सवाल : आप अपनी पहल 'इंसाफ के सिपाही' के साथ अन्याय के खिलाफ कैसे लड़ेंगे?
जवाब : जहां कहीं भी आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है, कानूनी बिरादरी ही सबसे आगे रही है, चाहे वह अमेरिकी स्वतंत्रता हो, फ्रांसीसी क्रांति हो या हमारा स्वतंत्रता संग्राम. तो मुझे आश्चर्य हुआ कि वर्तमान समय में वकील चुप क्यों हैं जब अन्याय बढ़ गया है, चाहे वह शारीरिक या मौखिक हिंसा, संस्थानों का विध्वंस, राजनीतिक उद्देश्यों के लिए संस्थानों का उपयोग, सरकार का पतन हो. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही उठता है कि वकील खामोश क्यों हैं?
इस बात को ध्यान में रखते हुए मैंने फैसला किया कि मुझे 'इंसाफ के सिपाही' नामक एक मंच स्थापित करना होगा लेकिन यह सिर्फ वकीलों तक ही सीमित नहीं है बल्कि वे सबसे आगे होंगे. कोई भी नागरिक इंसाफ का सिपाही बन सकता है.
हमारे देश में सड़कों, मोहल्लों में किसी न किसी तरह का अन्याय हो रहा है. जबकि आरएसएस की शाखाएं हर गली और मोहल्ले में मौजूद हैं. और मुझे लगता है कि इसका जवाब 'इंसाफ का सिपाही' हो सकता है.
सवाल : तो क्या यह वैचारिक लड़ाई भी है?
जवाब : हां, यह दोनों है. एक वैचारिक लड़ाई भी.
सवाल : क्या आप मानते हैं कि 2014 के बाद सांप्रदायिकता, ध्रुवीकरण और संस्थानों के विध्वंस में वृद्धि हुई है?
जवाब : हां, यह बढ़ा है लेकिन ऐसा नहीं है कि ये मुद्दे 2014 से पहले नहीं थे, लेकिन इस पैमाने पर नहीं थे. सभी संस्थानों पर अब कब्जा कर लिया गया है और मुझे लगता है कि ऐसा पहली बार हो रहा है. याद कीजिए, यूपीए सरकार, अन्ना हजारे के आंदोलन के खिलाफ मीडिया ने कैसी भूमिका निभाई थी, लेकिन अब मीडिया भी खामोश है.
सवाल : आपने बताया कि ईडी के 124 मामलों में से 115 विपक्ष के खिलाफ थे. तो क्या आप मानते हैं कि ये संस्थान केंद्र सरकार की कठपुतली बन गए हैं?
जवाब : मूलतः उन्होंने देश के मानचित्र को दो भागों में विभाजित किया है. जिन राज्यों में बीजेपी का शासन है, वहां ईडी को कुछ नहीं मिलता लेकिन बाकी भारत में जहां विपक्ष है, वहां ईडी या सीबीआई रोज घुसती है. तो ईडी और सीबीआई के लिए, भारत दो ब्लॉकों में विभाजित है, बीजेपी शासित राज्य और गैर-बीजेपी शासित राज्य.
सवाल : आपकी पहल से, क्या आप दो युद्धरत विपक्षी मोर्चों के बीच एक पुल के रूप में कार्य करेंगे जैसा कि हम देख रहे हैं कि विपक्ष के भीतर एक बहाव (drift) है?
जवाब :आपको समझना चाहिए कि टीएमसी हो, कांग्रेस हो, आरजेडी हो या एमवीए हो, उन्होंने बीजेपी सरकार के हाथों काफी कुछ झेला है और अलग-अलग सबने झेला है. तो जब आप इंसाफ का सिपाही के बारे में बात करते हैं, तो वे 'बेइंसाफी' (अन्याय) के विषय रहे हैं. तो वे सभी, उनकी राजनीतिक विचारधारा की परवाह किए बिना, वे इस मंच पर हो सकते हैं और इन मुद्दों को संबोधित कर सकते हैं.
सवाल : क्या इंसाफ़ के सिपाही विपक्ष को एकजुट करने के लिए एक राजनीतिक लड़ाई का काम करेंगे?
जवाब : यह एक ऐसा मंच है जहां सभी राजनीतिक दल जुड़ सकते हैं. ऐसा क्या है जो ये सभी विपक्षी दल चाहते हैं - वे चाहते हैं कि 2024 में मोदीजी 2024 में सत्ता में वापस न आएं. और यही इरादा है. इसलिए उन्हें अपने राज्यों में लड़ाई लड़नी होगी, जिसके आधार पर उन राज्यों पर राजनीतिक दलों का दबदबा है. तो इसके बीच में अन्याय एक ऐसी चीज है जो विपक्षी दलों को एकजुट कर सकती है ताकि वे भारत के लोगों को बता सकें कि कैसे संस्थानों को तोड़ा जा रहा है, लोकतंत्र खतरे में है, छात्रों, शिक्षकों को चुप कराया जा रहा है, राजनीतिक दल को चुप कराया जा रहा है. यह सभी राजनीतिक दलों के लिए सामान्य है.
सवाल : शनिवार को आप जंतर-मंतर से लोगों को अपने कार्यक्रम के बारे में संबोधित करेंगे. तो क्या आपने किसी राजनीतिक दल को आमंत्रित किया है या वे स्वेच्छा से आ रहे होंगे?
जवाब : मुझे उम्मीद नहीं है कि नेता कल आएंगे और मुझसे जुड़ेंगे. हां दिल्ली के अधिवक्ता आएंगे. तो मूल रूप से यह दिल्ली केंद्रित कार्यक्रम है. दिल्ली से आएंगे अधिवक्ता, अन्य राज्यों सहित अन्य लोग भी आएंगे..विचार भारत के लिए एक नई दृष्टि को स्पष्ट करना है. अब अगर आपको याद हो - मोदीजी ने कहा है कि मुझे 60 दिन दीजिए और मैं भारत की तस्वीर बदल दूंगा. तो हम 2014 और 2024 के बीच आने वाले समय में एक रिपोर्ट कार्ड देंगे और हम एक सकारात्मक दृष्टि देंगे कि क्या किया जाना चाहिए जो हमारे युवाओं को लाभ और सशक्त कर सके, क्या बदलाव लाए जाएं.
सवाल : आपको क्यों लगता है कि हेट स्पीच, ध्रुवीकरण के मुद्दों पर वकील चुप हैं?
जवाब : यह मिडिल क्लास प्रॉब्लम का हिस्सा है. जब तक कोई हम पर दस्तक नहीं देता, हम खड़े नहीं होते.
सवाल : कॉलेजियम प्रणाली पर कानून मंत्री किरेन रिजिजू और उपराष्ट्रपति के बयानों को आप कैसे देखते हैं?
जवाब : मुद्दा यह है कि उन्होंने अन्य सभी संस्थानों पर कब्जा कर लिया है और कुछ भी उनके रास्ते में नहीं आया है.लेकिन न्यायपालिका उनके रास्ते में खड़ी है क्योंकि वह संस्था है जिस पर वे कब्जा नहीं कर पाए हैं. इसलिए अब वे उच्च न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति में अपनी बात रखना चाहते हैं और मुझे यकीन है कि न्यायपालिका, कानून इसकी अनुमति नहीं देता है. ऐसा नहीं है कि कॉलेजियम प्रणाली एकदम सही है, शायद इसमें गहरी खामियां हैं और हमें इसे अनुशासन से बदलने की जरूरत है, लेकिन इसे कैसे बदला जाए, इसके लिए सरकार, कानूनी बिरादरी और न्यायाधीशों सहित सभी में बातचीत की आवश्यकता है.
सवाल : क्या अदालतें भी केंद्र सरकार की तपिश महसूस कर रही हैं ?
जवाब : यह तो वही बता पाएंगे. जो हो रहा है उससे हम केवल अनुमान लगा सकते हैं. मुझे लगता है कि लोग इन घटनाओं की सही व्याख्या करेंगे. अफ़सोस की बात है.
सवाल : ऐसा क्यों है कि अदालतें अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई नहीं कर रही हैं?
जवाब : मुझे याद है राज्यसभा में अमित शाह ने कहा था कि जब वहां हालात सुधरेंगे तो हम चुनाव कराएंगे. चार साल खामोशी से बीत गए और मुझे नहीं पता कि वे और कितना इंतजार करेंगे. लेकिन मुझे लगता है कि वे केवल इंतजार करेंगे और सही समय पर चुनाव की घोषणा करेंगे, इस उम्मीद में कि वे किसी तरह दूसरों के साथ सत्ता में आने में सक्षम हों. लेकिन मुझे नहीं पता कि वे वहां चुनाव की कब घोषणा करेंगे.
सवाल : क्या आपको विश्वास नहीं है न्याय में देरी न्याय से वंचित है?
जवाब : जहां न्याय में देर न हो वहां भी यदा-कदा नकारा ही जाता है.
सवाल : विदेश में राहुल गांधी के बयानों पर क्या आपको नहीं लगता कि उन्हें विदेश में ऐसी भाषा से बचना चाहिए था और इसके बजाय यहां कहना चाहिए था?
जवाब : सोशल मीडिया के युग में आप जो कह रहे हैं वह बाहर भी पहुंच रहा है. आज कोई सीमा नहीं है. तो क्या फर्क है. मोदीजी जो यहां बोलते हैं वह अमेरिका पहुंच जाता है, लोग इतने परेशान क्यों हैं?
मीडिया राजनीतिक संबद्धता के आधार पर ऐसे बयानों की गलत व्याख्या करना चाहता है. मैंने कई बार सत्ता पक्ष के लोगों को भी विदेशों में प्रशासन के खिलाफ बहुत ही भद्दे शब्द बोलते हुए सुना है. लोग सरकार को भारत से क्यों जोड़ते हैं? जब मैं सरकार की आलोचना करता हूं तो मेरा आशय भारत की आलोचना करना नहीं होता. ये दो अलग-अलग विचार हैं. मैं एक देशभक्त हूं.
सवाल : चूंकि आप पंजाब से हैं, तो आप वहां की मौजूदा सुरक्षा स्थिति को कैसे देखते हैं? क्या आप इस मुद्दे को सीएम मान के पास ले जाएंगे?
जवाब : यह थोड़ा चिंताजनक है. मैं राजनीति में नहीं हूं.
सवाल : क्या मिस्टर सिब्बल भी चुनावी जंग में उतरेंगे?
जवाब : नहीं. मैं 2024 का चुनाव नहीं लड़ना चाहता. मुझे पद नहीं चाहिए.
सवाल : मान लीजिए कि अगर 2024 में सरकार बदल जाती है, तो क्या आप चुनाव लड़ेंगे?
जवाब : मैं राज्य सभा का सदस्य हूं. मैं चुनाव नहीं लड़ने जा रहा हूं.