हैदराबाद : भारतीय जनता पार्टी असम में सर्वानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट नहीं करेगी. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने इसकी घोषणा कर दी है. हालांकि, भाजपा ऐसा क्यों कर रही है, किसी ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया है.
दरअसल, राज्य में भाजपा के पास दो कद्दावर नेता हैं. वर्तमान मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ऊपरी असम से आते हैं और हेमंत बिस्व सरमा निचले असम से आते हैं. सरमा राज्य में मंत्री हैं.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि 2016 में हिमंत बिस्व सरमा ने करीब-करीब अकेले ही चुनाव को पलट दिया था. उन्होंने भाजपा को बड़ी जीत दिलाने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी. कांग्रेस 15 सालों से सत्ता में थी. तरूण गोगोई जैसे कद्दावर नेता का नेतृत्व था.
उसके बाद से हिमंत बिस्व सरमा ने भाजपा के लिए कई सारे ऐसे फैसले लिए, जिससे पार्टी को खूब फायदा पहुंचा. शायद यही वजह है कि इस बार भी टिकट वितरण में सबसे अधिक उन्हीं की चल रही है. ऐसा पार्टी के सूत्रों का दावा है.
हिमंत बिस्व सरमा 2015 में भारतीय जनता पार्टी में आए थे. इससे पहले वह कांग्रेस में थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने पीएम मोदी की खूब आलोचना की थी. गोधरा दंगे का मुद्दा उठाया था. लेकिन कांग्रेस पार्टी में नजरअंदाज किए जाने से वह नाराज हो गए थे.
प्रदेश कांग्रेस का नेतृत्व तरुण गोगोई के पास था. हिमंत को लगने लगा था कि गोगोई अपने बेटे को बढ़ावा दे रहे हैं. ऐसे में उनके लिए कांग्रेस में कोई भविष्य नहीं है. इस बारे में पूछे जाने पर हिमंत ने इस कारण को सही नहीं माना था.
कई मौकों पर उन्होंने बताया कि जब वह राहुल गांधी से मिलने गए थे, तो वह अपने कुत्ते के साथ ज्यादा व्यस्त दिखे, बजाए कि पार्टी के मुद्दों पर गंभीरता से चर्चा करें. उसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी. वह भाजपा के पाले में आ गए.
इसके बाद भाजपा ने उन्हें जो-जो जिम्मेवारी दी, उसमें वह सफलता के लगातार झंडे गाड़ते गए. यही वजह है कि पार्टी ने उन्हें नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (एनईडीए) का संयोजक बना दिया. हिमंत ने पूरे उत्तर भारत में भाजपा को खड़ा कर दिया. एक के बाद एक राज्यों में पार्टी को जीत दिलाई. उनके दूसरे दलों से बहुत अच्छे संबंध हैं.
हिमंत अपनी बातों को स्पष्ट रूप से रखने के लिए भी जाने जाते हैं. वह बांग्लादेश से आए मुसलमानों के खिलाफ बोलते हैं. उनका कहना है कि उन लोगों ने असम की संस्कृति को नुकसान पहुंचाया है.
हिमंत ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता बदरुद्दीन अजमल को असम का 'दुश्मन' बताते हैं.
कोरोना संकट के दौरान उन्होंने दिल्ली में तबलीगी जमात से जुड़े असम के लोगों के नाम सार्वजनिक कर दिए थे.
हिमंत का नाम सारदा स्कैम में भी आया था. लेकिन सरमा ने इसे कांग्रेस का आरोप बताया है.
भाजपा का कहना है कि जहां पर भाजपा की सरकार रहती है, वहां पर सीएम उम्मीदवार की घोषणा नहीं की जाती है. लेकिन जहां पर विपक्ष में है, वहां पर अक्सर ऐसी घोषणा कर दी जाती है. 2016 में पार्टी ने सर्वानंद सोनोवाल के नाम की घोषणा की थी.
असम में उम्मीदवारों के नामों की घोषणा होने से पहले बिस्व सरमा ने कहा था कि वह चुनाव नहीं लड़ेंगे. लेकिन उम्मीदवारों की सूची में उनका नाम शामिल था. कहीं हिमंत को सीएम के रूप में अप्रत्यक्ष तरीके से ही सही प्रोजेक्ट तो नहीं किया जा रहा है. इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा किसी व्यक्ति का चयन करने के बारे में अंतिम फैसला पार्टी संसदीय बोर्ड द्वारा लिया जाएगा.
पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास ने कहा कि सरकार गठन के समय इस मुद्दे पर पार्टी का संसदीय बोर्ड फैसला करेगा.
हकीकत ये भी है कि पार्टी ने उनके नाम का एक गीत रिलीज किया. इसमें उन्हें मामा कहकर संबोधित किया गया है. सोशल साइट पर हिमंत को लोग मामा के नाम से भी जानते हैं. मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि हो सकता है ऐसा ही गीत सोनोवाल के नाम से भी रिलीज कर दी जाए.
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2016 में सोनोवाल के नाम पर इसी तरह का गीत रिलीज किया गया था. इसे असमिया गायक जुबीन गर्ग ने गाया था.
पार्टी की आधिकारिक स्थिति है कि वह सामूहिक नेतृत्व में यकीन करती है. सोनोवाल और हिमंत, दोनों का नेतृत्व जारी रहेगा.
एक आकलन यह भी है कि राज्य में असम जातीय परिषद नाम से एक नई पार्टी आ गई है. इसको लेकर असम गण परिषद और भाजपा दोनों ही चौकन्ने हैं. सोनोवाल जनजातीय समुदाय से आते हैं. हिमंत बिस्व सरमा असमी ब्राह्मण हैं. जाहिर है, यह पार्टी की रणनीति का हिस्सा है. लेकिन पार्टी हिमंत की बढ़ती भूमिका को नजर अंदाज भी नहीं कर सकती है.