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पंजाब में पीएम मोदी कर रहे हैं तूफानी प्रचार, इससे BJP को क्या हासिल होगा? - bjp coalition in punjab

बीजेपी करीब 30 साल बाद पंजाब में 65 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है. शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन खत्म होने के बाद बीजेपी अपने दो नए राजनीतिक पार्टनर के साथ मैदान में उतरी है. राजनीतिक विश्लेषक तरह-तरह कयास लगा रहे हैं, मगर पीएम नरेंद्र मोदी जीत-हार की परवाह किए बगैर पंजाब में तूफानी दौरा कर रहे हैं. इस चुनाव में बीजेपी के पास खोने के लिए क्या है और उसे क्या हासिल हो सकता है. क्या है पंजाब विधानसभा चुनाव में बीजेपी की रणनीति?

punjab assembly election
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Published : Feb 17, 2022, 3:50 PM IST

Updated : Feb 17, 2022, 5:28 PM IST

नई दिल्ली : पिछले 24 साल में यह पहला चुनाव है जब बीजेपी पंजाब में अपने सबसे पुराने गठबंधन के साथी शिरोमणि अकाली दल के बिना चुनाव मैदान में उतरी है. इस चुनाव में पार्टी ने जिन दलों को चुना है, वह भी पंजाब की राजनीति में नए ही है. इस नए गठबंधन में बीजेपी 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 1992 के बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी 65 से अधिक विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़़ रही है. सवाल यह है कि शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन खत्म होने के बाद बीजेपी को पंजाब चुनाव में नुकसान होगा ?

punjab assembly election
बीजेपी के नए सहयोगी कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा हैं.

इस बार किसान आंदोलन के बैकग्राउंड के साथ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. तीन कृषि कानून बनने के बाद करीब एक साल तक चले आंदोलन के बाद केंद्र सरकार को पैर पीछे खींचने पड़े थे. देश के पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी यह मान रहे हैं कि इन चुनावों के नतीजों पर किसान आंदोलन का साया रहेगा. इस कारण ही एनडीए में बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने गठबंधन खत्म कर दिया और विपक्ष में खड़ा हो गया.

नए गठबंधन में नया रोल : कई मायनों में इस चुनाव पंजाब में बीजेपी के लिए चुनौती बढी है. उसे इस चुनाव में न सिर्फ अकाली दल बल्कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मुकाबले भी खुद को खड़ा करना है. इसलिए बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab lok congress) और सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी अकाली दल संयुक्त ( Shiromani Akali Dal Sanyukt) से चुनावी समझौता किया है. इसके तहत बीजेपी 68, पंजाब लोक कांग्रेस 34 और अकाली दल संयुक्त 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

40 साल में बीजेपी का पंजाब में राजनीतिक सफर.
  • शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली है. 2017 के चुनावों तक भाजपा हिंदू और शहरी मतदाताओं तक ही सीमित थी. अकाली दल के कारण बीजेपी ने पिछले 25 साल में सिख समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश नहीं की. अब हालात बदल गए हैं. भाजपा ने 50 फीसदी से ज्यादा सिख कैंडिडेट उतारे हैं. साथ ही शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के सिख नेताओं को पार्टी में शामिल कराया.
  • इसके अलावा बीजेपी ने नए गठबंधन में अपनी भूमिका बदल ली है. अकाली दल के साथ बीजेपी हमेशा छोटे भाई की भूमिका में रही है. जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन में बीजेपी इस बार बड़े भाई की भूमिका में है.
  • शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन के दौर में बीजेपी को पंजाब में पनपने का मौका नहीं मिला. तब उसके हिस्से में कुल 117 विधानसभा सीटों में से अधिकतम 23 सीटें ही आती रहीं. इस कारण पिछले 25 साल में बीजेपी का वोट प्रतिशत 9 फीसदी से कम ही रहा.
    punjab assembly election
    1996 में शिरोमणि अकाली दल एनडीए का हिस्सा बना था. तब उसने अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया था. इस कारण बीजेपी पंजाब में जूनियर पार्टनर ही रह गई.

बीजेपी अपनी स्थापना के साथ ही पंजाब में चुनाव लड़ रही है. जनता पार्टी से अलग होने के बाद बीजेपी ने 1980 में पहली बार चुनाव लड़ा और एक सीट के साथ करीब 6.48 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. 1992 के चुनाव में बीजेपी ने 66 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे. तबतक उसका किसी दल के साथ गठबंधन नहीं था. तब भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में 6 सीटें जीती थीं और उसे 16.48 प्रतिशत वोट मिले थे. 25 साल के गठबंधन के दौरान बीजेपी को कई बार सीटें तो अधिक मिलीं, मगर उसका वोट प्रतिशत 9 के नीचे ही रहा.

पंजाब में वोट प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी : पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं है, मगर वह अपने नई भूमिका में 5 से अधिक सीटें हासिल कर लेती है तो इसे उपलब्धि ही माना जाएगा. हालांकि बीजेपी नेतृत्व के रुख और चुनाव प्रचार को देखते हुए यह माना जा सकता है कि बीजेपी अधिक सीट जीतने के बजाय वोट प्रतिशत बढ़ाने पर फोकस कर रही है. प्रचार के दौरान उसने हिंदू और शहरी पार्टी की छवि से बाहर आने की कोशिश की है.

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बीजेपी ने अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बादल परिवार के करीबियों को पार्टी में शामिल किया.

किसान आंदोलन का कितना होगा असर : एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर यह चुनाव किसान आंदोलन के साथ होते तो बीजेपी के लिए पंजाब में प्रचार करना भी मुश्किल होता. मगर अब हालात में बदल गए हैं. ग्रामीण इलाकों में किसानों में थोड़ा रोष है, लेकिन चुनाव में वह मुद्दा नहीं है. खुद किसानों आंदोलन से निकली पार्टी किसान समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी भी इस मुद्दे पर पीछे ही रह गई है. इस बार के चुनाव बेअदबी, खनन और ड्रग्स के मुद्दों पर ही लड़ी जा रही है. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी चुनावी रैली में किसान आंदोलन का जिक्र नहीं कर रहे हैं तो दूसरी पार्टियां भी इस पर नहीं बोल रही है.

बीजेपी को क्या है उम्मीद : बीजेपी सूत्रों का मानना है कि वह इस चुनाव में 10 सीटें जीत सकती हैं. उसे माझा में अमृतसर, पठानकोट और गुरदासपुर जिलों की 21 सीटों में से 5-6 सीटों पर जीत की उम्मीद है. इसके अलावा दोआबा क्षेत्र से खासकर जालंधर से जीत की संभावना दिख रही है.

बीजेपी के लक्ष्य में मुश्किल क्या है : राज्य में करीब 57.69 फीसदी सिख और 38.59 फीसदी हिंदू वोटर हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान करीब 10 फ़ीसदी हिंदू वोटर उससे दूर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के पास चले गए थे, जिसके चलते उन्हें राज्य में सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. इस बार भी आम आदमी पार्टी के कारण बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती है. राज्य के हिंदू वोटर उस कैंडिडेट को वोट दे सकते हैं, जो सत्ता तक पहुंच सकती हो. दूसरा बिहार और यूपी के माइग्रेट भी बीजेपी के वोटर रहे हैं. आम आदमी पार्टी की पकड़ इन वोटरों में बढ़ी है. अभी तक के रुझान में आम आदमी पार्टी काफी आगे है. इसलिए बीजेपी अब खालिस्तान मूवमेंट का जिक्र कर हिंदू वोटरों को एकजुट करना चाहती है. दरअसल पंजाब के हिंदू वोटर अपने कारोबार में स्थिरता चाहते हैं. 80 के दशक में उग्रवाद के कारण उनका काफी नुकसान हुआ था.

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आम आदमी पार्टी ने सिख और हिंदू वोटरों में गहरी पैठ बनाई है.

एक संभावना यह भी : बीजेपी गठबंधन अगर 10 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करता है तो विधानसभा के त्रिशंकु होने की संभावना बढ़ जाएगी. ऐसे हालात में वह पंजाब के नई सरकार को बनाने का दम रखेगी. इस समीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अकाली दल अगर सत्ता के करीब पहुंचता तो बीजेपी उसे सरकार के लिए समर्थन दे दे. यह संकेत प्रधानमंत्री के पंजाब के रैलियों में होने वाले भाषणों से मिलता है, जहां वह अकाली दल पर सीधा हमला नहीं कर रहे हैं. उनके निशाने पर आप और कांग्रेस ही है.

पढ़ें : क्या विधानसभा चुनाव में जीत के लिए सीएम का चेहरा है जरूरी ?

पढ़ें : पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में वाम दल हाशिये पर क्यों नजर आ रहे हैं ?

पढ़ें : प्रकाश सिंह बादल, 94 की उम्र में भी बिना थके लांबी में कर रहे हैं चुनाव प्रचार

नई दिल्ली : पिछले 24 साल में यह पहला चुनाव है जब बीजेपी पंजाब में अपने सबसे पुराने गठबंधन के साथी शिरोमणि अकाली दल के बिना चुनाव मैदान में उतरी है. इस चुनाव में पार्टी ने जिन दलों को चुना है, वह भी पंजाब की राजनीति में नए ही है. इस नए गठबंधन में बीजेपी 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 1992 के बाद पहली बार भारतीय जनता पार्टी 65 से अधिक विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़़ रही है. सवाल यह है कि शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन खत्म होने के बाद बीजेपी को पंजाब चुनाव में नुकसान होगा ?

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बीजेपी के नए सहयोगी कैप्टन अमरिंदर सिंह और सुखदेव सिंह ढींढसा हैं.

इस बार किसान आंदोलन के बैकग्राउंड के साथ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. तीन कृषि कानून बनने के बाद करीब एक साल तक चले आंदोलन के बाद केंद्र सरकार को पैर पीछे खींचने पड़े थे. देश के पॉलिटिकल एक्सपर्ट भी यह मान रहे हैं कि इन चुनावों के नतीजों पर किसान आंदोलन का साया रहेगा. इस कारण ही एनडीए में बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने गठबंधन खत्म कर दिया और विपक्ष में खड़ा हो गया.

नए गठबंधन में नया रोल : कई मायनों में इस चुनाव पंजाब में बीजेपी के लिए चुनौती बढी है. उसे इस चुनाव में न सिर्फ अकाली दल बल्कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के मुकाबले भी खुद को खड़ा करना है. इसलिए बीजेपी ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab lok congress) और सुखदेव सिंह ढींढसा की पार्टी अकाली दल संयुक्त ( Shiromani Akali Dal Sanyukt) से चुनावी समझौता किया है. इसके तहत बीजेपी 68, पंजाब लोक कांग्रेस 34 और अकाली दल संयुक्त 15 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

40 साल में बीजेपी का पंजाब में राजनीतिक सफर.
  • शिरोमणि अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली है. 2017 के चुनावों तक भाजपा हिंदू और शहरी मतदाताओं तक ही सीमित थी. अकाली दल के कारण बीजेपी ने पिछले 25 साल में सिख समुदाय में पैठ बनाने की कोशिश नहीं की. अब हालात बदल गए हैं. भाजपा ने 50 फीसदी से ज्यादा सिख कैंडिडेट उतारे हैं. साथ ही शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के सिख नेताओं को पार्टी में शामिल कराया.
  • इसके अलावा बीजेपी ने नए गठबंधन में अपनी भूमिका बदल ली है. अकाली दल के साथ बीजेपी हमेशा छोटे भाई की भूमिका में रही है. जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी के साथ गठबंधन में बीजेपी इस बार बड़े भाई की भूमिका में है.
  • शिरोमणि अकाली दल के साथ गठबंधन के दौर में बीजेपी को पंजाब में पनपने का मौका नहीं मिला. तब उसके हिस्से में कुल 117 विधानसभा सीटों में से अधिकतम 23 सीटें ही आती रहीं. इस कारण पिछले 25 साल में बीजेपी का वोट प्रतिशत 9 फीसदी से कम ही रहा.
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    1996 में शिरोमणि अकाली दल एनडीए का हिस्सा बना था. तब उसने अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिनों की सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया था. इस कारण बीजेपी पंजाब में जूनियर पार्टनर ही रह गई.

बीजेपी अपनी स्थापना के साथ ही पंजाब में चुनाव लड़ रही है. जनता पार्टी से अलग होने के बाद बीजेपी ने 1980 में पहली बार चुनाव लड़ा और एक सीट के साथ करीब 6.48 प्रतिशत वोट हासिल किए थे. 1992 के चुनाव में बीजेपी ने 66 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे. तबतक उसका किसी दल के साथ गठबंधन नहीं था. तब भारतीय जनता पार्टी ने पंजाब में 6 सीटें जीती थीं और उसे 16.48 प्रतिशत वोट मिले थे. 25 साल के गठबंधन के दौरान बीजेपी को कई बार सीटें तो अधिक मिलीं, मगर उसका वोट प्रतिशत 9 के नीचे ही रहा.

पंजाब में वोट प्रतिशत बढ़ाने की तैयारी : पॉलिटिकल एक्सपर्ट मानते हैं कि इस चुनाव में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ खास नहीं है, मगर वह अपने नई भूमिका में 5 से अधिक सीटें हासिल कर लेती है तो इसे उपलब्धि ही माना जाएगा. हालांकि बीजेपी नेतृत्व के रुख और चुनाव प्रचार को देखते हुए यह माना जा सकता है कि बीजेपी अधिक सीट जीतने के बजाय वोट प्रतिशत बढ़ाने पर फोकस कर रही है. प्रचार के दौरान उसने हिंदू और शहरी पार्टी की छवि से बाहर आने की कोशिश की है.

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बीजेपी ने अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद बादल परिवार के करीबियों को पार्टी में शामिल किया.

किसान आंदोलन का कितना होगा असर : एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर यह चुनाव किसान आंदोलन के साथ होते तो बीजेपी के लिए पंजाब में प्रचार करना भी मुश्किल होता. मगर अब हालात में बदल गए हैं. ग्रामीण इलाकों में किसानों में थोड़ा रोष है, लेकिन चुनाव में वह मुद्दा नहीं है. खुद किसानों आंदोलन से निकली पार्टी किसान समाज मोर्चा और संयुक्त संघर्ष पार्टी भी इस मुद्दे पर पीछे ही रह गई है. इस बार के चुनाव बेअदबी, खनन और ड्रग्स के मुद्दों पर ही लड़ी जा रही है. अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपनी चुनावी रैली में किसान आंदोलन का जिक्र नहीं कर रहे हैं तो दूसरी पार्टियां भी इस पर नहीं बोल रही है.

बीजेपी को क्या है उम्मीद : बीजेपी सूत्रों का मानना है कि वह इस चुनाव में 10 सीटें जीत सकती हैं. उसे माझा में अमृतसर, पठानकोट और गुरदासपुर जिलों की 21 सीटों में से 5-6 सीटों पर जीत की उम्मीद है. इसके अलावा दोआबा क्षेत्र से खासकर जालंधर से जीत की संभावना दिख रही है.

बीजेपी के लक्ष्य में मुश्किल क्या है : राज्य में करीब 57.69 फीसदी सिख और 38.59 फीसदी हिंदू वोटर हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव के दौरान करीब 10 फ़ीसदी हिंदू वोटर उससे दूर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के पास चले गए थे, जिसके चलते उन्हें राज्य में सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. इस बार भी आम आदमी पार्टी के कारण बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती है. राज्य के हिंदू वोटर उस कैंडिडेट को वोट दे सकते हैं, जो सत्ता तक पहुंच सकती हो. दूसरा बिहार और यूपी के माइग्रेट भी बीजेपी के वोटर रहे हैं. आम आदमी पार्टी की पकड़ इन वोटरों में बढ़ी है. अभी तक के रुझान में आम आदमी पार्टी काफी आगे है. इसलिए बीजेपी अब खालिस्तान मूवमेंट का जिक्र कर हिंदू वोटरों को एकजुट करना चाहती है. दरअसल पंजाब के हिंदू वोटर अपने कारोबार में स्थिरता चाहते हैं. 80 के दशक में उग्रवाद के कारण उनका काफी नुकसान हुआ था.

punjab assembly election
आम आदमी पार्टी ने सिख और हिंदू वोटरों में गहरी पैठ बनाई है.

एक संभावना यह भी : बीजेपी गठबंधन अगर 10 से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल करता है तो विधानसभा के त्रिशंकु होने की संभावना बढ़ जाएगी. ऐसे हालात में वह पंजाब के नई सरकार को बनाने का दम रखेगी. इस समीकरण से इनकार नहीं किया जा सकता है कि अकाली दल अगर सत्ता के करीब पहुंचता तो बीजेपी उसे सरकार के लिए समर्थन दे दे. यह संकेत प्रधानमंत्री के पंजाब के रैलियों में होने वाले भाषणों से मिलता है, जहां वह अकाली दल पर सीधा हमला नहीं कर रहे हैं. उनके निशाने पर आप और कांग्रेस ही है.

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पढ़ें : पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में वाम दल हाशिये पर क्यों नजर आ रहे हैं ?

पढ़ें : प्रकाश सिंह बादल, 94 की उम्र में भी बिना थके लांबी में कर रहे हैं चुनाव प्रचार

Last Updated : Feb 17, 2022, 5:28 PM IST
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