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हाई कोर्ट ने शिक्षा संस्थानों में राजनीति की निंदा की, विश्व भारती के छात्रों का निष्कासन रद्द किया - हाई कोर्ट ने शिक्षा संस्थानों में राजनीति की निंदा की

विश्व भारती विश्वविद्यालय के छात्रों और अन्य लोगों ने 27 अगस्त को यूनिवर्सिटी के कुलपति विद्युत चक्रवर्ती के आधिकारिक आवास की घेराबंदी की थी और शांतिनिकेतन में विश्वविद्यालय के कई कार्यालयों को कथित रूप से बंद कर दिया था.

कलकत्ता उच्च न्यायालय
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Published : Sep 16, 2021, 8:35 AM IST

कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने विश्व भारती विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा तीन छात्रों के निष्कासन को खारिज कर दिया है. छात्रों के निष्कासन को लेकर यूनिवर्सिटी में गतिरोध पैदा हो गया था. इस मामले पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि शिक्षा के नेक काम को राजनीति और एक राजनीतिक संघर्ष की वेदी पर मार दिया गया है.

न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने इस मामले पर कहा कि प्रभावशाली बाहरी लोगों के समर्थन के बिना केवल तीन छात्र विश्वविद्यालय में अशांति नहीं फैला सकते. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों का दुरुपयोग किया जा रहा है. न्यायमूर्ति मंथा ने आदेश में कहा कि यह दुखद है कि शिक्षा के नेक काम को राजनीति और राजनीतिक घमासान के लिए मार दिया गया है.

बता दें, विश्व भारती विश्वविद्यालय के छात्रों और अन्य लोगों ने 27 अगस्त को यूनिवर्सिटी के कुलपति विद्युत चक्रवर्ती के आधिकारिक आवास की घेराबंदी की थी और शांतिनिकेतन में विश्वविद्यालय के कई कार्यालयों को कथित रूप से बंद कर दिया था. वहीं, हाई कोर्ट में कुलपति के याचिका दायर करने के बाद 3 सितंबर को घेराव खत्म कर दिया गया था.

अदालत ने कुलपति और विश्वविद्यालय प्रबंधन को अधिक सुलभ और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने को कहा. इसके साथ-साथ कोर्ट यह भी मानने को मजबूर है कि कुलपति और प्रबंधन को विश्वविद्यालय के मामलों, विशेष रूप से प्रोफेसरों, शिक्षकों, कर्मचारियों और साथ ही छात्रों के मामलों से निपटने के लिए अधिक अनुकूल, सुलभ और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.

इस मामले पर न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि अनावश्यक टकराव से बचना चाहिए और उम्मीद की जाती है कि कुलपति इसका पालन करेंगे. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों का दुरुपयोग किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कक्षाएं और शैक्षिक गतिविधियां बाधित होती हैं. उन्होंने कहा कि परीक्षा समय पर नहीं होती है और परिणाम आने में भी देरी होती है. वहीं, छात्रों को राज्य के भीतर और बाहर अन्य निजी संस्थानों में जाने के लिए मजबूर किया जाता है, जहां उन्हें ग्राहकों के रूप में माना जाता है.

उन्होंने कहा कि कुछ छात्रों को धन की कमी के चलते शिक्षा छोड़ने तक के लिए मजबूर किया जाता है. अदालत ने कहा कि माता-पिता जो अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए खून-पसीना बहाते हैं. ऐसे में लोगों का विश्वास खो जाता है और राष्ट्र एक अंधकारमय भविष्य की ओर देखता है. अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय को बंद करने के कुछ निहित स्वार्थों के पीछे तीन छात्रों को मोहरा बनाया गया था. यह मानते हुए कि विश्वविद्यालय के सभी छात्रों को इसका परिणाम भुगतना पड़ा है, न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि बाहरी लोगों और राजनीतिक दलों को शैक्षणिक संस्थान के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.

पढ़ें: NEET परीक्षा में फेल होने के डर से एक और छात्रा ने दी जान, चार दिन में तीसरी मौत

इस मामले में 8 सितंबर को अपने आदेश में न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि किसी भी विचारधारा को स्वीकार करने या उसका पालन करने से पहले एक छात्र को निर्णय लेने के लिए शिक्षा और परिपक्वता के स्तर की आवश्यकता होती है. वरिष्ठ वकील अरुणव घोष की इस दलील पर कि विश्वविद्यालय द्वारा कम से कम 60 से 70 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया था. अदालत ने निर्देश दिया कि निलंबन के ऐसे आदेशों की एक अवधि के भीतर समीक्षा की जाएगी.

कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय ने विश्व भारती विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा तीन छात्रों के निष्कासन को खारिज कर दिया है. छात्रों के निष्कासन को लेकर यूनिवर्सिटी में गतिरोध पैदा हो गया था. इस मामले पर कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बुधवार को कहा कि शिक्षा के नेक काम को राजनीति और एक राजनीतिक संघर्ष की वेदी पर मार दिया गया है.

न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा ने इस मामले पर कहा कि प्रभावशाली बाहरी लोगों के समर्थन के बिना केवल तीन छात्र विश्वविद्यालय में अशांति नहीं फैला सकते. उन्होंने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों का दुरुपयोग किया जा रहा है. न्यायमूर्ति मंथा ने आदेश में कहा कि यह दुखद है कि शिक्षा के नेक काम को राजनीति और राजनीतिक घमासान के लिए मार दिया गया है.

बता दें, विश्व भारती विश्वविद्यालय के छात्रों और अन्य लोगों ने 27 अगस्त को यूनिवर्सिटी के कुलपति विद्युत चक्रवर्ती के आधिकारिक आवास की घेराबंदी की थी और शांतिनिकेतन में विश्वविद्यालय के कई कार्यालयों को कथित रूप से बंद कर दिया था. वहीं, हाई कोर्ट में कुलपति के याचिका दायर करने के बाद 3 सितंबर को घेराव खत्म कर दिया गया था.

अदालत ने कुलपति और विश्वविद्यालय प्रबंधन को अधिक सुलभ और समावेशी दृष्टिकोण अपनाने को कहा. इसके साथ-साथ कोर्ट यह भी मानने को मजबूर है कि कुलपति और प्रबंधन को विश्वविद्यालय के मामलों, विशेष रूप से प्रोफेसरों, शिक्षकों, कर्मचारियों और साथ ही छात्रों के मामलों से निपटने के लिए अधिक अनुकूल, सुलभ और समावेशी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए.

इस मामले पर न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि अनावश्यक टकराव से बचना चाहिए और उम्मीद की जाती है कि कुलपति इसका पालन करेंगे. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा शैक्षणिक संस्थानों का दुरुपयोग किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप कक्षाएं और शैक्षिक गतिविधियां बाधित होती हैं. उन्होंने कहा कि परीक्षा समय पर नहीं होती है और परिणाम आने में भी देरी होती है. वहीं, छात्रों को राज्य के भीतर और बाहर अन्य निजी संस्थानों में जाने के लिए मजबूर किया जाता है, जहां उन्हें ग्राहकों के रूप में माना जाता है.

उन्होंने कहा कि कुछ छात्रों को धन की कमी के चलते शिक्षा छोड़ने तक के लिए मजबूर किया जाता है. अदालत ने कहा कि माता-पिता जो अपने बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए खून-पसीना बहाते हैं. ऐसे में लोगों का विश्वास खो जाता है और राष्ट्र एक अंधकारमय भविष्य की ओर देखता है. अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय को बंद करने के कुछ निहित स्वार्थों के पीछे तीन छात्रों को मोहरा बनाया गया था. यह मानते हुए कि विश्वविद्यालय के सभी छात्रों को इसका परिणाम भुगतना पड़ा है, न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि बाहरी लोगों और राजनीतिक दलों को शैक्षणिक संस्थान के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए.

पढ़ें: NEET परीक्षा में फेल होने के डर से एक और छात्रा ने दी जान, चार दिन में तीसरी मौत

इस मामले में 8 सितंबर को अपने आदेश में न्यायमूर्ति मंथा ने कहा कि किसी भी विचारधारा को स्वीकार करने या उसका पालन करने से पहले एक छात्र को निर्णय लेने के लिए शिक्षा और परिपक्वता के स्तर की आवश्यकता होती है. वरिष्ठ वकील अरुणव घोष की इस दलील पर कि विश्वविद्यालय द्वारा कम से कम 60 से 70 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया था. अदालत ने निर्देश दिया कि निलंबन के ऐसे आदेशों की एक अवधि के भीतर समीक्षा की जाएगी.

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