हैदराबादः रोगी की स्वास्थ्य सेवा के दौरान रोगी की जांच प्रक्रिया, उपचार और इलाज के दौरान उसे किसी भी नुकसान से बचाना शामिल है. प्रतिवर्ष 17 सितंबर को विश्व रोगी सुरक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. वैश्विक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के 194 देशों ने मई 2019 में 72 वें विश्व स्वास्थ्य सभा में इस दिन को विश्व रोगी सुरक्षा दिवस मनाने का संकल्प लिया. विश्व रोगी सुरक्षा दिवस का उद्देश्य सार्वजनिक जागरूकता और सहभागिता को बढ़ाना, वैश्विक समझ को बढ़ाना और वैश्विक एकजुटता और रोगी सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कार्रवाई करना है.
मरीज की सुरक्षा
रोगी सुरक्षा स्वास्थ्य देखभाल की प्रक्रिया के दौरान रोगी को नुकसान से बचाना और स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े खतरे को ज्यादा से ज्यादा कम करना है. स्पष्ट नीतियां, संगठनात्मक नेतृत्व क्षमता, सुरक्षा सुधारों को चलाने के लिए डेटा, कुशल स्वास्थ्य देखभाल और उनकी देखभाल में रोगियों की प्रभावी भागीदारी, सभी को स्वास्थ्य देखभाल की सुरक्षा में स्थायी और महत्वपूर्ण सुधार सुनिश्चित करने की आवश्यकता है.
रोगी सुरक्षा के मुद्दे
- क्लीनिकल त्रुटियां – रोगी के उपचार में गलत उपचार प्रक्रिया अपनाना, कुछ उपचार को छोड़ देने, उपचार में देरी करना जैसे मुद्दे शामिल हैं.
- इन्फेक्शन - ये वे त्रुटियां हैं जो रोगी के अस्पताल में भर्ती होने के दौरान होती हैं. मरीज को भर्ती के दौरान उसे संक्रमण से बचाना स्वास्थ्यकर्मियों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है.
- दवा देने में गलतियां - जब किसी रोगी को गलत दवा दी जाती है या सही दवा की गलत खुराक मिलती है तो मरीज की सेहत पर गंभीर असर पड़ता है.
- मरीज की दोबारा भर्ती - जब किसी मरीज को छुट्टी मिलने के 30 दिन के भीतर दोबारा अस्पताल में भर्ती की नौबत आ जाए तो ये उसकी सेहत पर गंभीर असर डालती है.
- गलत सर्जरी – मरीज के ऑपरेशन के दौरान बरती गई लापरवाही, शरीक के गलत हिस्से पर सर्जरी मरीज के लिए जानलेवा साबित हो सकता है
- संचार - अस्पताल के कर्मचारियों के साथ-साथ रोगी और चिकित्सक के बीच अच्छी और पारदर्शी बातचीत बहुत जरूरी है. इनमें से किसी को भी भ्रम में रखना खतरनाक हो सकता है.
थीम 2020
कोविड-19 महामारी के दौरान कई देशों में चिकित्सकों, नर्सों और अन्य फ्रंट-लाइन स्वास्थ्यकर्मियों को नायक माना गया है फिर भी हर कोई उनके प्रयासों और योगदान की सराहना नहीं करता है. इस महामारी की शुरुआत के बाद से स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की कहानियों ने मीडिया का बहुत ध्यान खींचा है.
मेक्सिको में नर्सों और डॉक्टरों पर हमला किया गया. फिलीपींस में एक नर्स के चेहरे पर ब्लीच डाल दिया गया जिससे उसकी दृष्टि को नुकसान पहुंचा. भारत में भी स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों को पीटने, पत्थर मारने, थूकने, धमकाने और उनके घरों से बेदखल करने की खबरें आईं. संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में भी स्वास्थ्यकर्मियों के साथ बदसलूकी देखी गई.
भारत में हेल्थकेयर श्रमिकों पर हमले की कुछ घटनाएं
- 15 अप्रैल को डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की एक टीम मुरादाबाद के नवाबगंज इलाके में पहुंची थी कोविड मरीज के संपर्क में आए लोगों की जांच करने तब मेडिकल स्टाफ पर भीड़ ने पथराव किया.
- 14 अप्रैल को दिल्ली के लोक नायक अस्पताल में सर्जिकल वार्ड के अंदर एक मरीज द्वारा एक महिला डॉक्टर के साथ कथित तौर पर मारपीट की गई.
- दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की दो महिला रेजिडेंट डॉक्टरों पर 8 अप्रैल की देर रात उनके पड़ोसी ने कथित तौर पर हमला किया जिन्होंने उन पर गौतम नगर इलाके में कोविड 19 के प्रसार का आरोप लगाया था.
- कोरोना वायरस के कारण मरने वाले एक व्यक्ति के परिवार ने 1 अप्रैल को हैदराबाद के गांधी मेडिकल अस्पताल में दो डॉक्टरों पर कथित रूप से हमला किया.
- गुजरात के सूरत में, न्यू सिविल अस्पताल में एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को 23 मार्च को उनके अपार्टमेंट के निवासियों धमकी दी गई.
- एसडीएम और पुलिस अधिकारी ने 11 अप्रैल को भरतपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज के एक डॉक्टर को थप्पड़ मार दिया और अपमान किया.
- भोपाल में एम्स के दो रेजिडेंट डॉक्टरों को कुछ पुलिसकर्मियों ने तब पीट दिया जब वे 8 अप्रैल को ड्यूटी के बाद घर लौट रहे थे. रिपोर्ट्स के मुताबिक, डॉक्टरों में से एक के हाथ में फ्रैक्चर हो गया और दूसरे के पैर में चोट लग गई.
- एक मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) कार्यकर्ता के साथ 1 अप्रैल को बेंगलुरु के सरायपिपल्या के सादिक नगर में 40-50 लोगों के एक समूह द्वारा छेड़छाड़ की गई थी, जब वह संदिग्ध COID-19 मामले पर डेटा एकत्र करने कर रही थी.
स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के खिलाफ हिंसा कोई नई घटना नहीं है. COVID-19 महामारी से पहले भी इस तरह के हमले दुनिया भर में देखे गए हैं. स्वास्थ्यकर्मियों पर ये हमले समाज के सभी स्तरों में भय का माहौल पैदा करते हैं और सेवा जैसे पवित्र कार्य पर कलंक लगाते हैं.
इसलिए इस साल विश्व रोगी सुरक्षा दिवस की थीम है ‘स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुरक्षा : रोगी सुरक्षा के लिए प्राथमिकता’
स्वास्थ्य प्रणाली केवल स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ ही कार्य कर सकती है, और रोगियों की सुरक्षित देखभाल के के लिए एक जानकार, कुशल और प्रेरित स्वास्थ्य कार्यबल महत्वपूर्ण है.
कोरोना वायरस महामारी के दौरान डब्ल्यूएचओ की तरफ से इस दिवस का पालन करने और मनाने के लिए कई गतिविधियों के संयोजन की योजना बनाई जा रही है. स्थानीय अधिकारियों का सहयोग से ऐतिहासिक इमारतों, लैंडमार्क, और सार्वजनिक स्थानों को नारंगी रंग में रोशन करना इन गतिविधियों में शामिल हैं. यह सभी स्वास्थ्य कर्मियों के लिए सम्मान और आभार जताने के लिए होगा. इस थीम के तहत कुछ नारे भी लिखे गए हैं जिनमें हैं -
स्लोगन: सुरक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सुरक्षित मरीज
कार्रवाई के लिए कॉल करें: स्वास्थ्य कार्यकर्ता सुरक्षा के लिए बोलें!
इस दिन का महत्व
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत सहित कम और मध्यम आय वाले देशों के अस्पतालों में असुरक्षित देखभाल के कारण हर साल 134 मिलियन प्रतिकूल घटनाएं होती हैं, जिससे सालाना 2.6 मिलियन मौतें हो जाती हैं.
10 में से 4 रोगियों को प्राथमिक और एंबुलेटरी सेटिंग्स में नुकसान पहुंचाया जाता है. इन सेटिंग्स में 80% तक नुकसान से बचा जा सकता है. दवा देने के दौरान की जाने वाली गलती से होने वाले नुकसान की अनुमानित लागत 42 बिलियन अमरीकी डालर है.
प्रौद्योगिकी में हालिया उन्नति ने एक बेहद जटिल स्वास्थ्य सेवा प्रणाली तैयार की है. यह जटिलता रोगी को सुरक्षित रखने के लिए स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों के लिए कई चुनौतियां लेकर आती है. हालांकि, बहुत से लोगों का सफलतापूर्वक इलाज किया जाता है लेकिन कई बार ऐसा भी होता है जब चीजें गलत हो सकती हैं.
अस्पताल एक ऐसी जगह है जो चौबीसों घंटे बीमार लोगों को इलाज मुहैया कराती है. रोगी सुरक्षा का अनुशासन रोगियों को होने वाले नुकसान को रोकने के महत्व को दर्शाता है, जो कि स्वास्थ्य सेवा की प्रक्रिया के कारण होता है। रोगी की सुरक्षा में सुधार का अर्थ है रोगी को होने वाले नुकसान को कम करना.
मुख्य तथ्य
असुरक्षित देखभाल के कारण दुनिया में मृत्यु और विकलांगता के 10 प्रमुख कारणों में से एक है.
उच्च आय वाले देशों में, यह अनुमान लगाया जाता है कि हर 10 रोगियों में से एक को अस्पताल में देखभाल प्राप्त करने के दौरान नुकसान होता है. नुकसान लगभग 50% रोकथाम के साथ प्रतिकूल घटनाओं की एक श्रृंखला के कारण हो सकता है.
वैश्विक रूप से प्राथमिक और बाह्य रोगी देखभाल में 4 से 10 रोगियों को नुकसान पहुंचता है. 80% तक नुकसान निवारक है. सबसे हानिकारक त्रुटियां क्लीनिकल, नुस्खे और दवाओं के उपयोग से संबंधित हैं.
रोगी के नुकसान को कम करने में निवेश से महत्वपूर्ण वित्तीय बचत हो सकती है, और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि बेहतर रोगी परिणाम प्राप्त कर सकते हैं.