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Race For British PM : सांसदों और पार्टी सदस्यों की सीधी भागीदारी तय करती है कौन होगा पीएम

ब्रिटिश संसद (हाउस ऑफ कॉमन्स) में कंजरवेटिव पार्टी को बहुमत हासिल है. 650 सांसदों में से उनकी पार्टी के पास 358 सांसद हैं. फिर भी उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार का नाम तय करने में लंबा समय लग रहा है. आखिर क्या है इसकी वजह. ब्रिटेन में किस तरह से प्रधानमंत्री का चुनाव होता है और क्या है इसकी प्रक्रिया, इसे विस्तार से समझने के लिए पढ़ें पूरी स्टोरी. यहां पर यह जानना जरूरी है कि ब्रिटिश व्यवस्था में पीएम पद के लिए पार्टी के उम्मीदवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सांसदों का भी समर्थन हासिल करना पड़ता है. पार्टी नेता के चुनाव में अंतिम दौर का प्रत्याशी कौन बनेगा इसका फैसला आम सांसद करते हैं जो मंत्री परिषद के सदस्य नहीं होते हैं.

rishi sunak
ऋषि सुनक रेस में सबसे आगे
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Published : Jul 20, 2022, 5:46 PM IST

Updated : Jul 20, 2022, 7:03 PM IST

नई दिल्ली : भारत की संसदीय प्रणाली ब्रिटिश व्यवस्था से ली गई है. लेकिन ब्रिटेन और भारत में प्रधानमंत्री का चयन बिल्कुल ही अलग-अलग तरीके से संपन्न किया जाता है. भारत में आम चुनाव के बाद जब भी प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगती है, तो इसका निर्णय वोटर या पार्टी के कार्यकर्ता नहीं करते हैं, बल्कि चुने गए सांसद करते हैं. सांसदों की एक बैठक होती है और नाम तय कर लिया जाता है. उनके चयन में प्रजातांत्रिक 'पारदर्शिता' का अभाव दिखता है. पर, ब्रिटेन में ऐसा नहीं है.

ब्रिटिश पार्टी व्यवस्था में नेता के चयन की प्रक्रिया बहुत ही जनतांत्रिक है. यह काफी लंबी प्रक्रिया होती है. भारत ने सारी व्यवस्था ब्रिटेन से उधार ली, लेकिन पीएम के चयन को लेकर अपनी व्यवस्था अपना ली. आप कह सकते हैं कि भारतीय राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का सर्वथा अभाव है. ब्रिटिश राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र बहुत हद तक कायम है. आइए विस्तार से जानते हैं ब्रिटेन में किस तरीके से प्रधानमंत्री का चुनाव किया जाता है.

भारत में जिस तरह से लोकसभा का चुनाव होता है, ब्रिटेन में उसी तरह से हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए चुनाव होते हैं. यहां भी पांच साल के अंतराल पर चुनाव होते हैं. वहां पर कुल 650 संसदीय क्षेत्र हैं. इनमें 533 इंगलैंड में, 59 स्कॉटलैंड में, 40 वेल्स में और 18 उत्तरी आयरलैंड में हैं. यहां मुख्य रूप से दो पार्टियां हैं. कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी.

जिस पार्टी की सीटें सबसे ज्यादा होती हैं, सरकार उसकी बनती है. अगर बहुमत मिलने में किसी पार्टी को दिक्कत होती है, तो वह गठबंधन कर सरकार बना सकती हैं. यहां पर जादुई आंकड़ा 326 सीटों का है. इस वक्त ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के पास 358 सांसद हैं. यहां पर प्रधानमंत्री पद के लिए एक प्रतिनिधि को चुना जाता है. चुनाव के पहले या बाद में भी इसे घोषित किया जा सकता है. उसके बाद महारानी पीएम का चयन करती हैं. यह औपचारिक कदम होता है. वोट देने का अधिकार 18 साल से ऊपर सभी नागरिकों को है. कॉमनवेल्थ देशों के वे नागरिक जो ब्रिटेन में रहते हैं, वे भी वोटिंग कर सकते हैं.

आइए अब समझते हैं कि किस तरह से पार्टियां पीएम पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम तय करती हैं - सबसे पहले हम स्पष्ट कर दें कि ब्रिटेन में वहां की जनता (मतदाता) सीधे तौर पर प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं करती है. संसद में जिस दल को बहुमत हासिल होता है, वह अपने नेता का चयन करता है. अभी संसद में कंजरवेटिव पार्टी को बहुमत है, इसलिए उसके अंदर नेता के चयन की प्रक्रिया जारी है.

कंजरवेटिव पार्टी के जितने भी सांसद हैं, उनमें से जो कोई प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करना चाहता है, सबसे पहले उसे 20 सांसदों का समर्थन हासिल करना जरूरी होता है. इस बार आठ सांसदों ने यह दावा किया था. इनमें से पांच उम्मीदवार अब तक अलग-अलग चरणों में दौर से बाहर हो चुके हैं.

सबसे पहला चरण - जितने भी सांसदों ने पीएम पद के लिए दावेदारी की, कंजरवेटिव पार्टी के चुने गए सांसद उन्हें अपना मत देते हैं. इस चरण में जिस उम्मीदवार को 30 से कम मत आता है, वह बाहर हो जाता है. अगर सभी उम्मीदवार 30 मत को प्राप्त कर लेते हैं, तो जिस उम्मीदवार को सबसे कम मत मिला, वह रेस से बाहर हो जाता है. यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कि उम्मीदवारों की संख्या दो तक सीमित न हो जाए. इस पूरी प्रक्रिया को नॉमिनेशन, एलिमिनेशन और फाइनल प्रोसेस कहते हैं.

एक बार जब यह तय हो जाता है कि पीएम पद की रेस में सिर्फ दो ही उम्मीदवार बचे हैं. उसके बाद पूरे देश में कंजरवेटिव पार्टी के सभी सदस्य वोटिंग में भाग लेते हैं. इसमें ही विजेता का नाम तय होता है. वोटिंग पोस्टल होती है. वही पार्टी का प्रमुख भी बनेगा और वही व्यक्ति प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी बनता है. क्योंकि इस समय कंजरवेटिव पार्टी का बहुमत है, इसिलए जाहिर है पीएम पद इसी पार्टी का सांसद बनेगा.

हालांकि, अंतिम चरण की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है. क्योंकि आखिर के दो उम्मीदवारों के चयन के बाद दोनों ही उम्मीदवार प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं. दोनों उम्मीदवार अपनी योजनाओं और नीतियों के बारे में पार्टी के सदस्यों को अवगत कराते हैं. यही पार्टी के सदस्य यह तय करेंगे कि उनकी पार्टी का कौन सा नेता पीएम बनेगा.

ब्रिटेन में राजनीतिक पार्टी अपने सदस्यों की संख्या का खुलासा आमतौर पर नहीं करती हैं. पिछली बार चुनाव में टोरी (कंजरवेटिव पार्टी) के सदस्यों की संख्या करीब एक लाख 60 हजार थी. जाहिर है, इस बार इनके सदस्यों की संख्या में इजाफा हुआ होगा.

अभी तक क्या-क्या हुआ

12 जुलाई - उम्मीदवारों के लिए नामांकन बंद - प्रत्येक को 30 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी. (कुल आठ उम्मीदवार मैदान में आए. ये थे- ऋषि सुनक, पेनी मोर्डौंट, लिज ट्रस, केमी बैडनोच, टॉम तुगेंदहट, सुएला ब्रेवरमैन, नदीम जहावी, जेरेमी हंट).

13 जुलाई - पहले दौर का मतदान - 30 से कम मतों वाले उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए. (नदीम जहावी, जेरेमी हंट रेस से बाहर हो गए).

14 जुलाई - दूसरे दौर का मतदान - सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए हैं. (सुएला ब्रेवरमैन रेस से बाहर हो गए. यह भी भारतीय मूल की ही नेता हैं).

18-21 जुलाई - दो उम्मीदवारों के रहने तक लगातार मतदान होता रहेगा. अभी आठ में से मात्र तीन उम्मीदवार मैदान में बच गए हैं. (ये हैं- ऋषि सुनक, लिज ट्रस और पेनी मोर्डौंट). 18 जुलाई को टॉम तुगेंदहट और 19 जुलाई को केमी बैडेनोच रेस से बाहर हो गए.

जुलाई/अगस्त - देश भर में अंतिम दो उम्मीदवारों के लिए पार्टी के सदस्य वोट करेंगे.

5 सितंबर - नए पीएम की घोषणा.

ब्रिटिश व्यवस्था में पीएम पद के लिए पार्टी के उम्मीदवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन हासिल होता है. उन्हें कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सांसदों का भी समर्थन हासिल करना पड़ता है. कंजरवेटिव पार्टी के उम्मीदवारों में अभी भारतीय मूल के ऋषि सुनक सबसे आगे चल रहे हैं.

ये भी पढ़ें : Race For British PM : एक और कदम आगे बढ़े ऋषि, विरोध में खड़ी हैं दो महिलाएं

नई दिल्ली : भारत की संसदीय प्रणाली ब्रिटिश व्यवस्था से ली गई है. लेकिन ब्रिटेन और भारत में प्रधानमंत्री का चयन बिल्कुल ही अलग-अलग तरीके से संपन्न किया जाता है. भारत में आम चुनाव के बाद जब भी प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगती है, तो इसका निर्णय वोटर या पार्टी के कार्यकर्ता नहीं करते हैं, बल्कि चुने गए सांसद करते हैं. सांसदों की एक बैठक होती है और नाम तय कर लिया जाता है. उनके चयन में प्रजातांत्रिक 'पारदर्शिता' का अभाव दिखता है. पर, ब्रिटेन में ऐसा नहीं है.

ब्रिटिश पार्टी व्यवस्था में नेता के चयन की प्रक्रिया बहुत ही जनतांत्रिक है. यह काफी लंबी प्रक्रिया होती है. भारत ने सारी व्यवस्था ब्रिटेन से उधार ली, लेकिन पीएम के चयन को लेकर अपनी व्यवस्था अपना ली. आप कह सकते हैं कि भारतीय राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र का सर्वथा अभाव है. ब्रिटिश राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र बहुत हद तक कायम है. आइए विस्तार से जानते हैं ब्रिटेन में किस तरीके से प्रधानमंत्री का चुनाव किया जाता है.

भारत में जिस तरह से लोकसभा का चुनाव होता है, ब्रिटेन में उसी तरह से हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए चुनाव होते हैं. यहां भी पांच साल के अंतराल पर चुनाव होते हैं. वहां पर कुल 650 संसदीय क्षेत्र हैं. इनमें 533 इंगलैंड में, 59 स्कॉटलैंड में, 40 वेल्स में और 18 उत्तरी आयरलैंड में हैं. यहां मुख्य रूप से दो पार्टियां हैं. कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी.

जिस पार्टी की सीटें सबसे ज्यादा होती हैं, सरकार उसकी बनती है. अगर बहुमत मिलने में किसी पार्टी को दिक्कत होती है, तो वह गठबंधन कर सरकार बना सकती हैं. यहां पर जादुई आंकड़ा 326 सीटों का है. इस वक्त ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी के पास 358 सांसद हैं. यहां पर प्रधानमंत्री पद के लिए एक प्रतिनिधि को चुना जाता है. चुनाव के पहले या बाद में भी इसे घोषित किया जा सकता है. उसके बाद महारानी पीएम का चयन करती हैं. यह औपचारिक कदम होता है. वोट देने का अधिकार 18 साल से ऊपर सभी नागरिकों को है. कॉमनवेल्थ देशों के वे नागरिक जो ब्रिटेन में रहते हैं, वे भी वोटिंग कर सकते हैं.

आइए अब समझते हैं कि किस तरह से पार्टियां पीएम पद के लिए अपने उम्मीदवार का नाम तय करती हैं - सबसे पहले हम स्पष्ट कर दें कि ब्रिटेन में वहां की जनता (मतदाता) सीधे तौर पर प्रधानमंत्री का चुनाव नहीं करती है. संसद में जिस दल को बहुमत हासिल होता है, वह अपने नेता का चयन करता है. अभी संसद में कंजरवेटिव पार्टी को बहुमत है, इसलिए उसके अंदर नेता के चयन की प्रक्रिया जारी है.

कंजरवेटिव पार्टी के जितने भी सांसद हैं, उनमें से जो कोई प्रधानमंत्री पद की दावेदारी करना चाहता है, सबसे पहले उसे 20 सांसदों का समर्थन हासिल करना जरूरी होता है. इस बार आठ सांसदों ने यह दावा किया था. इनमें से पांच उम्मीदवार अब तक अलग-अलग चरणों में दौर से बाहर हो चुके हैं.

सबसे पहला चरण - जितने भी सांसदों ने पीएम पद के लिए दावेदारी की, कंजरवेटिव पार्टी के चुने गए सांसद उन्हें अपना मत देते हैं. इस चरण में जिस उम्मीदवार को 30 से कम मत आता है, वह बाहर हो जाता है. अगर सभी उम्मीदवार 30 मत को प्राप्त कर लेते हैं, तो जिस उम्मीदवार को सबसे कम मत मिला, वह रेस से बाहर हो जाता है. यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है, जब तक कि उम्मीदवारों की संख्या दो तक सीमित न हो जाए. इस पूरी प्रक्रिया को नॉमिनेशन, एलिमिनेशन और फाइनल प्रोसेस कहते हैं.

एक बार जब यह तय हो जाता है कि पीएम पद की रेस में सिर्फ दो ही उम्मीदवार बचे हैं. उसके बाद पूरे देश में कंजरवेटिव पार्टी के सभी सदस्य वोटिंग में भाग लेते हैं. इसमें ही विजेता का नाम तय होता है. वोटिंग पोस्टल होती है. वही पार्टी का प्रमुख भी बनेगा और वही व्यक्ति प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी बनता है. क्योंकि इस समय कंजरवेटिव पार्टी का बहुमत है, इसिलए जाहिर है पीएम पद इसी पार्टी का सांसद बनेगा.

हालांकि, अंतिम चरण की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है. क्योंकि आखिर के दो उम्मीदवारों के चयन के बाद दोनों ही उम्मीदवार प्रचार के लिए निकल पड़ते हैं. दोनों उम्मीदवार अपनी योजनाओं और नीतियों के बारे में पार्टी के सदस्यों को अवगत कराते हैं. यही पार्टी के सदस्य यह तय करेंगे कि उनकी पार्टी का कौन सा नेता पीएम बनेगा.

ब्रिटेन में राजनीतिक पार्टी अपने सदस्यों की संख्या का खुलासा आमतौर पर नहीं करती हैं. पिछली बार चुनाव में टोरी (कंजरवेटिव पार्टी) के सदस्यों की संख्या करीब एक लाख 60 हजार थी. जाहिर है, इस बार इनके सदस्यों की संख्या में इजाफा हुआ होगा.

अभी तक क्या-क्या हुआ

12 जुलाई - उम्मीदवारों के लिए नामांकन बंद - प्रत्येक को 30 सांसदों के समर्थन की जरूरत थी. (कुल आठ उम्मीदवार मैदान में आए. ये थे- ऋषि सुनक, पेनी मोर्डौंट, लिज ट्रस, केमी बैडनोच, टॉम तुगेंदहट, सुएला ब्रेवरमैन, नदीम जहावी, जेरेमी हंट).

13 जुलाई - पहले दौर का मतदान - 30 से कम मतों वाले उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए. (नदीम जहावी, जेरेमी हंट रेस से बाहर हो गए).

14 जुलाई - दूसरे दौर का मतदान - सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार रेस से बाहर हो गए हैं. (सुएला ब्रेवरमैन रेस से बाहर हो गए. यह भी भारतीय मूल की ही नेता हैं).

18-21 जुलाई - दो उम्मीदवारों के रहने तक लगातार मतदान होता रहेगा. अभी आठ में से मात्र तीन उम्मीदवार मैदान में बच गए हैं. (ये हैं- ऋषि सुनक, लिज ट्रस और पेनी मोर्डौंट). 18 जुलाई को टॉम तुगेंदहट और 19 जुलाई को केमी बैडेनोच रेस से बाहर हो गए.

जुलाई/अगस्त - देश भर में अंतिम दो उम्मीदवारों के लिए पार्टी के सदस्य वोट करेंगे.

5 सितंबर - नए पीएम की घोषणा.

ब्रिटिश व्यवस्था में पीएम पद के लिए पार्टी के उम्मीदवार को पार्टी के कार्यकर्ताओं का पूरा समर्थन हासिल होता है. उन्हें कार्यकर्ताओं के साथ-साथ सांसदों का भी समर्थन हासिल करना पड़ता है. कंजरवेटिव पार्टी के उम्मीदवारों में अभी भारतीय मूल के ऋषि सुनक सबसे आगे चल रहे हैं.

ये भी पढ़ें : Race For British PM : एक और कदम आगे बढ़े ऋषि, विरोध में खड़ी हैं दो महिलाएं

Last Updated : Jul 20, 2022, 7:03 PM IST
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