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खुद की बंदूकों से लेकर तोपें बनाने तक सेना की गाथा - आर्टिलरी गन

एक अद्भुत हथियार विकास मॉडल, जो अनुकरण के योग्य है. भारतीय सेना का आर्टिलरी (तोप) उत्पादक धनुष और एटीएजीएस 155 एमएम गन के निर्माण में एक हितधारक बन गए हैं. यह भारत में विकसित होने वाले हथियारों के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकता है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट...

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Published : Aug 21, 2020, 7:35 PM IST

Updated : Aug 22, 2020, 11:08 AM IST

नई दिल्ली : शालीन और पेशेवर सैनिक जैसी शैली में भारतीय सेना की तोपों ने एक शानदार सफलता की कहानी लिखी है, जिसका प्रभाव भारत में होने वाली तोपों के निर्माण में गुणात्मक सुधार के रूप में दिखेगा. इससे निश्चित रूप से हथियारों के आयात की आवश्यकता कम होगी. अतीत में बंदूकों का उपयोग करने से लेकर आर्टिलरी (तोप) ’धनुष’ और ‘एडवांस आर्टिलरी गन सिस्टम’ के निर्माण में (ATAGS) भी हिस्सेदार बन गई है.

इस मुद्दे से परिचित एक अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि यह एक अभूतपूर्व कदम है, जहां सेना भी उत्पाद-निर्माता है. आर्टिलरी ने एक सफल हथियार विकास मॉडल स्थापित किया है, जिसका मेक इन इंडिया ’परियोजना पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.

आर्टिलरी ने एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में अपनी हथियार विकास टीम की स्थापना की थी और जबलपुर में गन कैरिज फैक्ट्री (GCF) में धनुष का निर्माण करने के लिए एक साथ काम करने के लिए इसे तैनात किया था.

इसकी सफलता के कारण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से ATAGS के लिए एक और समान मॉडल स्थापित किया गया. आर्टिलरी की टीम का एक कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है.

धनुष जिसे 'देसी बोफोर्स' और ATAGS परियोजनाओं में भी बड़े पैमाने पर स्वदेशी घटकों और प्रौद्योगिकी का प्रभुत्व हासिल है.

यह कदम सेना की भागीदारी की भूमिका को बढ़ाता है, जो इस मामले में एक आर्टिलरी है, इसके अलावा यह उत्पाद में स्वामित्व की भावना प्रदान करता है.

इससे पहले हथियारों को बनाकर सेना के परीक्षण के लिए लाया जाता था, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नौकरशाही के कारण लगातार देरी से जूझ रही अधिकांश रक्षा परियोजनाओं के साथ, यह समय में कटौती करता है. क्योंकि यह हथियार के डिजाइन, विकास और उत्पादन में सक्रिय रूप से शामिल होता है. इसे सरलता के साथ सेना के पास भेजा जा सकेगा.

सफलता से उत्साहित रक्षा मंत्रालय ने परियोजना के विस्तार या नवीकरण के लिए मंजूरी दे दी है. इसने इस उम्मीद को जन्म दिया है कि आर्टी मॉडल का इस्तेमाल हर दूसरे हथियार के लिए किया जा सकता है.

लंबे समय तक भारतीय आर्टिलरी का मुख्य आधार बोफोर्स 155 मीटर, 39 कैलिबर बंदूक थीं, लेकिन अब धनुष , ATAGS, V K9 Vajra और M-777 हॉवित्जर तोप जैसे विकल्पों की एक श्रृंखला है.

धनुष ’155 मिमी, 45-कैलिबर की टोएड आर्टिलरी गन, जिसकी रेंज 38 किमी है, जबकि ATAGS152 मिमी, 52-कैलिबर गन है. दूसरी ओर K9 वज्र एक स्व-चालित तोप है, जिसको दक्षिण कोरियाई तकनीक के साथ बनाया जा रहा है, जबकि M-777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर (ULH) अमेरिकी मूल की है.

पढ़ें - चीन के राष्ट्रपति का सेना को निर्देश, 'चीनी भोजन' न करें बर्बाद

2019 में भारतीय सेना ने जबलपुर GSF के साथ114 ’धनुष’ गन का ऑर्डर दिया. यह अनुबंध 2022 तक पूरा होने की संभावना है. इस सौदे में 400 से अधिक बंदूकों का ऑर्डर देने की संभावना है.

1999 के आर्टिलरी आधुनिकीकरण कार्यक्रम या फील्ड आर्टिलरी युक्तिकरण योजना (FARP) के अनुसार, भारतीय सेना 2025 तक 3,000 बंदूकों को पहले आयात करके, फिर स्थानीय रूप से विकसित करने, और अंत में लाइसेंस प्राप्त करने वाली 155 मिमी तोपों का निर्माण कर रही है.

नई दिल्ली : शालीन और पेशेवर सैनिक जैसी शैली में भारतीय सेना की तोपों ने एक शानदार सफलता की कहानी लिखी है, जिसका प्रभाव भारत में होने वाली तोपों के निर्माण में गुणात्मक सुधार के रूप में दिखेगा. इससे निश्चित रूप से हथियारों के आयात की आवश्यकता कम होगी. अतीत में बंदूकों का उपयोग करने से लेकर आर्टिलरी (तोप) ’धनुष’ और ‘एडवांस आर्टिलरी गन सिस्टम’ के निर्माण में (ATAGS) भी हिस्सेदार बन गई है.

इस मुद्दे से परिचित एक अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि यह एक अभूतपूर्व कदम है, जहां सेना भी उत्पाद-निर्माता है. आर्टिलरी ने एक सफल हथियार विकास मॉडल स्थापित किया है, जिसका मेक इन इंडिया ’परियोजना पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.

आर्टिलरी ने एक ब्रिगेडियर रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में अपनी हथियार विकास टीम की स्थापना की थी और जबलपुर में गन कैरिज फैक्ट्री (GCF) में धनुष का निर्माण करने के लिए एक साथ काम करने के लिए इसे तैनात किया था.

इसकी सफलता के कारण रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के सहयोग से ATAGS के लिए एक और समान मॉडल स्थापित किया गया. आर्टिलरी की टीम का एक कार्यकाल पहले ही खत्म हो चुका है.

धनुष जिसे 'देसी बोफोर्स' और ATAGS परियोजनाओं में भी बड़े पैमाने पर स्वदेशी घटकों और प्रौद्योगिकी का प्रभुत्व हासिल है.

यह कदम सेना की भागीदारी की भूमिका को बढ़ाता है, जो इस मामले में एक आर्टिलरी है, इसके अलावा यह उत्पाद में स्वामित्व की भावना प्रदान करता है.

इससे पहले हथियारों को बनाकर सेना के परीक्षण के लिए लाया जाता था, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नौकरशाही के कारण लगातार देरी से जूझ रही अधिकांश रक्षा परियोजनाओं के साथ, यह समय में कटौती करता है. क्योंकि यह हथियार के डिजाइन, विकास और उत्पादन में सक्रिय रूप से शामिल होता है. इसे सरलता के साथ सेना के पास भेजा जा सकेगा.

सफलता से उत्साहित रक्षा मंत्रालय ने परियोजना के विस्तार या नवीकरण के लिए मंजूरी दे दी है. इसने इस उम्मीद को जन्म दिया है कि आर्टी मॉडल का इस्तेमाल हर दूसरे हथियार के लिए किया जा सकता है.

लंबे समय तक भारतीय आर्टिलरी का मुख्य आधार बोफोर्स 155 मीटर, 39 कैलिबर बंदूक थीं, लेकिन अब धनुष , ATAGS, V K9 Vajra और M-777 हॉवित्जर तोप जैसे विकल्पों की एक श्रृंखला है.

धनुष ’155 मिमी, 45-कैलिबर की टोएड आर्टिलरी गन, जिसकी रेंज 38 किमी है, जबकि ATAGS152 मिमी, 52-कैलिबर गन है. दूसरी ओर K9 वज्र एक स्व-चालित तोप है, जिसको दक्षिण कोरियाई तकनीक के साथ बनाया जा रहा है, जबकि M-777 अल्ट्रा लाइट हॉवित्जर (ULH) अमेरिकी मूल की है.

पढ़ें - चीन के राष्ट्रपति का सेना को निर्देश, 'चीनी भोजन' न करें बर्बाद

2019 में भारतीय सेना ने जबलपुर GSF के साथ114 ’धनुष’ गन का ऑर्डर दिया. यह अनुबंध 2022 तक पूरा होने की संभावना है. इस सौदे में 400 से अधिक बंदूकों का ऑर्डर देने की संभावना है.

1999 के आर्टिलरी आधुनिकीकरण कार्यक्रम या फील्ड आर्टिलरी युक्तिकरण योजना (FARP) के अनुसार, भारतीय सेना 2025 तक 3,000 बंदूकों को पहले आयात करके, फिर स्थानीय रूप से विकसित करने, और अंत में लाइसेंस प्राप्त करने वाली 155 मिमी तोपों का निर्माण कर रही है.

Last Updated : Aug 22, 2020, 11:08 AM IST
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