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गहलोत सरकार से समर्थन वापस ले सकती है भारतीय ट्राइबल पार्टी

कांग्रेस और भाजपा ने हाथ मिलाकर बीटीपी से डूंगरपुर जिला प्रमुख का पद तो छीन लिया, लेकिन अब बीटीपी इसे कांग्रेस का धोखा मान रही है और गहलोत सरकार से समर्थन वापसी की तैयारी कर रही है.

बीटीपी समर्थन वापस लेगी
बीटीपी समर्थन वापस लेगी
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Published : Dec 11, 2020, 2:17 PM IST

जयपुर: राजस्थान के इतिहास में शायद पहली बार हुआ है कि कांग्रेस और भाजपा जैसी कट्टर राजनीतिक विरोधी पार्टियों ने हाथ मिलाकर किसी तीसरी पार्टी को हरा दिया हो. राजस्थान के डूंगरपुर में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का जिला प्रमुख न बन जाए, इसे रोकने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने हाथ मिलाया और उनके समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत गया.

जानकारों का कहना है कि भारतीय ट्राइबल पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच पंचायत चुनाव के बाद से ही नाराजगी बढ़नी शुरू हो गई थी. ऐसे में डूंगरपुर जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस की ओर से बीटीपी का साथ नहीं देने से बीटीपी विधायकों और कार्यकर्ताओं में और भी गहरी नाराजगी बढ़ी गई है.

ईटीवी भारत के साथ फोन पर हुई बातचीत में बीटीपी के विधायक राजकुमार रोत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने हमारे साथ धोखा किया है और भारतीय ट्राइबल पार्टी अब राज्य की कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस लेने के बारे में सोच रही है. उन्होंने कहा कि पार्टी के आला नेताओं के साथ बात कर जल्द ही इस बारे में अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

दरअसल, राजस्थान में बीटीपी के दो विधायक हैं. ऐसे में अगर दो विधायकों का समर्थन कम होता है तो गहलोत सरकार को 121 विधायकों का समर्थन रह जाएगा.

पढ़ेंः कल की घटना के लिए ममता को माफी मांगनी चाहिए: राज्यपाल

बता दें कि जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव के दौरान बीटीपी विधायकों को लेकर कांग्रेस ने खूब बयानबाजी की थी. इतना ही नहीं आदिवासी अंचल के दिग्गज कांग्रेसी नेता और विधायक महेंद्रजीत मालवीय ने तो चुनाव प्रचार में यहां तक कह दिया कि सरकार बचाने के एवज में बीटीपी के विधायकों ने पैसे लिए थे.

इससे बीटीपी के विधायकों ने पहले ही गहरी नाराजगी जाहिर की थी, लेकिन अब बीटीपी का डूंगरपुर से जिला प्रमुख नहीं बनना आग में घी का काम कर रहा है. कहा जा रहा है कि बीटीपी के समर्थन वापस लेने की अटकलों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी नजर है और वह स्थानीय विधायकों से फीडबैक ले रहे हैं.

एक कारण यह भी
दरअसल, आदिवासी अंचल में कांग्रेस के पास मजबूत वोट बैंक माना जाता है, लेकिन इस क्षेत्र में बीटीपी के कांग्रेस वोट बैंक में सेंध लगाने से कांग्रेस विधायक और स्थानीय नेता अपनी जमीन खिसकती देख रहे हैं.

विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीटीपी का सांगवाड़ा और डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा सीट पर कब्जा हो गया है. बीटीपी की भी नजर बांसवाड़ा, बागीदौरा, खेरवाड़ा, डूंगरपुर जैसी आदिवासी बाहुल्य सीटों पर है. ऐसे में कांग्रेस नहीं चाहती कि बीटीपी दो सीटों से और आगे तक पैर पसारे.

जयपुर: राजस्थान के इतिहास में शायद पहली बार हुआ है कि कांग्रेस और भाजपा जैसी कट्टर राजनीतिक विरोधी पार्टियों ने हाथ मिलाकर किसी तीसरी पार्टी को हरा दिया हो. राजस्थान के डूंगरपुर में भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का जिला प्रमुख न बन जाए, इसे रोकने के लिए भाजपा और कांग्रेस ने हाथ मिलाया और उनके समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव जीत गया.

जानकारों का कहना है कि भारतीय ट्राइबल पार्टी और कांग्रेस पार्टी के बीच पंचायत चुनाव के बाद से ही नाराजगी बढ़नी शुरू हो गई थी. ऐसे में डूंगरपुर जिला परिषद चुनाव में कांग्रेस की ओर से बीटीपी का साथ नहीं देने से बीटीपी विधायकों और कार्यकर्ताओं में और भी गहरी नाराजगी बढ़ी गई है.

ईटीवी भारत के साथ फोन पर हुई बातचीत में बीटीपी के विधायक राजकुमार रोत ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने हमारे साथ धोखा किया है और भारतीय ट्राइबल पार्टी अब राज्य की कांग्रेस सरकार से समर्थन वापस लेने के बारे में सोच रही है. उन्होंने कहा कि पार्टी के आला नेताओं के साथ बात कर जल्द ही इस बारे में अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

दरअसल, राजस्थान में बीटीपी के दो विधायक हैं. ऐसे में अगर दो विधायकों का समर्थन कम होता है तो गहलोत सरकार को 121 विधायकों का समर्थन रह जाएगा.

पढ़ेंः कल की घटना के लिए ममता को माफी मांगनी चाहिए: राज्यपाल

बता दें कि जिला परिषद और पंचायत समिति के चुनाव के दौरान बीटीपी विधायकों को लेकर कांग्रेस ने खूब बयानबाजी की थी. इतना ही नहीं आदिवासी अंचल के दिग्गज कांग्रेसी नेता और विधायक महेंद्रजीत मालवीय ने तो चुनाव प्रचार में यहां तक कह दिया कि सरकार बचाने के एवज में बीटीपी के विधायकों ने पैसे लिए थे.

इससे बीटीपी के विधायकों ने पहले ही गहरी नाराजगी जाहिर की थी, लेकिन अब बीटीपी का डूंगरपुर से जिला प्रमुख नहीं बनना आग में घी का काम कर रहा है. कहा जा रहा है कि बीटीपी के समर्थन वापस लेने की अटकलों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की भी नजर है और वह स्थानीय विधायकों से फीडबैक ले रहे हैं.

एक कारण यह भी
दरअसल, आदिवासी अंचल में कांग्रेस के पास मजबूत वोट बैंक माना जाता है, लेकिन इस क्षेत्र में बीटीपी के कांग्रेस वोट बैंक में सेंध लगाने से कांग्रेस विधायक और स्थानीय नेता अपनी जमीन खिसकती देख रहे हैं.

विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीटीपी का सांगवाड़ा और डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा सीट पर कब्जा हो गया है. बीटीपी की भी नजर बांसवाड़ा, बागीदौरा, खेरवाड़ा, डूंगरपुर जैसी आदिवासी बाहुल्य सीटों पर है. ऐसे में कांग्रेस नहीं चाहती कि बीटीपी दो सीटों से और आगे तक पैर पसारे.

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