हैदराबाद : पूर्व अटॉर्नी जनरल और पद्म विभूषण सोली सोराबजी का निधन कोरोना से संक्रमित होने के बाद आज सुबह हो गया. वह 1989 से 90 और फिर 1998 से 2004 तक देश के अटॉर्नी जनरल थे.
सोली सोराबजी का पूरा नाम सोली जहांगीर सोराबजी था. उनका जन्म साल 1930 में मुंबई में हुआ था. उन्होंने साल 1953 से बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दिया था, जिसके बाद 1971 में वह सुप्रीम कोर्ट के सीनियर काउंसिल बन गए थे.
सोराबजी अंतरराष्ट्रीय कानून संघ के हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण कानून समिति (arms control and disarmament law) के सदस्य भी थे. उन्होंने राष्ट्रमंडल वकील संघ के उपाध्यक्ष के रूप में भी काम किया.
वह 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों की नागरिक न्याय समिति के सदस्य थे, जिसका उन्होंने स्वतंत्र रूप से प्रतिनिधित्व किया था. सोराबजी एक प्रसिद्ध मानवाधिकार वकील भी थे.
सोली सोराबजी भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चैंपियन भी रहे. उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय में कई ऐतिहासिक मामलों में प्रेस की स्वतंत्रता का बचाव किया. साथ ही प्रकाशनों पर सेंसरशिप आदेशों और प्रतिबंधों को रद्द करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मार्च 2002 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
बहुचर्चित मामले
सोराबजी संविधान की बुनियादी संरचना पर 1973 के केसवानंद भारती मामले सहित भारतीय इतिहास के सबसे बड़े संवैधानिक कानून के कुछ मामलों में शामिल थे.
1978 में मेनका गांधी मामला, जिसने संविधान के अनुच्छेद 21 'जीवन का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता' के दायरे का विस्तार किया.
1994 में एसआर बोम्मई मामला, जिसका उपयोग लगातार राज्य सरकार के गठन के बारे में सवालों को संबोधित करने के लिए किया जाता है.
यूएन के साथ सोराबजी का कार्यकाल
- सोराबजी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1997 में नाइजीरिया के लिए एक विशेष रैपरोर्ट के रूप में नियुक्त किया गया था, ताकि उस देश में मानवाधिकार की स्थिति पर रिपोर्ट की जा सके.
- इसके बाद वह 1998 से 2004 तक मानव अधिकारों के संवर्धन और संरक्षण पर संयुक्त राष्ट्र-उप आयोग के सदस्य और बाद में अध्यक्ष बने.
- वह संयुक्त राष्ट्र के उप-आयोग के सदस्य थे, जो भेदभाव और संरक्षण की अल्पसंख्यकों की सुरक्षा से संबंधित है. 1998 उन्होंने हेग में 2000 से 2006 तक स्थायी न्यायालय के सदस्य के रूप में भी काम किया था.
प्रकाशन
सोली सोराबजी मानवाधिकारों के संरक्षण, संवैधानिक कानून को बनाए रखने और भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मुद्दों पर एक शानदार लेखक ऱहें.
उनकी कुछ किताबें
- द लॉज़ ऑफ़ प्रेस सेंसरशिप इन इंडिया (1976)
- द इमरजेंसी, सेंसरशिप एंड द प्रेस इन इंडिया, 1975-77 (1977)
- लॉ एंड जस्टिस (2004)