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कोरोना महामारी : एंटीवायरल दवाएं बनाना इतना जटिल क्यों है?

वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के शीर्ष पर होने के बावजूद हम कोरोना का इलाज क्यों नहीं खोज पा रहे हैं? चिकित्सा विज्ञान एंटीवायरल शोध में महत्वपूर्ण प्रगति क्यों नहीं कर रहा है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इस महामारी के अनियंत्रित होते दौर में हम सभी के मन में उठ रहे हैं. पढ़ें हमारी खार रिपोर्ट...

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Published : May 13, 2020, 12:29 AM IST

हैदराबाद : वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के शीर्ष पर होने के बावजूद हम कोरोना का इलाज क्यों नहीं खोज पा रहे हैं? चिकित्सा विज्ञान एंटीवायरल शोध में महत्वपूर्ण प्रगति क्यों नहीं कर रहा है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इस महामारी के अनियंत्रित होते दौर में हम सभी के मन में उठ रहे हैं.

इसी तरह वह पहला संकट था, जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो रहा था और उसी वक्त पेनिसिलिन (Penicillin) नामक दवा का आविष्कार किया गया. यह पहली ऐसी एंटीबायोटिक थी, जिसने लाखों सैनिकों को संक्रमण से बचाया था. तब से आज तक कई जीवन रक्षक दवाओं का आविष्कार किया जा चुका है.

हालांकि, कई जीवाणुरोधी दवाओं ने कई प्रकार की बीमारियों पर लगाम लगाकर मानवता में योगदान दिया है. लेकिन फिर भी एंटीवायरल दवाओं के मामले में हमने बहुत प्रगति नहीं की है.

हर बार एक नया वायरल संक्रमण जैसे एचआईवी, इबोला, सार्स जैसे वायरस पैदा हो जाते हैं और हमें पूरी तरह से असहाय कर देते हैं.

एंटीवायरल दवाएं बनाना इतना जटिल क्यों है? वह एंटीबायोटिक दवाओं से इतनी अलग क्यों होती हैं? इन सारे सवालों का जवाब बैक्टीरिया और वायरस की रूपात्मक विशेषताओं में निहित होता है.

बैक्टीरिया और वायरस के बीच एक बड़ा अंतर है. बैक्टीरिया रोगाणु या सूक्ष्म जीव होते हैं, जो स्वयं ही जीवित रहते हैं. वह ऐसे प्रोकार्योट्स (prokaryotes) होते हैं, जो एकल डीएनए सर्कल से बने होते हैं.

हालांकि, वह मानव कोशिकाओं के समान ही होते हैं, लेकिन उनकी कुछ अलग विशेषताएं भी होती हैं. उदाहरण के लिए, उनके पास सेल वॉल (cell walls) होती है, जो पेप्टिडोग्लाइकन (peptidoglycan) नामक एक बहुलक से बनी होती है.

यही जीवाणु सेल वॉल किसी भी एंटीबायोटिक उपचार के लिए एक लक्ष्य का काम करती है.

इसका मतलब है कि एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया को मारने या उनकी वृद्धि को धीमा करने का काम करते हैं. वह पेप्टिडोग्लाइकन (peptidoglycan) युक्त बैक्टीरिया सेल वॉल पर हमला कर ऐसा करते हैं.

सुरक्षित और प्रभावी एंटीवायरल दवाएं बनाना मुश्किल है क्योंकि वायरस अपना असर दिखाने के लिए होस्ट सेल (host cell) पर हमला करते हैं.

वायरस का स्वयं कोई जैव रासायनिक तंत्र नहीं होता है, वह होस्ट सेल (host cell) में प्रवेश करते हैं और अपनी प्रक्रियाओं के लिए उस मशीनरी का उपयोग करते हैं.

वायरस प्रजनन के लिए अपनी आनुवंशिक सामग्री को मानव कोशिका के डीएनए में डालते हैं, इसलिए वायरस को होस्ट सेल से अलग करना कठिन होता है.

यह एंटीवायरल के विकास में प्रमुख बाधा है. कुछ वायरस होस्ट के शरीर में निष्क्रिय रह सकते हैं, जबकि कुछ अन्य धीरे-धीरे विकसित होते रहते हैं.

कुछ वायरस इतनी तेजी से बढ़ते हैं कि वह शरीर के अन्य हिस्सों को संक्रमित करते हुए, होस्ट सेल को विस्फोट कर देते हैं. अधिकांश एंटीवायरल एजेंट वायरल डीएनए संश्लेषण को रोक कर काम करते हैं.

प्रतिरक्षा कोशिकाओं पर एंटीवायरल के ऐसे निरोधात्मक प्रभाव प्रतिरक्षा क्षमता पर खराब असर डालते हैं.

वायरस को खत्म करना मुश्किल नहीं है अगर एंटीवायरल वायरस के जीवन चक्र को लक्षित कर सकें. लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह है कि कोई भी एंटीवायरल दवा वायरस को खत्म करने की प्रक्रिया में होस्ट सेल को भी नुकसान पहुंचाती है.

आज के समय में उपलब्ध अधिकांश एंटीवायरल दवाएं एचआईवी और दाद आदि जैसे वायरस की विशिष्ट प्रकृति के आधार पर डिजाइन की गईं हैं. हालांकि, इन दवाओं का असर होस्ट सेल पर वायरस की निर्भरता से प्रभावित होता है.

अहम बात यह है कि वायरस की निर्भरता जितनी अधिक होगी, इन दवाओं के काम करने की संभावना उतनी ही कम होगी और सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वायरस की आकृति, विज्ञान और प्रकृति वायरस के एक परिवार से दूसरे में भिन्न होती है.

यह सभी कारण एंटीवायरल बनाने की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं. वर्तमान में कोविड-19 रोगियों का उपचार प्रायोगिक रूप से रेमेडीसविर (Remdesivir), लोपिनवीर (Lopinavir), रिटोनवीर (Ritonavir) और रिबाविरिन (Ribavirin) से किया जा रहा है.

हालांकि, ऐसा लगता है कि यह दवाएं काम कर रही हैं, लेकिन इनके असल परिणामों को बड़े पैमाने पर प्रयोग कर ही जाना जा सकता है.

कोविड-19 के लिए एक नई एंटीवायरल दवा की खोज ही महत्वपूर्ण गेमचेंजर साबित हो सकती है. इसके लिए वायरस की संरचना और होस्ट सेल पर उसके प्रभाव को पूरी तरह से समझना आवश्यक है.

जितनी जल्दी कोरोना वायरस के जीन को पकड़ लिया जाएगा, उतनी ही जल्दी इसका इलाज भी संभव हो सकेगा. आज दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस का इलाज खोजने के लिए रात-दिन एक कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) विभिन्न देशों के शोधकर्ताओं के बीच मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा है.

अब गौर करने वाली बात यह है कि जब तक हमें इस महामारी से लड़ने का कोई इलाज नहीं मिल जाता, तब तक यह आवश्यक है कि हम सामाजिक दूरी बनाए रखें और व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखकर अपनी और दूसरों की सेहत का ख्याल रखें.

हैदराबाद : वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के शीर्ष पर होने के बावजूद हम कोरोना का इलाज क्यों नहीं खोज पा रहे हैं? चिकित्सा विज्ञान एंटीवायरल शोध में महत्वपूर्ण प्रगति क्यों नहीं कर रहा है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इस महामारी के अनियंत्रित होते दौर में हम सभी के मन में उठ रहे हैं.

इसी तरह वह पहला संकट था, जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो रहा था और उसी वक्त पेनिसिलिन (Penicillin) नामक दवा का आविष्कार किया गया. यह पहली ऐसी एंटीबायोटिक थी, जिसने लाखों सैनिकों को संक्रमण से बचाया था. तब से आज तक कई जीवन रक्षक दवाओं का आविष्कार किया जा चुका है.

हालांकि, कई जीवाणुरोधी दवाओं ने कई प्रकार की बीमारियों पर लगाम लगाकर मानवता में योगदान दिया है. लेकिन फिर भी एंटीवायरल दवाओं के मामले में हमने बहुत प्रगति नहीं की है.

हर बार एक नया वायरल संक्रमण जैसे एचआईवी, इबोला, सार्स जैसे वायरस पैदा हो जाते हैं और हमें पूरी तरह से असहाय कर देते हैं.

एंटीवायरल दवाएं बनाना इतना जटिल क्यों है? वह एंटीबायोटिक दवाओं से इतनी अलग क्यों होती हैं? इन सारे सवालों का जवाब बैक्टीरिया और वायरस की रूपात्मक विशेषताओं में निहित होता है.

बैक्टीरिया और वायरस के बीच एक बड़ा अंतर है. बैक्टीरिया रोगाणु या सूक्ष्म जीव होते हैं, जो स्वयं ही जीवित रहते हैं. वह ऐसे प्रोकार्योट्स (prokaryotes) होते हैं, जो एकल डीएनए सर्कल से बने होते हैं.

हालांकि, वह मानव कोशिकाओं के समान ही होते हैं, लेकिन उनकी कुछ अलग विशेषताएं भी होती हैं. उदाहरण के लिए, उनके पास सेल वॉल (cell walls) होती है, जो पेप्टिडोग्लाइकन (peptidoglycan) नामक एक बहुलक से बनी होती है.

यही जीवाणु सेल वॉल किसी भी एंटीबायोटिक उपचार के लिए एक लक्ष्य का काम करती है.

इसका मतलब है कि एंटीबायोटिक्स बैक्टीरिया को मारने या उनकी वृद्धि को धीमा करने का काम करते हैं. वह पेप्टिडोग्लाइकन (peptidoglycan) युक्त बैक्टीरिया सेल वॉल पर हमला कर ऐसा करते हैं.

सुरक्षित और प्रभावी एंटीवायरल दवाएं बनाना मुश्किल है क्योंकि वायरस अपना असर दिखाने के लिए होस्ट सेल (host cell) पर हमला करते हैं.

वायरस का स्वयं कोई जैव रासायनिक तंत्र नहीं होता है, वह होस्ट सेल (host cell) में प्रवेश करते हैं और अपनी प्रक्रियाओं के लिए उस मशीनरी का उपयोग करते हैं.

वायरस प्रजनन के लिए अपनी आनुवंशिक सामग्री को मानव कोशिका के डीएनए में डालते हैं, इसलिए वायरस को होस्ट सेल से अलग करना कठिन होता है.

यह एंटीवायरल के विकास में प्रमुख बाधा है. कुछ वायरस होस्ट के शरीर में निष्क्रिय रह सकते हैं, जबकि कुछ अन्य धीरे-धीरे विकसित होते रहते हैं.

कुछ वायरस इतनी तेजी से बढ़ते हैं कि वह शरीर के अन्य हिस्सों को संक्रमित करते हुए, होस्ट सेल को विस्फोट कर देते हैं. अधिकांश एंटीवायरल एजेंट वायरल डीएनए संश्लेषण को रोक कर काम करते हैं.

प्रतिरक्षा कोशिकाओं पर एंटीवायरल के ऐसे निरोधात्मक प्रभाव प्रतिरक्षा क्षमता पर खराब असर डालते हैं.

वायरस को खत्म करना मुश्किल नहीं है अगर एंटीवायरल वायरस के जीवन चक्र को लक्षित कर सकें. लेकिन सबसे बड़ी बाधा यह है कि कोई भी एंटीवायरल दवा वायरस को खत्म करने की प्रक्रिया में होस्ट सेल को भी नुकसान पहुंचाती है.

आज के समय में उपलब्ध अधिकांश एंटीवायरल दवाएं एचआईवी और दाद आदि जैसे वायरस की विशिष्ट प्रकृति के आधार पर डिजाइन की गईं हैं. हालांकि, इन दवाओं का असर होस्ट सेल पर वायरस की निर्भरता से प्रभावित होता है.

अहम बात यह है कि वायरस की निर्भरता जितनी अधिक होगी, इन दवाओं के काम करने की संभावना उतनी ही कम होगी और सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वायरस की आकृति, विज्ञान और प्रकृति वायरस के एक परिवार से दूसरे में भिन्न होती है.

यह सभी कारण एंटीवायरल बनाने की प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं. वर्तमान में कोविड-19 रोगियों का उपचार प्रायोगिक रूप से रेमेडीसविर (Remdesivir), लोपिनवीर (Lopinavir), रिटोनवीर (Ritonavir) और रिबाविरिन (Ribavirin) से किया जा रहा है.

हालांकि, ऐसा लगता है कि यह दवाएं काम कर रही हैं, लेकिन इनके असल परिणामों को बड़े पैमाने पर प्रयोग कर ही जाना जा सकता है.

कोविड-19 के लिए एक नई एंटीवायरल दवा की खोज ही महत्वपूर्ण गेमचेंजर साबित हो सकती है. इसके लिए वायरस की संरचना और होस्ट सेल पर उसके प्रभाव को पूरी तरह से समझना आवश्यक है.

जितनी जल्दी कोरोना वायरस के जीन को पकड़ लिया जाएगा, उतनी ही जल्दी इसका इलाज भी संभव हो सकेगा. आज दुनियाभर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस का इलाज खोजने के लिए रात-दिन एक कर रहे हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) विभिन्न देशों के शोधकर्ताओं के बीच मध्यस्थ के रूप में काम कर रहा है.

अब गौर करने वाली बात यह है कि जब तक हमें इस महामारी से लड़ने का कोई इलाज नहीं मिल जाता, तब तक यह आवश्यक है कि हम सामाजिक दूरी बनाए रखें और व्यक्तिगत स्वच्छता का ध्यान रखकर अपनी और दूसरों की सेहत का ख्याल रखें.

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