कोलकाता : हर साल एक जनवरी को तृणमूल कांग्रेस अपना स्थापना दिवस मनाती है. इस बार भी मनाया जाएगा, लेकिन बहुत धूमधाम से नहीं. राजनीतिक गलियारों में ऐसी ही चर्चा है. हालांकि, पार्टी की ओर से आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा गया है.
वैसे, यह कोई रॉकेट विज्ञान नहीं है कि जिस पर बहुत अध्ययन करने की जरूरत है. इस बार पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी छोड़ दी. छोड़ने वालों में सबसे ताजा नाम शुभेंदु अधिकारी का जुड़ा है. पार्टी 2011 से ही सत्ता में है. पार्टी को सत्ता में लाने वालों में इनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है. 2007-08 में शुभेंदु अधिकारी ने टीएमसी की ओर से दो प्रमुख आंदोलनों में मुखरता से भाग लिया था. सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन. 2016 के बाद से उन्होंने वाम और कांग्रेस संगठन का नेटवर्क ध्वस्त कर दिया. लेकिन अब वह पार्टी में नहीं हैं.
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अधिकारी ने भाजपा का दामन थाम लिया. उनके साथ कई अन्य नेताओं ने टीएमसी को बाय-बाय कह दिया. कहा जा रहा है कि उनके साथ काम करने वाले कई कार्यकर्ताओं ने उनके साथ जाने के संकेत दे दिए हैं.
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि इस समय टीएमसी की स्थिति बहुत अधिक अच्छी नहीं कही जा सकती है. जाहिर है, स्थापना दिवस पर इसका असर पड़ना भी तय है.
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संघर्ष और आंदोलन के जरिए बना रास्ता
हालांकि, टीएमसी नेताओं से जब इसके बारे में बात की जाती है, तो वे इन तर्कों को सिरे से खारिज कर देते हैं. टीएमसी नेता बैश्वनार चटोपाध्याय ने ईटीवी भारत से बातचीत में बताया कि पार्टी का गठन कई जनांदोलनों की पृष्ठभूमि पर हुआ है. अब हम सत्ता में हैं. लेकिन इसके पहले तो हमारे रास्तों में कांटे-ही-कांटे थे. हम लोगों ने संघर्ष और आंदोलन के जरिए अपना रास्ता बनाया. उस समय कई ऐसे नेता थे, जो पार्टी की खातिर शहीद हो गए. हम उन्हें स्थापना दिवस पर याद करते हैं. इस बार भी उन्हें याद करेंगे.
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नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं शुभेंदु
चटोपाध्याय ने शुभेंदु फैक्टर को बहुत अधिक तवज्जो नहीं दिया. उन्होंने कहा कि वे पार्टी के संस्थापक सदस्य नहीं रहे हैं. वे छात्र परिषद से जुड़े थे. उस समय मैं कांग्रेस के राज्य यूथ विंग का अध्यक्ष था. शुवेंदु कोंटई नगरपालिका के काउंसलर हुआ करते थे. ममता बनर्जी का साथ मिलने के बाद ही वह सांसद बने. क्या वे अपनी पार्टी बना सकते हैं. लेकिन अब वह हमें नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. उनके पहले भी कई नेताओं ने ऐसा करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुए.
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टीएमसी पर शंकाओं का असर
विशेषज्ञ मानते हैं कि शुभेंदु की तर्ज पर कई अन्य नेताओं ने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया. ऐसे में बहुत लाजिमी है कि ममता तीसरी बार सीएम बनेंगी या नहीं, कहना मुश्किल है. इन सवालों और शंकाओं का असर पार्टी की स्थापना दिवस पर दिखना बहुत स्वाभाविक है.
वैसे, टीएमसी नेता बैश्वनार चटर्जी इनसे सहमत नहीं हैं. उन्होंने कहा कि टीएमसी दूर गंतव्य वाली एक्सप्रेस ट्रेन है. कुछ यात्री बीच में आते हैं और उतर जाते हैं. जब तक ममता हैं, तब तक किसी अन्य की जरूरत नहीं है.
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विपक्षी पार्टियां टीएमसी की इस स्थिति का लुत्फ उठा रहे हैं. प.बंगाल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता अब्दुल मनन (कांग्रेस) कहते हैं कि टीएमसी अपने द्वारा ही लगाई गई आग में जल रही है. ये आग उन्होंने खुद लगाई है. उन्हें जश्न मनाने दीजिए. स्थापना दिवस का जश्न आखिरी बार वे मनाएंगे.
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विधानसभा में वाम गठबंधन के नेता सुजान चक्रवर्ती का मानना है कि टीएमसी धीरे-धीरे अपना असर खो रही है. उन्होंने कहा कि अभी जिस तरह के हालात हैं, ऐसे में पार्टी संगीत, नाच-गान वगैरह का आयोजन करती है, तो यह मेरी समझ के परे हैं. ऐसा लगता है कि पार्टी का पतन तय है.