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तीस हजारी कांड : 31 साल बाद दिल्ली पुलिस को फिर याद आईं किरण बेदी, ये है वजह

पुलिस-वकील विवाद के बाद दिल्ली पुलिस ने अपनी मांगों को लेकर पुलिस मुख्यालय के बाहर विरोध-प्रदर्शन किया. इस दौरान दिल्ली पुलिस के जवान लगातार एक नारा लगा रहे थे कि 'किरण बेदी लाओ दिल्ली पुलिस बचाओ'. जानें विस्तार से...

किरण बेदी (फाइल फोटो)
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Published : Nov 6, 2019, 8:44 AM IST

नई दिल्ली : जिक्र दिल्ली पुलिस और दिल्ली की तीस हजारी अदालत का हो, ऐसे में भारत की पहली दबंग महिला आईपीएस किरण बेदी हवलदार सिपाहियों को याद न आएं, ऐसा असंभव है. हां, यह अलग बात है कि बेबाक-बेखौफ किरण बेदी गाहे-ब-गाहे तिहाड़ जेल के कैदियों को भी याद आती हैं.

क्रेन-बेदी
दरअसल 17 फरवरी, 1988 को दिल्ली की इसी तीस हजारी कोर्ट में वकीलों से सीधा मुचैटा लेने वाली, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार को दिल्ली का दिल समझे जाने वाले कनाट प्लेस में सरेआम लदवा कर उठवा ले जाने के बाद 'क्रेन-बेदी' के नाम से चर्चित हुईं किरण बेदी, देश में मौजूद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) लॉबी (गुट) को कभी फूटी आंख नहीं सुहाई थीं. जिसका नतीजा ही रहा कि किरण बेदी आईपीएस रहते-रहते अपनी जिंदगी में कभी भी दिल्ली की पुलिस कमिश्नर नहीं बन पाईं.

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'किरण बेदी मैडम तो सबसे आगे खड़ी होती'
किसी जमाने में अपनो के कथित 'घात' का शिकार बनी वही दबंग किरण बेदी मंगलवार को दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के बाहर सड़क पर उतरे हवलदार सिपाहियों को बहुत याद आईं. मंगलवार को पुलिस मुख्यालय घेरने वालों में शामिल एक बीमार महिला हवलदार ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर दो टूक कहा, 'हमारा यह गॉल्फ-1 (मौजूदा पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक) किसी काम का नहीं है. आज इसकी जगह पर अगर किरण बेदी मैडम होतीं, तो हमें मजबूर होकर सड़क पर भला क्यों उतरना पड़ता? किरण मैडम (किरण बेदी) महकमे के हवलदार सिपाहियों की बहुत सुनती थीं. मैंने तो यही सुना है. यह कमिश्नर तो तीस हजारी कोर्ट में मरते-मरते बचे अस्पताल में दाखिल कर्मचारियों को देखने भी नहीं गया. दफ्तर में बैठे बैठे ही मोनिका मैडम (डीसीपी उत्तरी जिला मोनिका भारद्वाज) और संजय सिंह (तीस हजारी कांड में उत्तरी परिक्षेत्र के विशेष पुलिस आयुक्त कानून-व्यवस्था की कुर्सी से हाथ धो चुके) ने अपनी गर्दन बचाने के लिए नीचे वालों को ही सस्पेंड कर दिया. जबकि नीचे वालों ने वही किया जो अफसरों ने कहा. किरण बेदी मैडम तो सबसे आगे खड़ी होकर पहले सब कुछ अपने ही ऊपर ले लेतीं.'

इसे भी पढ़ें- विद्रोह जैसे हालात की गवाह बनी दिल्ली पुलिस, साथियों पर हमले के विरोध में प्रदर्शन

अमूल्य पटनायक से खफा पुलिसवाले
धरना-प्रदर्शन कर रहे नाराज पुलिसकर्मी अपने मौजूदा अफसरों की मौजूदगी में ही चीख-चिल्ला रहे थे कि 'किरण बेदी लाओ दिल्ली पुलिस बचाओ' नाराज पुलिस कर्मियों के इस व्यवहार से साफ जाहिर हो रहा था कि, वे दिल्ली पुलिस के मौजूदा पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक से किस कदर खफा हैं. अगर इस कदर खून के आंसू अमूल्य पटनायक ने मातहतों को तीस हजारी कांड में न रुलाये होते तो शायद हवलदार सिपाही मंगलवार को सड़क घेर कर अपनो का न तो दिन 'अमंगल' करते, न ही शायद उन्हें 17 फरवरी, 1988 यानी अब से करीब 31 साल पहले हुए तीस हजारी कांड की 'लीडर' कही-सुनी जाने वाली किरण बेदी, अमूल्य पटनायक की पुलिस के दौर में याद आतीं.

नई दिल्ली : जिक्र दिल्ली पुलिस और दिल्ली की तीस हजारी अदालत का हो, ऐसे में भारत की पहली दबंग महिला आईपीएस किरण बेदी हवलदार सिपाहियों को याद न आएं, ऐसा असंभव है. हां, यह अलग बात है कि बेबाक-बेखौफ किरण बेदी गाहे-ब-गाहे तिहाड़ जेल के कैदियों को भी याद आती हैं.

क्रेन-बेदी
दरअसल 17 फरवरी, 1988 को दिल्ली की इसी तीस हजारी कोर्ट में वकीलों से सीधा मुचैटा लेने वाली, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार को दिल्ली का दिल समझे जाने वाले कनाट प्लेस में सरेआम लदवा कर उठवा ले जाने के बाद 'क्रेन-बेदी' के नाम से चर्चित हुईं किरण बेदी, देश में मौजूद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) लॉबी (गुट) को कभी फूटी आंख नहीं सुहाई थीं. जिसका नतीजा ही रहा कि किरण बेदी आईपीएस रहते-रहते अपनी जिंदगी में कभी भी दिल्ली की पुलिस कमिश्नर नहीं बन पाईं.

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'किरण बेदी मैडम तो सबसे आगे खड़ी होती'
किसी जमाने में अपनो के कथित 'घात' का शिकार बनी वही दबंग किरण बेदी मंगलवार को दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के बाहर सड़क पर उतरे हवलदार सिपाहियों को बहुत याद आईं. मंगलवार को पुलिस मुख्यालय घेरने वालों में शामिल एक बीमार महिला हवलदार ने अपना नाम उजागर न करने की शर्त पर दो टूक कहा, 'हमारा यह गॉल्फ-1 (मौजूदा पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक) किसी काम का नहीं है. आज इसकी जगह पर अगर किरण बेदी मैडम होतीं, तो हमें मजबूर होकर सड़क पर भला क्यों उतरना पड़ता? किरण मैडम (किरण बेदी) महकमे के हवलदार सिपाहियों की बहुत सुनती थीं. मैंने तो यही सुना है. यह कमिश्नर तो तीस हजारी कोर्ट में मरते-मरते बचे अस्पताल में दाखिल कर्मचारियों को देखने भी नहीं गया. दफ्तर में बैठे बैठे ही मोनिका मैडम (डीसीपी उत्तरी जिला मोनिका भारद्वाज) और संजय सिंह (तीस हजारी कांड में उत्तरी परिक्षेत्र के विशेष पुलिस आयुक्त कानून-व्यवस्था की कुर्सी से हाथ धो चुके) ने अपनी गर्दन बचाने के लिए नीचे वालों को ही सस्पेंड कर दिया. जबकि नीचे वालों ने वही किया जो अफसरों ने कहा. किरण बेदी मैडम तो सबसे आगे खड़ी होकर पहले सब कुछ अपने ही ऊपर ले लेतीं.'

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अमूल्य पटनायक से खफा पुलिसवाले
धरना-प्रदर्शन कर रहे नाराज पुलिसकर्मी अपने मौजूदा अफसरों की मौजूदगी में ही चीख-चिल्ला रहे थे कि 'किरण बेदी लाओ दिल्ली पुलिस बचाओ' नाराज पुलिस कर्मियों के इस व्यवहार से साफ जाहिर हो रहा था कि, वे दिल्ली पुलिस के मौजूदा पुलिस आयुक्त अमूल्य पटनायक से किस कदर खफा हैं. अगर इस कदर खून के आंसू अमूल्य पटनायक ने मातहतों को तीस हजारी कांड में न रुलाये होते तो शायद हवलदार सिपाही मंगलवार को सड़क घेर कर अपनो का न तो दिन 'अमंगल' करते, न ही शायद उन्हें 17 फरवरी, 1988 यानी अब से करीब 31 साल पहले हुए तीस हजारी कांड की 'लीडर' कही-सुनी जाने वाली किरण बेदी, अमूल्य पटनायक की पुलिस के दौर में याद आतीं.

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PROTEST-LAWYERS-BEDI
Police-lawyer clashes reminiscent of 1988 Kiran Bedi incident
         New Delhi, Nov 5 (PTI) As thousands of cops shouted, "Humara Commissioner (of Police) kaisa ho, Kiran Bedi jaisa ho" while demanding action against lawyers involved in attack on their colleagues, their protest on Tuesday was reminiscent of the 1988 police-lawyer clash at Tis Hazari Courts Complex when the then 'super cop' of Delhi had invited the ire of advocates.
         It was in January 1988 when Delhi Police arrested an advocate named Rajesh Agnihotri, after he was apprehended by the students of St Stephen's College for allegedly stealing from a ladies common room.
         When the advocate was produced before Tis Hazari Court on January 16 that year with his hands cuffed, lawyers started protesting saying it is illegal.
         The Metropolitan Magistrate discharged the lawyer the same day and also directed the Commissioner of Police to take action against the guilty police officials.
         The lawyers went on strike from January 18 in support of their demand for action against the police officials.
         Bedi, the first woman IPS officer, on January 20 made a statement at a press conference justifying the police action and criticising the order of the Magistrate in discharging the alleged "thief".
         The next day when a group of lawyers sought to meet Bedi to express their concern at her office, located in the same Tis Hazari Courts Complex, a lathi-charge was ordered on them in which several lawyers were injured.
         For the next two months, the lawyers stopped courts from functioning in Delhi and neighbouring states, demanding Bedi's resignation.
         The strike was called off after the Delhi High Court constituted a two-judge committee headed by Justice D P Wadhwa, the then sitting judge at HC, to investigate the matter.
         The committee in its report held that hand-cuffing of lawyer was illegal and recommended that Bedi be transferred.
         The incident haunted Bedi in 2015 when she was declared a candidate for Delhi's Chief Minister by the Bharatiya Janata Party in Assembly polls.
         Lawyers of all the six district courts in the national capital condemned the BJP decision to nominate Bedi.
         The coordination committee of all district court bar associations had said the "legal fraternity wants to place on record that the decision to make her (Bedi) the chief ministerial candidate on the basis of her administrative skill is contrary to the records".
         It further said that when she was posted as the DCP North in New Delhi, Bedi did "everything to avenge the lawyers of Tis Hazari Court who were demanding commission of enquiry against brutal 'lathi' charge on innocent lawyers".
         Advocate S K Bagga, who won the last assembly election from Krishna Nagar constituency in East Delhi against Bedi, recalled the 1988 incident and said that the former IPS officer had brutally lathi-charged, tear gased and ordered use of water canons against the agitating lawyers in which 100 of them were seriously injured.
         He recalled that another advocate Rajeev Khosla, the prominent bar leader now, suffered serious eye injury due to the water canon in 1988.
         However, he said only difference this time is that the police personnel have come out on roads and agitating against the lawyers for the Saturday and Monday incident in which cops have been thrashed by the advocates.
         Recalling the similar lawyer-police clash, many Delhi cops who were protesting on Tuesday in the crowd remembered Bedi who was then at the heart of the controversy.
         Some were carrying a big poster of Bedi, now lieutenant governor of Puducherry, chanting slogans like "Kiran Bedi sherni hamari" and "Humara Commissioner of Police kaisa ho, Kiran Bedi jaisa ho". PTI PKS RKS
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