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Sign Language Boon For Disabled : मूकबधिरों के लिए उंगलियां ही शब्दों की दुनिया,जानिए कैसे साइन लैंग्वेज ने बदली दिव्यांगों की जिंदगी ?

Sign Language Boon For Disabled Children बिलासपुर का गवर्मेंट दिव्यांग स्कूल मूकबधिर और दृष्टिहीन बच्चों को जीने की नई राह दिखा रहा है. शारीरिक विकास की कमी के शिकार बच्चों के लिए दिव्यांग स्कूल किसी बड़े सहारे से कम नहीं है.अभी तक सैंकड़ों दिव्यांग बच्चों ने इस स्कूल से पढ़कर अपना जीवन संवारा है.Government Disabled School of bilaspur

Sign language boon for disabled children
साइन लैंग्वेज और ब्रेल लिपि से शिक्षा
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 23, 2023, 9:39 PM IST

Updated : Sep 24, 2023, 12:03 AM IST

साइन लैंग्वेज ने बदली दिव्यांगों की जिंदगी

बिलासपुर : पिछले तीन दशकों से बिलासपुर का दिव्यांग स्कूल सैंकड़ों मूकबधिर और दृष्टिहीन बच्चों की जिंदगियां बदल चुका है. मूक बधिर और दृष्टिहीन बच्चों को दिव्यांग स्कूल में ब्रेल लिपि और साइन लैंग्वेज की शिक्षा दी जाती है. इस स्कूल में पढ़कर दिव्यांग बच्चे कई क्षेत्रों में अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं. दृष्टिबाधित बच्चों ने दिव्यांग स्कूल से पढ़कर अपना जीवन सुखमय बनाया है. दिव्यांग बच्चे कई उच्च पदों पर बैठकर देश और राज्य के साथ अपने परिवार की सेवा कर रहे हैं.


कहां है दृष्टिबाधित स्कूल ? : बिलासपुर के तिफरा में शासकीय दृष्टिबाधित स्कूल आज से तीस साल पहले अस्तित्व में आया था. ऐसे बच्चे जिन्हें सुनने,बोलने और दिखाई देने में परेशानी होती है,उन बच्चों के लिए ये स्कूल वरदान साबित हुआ. बिलासपुर का यह शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधित स्कूल 30 साल से भी ज्यादा समय से दिव्यांगों को शिक्षा दे रहा है.

साइन लैंग्वेज और ब्रेल लिपि की दी जाती है शिक्षा : इस स्कूल में ब्रेल लिपि के साथ ही साइन लैंग्वेज से शिक्षा दी जाती है. स्कूल में क्लास वन से लेकर 12th तक की पढ़ाई होती है.मौजूदा समय में 190 छात्र-छात्राएं स्कूल में पढ़ रहे हैं. जिसमें से दृष्टि बाधित 95 और श्रवण बाधित 95 छात्र छात्राएं है.स्कूल के साथ ही छात्रावास भी है. जहां लड़के और लड़कियों के लिए अलग व्यवस्था की गई है. साथ ही शहर से आने वाले छात्रों के लिए बस की फैसिलिटी भी स्कूल में उपलब्ध है.


साइन लैंग्वेज से बच्चों को मिलती है मदद : मूकबधिर बच्चों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि ना तो वो शब्दों को सुन सकते हैं और ना ही देख सकते हैं.ऐसे में उन्हें शब्दों को समझाने के लिए अमेरिका में साइन लैंग्वेज का आविष्कार हुआ था. यह लैंग्वेज पूरी दुनिया में मुख बधिर दिव्यांगों के लिए वरदान बनी. इस लैंग्वेज को इस्तेमाल करके मूक बधिर बच्चे ना सिर्फ बातों को समझते हैं बल्कि दूसरों को भी समझाते हैं.

क्या है साइन लैंग्वेज ? : साइन लैंग्वेज उंगलियों की एक अपनी तरह की भाषा होती है. उंगलियों के इशारों से ही मूकबधिर बच्चे बातों को समझकर एक दूसरे से कम्युनिकेशन करते हैं. मूकबधिरों के लिए उंगलियां ही उनकी जुबान होती है. इसी से वह पढ़ना और पढ़ाई को प्रदर्शित करना जानते हैं. ये साइन लैंग्वेज ही मूकबधिरों को अपनी बात कहने में आसानी होती है.

अमेरिका के बाद इंडिया में बना साइन लैंग्वेज : अमेरिकन साइन लैंग्वेज के बाद इंडिया ने भी अपनी तरह का साइन लैंग्वेज तैयार किया है.अब क्षेत्रीय भाषाओं में बोले जाने और इशारों के माध्यम से भी छत्तीसगढ़ियां साइन लैंग्वेज तैयार हो गया है. जिसे ग्रामीण इलाकों से आने वाले मूकबधिर बच्चों को पहले उनकी भाषा से समझाया जाता है,इसके बाद इंडियन साइन लैंग्वेज के माध्यम से पढ़ाई करवाई जाती है.

मूकबधिर बच्चों ने खोला कैफे: पिछले 25 सालों से स्कूल में सेवा दे रहे शिक्षक प्रदीप शर्मा ने बताया कि यहां पढ़े कई बच्चे राज्य सरकार के कई विभागों में काम कर रहे हैं. इसके अलावा कुछ मूकबधिर बच्चों में रायपुर में कैफे खोलकर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाया है.इस कैफे में मूकबधिरों के साथ ही सामान्य लोग भी पहुंचते हैं .जिससे अच्छी खासी कमाई भी हो रही है.जिससे मूकबधिर बच्चे अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

''शुरुआत में बच्चों को पढ़ने और समझने में काफी दिक्कतें होती हैं. लेकिन धीरे-धीरे कर उन्हें पहले उनकी घरेलू साइन भाषा में उनसे बात की जाती है. इसके बाद उन्हें प्रचलित साइन भाषा में बात करना सिखाया जाता है.'' प्रदीप शर्मा, शिक्षक,दिव्यांग स्कूल

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कई बड़े पदों पर दिव्यांग दे रहे सेवाएं : तिफरा के दृष्टि एवं मूकबधिर शासकीय विद्यालय में पढ़े कई बच्चे आज प्रदेश के कई उच्च पदों पर हैं. वे सरकारी नौकरी ही नहीं बल्कि बिजनेस भी कर रहे हैं. यहां पढ़ाई किए हुए बच्चे आसानी से समाज में बराबरी का दर्जा पा रहे हैं और समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं.

साइन लैंग्वेज ने बदली दिव्यांगों की जिंदगी

बिलासपुर : पिछले तीन दशकों से बिलासपुर का दिव्यांग स्कूल सैंकड़ों मूकबधिर और दृष्टिहीन बच्चों की जिंदगियां बदल चुका है. मूक बधिर और दृष्टिहीन बच्चों को दिव्यांग स्कूल में ब्रेल लिपि और साइन लैंग्वेज की शिक्षा दी जाती है. इस स्कूल में पढ़कर दिव्यांग बच्चे कई क्षेत्रों में अपने हुनर का लोहा मनवा रहे हैं. दृष्टिबाधित बच्चों ने दिव्यांग स्कूल से पढ़कर अपना जीवन सुखमय बनाया है. दिव्यांग बच्चे कई उच्च पदों पर बैठकर देश और राज्य के साथ अपने परिवार की सेवा कर रहे हैं.


कहां है दृष्टिबाधित स्कूल ? : बिलासपुर के तिफरा में शासकीय दृष्टिबाधित स्कूल आज से तीस साल पहले अस्तित्व में आया था. ऐसे बच्चे जिन्हें सुनने,बोलने और दिखाई देने में परेशानी होती है,उन बच्चों के लिए ये स्कूल वरदान साबित हुआ. बिलासपुर का यह शासकीय दृष्टि एवं श्रवण बाधित स्कूल 30 साल से भी ज्यादा समय से दिव्यांगों को शिक्षा दे रहा है.

साइन लैंग्वेज और ब्रेल लिपि की दी जाती है शिक्षा : इस स्कूल में ब्रेल लिपि के साथ ही साइन लैंग्वेज से शिक्षा दी जाती है. स्कूल में क्लास वन से लेकर 12th तक की पढ़ाई होती है.मौजूदा समय में 190 छात्र-छात्राएं स्कूल में पढ़ रहे हैं. जिसमें से दृष्टि बाधित 95 और श्रवण बाधित 95 छात्र छात्राएं है.स्कूल के साथ ही छात्रावास भी है. जहां लड़के और लड़कियों के लिए अलग व्यवस्था की गई है. साथ ही शहर से आने वाले छात्रों के लिए बस की फैसिलिटी भी स्कूल में उपलब्ध है.


साइन लैंग्वेज से बच्चों को मिलती है मदद : मूकबधिर बच्चों के लिए सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि ना तो वो शब्दों को सुन सकते हैं और ना ही देख सकते हैं.ऐसे में उन्हें शब्दों को समझाने के लिए अमेरिका में साइन लैंग्वेज का आविष्कार हुआ था. यह लैंग्वेज पूरी दुनिया में मुख बधिर दिव्यांगों के लिए वरदान बनी. इस लैंग्वेज को इस्तेमाल करके मूक बधिर बच्चे ना सिर्फ बातों को समझते हैं बल्कि दूसरों को भी समझाते हैं.

क्या है साइन लैंग्वेज ? : साइन लैंग्वेज उंगलियों की एक अपनी तरह की भाषा होती है. उंगलियों के इशारों से ही मूकबधिर बच्चे बातों को समझकर एक दूसरे से कम्युनिकेशन करते हैं. मूकबधिरों के लिए उंगलियां ही उनकी जुबान होती है. इसी से वह पढ़ना और पढ़ाई को प्रदर्शित करना जानते हैं. ये साइन लैंग्वेज ही मूकबधिरों को अपनी बात कहने में आसानी होती है.

अमेरिका के बाद इंडिया में बना साइन लैंग्वेज : अमेरिकन साइन लैंग्वेज के बाद इंडिया ने भी अपनी तरह का साइन लैंग्वेज तैयार किया है.अब क्षेत्रीय भाषाओं में बोले जाने और इशारों के माध्यम से भी छत्तीसगढ़ियां साइन लैंग्वेज तैयार हो गया है. जिसे ग्रामीण इलाकों से आने वाले मूकबधिर बच्चों को पहले उनकी भाषा से समझाया जाता है,इसके बाद इंडियन साइन लैंग्वेज के माध्यम से पढ़ाई करवाई जाती है.

मूकबधिर बच्चों ने खोला कैफे: पिछले 25 सालों से स्कूल में सेवा दे रहे शिक्षक प्रदीप शर्मा ने बताया कि यहां पढ़े कई बच्चे राज्य सरकार के कई विभागों में काम कर रहे हैं. इसके अलावा कुछ मूकबधिर बच्चों में रायपुर में कैफे खोलकर स्वरोजगार की ओर कदम बढ़ाया है.इस कैफे में मूकबधिरों के साथ ही सामान्य लोग भी पहुंचते हैं .जिससे अच्छी खासी कमाई भी हो रही है.जिससे मूकबधिर बच्चे अपना जीवन यापन कर रहे हैं.

''शुरुआत में बच्चों को पढ़ने और समझने में काफी दिक्कतें होती हैं. लेकिन धीरे-धीरे कर उन्हें पहले उनकी घरेलू साइन भाषा में उनसे बात की जाती है. इसके बाद उन्हें प्रचलित साइन भाषा में बात करना सिखाया जाता है.'' प्रदीप शर्मा, शिक्षक,दिव्यांग स्कूल

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कई बड़े पदों पर दिव्यांग दे रहे सेवाएं : तिफरा के दृष्टि एवं मूकबधिर शासकीय विद्यालय में पढ़े कई बच्चे आज प्रदेश के कई उच्च पदों पर हैं. वे सरकारी नौकरी ही नहीं बल्कि बिजनेस भी कर रहे हैं. यहां पढ़ाई किए हुए बच्चे आसानी से समाज में बराबरी का दर्जा पा रहे हैं और समाज के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं.

Last Updated : Sep 24, 2023, 12:03 AM IST
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