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योगी के तेवर व पार्टी के फेवर में उलझी बीजेपी, आगे क्या होगा रामा रे...

जिस तरह राजनीतिक हलकों में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को हटाए जाने की चर्चा चल रही है. उसमें तथ्यात्मक सच्चाई नहीं दिख रही है. लेकिन जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद पूर्व आईएएस अधिकारी से नेता बने अरविंद शर्मा का पार्टी व पूर्वांचल में दखल बढ़ रहा है. उससे अफवाहों को बल मिल रहा है. वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

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Published : Jun 3, 2021, 8:06 PM IST

BJP
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नई दिल्ली : आगामी यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि बीजेपी यूपी में सीएम के बदलाव की सोच रही है. लेकिन जिस तरह से बैठकों का दौर चल रहा है और मुख्यालय और केंद्रीय नेताओं के हस्तक्षेप बढ़े हैं उससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि सीएम को हटाया नहीं जाएगा लेकिर उनके पर जरुर कतरे जाएंगे.

ईटीवी भारत ने विश्वस्त सूत्रों के माध्यम से पहले ही साफ किया था कि यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय नेतृत्व प्रचार माध्यमों में आमूलचूल परिवर्तन कर सकता है. इस बात को कुछ इस तरह भी समझा जा सकता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ कुछ प्रमुख जिम्मेदारियों में पार्टी के अन्य नेताओं का दखल बढ़ सकता है. हालांकि संगठन मंत्री बीएल संतोष के यूपी दौरे और राज्य के नेताओं के साथ वन टू वन मुलाकात ने भी इन चर्चाओं को हवा दे दी.

वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो कोरोना नियंत्रण के लिए बीजेपी वाराणसी मॉडल को प्रमोट कर रही है. क्योंकि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और बीजेपी के एमएलसी अरविंद शर्मा की देखरेख में यहां काम शुरू हुआ था. इसे अब एक सफल मॉडल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.

सूत्रों की मानें तो अरविंद शर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी भेजा. शर्मा ने वाराणसी की स्थिति को काफी हद तक नियंत्रण में किया भी. यही नहीं अरविंद शर्मा ने उन क्षेत्रों पर भी काफी काम किया जो योगी आदित्यनाथ के प्रभाव में आते हैं.

प्रधानमंत्री ने जब वाराणसी के कोरोना योद्धाओं के साथ वर्चुअल बातचीत की तो उसमें वाराणसी मॉडल की तारीफ की. जो एक तरह से अरविंद शर्मा की ही तारीफ मानी जा रही है. ये वहीं अरविंद शर्मा हैं जिन्हें डिप्टी सीएम बनाने की चर्चाएं जोरों पर थीं और सीएम योगी ने अंदर ही अंदर इसे नापसंद किया है.

बीजेपी के केंद्रीय सूत्रों की मानें तो बंगाल चुनाव की हार के बाद से ही यूपी चुनाव बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हो चुका है. यदि बीजेपी यहां अच्छी सीटें नहीं ला पाती है तो इसका सीधा असर लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है. किसानों के आंदोलन की वजह से और किसान बिल की वजह से कहीं ना कहीं पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर सशंकित है.

बहरहाल मामला कुछ भी हो मगर पार्टी उत्तर प्रदेश में फूंक-फूंककर कदम रख रही है. यही वजह है कि पार्टी के दो बड़े नेताओं ने योगी सरकार के मंत्रियों और विधायकों से मिलकर फीडबैक लिया है. पार्टी सूत्रों की मानें तो फीडबैक को आधार बनाकर ही पार्टी अपने किसी रणनीति में बदलाव करेगी.

यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अंदरखाने प्रदेश को लेकर लगातार मंथन कर रहे हैं. इन्हीं बातों को लेकर पार्टी में यह भी चर्चा निकल कर आई कि यूपी की कमान राजनाथ सिंह को सौंपी जा सकती है.

यह भी पढ़ें-खुशखबरी: अब ताउम्र होगी TET सर्टिफिकेट की मान्यता

फिलहाल पार्टी के नेता इस पर मुहर नहीं लगा रहे हैं और इतने बड़े बदलाव का रिस्क चुनाव से पहले पार्टी नहीं लेना चाहती है. भले ही राज्य सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ गिरा हो मगर योगी के साथ विधायकों का एक बड़ा धड़ा है. योगी आदित्यनाथ के तेवर से भी पार्टी बखूबी परिचित है.

नई दिल्ली : आगामी यूपी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि बीजेपी यूपी में सीएम के बदलाव की सोच रही है. लेकिन जिस तरह से बैठकों का दौर चल रहा है और मुख्यालय और केंद्रीय नेताओं के हस्तक्षेप बढ़े हैं उससे यह कयास लगाए जा रहे हैं कि सीएम को हटाया नहीं जाएगा लेकिर उनके पर जरुर कतरे जाएंगे.

ईटीवी भारत ने विश्वस्त सूत्रों के माध्यम से पहले ही साफ किया था कि यूपी में विधानसभा चुनाव से पहले केंद्रीय नेतृत्व प्रचार माध्यमों में आमूलचूल परिवर्तन कर सकता है. इस बात को कुछ इस तरह भी समझा जा सकता है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ-साथ कुछ प्रमुख जिम्मेदारियों में पार्टी के अन्य नेताओं का दखल बढ़ सकता है. हालांकि संगठन मंत्री बीएल संतोष के यूपी दौरे और राज्य के नेताओं के साथ वन टू वन मुलाकात ने भी इन चर्चाओं को हवा दे दी.

वहीं दूसरी तरफ देखा जाए तो कोरोना नियंत्रण के लिए बीजेपी वाराणसी मॉडल को प्रमोट कर रही है. क्योंकि वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और बीजेपी के एमएलसी अरविंद शर्मा की देखरेख में यहां काम शुरू हुआ था. इसे अब एक सफल मॉडल के रूप में प्रचारित किया जा रहा है.

सूत्रों की मानें तो अरविंद शर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ही कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी भेजा. शर्मा ने वाराणसी की स्थिति को काफी हद तक नियंत्रण में किया भी. यही नहीं अरविंद शर्मा ने उन क्षेत्रों पर भी काफी काम किया जो योगी आदित्यनाथ के प्रभाव में आते हैं.

प्रधानमंत्री ने जब वाराणसी के कोरोना योद्धाओं के साथ वर्चुअल बातचीत की तो उसमें वाराणसी मॉडल की तारीफ की. जो एक तरह से अरविंद शर्मा की ही तारीफ मानी जा रही है. ये वहीं अरविंद शर्मा हैं जिन्हें डिप्टी सीएम बनाने की चर्चाएं जोरों पर थीं और सीएम योगी ने अंदर ही अंदर इसे नापसंद किया है.

बीजेपी के केंद्रीय सूत्रों की मानें तो बंगाल चुनाव की हार के बाद से ही यूपी चुनाव बीजेपी के लिए महत्वपूर्ण हो चुका है. यदि बीजेपी यहां अच्छी सीटें नहीं ला पाती है तो इसका सीधा असर लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है. किसानों के आंदोलन की वजह से और किसान बिल की वजह से कहीं ना कहीं पार्टी पश्चिमी उत्तर प्रदेश को लेकर सशंकित है.

बहरहाल मामला कुछ भी हो मगर पार्टी उत्तर प्रदेश में फूंक-फूंककर कदम रख रही है. यही वजह है कि पार्टी के दो बड़े नेताओं ने योगी सरकार के मंत्रियों और विधायकों से मिलकर फीडबैक लिया है. पार्टी सूत्रों की मानें तो फीडबैक को आधार बनाकर ही पार्टी अपने किसी रणनीति में बदलाव करेगी.

यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह के साथ रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह अंदरखाने प्रदेश को लेकर लगातार मंथन कर रहे हैं. इन्हीं बातों को लेकर पार्टी में यह भी चर्चा निकल कर आई कि यूपी की कमान राजनाथ सिंह को सौंपी जा सकती है.

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फिलहाल पार्टी के नेता इस पर मुहर नहीं लगा रहे हैं और इतने बड़े बदलाव का रिस्क चुनाव से पहले पार्टी नहीं लेना चाहती है. भले ही राज्य सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ गिरा हो मगर योगी के साथ विधायकों का एक बड़ा धड़ा है. योगी आदित्यनाथ के तेवर से भी पार्टी बखूबी परिचित है.

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