अहमदाबाद : कोरोन वायरस संक्रमित व्यक्तियों की संख्या गुजरात में महाराष्ट्र और तमिलनाडु के बाद देशभर में सबसे अधिक है. अहमदाबाद में कोरोना वायरस पॉजिटिव मामलों की संख्या मुंबई के बाद सबसे ज्यादा है. इस प्रकार देखा जाए तो अहमदाबाद एक हॉटस्पॉट या कोरोना वायरस का केंद्र बन गया है. साथ ही अहमदाबाद में मरने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जो एक चिंता का विषय है. लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेदार है? यह एक अहम सवाल है , जो ईटीवी भारत ने उठाया है.
गुजरात में 25 मई 2020 तक कोरोना संक्रमण के कुल 14,063 केस थे और 888 लोगों की मौत हो चुकी थी, जबकि अहमदाबाद में संक्रमण के कुल 10,590 थे और 722 लोगों की मौत हो गई थी. इसका मतलब यह है कि गुजरात में कोरोना संक्रमण से हुई कुल 888 मौतों में से 722 अकेले अहमदाबाद में हुई थीं. यानी गुजरात में हुई कुल मौतो में से 81.30 प्रतिशत मौत केवल अहमदाबाद में हुईं. इतना ही नहीं गुजरात में 24 मई को 29 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से 28 लोग अहमदाबाद के थे.
इन आंकड़ों से यह बात पूरी तरह साफ हो जाती है कि अहमदाबाद में कोरोना वायरस के मरीजों को उचित उपचार नहीं मिल रहा है और इसलिए वे मर रहे हैं. अधिकतम मौतें अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हुई हैं.
गुजरात उच्च न्यायालय ने सिविल अस्पताल में कोरोना वायरस रोगियों के अनुचित उपचार के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार को फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि मरीजों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता और न ही उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जा सकता है. कोर्ट ने सरकार से पूछा कि स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य मंत्री ने कितनी बार अस्पतालों को दौरा किया है.
कोविड 19 को मरीजों के लिए अहमदाबाद में 1,200 बेड वाला एक कोविड अस्पाताल तैयार किया गया है. इस अस्पताल के वीडियो मरीज द्वारा बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं, जिनमें अस्पताल में हो रही असुविधाओं को उजागर किया जा गया है. इन वीडियो के वायरल होने के बाद प्रशासन की नींद खुली. इसके बाद राज्य सरकार में अस्पताल में और अधिक सुविधाए जोड़ दीं.
अस्पताल में वरिष्ठ डॉक्टर मरीजों को नहीं देखते हैं. नर्सिंग स्टाफ भी दिन में केवल एक बार रोगियों को देखने आता है.
मरीजों के रिश्तेदारों को अस्पताल के अंदर आने की अनुमति नहीं है, इसलिए कर्मचारियों की अनुपस्थिति में उन्हें जरूरत के सामान कैसे मिलेंगे.
संक्षेप में, अहमदाबाद सिविल अस्पतालों की लापरवाही और लापरवाही लाइम लाइट में आई, जो कोरोना वायरस रोगियों की बड़ी संख्या के लिए जिम्मेदार थे. हालांकि अब तक कोरोना संक्रमण की कोई दवा या वैक्सीन नहीं बनी है. यह भी मौतों की अधिक संख्या का कारण हो सकता है.
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डॉ जे.पी मोदी को कोविड-19 के लिए बनाए गए अस्पताल के लिए सुविधा प्रभारी बनाया गया था, जिससे वरिष्ठ डॉक्टरों में विवाद में हो गया. इसके अलावा कैंसर अस्पताल के निदेशक के साथ भी विवाद देखने को मिला.
अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टरों के बीच इस तरह की आंतरिक मनमुटाव के कारण उन रोगियों पर भी ध्यान केंद्रित नहीं जा सका.
इसके बाद, राज्य सरकार ने सेवानिवृत्त डॉ.एम.एम. प्रभाकर को बुलाया और विवाद को समाप्त करने के लिए उन्हें प्रभारी बनाया. इस बीच, कोरोना वायरस मरीजो की मृत्यु जारी रही.
उधर राजकोट स्थित ज्योति सीएनएस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने धमन -1 नामक एक स्वदेशी वेंटिलेटर का निर्माण किया और इसे अस्पताल को दान कर दिया. इसके बाद आरोप लगे कि इस वेंटिलेटर में खामिया थीं. इस कारण अस्पताल में अधिक मौते हुईं.
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गौरतलब है कि ईटीवी भारत ने धमन-1 को लेकर अपनी एक रिपोर्ट पहले ही प्रकाशित की थी.
शुरुआत में राज्य सरकार ने 2000 बेड वाले अस्पताल का खूब बखान किया, लेकिन बाद में अस्पताल की खामियां सामने आने लगीं. इनमें सुविधाओं की कमी, मेडिकल स्टाफ की कमी, और कोरोना संक्रमित लोगों को अस्पताल में भर्ती न करना शामिल हैं. इसके अलावा कुछ मरीजों ने शिकायत की कि अस्पताल ने इलाज के दौरान ही उन्हें निजी अस्पताल में जाने को कहा.
इन सभी लापरवाहियों के बाद भी सिविल अस्पताल की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया. इस दौरान मृतकों कीं संख्या में बढ़ोतरी होती रही.
ईटीवी भारत से बातचीत में कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष दोशी ने कहा कि कोरोना संक्रमित लोगों को इलाज मुहैया करवाने में सरकार पूरी तरह नाकाम हो चुकी है.
उन्होंने कहा कि वेंटिलेटर मौत का एक कारण हो सकता हो सकता है, लेकिन सच्चाई यह है कि यहां न तो पर्याप्ट डॉक्टर हैं और न ही मेडिकल स्टाफ.
वहीं, दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता भरत पांडेय ने ईटीवी भारत से कहा कि किसी को भी सिविल अस्पताल के खिलाफ इस तरह के आरोप नहीं लगाने चाहिए. यह एशिया का नंबर वन अस्पताल है, जहां राजस्थान, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों के मरीज इलाज के लिए आते हैं और ठीक हो जाते हैं.
उन्होंने कहा, 'बड़ी संख्या में कोरोन वायरस के मरीज ठीक होने के बाद मुस्कुराते हुए अपने घरों को लौट गए हैं. हम इस तरह के आरोप लगाकर डॉक्टरों, नर्सों और मेडिकल स्टाफ को डिमोरालाइज कर रहे हैं, जबकि हमें उनको प्रोत्साहित करना चाहिए.'
लेकिन यह एक तथ्य है कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं. राज्य सरकार को जांच करनी चाहिए कि ऐसा क्यों हुआ है. गुजरात उच्च न्यायालय इतनी अधिक मौतों का कारण पूछेगा, हालांकि लोग भी अब यही सवाल पूछ रहे हैं.