नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने सोमवार को केंद्र से जवाब मांगा कि क्या ओडिशा में खनन पर कोई 'सीमा' लगाई जा सकती है, क्योंकि राज्य में लौह अयस्क के भंडार सीमित हैं.
ओडिशा सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दलील दी कि सरकार ने डिफ़ॉल्टर खनन कंपनियों से जुर्माने के रूप में पर्याप्त राशि वसूल की है, हालांकि 2,622 करोड़ रुपये अभी भी वसूले जाने बाकी हैं.
बेंच में न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने ओडिशा सरकार को खनन मानदंडों का उल्लंघन करने के दोषी ठहराए गए बकाएदारों से ब्याज को छोड़कर, 2,622 करोड़ रुपये का मुआवजा वसूलने का प्रयास करने का निर्देश दिया.
वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि अकेले पांच पट्टाधारक खनन फर्मों से लगभग 2,215 करोड़ रुपये का मुआवजा वसूला जाना हैओडिशा सरकार ने कहा कि उसके पास अनुमानित लौह अयस्क भंडार 9,220 मिलियन टन है, और आगे तर्क दिया कि किए जा रहे शोध के आधार पर भंडार बढ़ सकता है.
इसके बाद पीठ ने केंद्र से इस मुद्दे की जांच करने और आठ सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा कि क्या राज्य में लौह अयस्क खनन पर कोई सीमा लगाई जा सकती है.
सुनवाई के दौरान, गैर सरकारी संगठन 'कॉमन कॉज' जिसने 2014 में अवैध खनन पर एक जनहित याचिका दायर की थी, उनकी ओर से वकील प्रशांत भूषण ने दलील दी कि चूक करने वाली कंपनियों या उनके प्रमोटरों को भविष्य की किसी भी नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने से रोका जाना चाहिए. भूषण ने दबाव डाला कि उनकी संपत्तियों को कुर्क करके बकाया वसूला जा सकता है.
वहीं, द्विवेदी ने अदालत के समक्ष कहा कि सरकार बकाया राशि की शीघ्र वसूली सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाएगी. राज्य सरकार ने अदालत को सूचित किया था कि चूककर्ता फर्मों के पट्टा समझौते पहले ही समाप्त हो चुके हैं और कोई नया पट्टा नहीं दिया गया है. पीठ ने राज्य सरकार से कहा कि वसूली नहीं करने वाली फर्मों की संपत्ति कुर्क करके वसूली की जा सकती है.