बीजापुर : छत्तीसगढ़ में वामपंथी उग्रवाद से लोहा ले रहे सहायक आरक्षक परिवारों (Assistant constable families) और सरकार के बीच तनातनी की खबर के बीच बीजापुर जिले के मिरतुर थाने (Mirtur police station) में पदस्थ लगभग चालीस से अधिक जवानों ने नौकरी छोड़ने के लिए अपना हथियार थाने में जमा करा दिया था. जिसके बाद पुलिस प्रशासन के हाथ पांव फूल गए थे. और तो और सरकार को इनकी समस्याओं के लिए कमेटी गठित कर का फैसला लेना पड़ा.
सूत्रों की मानें तो सहायक आरक्षक के परिजन लंबित मांगों को लेकर रायपुर में धरना-प्रदर्शन कर रहे थे. कथित तौर पर पुलिस मुख्यालय घेराव (Police Headquarters Gherao) के एलान के बाद परिजनों पर लाठीचार्ज किया गया. जिसकी सूचना मीडिया के माध्यम से थाने तक पहुंची.
एसपी ने जवानों को शांत कराया था
इस घटनाक्रम से बीजापुर सहित संभाग मुख्यालय बस्तर के पुलिस अधिकारियों के कान खड़े हो गए. मामले में बीजापुर पुलिस अधीक्षक ने सूझबूझ का परिचय देते हुए जवानों को शांत कराया. दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इन जवानों की जायज मांगों को पूरा करने को एक कमेटी का गठन किया, जिसके बाद एक एडीजी को जवाबदेही सौंपी गई है.
क्या है मामला
दरअसल, माओवादियों के खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए बस्तर के युवाओं को सर्वप्रथम तत्कालीन रमन सरकार में एसपीओ बनाया गया था. जिसमें माओवाद से तौबा करने वाले युवाओं को इससे जोड़ा गया था. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद एसपीओ अब सहायक आरक्षक बन गए हैं. साथ ही तत्कालीन सरकार में यह लोग आंदोलन कर सुर्खियों में भी आए थे, जिसमें सीधे तौर पर विपक्षी नेताओं को टारगेट किया था. इसमें रमन सरकार को भी कटघरे में खड़ा किया था. इन सबके बीच रमन सरकार की छत्तीसगढ़ से विदाई हो गई, लेकिन अब भूपेश सरकार के लिए ये एक बड़ी मुसीबत बनती जा रही है.
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