ETV Bharat / bharat

बंगाल की हार पर हर चूक का हिसाब करेगी बीजेपी की केंद्रीय टीम

पश्चिम बंगाल की हार को भाजपा के आला नेता काफी गंभीरता से ले रहे हैं. पार्टी को दूर-दूर तक यह विश्वास नहीं था कि इस कदर वहां हार होगी. इस बार हार का ठीकरा राज्य के नेताओं पर नहीं बल्कि केंद्रीय नेताओं की बयानबाजी पर फोड़ा जा रहा है. इसलिए पार्टी की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह हार पर मंथन करें.

central team
central team
author img

By

Published : May 6, 2021, 8:59 PM IST

Updated : May 6, 2021, 9:14 PM IST

नई दिल्ली : पार्टी के एक बड़े नेता ने बताया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता जल्द ही एक केंद्रीय टीम बनाएंगे जो पश्चिम बंगाल चुनाव में कमियों और गलतियों पर रिपोर्ट तैयार करेगी. जरूरत पड़ी तो टीम बंगाल जाकर कार्यकर्ताओं, राज्य के नेताओं और ब्लॉक व बूथ स्तर के प्रतिनिधियों से भी सवाल-जवाब करेगी.

उन्होंने यह कहा कि इसमें फिलहाल थोड़ा समय लग सकता है क्योंकि कोरोना का कहर जारी है. लेकिन पार्टी की सेंट्रल टीम वर्चुअल माध्यम से अपने नेताओं के साथ संपर्क कर एक रिपोर्ट तैयार करने की कोशिश करेगी. ताकि कमियों को सुधारकर 2024 चुनाव की तैयारी की जाए. यह भी देखा जाएगा कि दूसरी पार्टियों से आए प्रतिनिधियों में से कितनों की जीत हुई और कितने हारे.

इनका चुनाव परिणाम में क्या प्रभाव रहा और इनसे क्या नुकसान हुआ है. इसके अलावा मतुआ और राजबंशी समुदाय जो पश्चिम बंगाल में सीएए कानून का इंतजार कर रहे थे लेकिन मतुआ समुदाय को बीजेपी प्रभावित नहीं कर पाई. सूत्रों का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम नियमों को लागू करने और उसे अधिसूचित करने में जो केंद्र की तरफ से देरी पार्टी के लिए नुकसानदेह रही.

उत्तर 24 परगना और नादिया जहां मतुवा फैक्टर निर्णायक हैं वहां की 32 सीटों में से भाजपा ने 12 सीटें ही जीती हैं जबकि 20 सीटें तृणमूल के खाते में गई. वहीं राजवंशी समुदाय जो बांग्लादेश से ही आए हिंदू शरणार्थियों का समुदाय है उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को अपने बहुल इलाके में अच्छे वोटों से जिताया है.

इस समुदाय के प्रभाव वाली सीटों में से 11 सीटें हैं जिनमें से भारतीय जनता पार्टी ने 9 सीट पर जीत हासिल की है. वहीं दूसरी पार्टी से 148 नेता बीजेपी में शामिल हुए जिसमें एक दर्जन सीटिंग विधायक रहे लेकिन इनमें से मात्र छः ही जीत पाए.

इस मुद्दे पर राजनैतिक विश्लेषक देश रतन निगम ने ईटीवी को बताया कि मतुआ समुदाय में मुस्लिम समुदाय के भी लोग हैं और उन्होंने धार्मिक आधार पर एकजुट होकर टीएमसी को वोट दिया है. उन्होंने कहा कि लोगों को याद होगा कि ममता बनर्जी ने बीच में लेफ्ट और कांग्रेस सभी को पत्र लिखा था कि बीजेपी को हराना है और यह बात कहीं ना कहीं फैक्टर के रूप में काम आया.

राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि बीजेपी का 3 से 77 तक पहुंचना और अपना वोट 39 प्रतिशत वोट मेंटेन रखना कामयाबी है. इस सवाल पर कि 2024 के लोकसभा चुनाव पर बीजेपी पर इस हार का क्या प्रभाव पड़ेगा निगम ने कहा कि जब बीजेपी की 3 सीटें थी तब वे लोकसभा में 18 सीटें ले गए थे और अब तो 77 आ गई हैं तो कहीं ना कहीं जमीन पर बीजेपी का जनाधार बढ़ा है.

इससे उन्हें लोकसभा चुनाव में बड़ी मदद मिलेगी और जो वोट ट्रांसफर हुआ है विधानसभा के लिए वह लोकसभा के लिए नहीं होगा. इस सवाल पर कि भारतीय जनता पार्टी को इस हार के बाद कहां सुधार करना होगा निगम का कहना है कि भाजपा को थोड़ा सख्त होना पड़ेगा. जहां तक बात बयानबाजी की है सिर्फ बड़ी बातों से काम नहीं चलेगा.

चुनाव के बाद हिंसा हुई लेकिन केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया. इससे कार्यकर्ताओं में मैसेज जाएगा उन्हें कोई बचाने वाला नहीं है इससे आगे लोग सोच में पड़ जाएंगे. उन्होंने कहा कि यह बात भी विचार करने वाली है कि जो लोग हिंसा कर रहे थे उसमें ज्यादातर 16 साल से नीचे के बच्चे हैं और उन पर ज्यादा गंभीर कानून नहीं लागू नहीं होते.

यह भी पढ़ें-सावधान ! बच्चे हो रहे कोरोना के शिकार, इलाज से ज्यादा सावधानी की दरकार

उन्हें चिल्ड्रंस होम में भेजकर मामला कुछ दिनों में खत्म हो जाता है. कहीं न कहीं यह सोची-समझी और नियोजित हिंसा कही जा सकती है.

नई दिल्ली : पार्टी के एक बड़े नेता ने बताया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता जल्द ही एक केंद्रीय टीम बनाएंगे जो पश्चिम बंगाल चुनाव में कमियों और गलतियों पर रिपोर्ट तैयार करेगी. जरूरत पड़ी तो टीम बंगाल जाकर कार्यकर्ताओं, राज्य के नेताओं और ब्लॉक व बूथ स्तर के प्रतिनिधियों से भी सवाल-जवाब करेगी.

उन्होंने यह कहा कि इसमें फिलहाल थोड़ा समय लग सकता है क्योंकि कोरोना का कहर जारी है. लेकिन पार्टी की सेंट्रल टीम वर्चुअल माध्यम से अपने नेताओं के साथ संपर्क कर एक रिपोर्ट तैयार करने की कोशिश करेगी. ताकि कमियों को सुधारकर 2024 चुनाव की तैयारी की जाए. यह भी देखा जाएगा कि दूसरी पार्टियों से आए प्रतिनिधियों में से कितनों की जीत हुई और कितने हारे.

इनका चुनाव परिणाम में क्या प्रभाव रहा और इनसे क्या नुकसान हुआ है. इसके अलावा मतुआ और राजबंशी समुदाय जो पश्चिम बंगाल में सीएए कानून का इंतजार कर रहे थे लेकिन मतुआ समुदाय को बीजेपी प्रभावित नहीं कर पाई. सूत्रों का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम नियमों को लागू करने और उसे अधिसूचित करने में जो केंद्र की तरफ से देरी पार्टी के लिए नुकसानदेह रही.

उत्तर 24 परगना और नादिया जहां मतुवा फैक्टर निर्णायक हैं वहां की 32 सीटों में से भाजपा ने 12 सीटें ही जीती हैं जबकि 20 सीटें तृणमूल के खाते में गई. वहीं राजवंशी समुदाय जो बांग्लादेश से ही आए हिंदू शरणार्थियों का समुदाय है उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को अपने बहुल इलाके में अच्छे वोटों से जिताया है.

इस समुदाय के प्रभाव वाली सीटों में से 11 सीटें हैं जिनमें से भारतीय जनता पार्टी ने 9 सीट पर जीत हासिल की है. वहीं दूसरी पार्टी से 148 नेता बीजेपी में शामिल हुए जिसमें एक दर्जन सीटिंग विधायक रहे लेकिन इनमें से मात्र छः ही जीत पाए.

इस मुद्दे पर राजनैतिक विश्लेषक देश रतन निगम ने ईटीवी को बताया कि मतुआ समुदाय में मुस्लिम समुदाय के भी लोग हैं और उन्होंने धार्मिक आधार पर एकजुट होकर टीएमसी को वोट दिया है. उन्होंने कहा कि लोगों को याद होगा कि ममता बनर्जी ने बीच में लेफ्ट और कांग्रेस सभी को पत्र लिखा था कि बीजेपी को हराना है और यह बात कहीं ना कहीं फैक्टर के रूप में काम आया.

राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि बीजेपी का 3 से 77 तक पहुंचना और अपना वोट 39 प्रतिशत वोट मेंटेन रखना कामयाबी है. इस सवाल पर कि 2024 के लोकसभा चुनाव पर बीजेपी पर इस हार का क्या प्रभाव पड़ेगा निगम ने कहा कि जब बीजेपी की 3 सीटें थी तब वे लोकसभा में 18 सीटें ले गए थे और अब तो 77 आ गई हैं तो कहीं ना कहीं जमीन पर बीजेपी का जनाधार बढ़ा है.

इससे उन्हें लोकसभा चुनाव में बड़ी मदद मिलेगी और जो वोट ट्रांसफर हुआ है विधानसभा के लिए वह लोकसभा के लिए नहीं होगा. इस सवाल पर कि भारतीय जनता पार्टी को इस हार के बाद कहां सुधार करना होगा निगम का कहना है कि भाजपा को थोड़ा सख्त होना पड़ेगा. जहां तक बात बयानबाजी की है सिर्फ बड़ी बातों से काम नहीं चलेगा.

चुनाव के बाद हिंसा हुई लेकिन केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया. इससे कार्यकर्ताओं में मैसेज जाएगा उन्हें कोई बचाने वाला नहीं है इससे आगे लोग सोच में पड़ जाएंगे. उन्होंने कहा कि यह बात भी विचार करने वाली है कि जो लोग हिंसा कर रहे थे उसमें ज्यादातर 16 साल से नीचे के बच्चे हैं और उन पर ज्यादा गंभीर कानून नहीं लागू नहीं होते.

यह भी पढ़ें-सावधान ! बच्चे हो रहे कोरोना के शिकार, इलाज से ज्यादा सावधानी की दरकार

उन्हें चिल्ड्रंस होम में भेजकर मामला कुछ दिनों में खत्म हो जाता है. कहीं न कहीं यह सोची-समझी और नियोजित हिंसा कही जा सकती है.

Last Updated : May 6, 2021, 9:14 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.