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कैलाश मानसरोवर: यात्रा रद होने से कारोबार प्रभावित, कैसे चलेगी रोजी-रोटी?

इस बार भी विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा (Kailash Mansarovar Yatra)आयोजित नहीं हो पाएगी. जिसका असर सीमांत क्षेत्र के स्थानीय कारोबारियों पर भी पड़ा है.

कैलाश मानसरोवर:
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Published : Jun 4, 2021, 1:15 PM IST

पिथौरागढ़: वैश्विक महामारी कोरोना (COVID-19) के चलते इस बार भी विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा ( Kailash Mansarovar Yatra) आयोजित नहीं हो पाएगी. लगातार दूसरे साल यात्रा बंद होने से जहां श्रद्धालु निराश हैं, वहीं बॉर्डर के ग्रामीणों का रोजगार भी प्रभावित हो गया है. यात्रा के जरिए जहा सैकड़ों पोनी पोर्टर्स को सीजनल रोजगार मिलता था. वहीं यात्रा के दौरान चार महीने तक सीमान्त क्षेत्र के लोगों का कारोबार भी जमकर फलता फूलता था. मगर पिछले दो सालों से चीन बॉर्डर से सटे गांवों में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है. वहीं यात्रा का संचालन नहीं होने से कुमाऊं मंडल विकास निगम को करीब 5 करोड़ का घाटा झेलना पड़ेगा.

यात्रा रद्द होने से गहराया रोजी-रोटी का संकट
भारत और चीन के सहयोग से होने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा लगातार दूसरे साल भी आयोजित नहीं हो पाएगी. धार्मिक महत्व की ये यात्रा हर साल 12 जून से शुरू होती थी. मगर इस बार अभी तक ना तो यात्रियों के रजिस्ट्रेशन हुए हैं और ना ही कोई प्रशासनिक इंतजाम किए गए हैं. ऐसे में इस साल यात्रा रद्द होना तय है. जानकारों की मानें तो चीन से जारी सीमा विवाद और कोरोना के चलते इस साल भी यात्रा पर ग्रहण लग गया है. हर साल इस यात्रा में हजारों यात्री पिथौरागढ़ होते हुए चाइना पहुंचते थे और बॉर्डर इलाकों में खास चहल पहल देखने को मिलती थी. मगर यात्रा नहीं होने से सीमान्त क्षेत्र की हजारों की आबादी के आगे रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है.

कैलाश मानसरोवर: यात्रा रद्द होने से बॉर्डर के लोगों का कारोबार प्रभावित, कैसे चलेगी रोजी-रोटी?

पोनी पोर्टर का कारोबार चौपट
यात्रा रद्द होने से सीमांत क्षेत्र के करीब 300 पोनी पोर्टर का सीजनल रोजगार चौपट हो गया है. ये पोनी पोर्टर यात्रा के दौरान सामान ढोकर अपनी साल भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ करते थे. यही नहीं यात्रा रद्द होने से सीमांत क्षेत्र के डेढ़ हजार से अधिक व्यापारियों का कारोबार भी प्रभावित हुआ है. जिनमें आम व्यापारियों के साथ ही हथकरघा, ऊनी उद्योग और जड़ी बूटी उद्योग से जुड़े व्यवसायी भी प्रभावित हुए हैं.

पढ़ें:एयरफोर्स के अधिकारियों ने चौखुटिया में प्रस्तावित एयर स्ट्रिप का किया निरीक्षण

स्थानीय व्यवसायी भी प्रभावित
स्थानीय व्यवसायी हरीश राइपा का कहना है कि दो साल पहले तक बॉर्डर के इलाकों में कैलाश मानसरोवर और आदि कैलाश यात्रियों के साथ ही सैलानी भी शिरकत करते थे. जिससे उनका कारोबार भी खूब चलता था. मगर कोरोना महामारी के बाद से यहां व्यापारिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई है. वहीं जिलाधिकारी आनंद स्वरूप ने बताया कि यात्रा के संबंध में फिलहाल अभी कोई जानकारी उन्हें नहीं मिली है. लेकिन यात्रा को लेकर कोई निर्देश मिलते हैं तो प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद है.

पढ़ें : एमपी में 3,000 डॉक्टरों के सामूहिक इस्तीफे पर मंत्रालय में महामंथन

केएमवीएन को करोड़ों की चपत
भारत-चीन युद्ध से पहले मानसरोवर यात्रा स्वतंत्र रूप से संचालित होती थी. लेकिन 1962 के बाद इस पर रोक लग गई दोनों मुल्कों की कोशिशों के बाद 1981 से ये यात्रा फिर शुरू तो हुई, लेकिन इसका स्वरूप पूरी तरह बदल गया. विदेश मंत्रालय और चाइना के साथ संयुक्त रूप से संचालित कैलाश मानसरोवर यात्रा में अब केएमवीएन की अहम जिम्मेदारी है. यात्रियों को दिल्ली से लेकर चाइना बॉर्डर तक पहुंचाने समेत खान-पान, ठहरने और अन्य व्यवस्थाएं केएमवीएन के अधीन है. कुमाऊं मंडल विकास निगम को इस यात्रा से प्रति वर्ष 5 करोड़ का फायदा होता था. मगर यात्रा रद्द होने से केएमवीएन को करोड़ों की चपत लगी है.

पढ़ें: बेरीनाग में मिला दुलर्भ प्रजाति का घायल सफेद उल्लू, वन विभाग ने कराया इलाज

केएमवीएन से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1981 में 3 दलों में 59 यात्रियों से ये यात्रा शुरू हुई. धीरे-धीरे विश्व पटल पर ख्याति प्राप्त करने के बाद यात्री दलों की संख्या लगातार बढ़ती गयी. अब यात्री दलों की संख्या बढ़कर 18 हो चुकी है. आंकड़ों के मुताबिक अब तक 460 दलों में 16,865 श्रद्धालु यात्रा कर चुके हैं. दिल्ली से शुरू होने वाली इस यात्रा में यात्रियों का दल दिल्ली से यात्रा करते हुए हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, धारचूला, नजंग, बूंदी, गुंजी और लिपुलेख पड़ावों से होता हुआ चाइना में प्रवेश करता है. इस तरह कैलाश मानसरोवर यात्रा कुल 18 दिन में सम्पन्न होती है. जबकि 18 दलों की यात्रा सम्पन्न होने में करीब 4 महीने लगते है. इस दौरान सीमान्त क्षेत्र में खासी रौनक देखने को मिलती थी.

पिथौरागढ़: वैश्विक महामारी कोरोना (COVID-19) के चलते इस बार भी विश्व प्रसिद्ध कैलाश मानसरोवर यात्रा ( Kailash Mansarovar Yatra) आयोजित नहीं हो पाएगी. लगातार दूसरे साल यात्रा बंद होने से जहां श्रद्धालु निराश हैं, वहीं बॉर्डर के ग्रामीणों का रोजगार भी प्रभावित हो गया है. यात्रा के जरिए जहा सैकड़ों पोनी पोर्टर्स को सीजनल रोजगार मिलता था. वहीं यात्रा के दौरान चार महीने तक सीमान्त क्षेत्र के लोगों का कारोबार भी जमकर फलता फूलता था. मगर पिछले दो सालों से चीन बॉर्डर से सटे गांवों में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ है. वहीं यात्रा का संचालन नहीं होने से कुमाऊं मंडल विकास निगम को करीब 5 करोड़ का घाटा झेलना पड़ेगा.

यात्रा रद्द होने से गहराया रोजी-रोटी का संकट
भारत और चीन के सहयोग से होने वाली कैलाश मानसरोवर यात्रा लगातार दूसरे साल भी आयोजित नहीं हो पाएगी. धार्मिक महत्व की ये यात्रा हर साल 12 जून से शुरू होती थी. मगर इस बार अभी तक ना तो यात्रियों के रजिस्ट्रेशन हुए हैं और ना ही कोई प्रशासनिक इंतजाम किए गए हैं. ऐसे में इस साल यात्रा रद्द होना तय है. जानकारों की मानें तो चीन से जारी सीमा विवाद और कोरोना के चलते इस साल भी यात्रा पर ग्रहण लग गया है. हर साल इस यात्रा में हजारों यात्री पिथौरागढ़ होते हुए चाइना पहुंचते थे और बॉर्डर इलाकों में खास चहल पहल देखने को मिलती थी. मगर यात्रा नहीं होने से सीमान्त क्षेत्र की हजारों की आबादी के आगे रोजी रोटी का संकट भी खड़ा हो गया है.

कैलाश मानसरोवर: यात्रा रद्द होने से बॉर्डर के लोगों का कारोबार प्रभावित, कैसे चलेगी रोजी-रोटी?

पोनी पोर्टर का कारोबार चौपट
यात्रा रद्द होने से सीमांत क्षेत्र के करीब 300 पोनी पोर्टर का सीजनल रोजगार चौपट हो गया है. ये पोनी पोर्टर यात्रा के दौरान सामान ढोकर अपनी साल भर की रोजी-रोटी का जुगाड़ करते थे. यही नहीं यात्रा रद्द होने से सीमांत क्षेत्र के डेढ़ हजार से अधिक व्यापारियों का कारोबार भी प्रभावित हुआ है. जिनमें आम व्यापारियों के साथ ही हथकरघा, ऊनी उद्योग और जड़ी बूटी उद्योग से जुड़े व्यवसायी भी प्रभावित हुए हैं.

पढ़ें:एयरफोर्स के अधिकारियों ने चौखुटिया में प्रस्तावित एयर स्ट्रिप का किया निरीक्षण

स्थानीय व्यवसायी भी प्रभावित
स्थानीय व्यवसायी हरीश राइपा का कहना है कि दो साल पहले तक बॉर्डर के इलाकों में कैलाश मानसरोवर और आदि कैलाश यात्रियों के साथ ही सैलानी भी शिरकत करते थे. जिससे उनका कारोबार भी खूब चलता था. मगर कोरोना महामारी के बाद से यहां व्यापारिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई है. वहीं जिलाधिकारी आनंद स्वरूप ने बताया कि यात्रा के संबंध में फिलहाल अभी कोई जानकारी उन्हें नहीं मिली है. लेकिन यात्रा को लेकर कोई निर्देश मिलते हैं तो प्रशासन पूरी तरह से मुस्तैद है.

पढ़ें : एमपी में 3,000 डॉक्टरों के सामूहिक इस्तीफे पर मंत्रालय में महामंथन

केएमवीएन को करोड़ों की चपत
भारत-चीन युद्ध से पहले मानसरोवर यात्रा स्वतंत्र रूप से संचालित होती थी. लेकिन 1962 के बाद इस पर रोक लग गई दोनों मुल्कों की कोशिशों के बाद 1981 से ये यात्रा फिर शुरू तो हुई, लेकिन इसका स्वरूप पूरी तरह बदल गया. विदेश मंत्रालय और चाइना के साथ संयुक्त रूप से संचालित कैलाश मानसरोवर यात्रा में अब केएमवीएन की अहम जिम्मेदारी है. यात्रियों को दिल्ली से लेकर चाइना बॉर्डर तक पहुंचाने समेत खान-पान, ठहरने और अन्य व्यवस्थाएं केएमवीएन के अधीन है. कुमाऊं मंडल विकास निगम को इस यात्रा से प्रति वर्ष 5 करोड़ का फायदा होता था. मगर यात्रा रद्द होने से केएमवीएन को करोड़ों की चपत लगी है.

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केएमवीएन से मिली जानकारी के मुताबिक वर्ष 1981 में 3 दलों में 59 यात्रियों से ये यात्रा शुरू हुई. धीरे-धीरे विश्व पटल पर ख्याति प्राप्त करने के बाद यात्री दलों की संख्या लगातार बढ़ती गयी. अब यात्री दलों की संख्या बढ़कर 18 हो चुकी है. आंकड़ों के मुताबिक अब तक 460 दलों में 16,865 श्रद्धालु यात्रा कर चुके हैं. दिल्ली से शुरू होने वाली इस यात्रा में यात्रियों का दल दिल्ली से यात्रा करते हुए हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, धारचूला, नजंग, बूंदी, गुंजी और लिपुलेख पड़ावों से होता हुआ चाइना में प्रवेश करता है. इस तरह कैलाश मानसरोवर यात्रा कुल 18 दिन में सम्पन्न होती है. जबकि 18 दलों की यात्रा सम्पन्न होने में करीब 4 महीने लगते है. इस दौरान सीमान्त क्षेत्र में खासी रौनक देखने को मिलती थी.

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