पटना : कोरोना के नए वेरिएंट ओमीक्रोन (New Variant of Corona Omicron) को लेकर दुनियाभर में चिंता बढ़ा रही है. दुनिया के जिन देशों में ओमीक्रोन (Omicron) के मामले सामने आए हैं, वहां यह भी देखने को मिला है कि वैक्सीन के दोनों डोज लेने वाले भी इससे संक्रमित हो रहे हैं. अब माइक्रो बायोलॉजी के एक्सपर्ट सरकार से मांग कर रहे हैं कि जिन लोगों ने काफी पहले वैक्सीन के दोनों डोज ले लिए हैं, उन लोगों को वैक्सीन का बूस्टर डोज (Booster Dose of Corona Vaccine) देने की शुरुआत कर देनी चाहिए.
देश में कोरोना वैक्सीन के दोनों डोज (Both doses of Corona Vaccine) लेने वाले खुद को कोरोना से सुरक्षित मानते हुए गाइडलाइंस का पालन नहीं कर रहे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अभी भी हमें कोरोना गाइडलाइंस का गंभीरता से पालन करने की जरूरत है. चेहरे पर मास्क के साथ हैंड सैनिटाइज करना भी बेहद जरूरी है.
पीएमसीएच (PMCH) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष और वर्तमान में प्रोफेसर डॉक्टर सत्येंद्र नारायण सिंह ने कहा कि कोरोना टीकाकरण की शुरुआत 16 जनवरी से हुई थी. जब इसकी शुरुआत हुई थी, तब 28 दिन पर दूसरा डोज दे दिया जाता था. ऐसे में अब इन लोगों को बूस्टर डोज देने की आवश्यकता आ गई है.
PMCH माइक्रोबायोलॉजी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. सत्येंद्र नारायण सिंह ने कहा कि किसी भी वैक्सीन को जब किसी व्यक्ति में लगाया जाता है तो उसकी एंटीबॉडी तीन महीने में पीक पर होती है. वैक्सीन लगते ही एंटीबॉडी बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, लेकिन 14 दिन से वह ब्लड में आ जाता है और धीरे-धीरे यह एंटीबॉडी अपनी पिक पर जाने में तीन महीने का समय लेती है. इसी थ्योरी को ध्यान में रखते हुए वैक्सीनेशन अभियान की शुरुआत होने के बाद कोविशील्ड वैक्सीन के एक डोज से दूसरे डोज के बीच का अंतराल बढ़ाकर लगभग तीन महीने का किया गया, ताकि जब एंटीबॉडी पिक पर हो उसी वक्त वैक्सीन देकर एंटीबॉडी को और हाई किया जाए.
डॉ. एस एन सिंह ने कहा कि किसी भी वैक्सीन को देकर तैयार किये गए एंटीबॉडी छह महीने के बाद शरीर से कम होने लगती है और नौ से दस महीने में एंटीबॉडी का स्तर गिरकर शून्य पर चला जाता है. हालांकि, टीकाकरण से शरीर के T-Cell में मेमोरी स्टोर हो जाती है, जो आगे बीमारी से लड़ने में काफी मदद करता है, लेकिन अगर एंटीबॉडी बढ़ाने के लिए बूस्टर डोज दिया जाए तो यह काफी फायदेमंद होता है.
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उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने शुरू में टीके लगवाए है, खासकर हेल्थ केयर वर्कर, उनकी एंटीबॉडी अब फॉलिंग ट्रेंड में है. थोड़ी बहुत एंटीबॉडी शरीर के सेल्यूलर इम्यूनिटी में मिलेगी, इससे भी बचाव हो सकता है. कोरोना का नया स्ट्रेन (New Strain of Corona) ओमीक्रोन के बारे में अभी तक आई रिपोर्ट से पता चला है कि यह बहुत अधिक संक्रामक है. ऐसे में जिन लोगों के शरीर का एंटीबॉडी फॉल हो रहा है, उन्हें बूस्टर डोज लगवाने की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा कि किसी भी वैक्सीन का बूस्टर डोज लगाने का नियम है कि वैक्सीन लिए हुए अगर 12 महीने हो गए हैं तो वैक्सीन का बूस्टर डोज लगवा लेना चाहिए, लेकिन नौ महीने बाद भी बूस्टर डोज लगवाया जा सकता है. बूस्टर डोज के लिए किसी भी कंपनी का वैक्सीन लगवा सकते हैं और यह सुरक्षित है. अगर किसी ने कोविशिल्ड का दोनों डोज लगवाया है, तो वह कोवैक्सीन का भी बूस्टर डोज ले सकता है और यदि कोई कोवैक्सीन का दोनों डोज लगवाया है, तो कोविशिल्ड का भी बूस्टर डोज ले सकता है. यह कई रिसर्च में सिद्ध हो चुका है कि वैक्सीन के कंपनी चेंज करने से कोई दुष्प्रभाव शरीर पर नहीं पड़ता है.
बता दें कि एक तरफ विशेषज्ञ बूस्टर डोज की शुरुआत करने की मांग कर रहे हैं. वहीं, दूसरी तरफ सरकार कि इसको लेकर कोई तैयारी नहीं है. हालांकि, सरकार अभी प्लानिंग कर रही है कि बूस्टर डोज की शुरुआत की जाए और शुरुआती फेज में स्वास्थ्य कर्मियों और फ्रंटलाइन कर्मियों को बूस्टर डोज के लिए शामिल किया जाए.