पटना: बिहार विधानसभा शीतकालीन सत्र के दूसरे दिन जातीय गणना सर्वे की आर्थिक रिपोर्ट सदन में पेश की जाएगी. सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में सिर्फ 7 फीसदी आबादी ही ग्रेजुएट हैं. आर्थिक रिपोर्ट की बात करें तो उसमें 25.09 फीसदी सामान्य परिवार को गरीब बताया गया है. सर्वणों में 27.58 फीसदी भूमिहार, 25.3 फीसदी ब्राह्मण, 24.89 प्रतिशत राजपूत और 13.83 फीसदी कायस्थ परिवार गरीब है.
यह है आर्थिक आंकड़ाः मंगलवार को बिहार जातीय सर्वे आर्थिक और शैक्षणिक रिपोर्ट को सदन में पेश की जाएगी. रिपोर्ट में आर्थिक रूप से गरीब परिवार की बात करें तो उसमें सामान्य वर्ग 25.09%, पिछड़ा वर्ग में 33.16 फीसदी, अत्यंत पिछड़ा वर्ग में 33.58 फीसदी, अनुसूचित जाति में 42.93 फीसदी, अनुसूचित जनजाति में 42.70 और अन्य प्रतिवेदित जातियों में 23.72 फीसदी परिवार शामिल हैं.
सामान्य वर्ग सबसे ज्यादा गरीबः सामान्य वर्ग में सबसे ज्यादा 25.32 प्रतिशत परिवार गरीब हैं. ब्राह्मण में 25.3 % राजपूत में 24.89 प्रतिशत, कायस्थ में 13.83 प्रतिशत गरीब हैं. इसके अलावा भट्ट परिवार के 23.68 प्रतिशक, मल्लिक और मुस्लिम में 17.26 प्रतिशत, हरिजन 29.12, किन्नर 25.73, कुशवाहा 34.32, यादव 35.87, कुर्मी 29.90 सोनार 26.58 और मल्लाह में 32.99 प्रतिशत लोग गरीब हैं.
जाति के आधार पर पक्के मकान की स्थिति: सामान्य वर्ग में 51.54% लोगों के पास अपना पक्का मकान है. पिछड़ा वर्ग में 43.47%, अत्यंत पिछड़ा में 32. 61%, अनुसूचित जाति में 24.26%, अनुसूचित जनजाति में 25.81% लोगों के पास अपना मकान है. 0. 31 प्रतिशत सामान्य वर्ग के पास अपना मकान नहीं है, 0.16 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग के पास अपने मकान नहीं है, 0.23% अत्यंत पिछड़ा वर्ग के पास अपना मकान नहीं है, 0.26% अनुसूचित जाति के पास अपना मकान नहीं है, 0. 28 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के पास अपना मकान नहीं है.
आमदनी के आधार पर आंकड़ेः आर्थिक सर्वे रिपोर्ट में बिहार के परिवारों की मासिक आमदनी का भी जिक्र किया गया है. राज्य के 34 फीसदी की मासिक आबादी मात्र 6 हजार रुपए बताया गया है. रिपोर्ट में 6 हजार से 10 हजार रुपए प्रति महीना वाले परिवारों की संख्या 29.61 प्रतिशत है. यानी राज्य में 10 हजार रुपए प्रति महीना तक की आदमनी वाले परिवारों की संख्या 63 फीसदी से ज्यादा है.
20 से 50 हजार तक कमाने वाले 9.83 प्रतिशत लोगः 6 हजार मासिक आमदनी वाले परिवार की संख्या 94 लाख 42 हजार 786 है. 6000 से अधिक और 10000 तक की आमदनी वाले परिवारों की संख्या 81 लाख 91 हजार 390 है. राज्य में 10000 से अधिक और 20000 तक की मासिक आमदनी वाले सिर्फ 18.06 फीसदी परिवार हैं. 20000 रुपए से अधिक और 50000 तक मासिक आमदनी वाले 9.83 परिवार शामिल हैं.
3.90 फीसदी लोग 50 हजार से अधिक सैलरी वालेः राज्य में 50000 से अधिक की आमदनी वाले परिवार सिर्फ 3.90 फीसदी है. आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि 4.47 फीसदी परिवारों ने अपनी आमदनी का खुलासा नहीं किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि सभी स्रोतों से न्यूनतम मासिक आय के आधार पर 94 लाख 42 हजार 786 परिवार आर्थिक रूप से गरीब माने जा सकते हैं. इस रिपोर्ट में कुल 2 करोड़, 76 लाख, 68 हजार 930 परिवारों की आमदनी का ब्यौरा जारी किया गया है.
क्या आरक्षण की सीमा बढ़नी चाहिए? : सदन में पहुंचे विधायकों को रिपोर्ट पढ़ने के लिए दी गई. इसको लेकर नेता ने अपनी अपनी प्रतिक्रिया भी दी है. कांग्रेस नेता अजित शर्मा से जब पूछा गया कि क्या आरक्षण की सीमा बढ़नी चाहिए? इस पर उन्होंने कहा कि अभी इसकी जरूरत नहीं है. अभी तो जिन लोगों के नाम रह गए है, उनका नाम शामिल करना चाहिए.
सर्वे रिपोर्ट पर बीजेपी की प्रतिक्रियाः बीजेपी नेता तारकेश्वर प्रसाद ने कहा कि जातीय गणना का निर्णया तो एनडीए सरकार ने लिया था. एनडीए सरकार से समय में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने पीएम मोदी से मुलाकात की थी. उस समय की हमारी सरकार ने कैबिनेट में सर्वसम्मति से पारित किया था. इसके खर्च हेतु 500 करोड़ का बजट का प्रावधान रखा गया था. मैं खुद उस सरकार में वित्त मंत्री और उप मुख्यमंत्री था. हम सब चाहते थे कि इस रिपोर्ट के माध्यम से समाज के लोगों की स्थिति कैसे बेहतर हो, यह मंशा थी. लेकिन उम्मीद है कि इसका लोग राजनीतिक उपयोग नहीं करें. लोगों के जीवन में बदलाव के लिए सर्वेक्षण का उपयोग हो.
रिपोर्ट पेश होने के बाद बीजेपी की क्या भूमिका होगी? : इस सवाल पर बीजेपी नेता तारकेश्वर प्रसाद ने कहा कि हमारी भूमिका के कारण ही यह सर्वे रिपोर्ट आज आया है. वहीं विरोधियों के आरोप की यह सर्वे रिपोर्ट कमंडल पर भारी पड़ेगा. इस पर बीजेपी नेता ने कहा कि कौन कमंडल है, कौन कमंडल है हम यह नहीं जानते है. हम सबका हित चाहते है. हम मंडल और कमंडल दोनों के साथ है. क्या इस रिपोर्ट के बाद जातिय द्वंद एक बार फिर से बिहार में देखने को मिलेगा. इस पर उन्होंने कहा कि लोगों के जीवन में जरूर बदलाव होगा.
2 अक्टूबर को आई थी पहली रिपोर्टः 7 जनवरी को बिहार में जातीय सर्वे शुरू किया गया था, जिसे समय से पूरा भी कर लिया गया. 15 अप्रैस से दूसरे फेज का सर्वे शुरू किया गया, इसी बीच मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. इसके बाद इसपर रोक लगा दी गई. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को पटना हाईकोर्ट भेज दिया. कई बार सुनवाई के बाद 1 अगस्त को सर्वे कराने की मंजूरी दी गई. दूसरे चरण का सर्वे पूरा करने के बाद 2 अक्टूबर को पहली जातीय सर्वे रिपोर्ट जारी की गई.
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