लुधियाना : पंजाब में मवेशियों में ढेलेदार चर्म रोग (lumpy skin disease in cattle in Punjab) के बाद अब किसानों की चिंता बढ़ती जा रही है. जहां पंजाब में हजारों मवेशी इसकी चपेट में आ चुके हैं, वहीं अब किसानों की धान की फसल भी ब्लैक स्ट्रीक्ड बोना वायरस (black streaked bona virus) की चपेट में आ गई है. बीमारी के कारण नुकसान हो रहा है. तटीय क्षेत्रों में पादप रोग विभाग के डॉ. मंदीप हुंजन ने अपनी टीम के साथ अपना अनुभव साझा किया. उन्होंने कहा कि यह बीमारी ज्यादातर पंजाब के तटीय इलाकों में देखी जाती है. खासकर सतलुज से सटे इलाकों में इसका असर ज्यादा देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा कि होशियारपुर, पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, रोपड़ और लुधियाना के कुछ हिस्से भी इस बीमारी से प्रभावित हैं. विशेष रूप से सतलुज नदी के किनारे वाले क्षेत्रों में 5 से 7 प्रतिशत प्रभावित है. हालांकि, इसका असर ज्यादातर खेतों में नहीं हुआ है.
इसके लक्षण : डॉ. मंजीत हुंजन ने बताया कि सबसे ज्यादा असर पौधे पर पड़ता है, जिससे उसकी वृद्धि रुक जाती है. यह एक सामान्य पौधे के आकार का आधा या कभी-कभी एक तिहाई होता है. इन्हें आसानी से जड़ से उखाड़ा जा सकता है. इनकी जड़ें भी कम गहरी होती हैं. यह समस्या किसानों के खेतों में खेती की जाने वाली लगभग सभी किस्मों के फसल में देखी गई है. वर्तमान इस रोग के लक्षणों के कारणों के बारे में अलग-अलग मत दिये गए हैं.
अब यह नई बीमारी : पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना के विशेषज्ञ डॉ. मंजीत हुंजन ने बताया कि यह एक नई बीमारी है. यह रोग पहले कभी नहीं देखा गया है. उन्होंने कहा कि यह सिर्फ पंजाब में ही नहीं बल्कि हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी फैली है. खनिजों की कमी, रेड गोनो, जलवायु परिवर्तन आदि के बारे में अनुमान लगाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि यह रोग बीज के साथ नहीं आया बल्कि यह एक तरह का वायरस है. उन्होंने कहा कि हम लगातार इस पर कार्य कर रहे हैं. यह बीमारी 25 जून के बाद बोई गई फसल की तुलना में 15 से 25 जून के बीच बोई गई फसल में ज्यादा देखने को मिल रही है.
नुकसान से बचाव कैसे : डॉ. मंजीत ने बताया कि यह एक तरह का वायरस है. इस वजह से इसका कोई स्प्रे या दवा उपचार नहीं है, लेकिन इसे एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलने से रोकने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से सिफारिशें की गई हैं. इसे दवाओं के जरिये टिड्डियों से बचाना बेहद जरूरी है. उन्होंने कहा कि धान की फसल की समय-समय पर निगरानी की जानी चाहिए. साथ ही किसानों को बाजारों में फैली अफवाहों से बचना चाहिए, क्योंकि फिलहाल इसका ज्यादा असर नहीं है. किसान विश्वविद्यालय द्वारा अनुशंसित स्प्रे से पौधों को उखाड़ सकते हैं या इसके प्रभाव को कम कर सकते हैं.
अब तक का नुकसान : पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ डॉक्टर ने कहा कि फिलहाल इसका असर कुछ ही इलाकों और जिन क्षेत्रों में यह बीमारी फैली है, वहां इसका असर है. इनमें 5 से 7 फीसदी के नुकसान की आशंका जताई जा रही है, जो कोई बड़ा नुकसान नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि यह बीमारी अगले साल दूर नहीं होगी. इस संबंध में वे लगातार लैब में टेस्ट किये जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि पंजाब सरकार ने भी इस संबंध में जानकारी साझा की है, जिसके चलते यूनिवर्सिटी ने किसानों को एडवाइजरी जारी की है.