों में, खेतों की मेड़ों पर जहां भी खाली जगह है, वहां यदि थोड़ी बहुत नमी है तो आपको गाजर घास देखने को मिल जाएगी.

बता दें कि गाजर घास को कांग्रेस घास, चटक चांदनी, गंधी बूटी के नाम से भी जानते हैं. दरअसल ये खरपतवार 1950 के दशक में भारत आई थी और उस समय कांग्रेस की सरकार थी, इस कारण इसे कांग्रेस घास और गंधी बूटी कहा जाता है.

गाजर घास का होता है सबसे तेज फैलाव: इस खरपतवार ने भारत को बहुत नुकसान पहुंचाया है, गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पार्थीनियम हिसटोफोरस है और यह गाजर जैसी पत्तियों की दिखने वाली घास 4 तरीके से मानव समाज के लिए नुकसानदायक है. खेती के लिए नुकसान गाजर घास की वजह से किसान सबसे ज्यादा परेशान हैं, क्योंकि इसके एक पौधे से 5000 से 20000 तक पौधे बन सकते हैं और यह जिस खेत में फैलती है, वहां लगभग पूरी फसल बर्बाद कर देती है. इसकी जड़ों से एक ऐसा रसायन निकलता है, जो आसपास दूसरी फसल को उगने नहीं देता. वहीं साल में इसके 3 फसल चक्र होते हैं, इसलिए इसे तीनों फसलों में नुकसानदायक माना जाता है.

मनुष्य और पशु दोनों के लिए घातक है गाजर घास: चर्म रोग और विषैला पन गाजर घास में कुछ इस तरह के रसायन पाए जाते हैं, जिससे इसके संपर्क में आने वाला आदमी गंभीर चर्म रोगों का शिकार हो जाता है और कई लोगों को इसकी वजह से एलर्जी समस्याएं भी हो जाती हैं. पशुओं के लिए हानिकारक सामान्य तौर पर पशु गाजर घास को नहीं खाते, लेकिन यदि चारे की बिल्कुल समस्या हो जाए तब कुछ पशु इसे खा लेते हैं और इसकी वजह से उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है और दूध कड़वा और विषैला हो जाता है.

गाजर घास से बायोडायवर्सिटी पर खतरा: बायोडायवर्सिटी के लिए नुकसान गाजर घास का सबसे बड़ा नुकसान दूसरे प्राकृतिक पेड़ पौधों को होता है, क्योंकि यह इस तेजी से फैलती है कि उस इलाके के दूसरे प्राकृतिक पेड़ पौधों को खत्म कर देती है.

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गाजर घास से निदान क्या है: जबलपुर में भारत सरकार का खरपतवार अनुसंधान निदेशालय है, यह भारत में एकमात्र है और दुनिया में दूसरा है. इसके अलावा वीट साइंस पर काम करने वाली एक मात्र संस्था अमेरिका में है, इस संस्था ने गाजर घास को खत्म करने के लिए अब तक कई दवाओं का प्रयोग किया है, इसमें मेट्रिब्यूजीन 24 डी ग्लाइकोसाइड जैसी रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी गाजर घास को खत्म किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल पूरे देश में एक साथ गाजर घास को खत्म करने के लिए या गैर जरूरी पड़ी सरकारी जमीनों पर लगे गाजर घास को खत्म करने के लिए करना कठिन है. क्योंकि यह रसायन महंगे भी आते हैं और इनके छिड़कने में बहुत श्रम खर्च होगा, इसलिए लंबे समय से गाजर घास के प्राकृतिक नियंत्रण के उपाय पर चर्चा चल रही थी.

मेक्सिको में मिला बीटल: वैज्ञानिकों ने अपने शोध में अब तक आया है कि प्रकृति में जो जीव जहां पाया जाता है, उसका शत्रु भी उसके आसपास ही कहीं होता है. इसी को आधार बनाकर मेक्सिको में खोज शुरू की गई, भारत के वैज्ञानिक मेक्सिको से ऐसे कई कीट लेकर भारत आए, जो गाजर घास को खाते थे. इन्हीं में से अलग-अलग कीड़ों पर अनुसंधान करने के बाद मैक्सिकन बीटल की खोज की गई.

बता दें कि मैक्सिकन बीटल का वैज्ञानिक नाम जाइकोग्रामा बाईकोलोराटा है, यह एक ऐसा अद्भुत कीड़ा है जो केवल गाजर घास को ही नुकसान पहुंचाता है. यह दूसरे किसी पेड़ पौधे को नहीं खाता, आदमियों को नहीं काटता और जानवरों के लिए भी इसका कोई नुकसान नहीं है. मैक्सिकन बीटल साल में केवल एक बार सक्रिय होता है, बाकी समय यह निष्क्रिय रहता है और निष्क्रिय होकर जमीन में पड़ा रहता है. भारत के वैज्ञानिकों ने इसकी इस प्रक्रिया को थोड़ा बदल दिया है और अब भारत में मैक्सिकन बीटल साल भर सक्रिय रहकर गाजर घास को तीनों सीजन में चट कर सकता है.

गाजर घास का सफल प्रयोग: मैक्सिकन बीटल का प्रयोग पहले जबलपुर के वंद वातावरण में किया गया था, इसके बाद इसे सीधी जिले में के एक खुले स्थान पर छोड़ा गया. जब इसका प्रयोग पूरी तरह सफल हो गया तो, अब इसे किसानों को दिया जा रहा है. किसानों को इस कीड़े को पालने का भी गुर सिखाया जा रहा है, इसे बड़े आसानी से मच्छरदानी के भीतर पाला जा सकता है और यह गाजर घास को खुराक के रूप में इस्तेमाल करता है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि "16 अगस्त से 1 सप्ताह तक चलने वाले गाजर जागरूकता सप्ताह के दौरान वह किसानों को स्वयंसेवी संस्थाओं को और यहां तक कि स्कूल के बच्चों को भी गाजर घास को खत्म करने वाले इस कीड़े के बारे में बड़े पैमाने पर जानकारियां देंगे. मैक्सिकन बीटल की वजह से फसलों का शत्रु गाजर घास खत्म हो जाएगा, लेकिन इसके लिए पूरे समाज को एक साथ खड़ा होना होगा. क्योंकि इसे एक जगह खत्म करके पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता."

गाजर घास का होता है सबसे तेज फैलाव

जबलपुर। शहर के खरपतवार अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने खोजा गाजर घास को खाने वाला कीड़ा वैज्ञानिकों का दावा मैक्सिकन बीटल गाजर घास को खत्म करने का प्राकृतिक उपाय और यदि सही तरीके से इसका प्रचार प्रसार किया गया तो यह पूरे देश से गाजर घास की समस्या को खत्म कर सकता है. गाजर घास भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा रही है, लोगों को बीमार कर रही है और पशुओं को इसकी वजह से चारा नहीं मिल पा रहा है.

1956 में पहली बार देखी थी गाजर घास: भारत में 1955 में गेहूं की भारी कमी हो गई थी और लोगों के पास खाने के लिए अनाज नहीं था, इसलिए भारत सरकार ने अमेरिका से लाल गेहूं बुलवाया था. 1956 में महाराष्ट्र के पुणे में इसी गेहूं के भीतर गाजर घास पहली बार देखी गई थी, लाल गेहूं के साथ आया हुआ यह मैक्सिकन वीड आज भारत की एक बड़ी समस्या बन गई है और पुणे से यह गाजर घास आज पूरे देश में फैल गई है. उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक रेलवे ट्रैक के किनारे, शहरी कॉलोनियों में, खुले मैदानों में, खेती वाले खेतों में, खेतों की मेड़ों पर जहां भी खाली जगह है, वहां यदि थोड़ी बहुत नमी है तो आपको गाजर घास देखने को मिल जाएगी.

बता दें कि गाजर घास को कांग्रेस घास, चटक चांदनी, गंधी बूटी के नाम से भी जानते हैं. दरअसल ये खरपतवार 1950 के दशक में भारत आई थी और उस समय कांग्रेस की सरकार थी, इस कारण इसे कांग्रेस घास और गंधी बूटी कहा जाता है.

गाजर घास का होता है सबसे तेज फैलाव: इस खरपतवार ने भारत को बहुत नुकसान पहुंचाया है, गाजर घास का वैज्ञानिक नाम पार्थीनियम हिसटोफोरस है और यह गाजर जैसी पत्तियों की दिखने वाली घास 4 तरीके से मानव समाज के लिए नुकसानदायक है. खेती के लिए नुकसान गाजर घास की वजह से किसान सबसे ज्यादा परेशान हैं, क्योंकि इसके एक पौधे से 5000 से 20000 तक पौधे बन सकते हैं और यह जिस खेत में फैलती है, वहां लगभग पूरी फसल बर्बाद कर देती है. इसकी जड़ों से एक ऐसा रसायन निकलता है, जो आसपास दूसरी फसल को उगने नहीं देता. वहीं साल में इसके 3 फसल चक्र होते हैं, इसलिए इसे तीनों फसलों में नुकसानदायक माना जाता है.

मनुष्य और पशु दोनों के लिए घातक है गाजर घास: चर्म रोग और विषैला पन गाजर घास में कुछ इस तरह के रसायन पाए जाते हैं, जिससे इसके संपर्क में आने वाला आदमी गंभीर चर्म रोगों का शिकार हो जाता है और कई लोगों को इसकी वजह से एलर्जी समस्याएं भी हो जाती हैं. पशुओं के लिए हानिकारक सामान्य तौर पर पशु गाजर घास को नहीं खाते, लेकिन यदि चारे की बिल्कुल समस्या हो जाए तब कुछ पशु इसे खा लेते हैं और इसकी वजह से उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है और दूध कड़वा और विषैला हो जाता है.

गाजर घास से बायोडायवर्सिटी पर खतरा: बायोडायवर्सिटी के लिए नुकसान गाजर घास का सबसे बड़ा नुकसान दूसरे प्राकृतिक पेड़ पौधों को होता है, क्योंकि यह इस तेजी से फैलती है कि उस इलाके के दूसरे प्राकृतिक पेड़ पौधों को खत्म कर देती है.

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गाजर घास से निदान क्या है: जबलपुर में भारत सरकार का खरपतवार अनुसंधान निदेशालय है, यह भारत में एकमात्र है और दुनिया में दूसरा है. इसके अलावा वीट साइंस पर काम करने वाली एक मात्र संस्था अमेरिका में है, इस संस्था ने गाजर घास को खत्म करने के लिए अब तक कई दवाओं का प्रयोग किया है, इसमें मेट्रिब्यूजीन 24 डी ग्लाइकोसाइड जैसी रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी गाजर घास को खत्म किया जा सकता है, लेकिन इसका इस्तेमाल पूरे देश में एक साथ गाजर घास को खत्म करने के लिए या गैर जरूरी पड़ी सरकारी जमीनों पर लगे गाजर घास को खत्म करने के लिए करना कठिन है. क्योंकि यह रसायन महंगे भी आते हैं और इनके छिड़कने में बहुत श्रम खर्च होगा, इसलिए लंबे समय से गाजर घास के प्राकृतिक नियंत्रण के उपाय पर चर्चा चल रही थी.

मेक्सिको में मिला बीटल: वैज्ञानिकों ने अपने शोध में अब तक आया है कि प्रकृति में जो जीव जहां पाया जाता है, उसका शत्रु भी उसके आसपास ही कहीं होता है. इसी को आधार बनाकर मेक्सिको में खोज शुरू की गई, भारत के वैज्ञानिक मेक्सिको से ऐसे कई कीट लेकर भारत आए, जो गाजर घास को खाते थे. इन्हीं में से अलग-अलग कीड़ों पर अनुसंधान करने के बाद मैक्सिकन बीटल की खोज की गई.

बता दें कि मैक्सिकन बीटल का वैज्ञानिक नाम जाइकोग्रामा बाईकोलोराटा है, यह एक ऐसा अद्भुत कीड़ा है जो केवल गाजर घास को ही नुकसान पहुंचाता है. यह दूसरे किसी पेड़ पौधे को नहीं खाता, आदमियों को नहीं काटता और जानवरों के लिए भी इसका कोई नुकसान नहीं है. मैक्सिकन बीटल साल में केवल एक बार सक्रिय होता है, बाकी समय यह निष्क्रिय रहता है और निष्क्रिय होकर जमीन में पड़ा रहता है. भारत के वैज्ञानिकों ने इसकी इस प्रक्रिया को थोड़ा बदल दिया है और अब भारत में मैक्सिकन बीटल साल भर सक्रिय रहकर गाजर घास को तीनों सीजन में चट कर सकता है.

गाजर घास का सफल प्रयोग: मैक्सिकन बीटल का प्रयोग पहले जबलपुर के वंद वातावरण में किया गया था, इसके बाद इसे सीधी जिले में के एक खुले स्थान पर छोड़ा गया. जब इसका प्रयोग पूरी तरह सफल हो गया तो, अब इसे किसानों को दिया जा रहा है. किसानों को इस कीड़े को पालने का भी गुर सिखाया जा रहा है, इसे बड़े आसानी से मच्छरदानी के भीतर पाला जा सकता है और यह गाजर घास को खुराक के रूप में इस्तेमाल करता है.

वैज्ञानिकों का दावा है कि "16 अगस्त से 1 सप्ताह तक चलने वाले गाजर जागरूकता सप्ताह के दौरान वह किसानों को स्वयंसेवी संस्थाओं को और यहां तक कि स्कूल के बच्चों को भी गाजर घास को खत्म करने वाले इस कीड़े के बारे में बड़े पैमाने पर जानकारियां देंगे. मैक्सिकन बीटल की वजह से फसलों का शत्रु गाजर घास खत्म हो जाएगा, लेकिन इसके लिए पूरे समाज को एक साथ खड़ा होना होगा. क्योंकि इसे एक जगह खत्म करके पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता."

Last Updated : Aug 1, 2023, 7:44 PM IST
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