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केंद्रीय मुद्दों और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर बीजेपी लड़ेगी राजस्थान का विधानसभा चुनाव - राजस्थान विधानसभा चुनाव

राजस्थान में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, जिसे लेकर राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुट गई हैं. कांग्रेस पार्टी की तरह ही भारतीय जनता पार्टी में भी दरारें मौजूद हैं. इस पर भी केंद्रीय नेतृत्व ध्यान रख रहा है. ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में जानें...

Prime Minister Narendra Modi
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
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Published : Jun 15, 2023, 10:00 PM IST

नई दिल्ली: वैसे तो इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी आश्वस्त नजर आ रही है और बड़े-बड़े दावे कर रही है, लेकिन पार्टी को यह मालूम है कि इस राज्य में मुख्यमंत्री के दावेदार कई हैं और आपस में इन बातों को लेकर मतभेद भी हैं. मगर ये मतभेद चुनावी मैदान में नजर न आए, इस वजह से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कई तरह की रणनीति तैयार कर रहा है.

इस रणनीति के तहत राज्य के चुनाव में केंद्रीय मुद्दों प्रधानमंत्री के चेहरे और ऐसे नारों को लेकर मैदान में उतर आ जाए, जिसमें राज्य के किसी भी चेहरों में मत भिन्नता हो ही ना. आइए जानते हैं भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान के लिए क्या है यह नई रणनीति. भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में केंद्रीय नारों के भरोसे चुनाव लड़ेगी. पार्टी के केंद्रीय कार्यालय और शिवसेना नताओं द्वारा ऐसे प्रचार माध्यम और नारे तैयार किए जा रहे हैं, जिसमें राज्य के पार्टी के अलग-अलग दावेदारों में कोई मतभेद ना हो पाए.

पार्टी के केंद्रीय नेताओं को ऐसा लगता है कि एकजुटता का संदेश लेकर यदि पार्टी चुनावी मैदान में उतरती है तो उसे ज्यादा फायदा होगा. राजस्थान बीजेपी में अलग-अलग धड़ा मौजूद है और सभी खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहे हैं. पार्टी के कई बड़े-छोटे नेता सीएम पद की दावेदारी अपने मन में संजोए हैं और गाहे-बगाहे उनके समर्थक भी अपने नेता के पक्ष में सार्वजनिक बयान बाजी या नारेबाजी करते रहे हैं.

मगर यह कला चुनाव प्रचार या चुनावी मैदान तक ना पहुंचे, इसका रास्ता निकालते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सामूहिकता को बल देते हुए चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसा नहीं है कि राजस्थान में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में बहुत एका है. कांग्रेस के अंदर भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमा एक दूसरे को देखना भी नहीं चाहता, जिसका खामियाजा लगातार पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.

भाजपा भी गुटबाजी की वजह से राजस्थान में परेशान है. अब इस नारेबाजी और गुटबाजी को रोकने के लिए बीजेपी आलाकमान ने उपाय निकाला है. पार्टी ने तय किया है कि अब छोटी बड़ी, जिला या प्रदेश स्तर की बैठक में किसी नेता या मंत्री का व्यक्तिगत नारा नहीं लगेगा. सूत्रों की माने तो पार्टी के सभी राजनीतिक सभाओं में सिर्फ भारत माता की जय, बीजेपी और पीएम मोदी के ही नारे लगेंगें.

किसी भी नेता या मंत्री के नाम से नारे नहीं लगेंगें. ना ही पार्टी के राज्य स्तर के किसी भी नेता का नाम बड़ी रैलियों या कार्यक्रमों में बगैर इजाजत के लिए जायेंगे. साथ ही किन नेताओं के पोस्टर और बैनर पीएम और केंद्रीय नेताओं की रैलियों में लगने हैं ये भी केंद्रीय कार्यालय ही तय करेगा. साथ ही पार्टी गहलोत सरकार को घेरने के लिए कई नारे और मुद्दे भी तैयार कर रही है, जिसमें भ्रष्टाचार, पेपर लीक का मामला, कानून व्यवस्था और बेरोजगार के मुद्दे के साथ ही, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को भी मुख्य मुद्दा बनाने जा रही है.

पार्टी मुख्य तौर पर ये नारा दे रही की 'अपराध बेलगाम, नहीं सहेगा राजस्थान! भ्रष्टाचार का फैला जाल, नहीं सहेगा राजस्थान! पेपरलीक से युवा परेशान, नहीं सहेगा राजस्थान!' साथ ही बीजेपी सूत्रों की माने तो पार्टी विपक्ष में ऐसे नेताओं पर भी लगातार नजर रख रही है, जो अपनी पार्टी का दामन छोड़ बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. इसकी शुरुआत इसी हफ्ते के शुरू में कर दी गई थी.

इसमें कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व सीएम जगन्नाथ पहाड़िया के पुत्र ओम प्रकाश पहाड़िया और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के भतीजे विजेंद्र सिंह समेत सचिव और डीजी स्तर के कई अधिकारी बीजेपी में शामिल कराए गए थे. यही नहीं पार्टी ने तय किया है कि चुनाव से पहले बीजेपी में कुछ और लोगों को भी शामिल करवाया जा सकता है, ताकि ये लड़ाई और भी आसान हो जाए. चाहे वो दूसरे दलों के नेता, विधायक या कोई चर्चित अधिकारी ही क्यों न हों.

एक राष्ट्रीय महासचिव ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पार्टी न सिर्फ राजस्थान बल्कि सारे ही चुनावी राज्यों के मुताबिक अलग-अलग रणनीति वहां की भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक समीकरण देखकर ही बनाती है. जहां तक राजस्थान का सवाल है वहां हमारी सरकार नहीं है, इसलिए केंद्रीय मुद्दे और उपलब्धियां और नेताओं के नाम ही लिए जाएंगे इसमें क्या बुराई है?

बहरहाल राजस्थान में पार्टी चुनावी मोड में कर्नाटक के बाद ही आ चुकी है और कर्नाटक जैसी गलतियां दोहराईं ना जाए, इसके लिए बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ये कोशिश कर रहा है की राज्य स्तर के नेताओं को विश्वास में लेकर चला जाए.

नई दिल्ली: वैसे तो इस साल के अंत में होने वाले राजस्थान विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी आश्वस्त नजर आ रही है और बड़े-बड़े दावे कर रही है, लेकिन पार्टी को यह मालूम है कि इस राज्य में मुख्यमंत्री के दावेदार कई हैं और आपस में इन बातों को लेकर मतभेद भी हैं. मगर ये मतभेद चुनावी मैदान में नजर न आए, इस वजह से पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कई तरह की रणनीति तैयार कर रहा है.

इस रणनीति के तहत राज्य के चुनाव में केंद्रीय मुद्दों प्रधानमंत्री के चेहरे और ऐसे नारों को लेकर मैदान में उतर आ जाए, जिसमें राज्य के किसी भी चेहरों में मत भिन्नता हो ही ना. आइए जानते हैं भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान के लिए क्या है यह नई रणनीति. भारतीय जनता पार्टी राजस्थान में केंद्रीय नारों के भरोसे चुनाव लड़ेगी. पार्टी के केंद्रीय कार्यालय और शिवसेना नताओं द्वारा ऐसे प्रचार माध्यम और नारे तैयार किए जा रहे हैं, जिसमें राज्य के पार्टी के अलग-अलग दावेदारों में कोई मतभेद ना हो पाए.

पार्टी के केंद्रीय नेताओं को ऐसा लगता है कि एकजुटता का संदेश लेकर यदि पार्टी चुनावी मैदान में उतरती है तो उसे ज्यादा फायदा होगा. राजस्थान बीजेपी में अलग-अलग धड़ा मौजूद है और सभी खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहे हैं. पार्टी के कई बड़े-छोटे नेता सीएम पद की दावेदारी अपने मन में संजोए हैं और गाहे-बगाहे उनके समर्थक भी अपने नेता के पक्ष में सार्वजनिक बयान बाजी या नारेबाजी करते रहे हैं.

मगर यह कला चुनाव प्रचार या चुनावी मैदान तक ना पहुंचे, इसका रास्ता निकालते हुए भारतीय जनता पार्टी ने सामूहिकता को बल देते हुए चुनाव लड़ने का फैसला किया है. ऐसा नहीं है कि राजस्थान में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में बहुत एका है. कांग्रेस के अंदर भी सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमा एक दूसरे को देखना भी नहीं चाहता, जिसका खामियाजा लगातार पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.

भाजपा भी गुटबाजी की वजह से राजस्थान में परेशान है. अब इस नारेबाजी और गुटबाजी को रोकने के लिए बीजेपी आलाकमान ने उपाय निकाला है. पार्टी ने तय किया है कि अब छोटी बड़ी, जिला या प्रदेश स्तर की बैठक में किसी नेता या मंत्री का व्यक्तिगत नारा नहीं लगेगा. सूत्रों की माने तो पार्टी के सभी राजनीतिक सभाओं में सिर्फ भारत माता की जय, बीजेपी और पीएम मोदी के ही नारे लगेंगें.

किसी भी नेता या मंत्री के नाम से नारे नहीं लगेंगें. ना ही पार्टी के राज्य स्तर के किसी भी नेता का नाम बड़ी रैलियों या कार्यक्रमों में बगैर इजाजत के लिए जायेंगे. साथ ही किन नेताओं के पोस्टर और बैनर पीएम और केंद्रीय नेताओं की रैलियों में लगने हैं ये भी केंद्रीय कार्यालय ही तय करेगा. साथ ही पार्टी गहलोत सरकार को घेरने के लिए कई नारे और मुद्दे भी तैयार कर रही है, जिसमें भ्रष्टाचार, पेपर लीक का मामला, कानून व्यवस्था और बेरोजगार के मुद्दे के साथ ही, मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति को भी मुख्य मुद्दा बनाने जा रही है.

पार्टी मुख्य तौर पर ये नारा दे रही की 'अपराध बेलगाम, नहीं सहेगा राजस्थान! भ्रष्टाचार का फैला जाल, नहीं सहेगा राजस्थान! पेपरलीक से युवा परेशान, नहीं सहेगा राजस्थान!' साथ ही बीजेपी सूत्रों की माने तो पार्टी विपक्ष में ऐसे नेताओं पर भी लगातार नजर रख रही है, जो अपनी पार्टी का दामन छोड़ बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. इसकी शुरुआत इसी हफ्ते के शुरू में कर दी गई थी.

इसमें कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व सीएम जगन्नाथ पहाड़िया के पुत्र ओम प्रकाश पहाड़िया और पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के भतीजे विजेंद्र सिंह समेत सचिव और डीजी स्तर के कई अधिकारी बीजेपी में शामिल कराए गए थे. यही नहीं पार्टी ने तय किया है कि चुनाव से पहले बीजेपी में कुछ और लोगों को भी शामिल करवाया जा सकता है, ताकि ये लड़ाई और भी आसान हो जाए. चाहे वो दूसरे दलों के नेता, विधायक या कोई चर्चित अधिकारी ही क्यों न हों.

एक राष्ट्रीय महासचिव ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि पार्टी न सिर्फ राजस्थान बल्कि सारे ही चुनावी राज्यों के मुताबिक अलग-अलग रणनीति वहां की भौगोलिक, सामाजिक और राजनीतिक समीकरण देखकर ही बनाती है. जहां तक राजस्थान का सवाल है वहां हमारी सरकार नहीं है, इसलिए केंद्रीय मुद्दे और उपलब्धियां और नेताओं के नाम ही लिए जाएंगे इसमें क्या बुराई है?

बहरहाल राजस्थान में पार्टी चुनावी मोड में कर्नाटक के बाद ही आ चुकी है और कर्नाटक जैसी गलतियां दोहराईं ना जाए, इसके लिए बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ये कोशिश कर रहा है की राज्य स्तर के नेताओं को विश्वास में लेकर चला जाए.

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