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बिहार विधानसभा चुनाव 2020 : बिहार में महिला उम्मीदवार और उनकी भूमिका - महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण

बिहार में नीतीश सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया है. मगर 2015-20 में राज्य की विधानसभा में महिलाओं का केवल 11 फीसद प्रतिनिधित्व था. विपक्ष हो या सत्ताधारी दल इस मुद्दे पर सभी एक ही थाली के बैंगन हैं. पढ़िए ईटीवी भारत बिहार के ब्यूरो चीफ अमित भेलारी की रिपोर्ट.

Bihar Assembly Elections 2020
बिहार विधानसभा चुनाव 2020
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Published : Oct 18, 2020, 6:01 AM IST

पटना : सभी राजनीतिक दल महिलाओं को सशक्त बनाने की बात करते हैं, लेकिन जब सवाल चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की आती है तो वे हाशिए पर चली जाती हैं. विपक्ष हो या सत्ताधारी दल इस मुद्दे पर सभी एक ही थाली के बैंगन हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा आधी आबादी की बात करके प्रभावित करते रहे हैं, लेकिन जहां तक प्रतिनिधित्व देने की बात है तो यह केवल 20 फीसद है. हालांकि, अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में वह सबसे ऊपर हैं. कोटे की 122 सीटों में से जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को सात सीटें दी गईं हैं और जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 115 सीटों में से जदयू ने 22 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इसी तरह, बीजेपी को 121 सीटें मिलीं हैं. इनमें से 11 सीटें मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी को दी गईं हैं. भगवा पार्टी 110 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है. इनमें से 12 सीटों पर महिला उम्मीदवार हैं.

महिला आरक्षण बिल अब तक पारित नहीं हुआ

बिहार में नीतीश सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया है. इस आंकड़े को देखते हुए यह काफी चौंकाने वाला है कि वर्ष 2015 की विधानसभा में 243 सीटों में मात्र 28 महिला विधायक थीं. राज्य की विधानसभा में महिलाओं का केवल 11 फीसद प्रतिनिधित्व था. यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि सभी राजनीतिक दल संसद में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने की वकालत करते हैं लेकिन महिला आरक्षण बिल अब तक पारित नहीं हुआ है और यह अब भी ठंडे बस्ते में ही पड़ा है. भारतीय राजनीति में महिलाओं के उत्थान की बात करने वाला यह विधेयक 1996 से लोकसभा में लंबित है.

राजद ने सिर्फ 11 फीसद टिकट महिलाओं को दिया

आंकड़ों में देखने से पता चल जाता है कि महिलाएं कैसे पीछे रह जाती हैं? बिहार में जब से पंचायती राज में महिलाओं को आरक्षण दिया जा रहा है, स्थानीय निकायों में 2 लाख से अधिक महिलाएं चुनी जाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि 1 फीसद भी राजनीतिक रूप से आगे बढ़कर विधायक नहीं बन सकीं. दूसरी ओर, विपक्षी दल राजद ने महिला उम्मीदवारों को सिर्फ 11 फीसद टिकट की पेशकश की है. 144 में से केवल 16 महिला उम्मीदवार हैं. सबसे चौंकाने वाली स्थिति कांग्रेस की है. कांग्रेस ने अपने हिस्से आईं 70 सीटों में से केवल 7 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है. यह कुल 10 फीसद ही बैठता है. इस तथ्य के बावजूद कि कांग्रेस महिला नेतृत्व यानी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी है, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने महिला उम्मीदवारों को कम प्रतिनिधित्व दिया है.

वर्ष 1972 में एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी

बिहार चुनाव में हर साल महिलाओं के प्रतिनिधित्व की संख्या कम होती जा रही है. 2005 (फरवरी) में चुनाव जीतने वाली महिलाओं की संख्या 3 थी, लेकिन 2005 के अक्टूबर में हुए चुनाव में यह संख्या कई गुना बढ़कर 25 महिला विधायकों तक पहुंच गई. हालांकि, 2015 में यह घटकर 28 विधायकों तक पहुंच गई, जो पहले से कम रही. देश की स्वतंत्रता के बाद बिहार में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था. पहली बार 13 महिला उम्मीदवार अपनी-अपनी सीटों से जीतकर विधानसभा में पहुंचीं थीं. बिहार में अब तक 16 विधानसभा चुनाव हुए लेकिन एक विधानसभा चुनाव ऐसा हुआ, जब एक भी महिला उम्मीदवार ने चुनाव नहीं जीता. यह वर्ष 1972 का चुनाव था. जब बिहार विधानसभा की कुल 318 सीटें थीं और 45 महिला उम्मीदवार चुनावी दौड़ में थीं. दुर्भाग्य से एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी. यह पहली बार था कि बिहार विधानसभा में महिलाओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था.

नीतीश लगातार कह रहे, महिलाओं को प्रतिनिधित्व देंगे

2015 के विधानसभा चुनाव को देखें तो महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 7 फीसद अधिक मतदान किया. कुल मतदान 56.66 फीसद हुआ था. इसमें 60.48 फीसद महिलाएं और 53.32 फीसद पुरुष मतदाता थे. मतदान केंद्रों पर अधिक से अधिक महिला मतदाताओं को लाने का श्रेय नीतीश को जाता है. नीतीश ने अपनी बालिका पोशाक योजना और बालिका साइकिल योजना जैसी कई योजनाओं के अलावा महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 33 फीसद आरक्षण दिया. नीतीश की इन योजनाओं ने महिला वोट बैंक को लुभाने में मदद की. इस बार भी महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के मकसद से नीतीश ने महिलाओं को भरोसा दिया है. चाहे आभासी हो या वास्तविक, अपनी हर राजनीतिक रैलियों में नीतीश लगातार कह रहे हैं कि अगर उन्हें वोट दिया गया तो वे ब्लॉक से लेकर जिला स्तर तक और राज्य स्तर तक के प्रशासन में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देंगे.

यही नहीं, उन्होंने व्यवसाय शुरू करने पर महिला उद्यमियों को अनुदान के रूप में 5 लाख रुपये और कर्ज के रूप में 5 लाख रुपये देने का भी वादा किया है. नीतीश ने 12 वीं कक्षा की अविवाहित की राशि 12 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये और स्नातकों के लिए 25 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी है.

वर्ष 2015 में कुल 28 महिलाएं विधायक बनीं

बिहार में महिलाओं का कुल वोट शेयर लगभग 47 फीसद है. नीतीश की सरकार बनाने में महिलाओं की अहम भूमिका रही है. वास्तव में नीतीश के दूसरे कार्यकाल के सात निश्चय सशक्त महिला और सक्षम महिला जैसी योजनाओं के बारे में बात करते हैं. बिहार में वामपंथी दलों में भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) शामिल हैं. वामपंथी दलों को महागठबंधन में 29 सीटें मिली हैं और इनमें केवल एक महिला उम्मीदवार है. वर्ष 2015 में जदयू के पास 10 विधायक, राजद के पास 9, भाजपा की 4 और कांग्रेस की 4 में एक निर्दलीय यानी विधानसभा में कुल 28 महिला विधायक थीं.

पटना : सभी राजनीतिक दल महिलाओं को सशक्त बनाने की बात करते हैं, लेकिन जब सवाल चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी की आती है तो वे हाशिए पर चली जाती हैं. विपक्ष हो या सत्ताधारी दल इस मुद्दे पर सभी एक ही थाली के बैंगन हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हमेशा आधी आबादी की बात करके प्रभावित करते रहे हैं, लेकिन जहां तक प्रतिनिधित्व देने की बात है तो यह केवल 20 फीसद है. हालांकि, अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में वह सबसे ऊपर हैं. कोटे की 122 सीटों में से जीतन राम मांझी की हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को सात सीटें दी गईं हैं और जदयू 115 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. 115 सीटों में से जदयू ने 22 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. इसी तरह, बीजेपी को 121 सीटें मिलीं हैं. इनमें से 11 सीटें मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी को दी गईं हैं. भगवा पार्टी 110 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ रही है. इनमें से 12 सीटों पर महिला उम्मीदवार हैं.

महिला आरक्षण बिल अब तक पारित नहीं हुआ

बिहार में नीतीश सरकार ने स्थानीय निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया है. इस आंकड़े को देखते हुए यह काफी चौंकाने वाला है कि वर्ष 2015 की विधानसभा में 243 सीटों में मात्र 28 महिला विधायक थीं. राज्य की विधानसभा में महिलाओं का केवल 11 फीसद प्रतिनिधित्व था. यह भी एक सर्वविदित तथ्य है कि सभी राजनीतिक दल संसद में महिलाओं को 33 फीसद आरक्षण देने की वकालत करते हैं लेकिन महिला आरक्षण बिल अब तक पारित नहीं हुआ है और यह अब भी ठंडे बस्ते में ही पड़ा है. भारतीय राजनीति में महिलाओं के उत्थान की बात करने वाला यह विधेयक 1996 से लोकसभा में लंबित है.

राजद ने सिर्फ 11 फीसद टिकट महिलाओं को दिया

आंकड़ों में देखने से पता चल जाता है कि महिलाएं कैसे पीछे रह जाती हैं? बिहार में जब से पंचायती राज में महिलाओं को आरक्षण दिया जा रहा है, स्थानीय निकायों में 2 लाख से अधिक महिलाएं चुनी जाती हैं. दिलचस्प बात यह है कि 1 फीसद भी राजनीतिक रूप से आगे बढ़कर विधायक नहीं बन सकीं. दूसरी ओर, विपक्षी दल राजद ने महिला उम्मीदवारों को सिर्फ 11 फीसद टिकट की पेशकश की है. 144 में से केवल 16 महिला उम्मीदवार हैं. सबसे चौंकाने वाली स्थिति कांग्रेस की है. कांग्रेस ने अपने हिस्से आईं 70 सीटों में से केवल 7 सीटों पर महिला उम्मीदवारों को टिकट दिया है. यह कुल 10 फीसद ही बैठता है. इस तथ्य के बावजूद कि कांग्रेस महिला नेतृत्व यानी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली पार्टी है, बिहार प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने महिला उम्मीदवारों को कम प्रतिनिधित्व दिया है.

वर्ष 1972 में एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी

बिहार चुनाव में हर साल महिलाओं के प्रतिनिधित्व की संख्या कम होती जा रही है. 2005 (फरवरी) में चुनाव जीतने वाली महिलाओं की संख्या 3 थी, लेकिन 2005 के अक्टूबर में हुए चुनाव में यह संख्या कई गुना बढ़कर 25 महिला विधायकों तक पहुंच गई. हालांकि, 2015 में यह घटकर 28 विधायकों तक पहुंच गई, जो पहले से कम रही. देश की स्वतंत्रता के बाद बिहार में पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था. पहली बार 13 महिला उम्मीदवार अपनी-अपनी सीटों से जीतकर विधानसभा में पहुंचीं थीं. बिहार में अब तक 16 विधानसभा चुनाव हुए लेकिन एक विधानसभा चुनाव ऐसा हुआ, जब एक भी महिला उम्मीदवार ने चुनाव नहीं जीता. यह वर्ष 1972 का चुनाव था. जब बिहार विधानसभा की कुल 318 सीटें थीं और 45 महिला उम्मीदवार चुनावी दौड़ में थीं. दुर्भाग्य से एक भी महिला चुनाव नहीं जीत सकी. यह पहली बार था कि बिहार विधानसभा में महिलाओं का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था.

नीतीश लगातार कह रहे, महिलाओं को प्रतिनिधित्व देंगे

2015 के विधानसभा चुनाव को देखें तो महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में 7 फीसद अधिक मतदान किया. कुल मतदान 56.66 फीसद हुआ था. इसमें 60.48 फीसद महिलाएं और 53.32 फीसद पुरुष मतदाता थे. मतदान केंद्रों पर अधिक से अधिक महिला मतदाताओं को लाने का श्रेय नीतीश को जाता है. नीतीश ने अपनी बालिका पोशाक योजना और बालिका साइकिल योजना जैसी कई योजनाओं के अलावा महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 33 फीसद आरक्षण दिया. नीतीश की इन योजनाओं ने महिला वोट बैंक को लुभाने में मदद की. इस बार भी महिला मतदाताओं को आकर्षित करने के मकसद से नीतीश ने महिलाओं को भरोसा दिया है. चाहे आभासी हो या वास्तविक, अपनी हर राजनीतिक रैलियों में नीतीश लगातार कह रहे हैं कि अगर उन्हें वोट दिया गया तो वे ब्लॉक से लेकर जिला स्तर तक और राज्य स्तर तक के प्रशासन में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देंगे.

यही नहीं, उन्होंने व्यवसाय शुरू करने पर महिला उद्यमियों को अनुदान के रूप में 5 लाख रुपये और कर्ज के रूप में 5 लाख रुपये देने का भी वादा किया है. नीतीश ने 12 वीं कक्षा की अविवाहित की राशि 12 हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये और स्नातकों के लिए 25 हजार रुपये से बढ़ाकर 50 हजार रुपये कर दी है.

वर्ष 2015 में कुल 28 महिलाएं विधायक बनीं

बिहार में महिलाओं का कुल वोट शेयर लगभग 47 फीसद है. नीतीश की सरकार बनाने में महिलाओं की अहम भूमिका रही है. वास्तव में नीतीश के दूसरे कार्यकाल के सात निश्चय सशक्त महिला और सक्षम महिला जैसी योजनाओं के बारे में बात करते हैं. बिहार में वामपंथी दलों में भाकपा, माकपा और भाकपा (माले) शामिल हैं. वामपंथी दलों को महागठबंधन में 29 सीटें मिली हैं और इनमें केवल एक महिला उम्मीदवार है. वर्ष 2015 में जदयू के पास 10 विधायक, राजद के पास 9, भाजपा की 4 और कांग्रेस की 4 में एक निर्दलीय यानी विधानसभा में कुल 28 महिला विधायक थीं.

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