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राहुल के 'सब्र और समय' के भविष्य का फैसला करेगा मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020

मध्य प्रदेश उपचुनाव 2020 पर ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर रुपेश श्रोती का राजनीतिक विश्लेषण पढ़िए. रुपेश श्रोती की देश की राजनीति पर विशेष पकड़ है. मध्य प्रदेश के उपचुनाव पर उनका विशेष लेख...

jyotiraditya, rahul and kamalnath
ज्योतिरादित्य, राहुल और कमलनाथ
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Published : Nov 3, 2020, 9:23 PM IST

Updated : Nov 3, 2020, 10:49 PM IST

भोपाल : दुनिया के महानतम लेखकों में से एक हैं लियो टॉलस्टॉय. इनके कथन का सबसे बेहतर उपयोग राहुल गांधी ने किया. वह सच नहीं हो पाया. राहुल गांधी की समस्या यही है कि वे समझ नहीं पाते हैं कि किस समय, कहां पर, क्या बोला जाए. यहां पर भी वो गलती कर गए. कैसे? 13 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने टॉलस्टॉय के कथन के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की. इस तस्वीर में वे ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ का हाथ थामे हुए थे. राहुल ने तस्वीर के साथ लिखा, 'सब्र और समय सबसे ताकतवर योद्धा हैं.' यही लियो टॉलस्टॉय का कथन है. फिर क्या हुआ ? दो साल पूरे भी नहीं हुए थे कि सब्र यानी ज्योतिरादित्य और समय यानी कमलनाथ मध्य प्रदेश के चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करते नजर आए. ऐसा होना भी तय था, क्योंकि 'समय' झुकने को तैयार नहीं था और 'सब्र' अपना इम्तिहान देकर थक चुका था.

सब्र के बदलाव से उसकी थकान जरूर मिट गई हो, लेकिन इम्तिहान अभी जारी ही है. मध्य प्रदेश के उपचुनाव में ये जुमला भी खूब चला कि बीजेपी चुनाव हारी, तो सिंधिया हारे, जीती तो शिवराज सिंह जीते. इन सब के बीच 'समय' भी आशावान है कि कुछ न हुआ, तो मैं 'बीत' ही जाऊंगा.

ज्योतिरादित्य की परीक्षा बहुत कड़ी है. चंबल इलाके में विधानसभा की कुल 34 सीटें हैं, इनमें से 16 पर उपचुनाव हैं. मुरैना की छह सीटें कांग्रेस के खाते में थीं. अभी यहां पांच सीटों पर चुनाव हुआ है. इसमें से दो सीटें केवल ऐसी हैं, जहां पर सिंधिया का असर है. भिंड की दो सीटों मेहगांव और गोहद पर वे हल्के पड़ रहे हैं. ग्वालियर की तीन सीटें ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और डबरा पर सिंधिया का असर है. दतिया की भांडेर सीट पर हल्का असर है, लेकिन ज्यादा प्रभावकारी नहीं है. इसका कारण है कि दतिया से बीजेपी के बड़े नेता नरोत्तम मिश्रा विधायक हैं. वे सिंधिया के विरोधी माने जाते हैं.

शिवपुरी की करैरा और पोहरी पर आंशिक असर है. यहां पर भी अंदरखाने यशोधरा राजे का विरोध सिंधिया के सामने है. यशोधरा राजे शिवपुरी में अपना खासा दमखम रखती हैं. गुना से सिंधिया सांसद बन चुके हैं पर इसके दायरे में आनी वाली बमोरी सीट पर सिंधिया का असर कम है. यहां दिग्विजय सिंह का प्रभाव अधिक है. अशोकनगर की दो सीटों पर चुनाव है, मगर सांसद रहने के बाद भी यहां से उनको कम वोट ही मिले थे.

कांग्रेस छोड़ने के एक दिन बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए थे. तब उन्होंने कहा था, उनके जीवन में दो तारीखें बहुत महत्वपूर्ण रहीं. पहला दिन 30 सितंबर 2001 था, जिस दिन उन्होंने अपने पूज्य पिता को खोया. दूसरा दिन 10 मार्च 2020 का, जो उनके पिता की 75वीं वर्षगांठ थी. इस दिन उन्होंने बीजेपी में शामिल होने का फैसला लिया था. अब फैसला कितना सही है. यही देखना का समय आ गया है. कई बार जिंदगी में निर्णय का परिणाम सामने आने के बाद सफलता या असफलता का अहसास होता है. सिंधिया के साथ भी ऐसा हो रहा है. बदलाव से वे राज्यसभा सांसद बन गए पर उनकी राजनीति का सूरज कितना चढ़ाव लेगा, वो इसी उपचुनाव से तय होगा.

सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करके आए प्रत्याशियों ने उपचुनाव लड़ा है. इनमें से 14 मंत्री हैं. इनकी जीत सिंधिया का बीजेपी में भविष्य तय करने के लिए बेहद जरूरी है. अगर ये जीते तो ही सिंधिया केंद्र में मंत्री बनाने के लिए 'प्रेशर पॉलिटिक्स' खेल पाएंगे. इसी वजह से चंबल की सारी सीटों पर संदेश साफ है कि ये चुनाव सिंधिया का है. मतदान के दिन एक आडियो भी वायरल हुआ, जिसमें सिंधिया की आवाज का दावा किया गया. इसमें भी यही बोला गया कि चुनाव मेरा है. ये बात मजबूरी की तरह भी चुनाव प्रचार में जब-तब दिखी.

बीजेपी के प्रचार साधनों में सिंधिया की तस्वीर ही गायब मिली मगर एक समझदार नेता की तरह सिंधिया ने बड़े लक्ष्य को साधना बेहतर समझा और छोटे मुद्दों को तरजीह नहीं दी. हां, ये बात जरूर है कि वो कई बार चुनावी सभा में उदास भी दिखे. आक्रोश भी चेहरे पर नजर आया. तभी तो कमलानथ के आइटम वाले बयान पर डबरा विधानसभा क्षेत्र में आक्रोशित हो गए. एंग्री यंग मैन की भूमिका में भी नजर आए. सिंधिया ने इमरती देवी को गले लगाया, जब वो रो रही थीं. सिंधिया का ऐसा राजनीतिक व्यवहार भी सबको चौंका गया.

सिंधिया के पास नया बोलने के लिए कुछ था भी नहीं, क्योंकि उन्होने अपनी राजनीति में जब भी वोट मांगे थे, बीजेपी की बुराई करके ही मांगे थे. इसलिए प्रचार में ज्यादातर निशाने पर कमलनाथ ही थे. ऐसा ठीक भी था. आखिर उनके और सीएम की कुर्सी के बीच 'समय' के रूप में वे ही खड़े थे. तब से मिला तनाव, प्रचार के आखिरी दिनों तक कायम रहा. तभी बीजेपी प्रत्याशी इमरती देवी के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया की जुबान फिसल गई. सिंधिया ने अपने भाषण में कहा कि आने वाले 3 नवंबर को मतदान के दिन हाथ के पंजे वाले बटन को दबाएं और कांग्रेस को जिताएं यानी 'सब्र' का इम्तिहान अभी बाकी है.

भोपाल : दुनिया के महानतम लेखकों में से एक हैं लियो टॉलस्टॉय. इनके कथन का सबसे बेहतर उपयोग राहुल गांधी ने किया. वह सच नहीं हो पाया. राहुल गांधी की समस्या यही है कि वे समझ नहीं पाते हैं कि किस समय, कहां पर, क्या बोला जाए. यहां पर भी वो गलती कर गए. कैसे? 13 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने टॉलस्टॉय के कथन के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के साथ अपनी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की. इस तस्वीर में वे ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ का हाथ थामे हुए थे. राहुल ने तस्वीर के साथ लिखा, 'सब्र और समय सबसे ताकतवर योद्धा हैं.' यही लियो टॉलस्टॉय का कथन है. फिर क्या हुआ ? दो साल पूरे भी नहीं हुए थे कि सब्र यानी ज्योतिरादित्य और समय यानी कमलनाथ मध्य प्रदेश के चुनावी मैदान में दो-दो हाथ करते नजर आए. ऐसा होना भी तय था, क्योंकि 'समय' झुकने को तैयार नहीं था और 'सब्र' अपना इम्तिहान देकर थक चुका था.

सब्र के बदलाव से उसकी थकान जरूर मिट गई हो, लेकिन इम्तिहान अभी जारी ही है. मध्य प्रदेश के उपचुनाव में ये जुमला भी खूब चला कि बीजेपी चुनाव हारी, तो सिंधिया हारे, जीती तो शिवराज सिंह जीते. इन सब के बीच 'समय' भी आशावान है कि कुछ न हुआ, तो मैं 'बीत' ही जाऊंगा.

ज्योतिरादित्य की परीक्षा बहुत कड़ी है. चंबल इलाके में विधानसभा की कुल 34 सीटें हैं, इनमें से 16 पर उपचुनाव हैं. मुरैना की छह सीटें कांग्रेस के खाते में थीं. अभी यहां पांच सीटों पर चुनाव हुआ है. इसमें से दो सीटें केवल ऐसी हैं, जहां पर सिंधिया का असर है. भिंड की दो सीटों मेहगांव और गोहद पर वे हल्के पड़ रहे हैं. ग्वालियर की तीन सीटें ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व और डबरा पर सिंधिया का असर है. दतिया की भांडेर सीट पर हल्का असर है, लेकिन ज्यादा प्रभावकारी नहीं है. इसका कारण है कि दतिया से बीजेपी के बड़े नेता नरोत्तम मिश्रा विधायक हैं. वे सिंधिया के विरोधी माने जाते हैं.

शिवपुरी की करैरा और पोहरी पर आंशिक असर है. यहां पर भी अंदरखाने यशोधरा राजे का विरोध सिंधिया के सामने है. यशोधरा राजे शिवपुरी में अपना खासा दमखम रखती हैं. गुना से सिंधिया सांसद बन चुके हैं पर इसके दायरे में आनी वाली बमोरी सीट पर सिंधिया का असर कम है. यहां दिग्विजय सिंह का प्रभाव अधिक है. अशोकनगर की दो सीटों पर चुनाव है, मगर सांसद रहने के बाद भी यहां से उनको कम वोट ही मिले थे.

कांग्रेस छोड़ने के एक दिन बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए थे. तब उन्होंने कहा था, उनके जीवन में दो तारीखें बहुत महत्वपूर्ण रहीं. पहला दिन 30 सितंबर 2001 था, जिस दिन उन्होंने अपने पूज्य पिता को खोया. दूसरा दिन 10 मार्च 2020 का, जो उनके पिता की 75वीं वर्षगांठ थी. इस दिन उन्होंने बीजेपी में शामिल होने का फैसला लिया था. अब फैसला कितना सही है. यही देखना का समय आ गया है. कई बार जिंदगी में निर्णय का परिणाम सामने आने के बाद सफलता या असफलता का अहसास होता है. सिंधिया के साथ भी ऐसा हो रहा है. बदलाव से वे राज्यसभा सांसद बन गए पर उनकी राजनीति का सूरज कितना चढ़ाव लेगा, वो इसी उपचुनाव से तय होगा.

सिंधिया के साथ कांग्रेस से बगावत करके आए प्रत्याशियों ने उपचुनाव लड़ा है. इनमें से 14 मंत्री हैं. इनकी जीत सिंधिया का बीजेपी में भविष्य तय करने के लिए बेहद जरूरी है. अगर ये जीते तो ही सिंधिया केंद्र में मंत्री बनाने के लिए 'प्रेशर पॉलिटिक्स' खेल पाएंगे. इसी वजह से चंबल की सारी सीटों पर संदेश साफ है कि ये चुनाव सिंधिया का है. मतदान के दिन एक आडियो भी वायरल हुआ, जिसमें सिंधिया की आवाज का दावा किया गया. इसमें भी यही बोला गया कि चुनाव मेरा है. ये बात मजबूरी की तरह भी चुनाव प्रचार में जब-तब दिखी.

बीजेपी के प्रचार साधनों में सिंधिया की तस्वीर ही गायब मिली मगर एक समझदार नेता की तरह सिंधिया ने बड़े लक्ष्य को साधना बेहतर समझा और छोटे मुद्दों को तरजीह नहीं दी. हां, ये बात जरूर है कि वो कई बार चुनावी सभा में उदास भी दिखे. आक्रोश भी चेहरे पर नजर आया. तभी तो कमलानथ के आइटम वाले बयान पर डबरा विधानसभा क्षेत्र में आक्रोशित हो गए. एंग्री यंग मैन की भूमिका में भी नजर आए. सिंधिया ने इमरती देवी को गले लगाया, जब वो रो रही थीं. सिंधिया का ऐसा राजनीतिक व्यवहार भी सबको चौंका गया.

सिंधिया के पास नया बोलने के लिए कुछ था भी नहीं, क्योंकि उन्होने अपनी राजनीति में जब भी वोट मांगे थे, बीजेपी की बुराई करके ही मांगे थे. इसलिए प्रचार में ज्यादातर निशाने पर कमलनाथ ही थे. ऐसा ठीक भी था. आखिर उनके और सीएम की कुर्सी के बीच 'समय' के रूप में वे ही खड़े थे. तब से मिला तनाव, प्रचार के आखिरी दिनों तक कायम रहा. तभी बीजेपी प्रत्याशी इमरती देवी के समर्थन में आयोजित चुनावी सभा में ज्योतिरादित्य सिंधिया की जुबान फिसल गई. सिंधिया ने अपने भाषण में कहा कि आने वाले 3 नवंबर को मतदान के दिन हाथ के पंजे वाले बटन को दबाएं और कांग्रेस को जिताएं यानी 'सब्र' का इम्तिहान अभी बाकी है.

Last Updated : Nov 3, 2020, 10:49 PM IST
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