नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि एक शत्रु है जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है.
सर्वोच्च अदालत आठ सितंबर, 2020 के आदेश में संशोधन के अनुरोध वाली केंद्र की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय को महत्वाकांक्षी चारधाम राजमार्ग परियोजना पर 2018 के परिपत्र का पालन करने के लिए का गया है.
यह सड़क चीन सीमा तक जाती है. इस रणनीतिक 900 किलोमीटर की परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पवित्र शहरों-यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को हर मौसम में चालू रहने वाली सड़क सुविधा प्रदान करना है.
दिन भर चली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि वह इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकती कि उत्तराखंड में चीन की सीमा तक जाने वाली रणनीतिक ‘फीडर’ सड़कों के उन्नयन की जरूरत है.
पीठ ने कहा कि हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर देश की सुरक्षा दांव पर है. क्या भारत के उच्चतम न्यायालय जैसा सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए सेना की जरूरतों को दरकिनार कर सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण देश की रक्षा जरूरतों से ऊपर होगा? या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान इस तरह रखा जाना चाहिए ताकि आगे कोई पर्यावरणीय क्षति न हो.
पीठ ने कहा कि सतत विकास होना चाहिए और इसे पर्यावरण के साथ संतुलित किया जाना चाहिए क्योंकि अदालत इस तथ्य से अनजान नहीं रह सकती कि इन सड़कों को ‘अपग्रेड’ करने की जरूरत है.न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि मैं पर्वतारोहण के लिए कई बार हिमालय गया हूं. मैंने उन सड़कों को देखा है.
ये सड़कें ऐसी हैं कि कोई भी दो वाहन एक साथ नहीं गुजर सकते हैं... ये सड़कें ऐसी हैं कि उन्हें सेना के भारी वाहनों की आवाजाही के लिए उन्नयन की आवश्यकता है. 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है. पीठ ने एक एनजीओ के वकील से कहा कि सरकार पहाड़ में आठ-लेन या 12-लेन का राजमार्ग बनाने के लिए अनुमति नहीं मांग रही है, बल्कि केवल दो-लेन का राजमार्ग बनाने की मांग कर रही है.
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