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बॉम्बे हाईकोर्ट ने नाबालिग बेटी की मांग ठुकराई, पिता को दान करना चाहती थी लीवर

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Published : May 14, 2022, 8:25 PM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने 16 साल की बेटी की अपने बीमार पिता को लीवर दान देने की याचिका खारिज कर दी. अब इस मामले पर जून मे सुनवाई होगी.

Bombay High Court
बॉम्बे हाईकोर्ट (फाइल फोटो)

मुंबई: नाबालिग के जीवन को खतरे में देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने 16 साल की बेटी की अपने बीमार पिता को लीवर दान देने की याचिका खारिज कर दी. नाबालिग के पिता गंभीर रूप से बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं.

जस्टिस अनिल मेनन और नितिन बोरकर की आवेदन बेंच ने कहा, 'हमें नाबालिग की चिंता है और इसलिए लीवर दान करने की अनुमति देने के इच्छुक नहीं है.' नाबालिग ने कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा था कि उसके पिता लीवर सिरोसिस से पीड़ित हैं और उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई है. इससे पहले नाबालिग की याचिका को अस्पताल समिति ने खारिज कर दिया था. इसके बाद ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन ऐक्ट 1994 के तहत गठित की गई राज्य प्राधिकरण समिति ने भी 11 मई को नाबालिग का आवेदन अस्वीकृत कर दिया था. समिति ने कहा था कि उन्हें नहीं पता कि बच्ची अपनी मर्जी से लीवर देना चाहती है या उसके ऊपर दबाव है. इसके बाद बच्ची की मां ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अनुमति मांगी थी.

नाबालिग ने राज्य समिति के आदेश को चुनौती देने के लिए अपनी याचिका में सुधार किया था. उसके एडवोकेट ने यह तर्क देने की कोशिश की कि एक जिगर पुन: उत्पन्न हो सकता है, लेकिन न्यायाधीशों ने राहत देने से इनकार कर दिया. अदालत ने इस मामले में फिलहाल कोई फैसला नहीं दिया है लेकिन लड़की को लीवर दान करने से रोक दिया है. अगली सुनवाई जून में होगी. जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, संबंधित याचिकाकर्ता अपने पिता को लीवर दान नहीं कर पाएगी.

ये भी पढ़ें - ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे के खिलाफ याचिका पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट

मुंबई: नाबालिग के जीवन को खतरे में देखते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने 16 साल की बेटी की अपने बीमार पिता को लीवर दान देने की याचिका खारिज कर दी. नाबालिग के पिता गंभीर रूप से बीमार हैं और अस्पताल में भर्ती हैं.

जस्टिस अनिल मेनन और नितिन बोरकर की आवेदन बेंच ने कहा, 'हमें नाबालिग की चिंता है और इसलिए लीवर दान करने की अनुमति देने के इच्छुक नहीं है.' नाबालिग ने कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा था कि उसके पिता लीवर सिरोसिस से पीड़ित हैं और उन्हें लीवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी गई है. इससे पहले नाबालिग की याचिका को अस्पताल समिति ने खारिज कर दिया था. इसके बाद ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन ऐक्ट 1994 के तहत गठित की गई राज्य प्राधिकरण समिति ने भी 11 मई को नाबालिग का आवेदन अस्वीकृत कर दिया था. समिति ने कहा था कि उन्हें नहीं पता कि बच्ची अपनी मर्जी से लीवर देना चाहती है या उसके ऊपर दबाव है. इसके बाद बच्ची की मां ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अनुमति मांगी थी.

नाबालिग ने राज्य समिति के आदेश को चुनौती देने के लिए अपनी याचिका में सुधार किया था. उसके एडवोकेट ने यह तर्क देने की कोशिश की कि एक जिगर पुन: उत्पन्न हो सकता है, लेकिन न्यायाधीशों ने राहत देने से इनकार कर दिया. अदालत ने इस मामले में फिलहाल कोई फैसला नहीं दिया है लेकिन लड़की को लीवर दान करने से रोक दिया है. अगली सुनवाई जून में होगी. जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, संबंधित याचिकाकर्ता अपने पिता को लीवर दान नहीं कर पाएगी.

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