नई दिल्ली : कोरोना वायरस के खिलाफ जंग लगातार जारी है. कई देशों में इसके टीके पर काम भी जारी है. कुछ जगहों पर ह्यूमन ट्रायल भी हो रहे हैं. इस बीच इसके इलाज के लिए अलग-अलग थेरेपी भी अपनाई जा रही है. इन्हीं में से एक है प्लाज्मा थेरेपी. दिल्ली, पंजाब, गुजरात, तमिलनाडु और राजस्थान समेत कई राज्यों में इसका ट्रायल भी शुरू हो चुका है. इंडियन काउंसल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने क्लिनिकल ट्रायल की अनुमति भी दे दी है. कुछेक परिणामों ने अच्छे संकेत भी दिए हैं. आइए जानते हैं क्या है प्लाज्मा थेरेपी और क्या है इसकी प्रक्रिया.
आपको बता दें कि खून के प्रमुख अवयव होते हैं- रेड ब्लड सेल, व्हाइट ब्लड सेल, प्लेटलेट्स और प्लाज्मा. प्लाज्मा पीले रंग का तरल पदार्थ होता है. प्लाज्मा थेरेपी के तहत उपचारित मरीजों के खून में से एंटीबॉडी लेकर उनका इस्तेमाल गंभीर रूप से बीमार कोविड-19 के मरीजों के इलाज में किया जाता है.
क्या है कंविलिसेंट प्लाज्मा
कंविलिसेंट प्लाज्मा रक्त का तरल हिस्सा है, जो उन रोगियों से एकत्र किया जाता है, जो इस संक्रमण से उबर चुके होते हैं. कंविलिसेंट प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडीज प्रोटीन होते हैं, जो संक्रमण से लड़ने में मदद कर सकते हैं. ईटीवी भारत की संवाददाता बी चंद्रकलां को मैक्स हेल्थकेयर के ब्लड बैंक प्रमुख डॉ संगीता पाठक ने बताया कि कंविलिसेंट प्लाज्मा थेरेपी नई अवधारणा नहीं है. इसका उपयोग अन्य वायरस के इलाज के लिए पहले भी किया गया है. कोविड-19 के इलाज के लिए दुनिया भर के डॉक्टर इसी अवधारणा को पुनर्जीवित कर रहे हैं. आक्षेपिक प्लाज्मा थेरेपी में, प्लाज्मा एक ऐसे रोगी से प्राप्त होता है, जो कोविड-19 से उबर चुका होता है. इसके परिणामस्वरूप वे एंटीबॉडी विकसित करते हैं. इसे एकत्र कर ऐसे मरीज को ट्रांसफ्यूज किया जाता है, जो कोरोनोवायरस से पीड़ित हैं.
कौन दे सकता है ब्लड
डॉ संगीता ने बताया कि ब्लड देने वाले की आयु 18 वर्ष से 65 वर्ष तक होनी चाहिए. उसका हीमोग्लोबिन 12.5 से ऊपर होना चाहिए. उच्च रक्तचाप पर नियंत्रण जरूरी है. कोरोना संक्रमित मरीज जो ठीक हुए हैं, 14 दिनों के बाद उनकी दो रिपोर्ट निगेटिव होनी चाहिए.
कितनी मात्रा में चाहिए ब्लड, कितने दिनों में करता है काम
कोविड से ठीक हुए व्यक्ति से लगभग 400 मिलीलीटर प्लाज्मा एकत्र किया जाता है. इसमें एंटीबॉडी होते हैं. इसे कोविड पॉजिटिव रोगी में ट्रांसफ्यूज किया जाता है. रोगी को 200 मिलीलीटर रक्त की एक खुराक दी जाती है. एंटीबॉडी मरीज के शरीर में वायरस पर हमला करते हैं. डॉ पाठक कहते हैं कि यह 3-7 दिनों के भीतर काम करना शुरू कर देता है.
किस तरीके से करता है काम
जब कोरोना संक्रमित मरीज का शरीर इससे लड़ता है, तो एंटीबॉडी पैदा करता है. यह वायरस पर हमला करता है. यह एंटीबॉडीज प्रोटीन, जिन्हें प्रतिरक्षा कोशिकाओं द्वारा बी लिम्फोसाइट्स के रूप में जाना जाता है, प्लाज्मा में पाए जाते हैं. जरूरत पड़ने पर यह रक्त का थक्का बनने में मदद करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में भी सहायक होते हैं.
एक बार जब कोई कोरोना संक्रमित व्यक्ति ठीक हो जाता है, तो उस व्यक्ति का शरीर एंटीबॉडी विकसित कर चुका होता है. जो उसके खून में रुके हुए होते हैं ताकि वायरस के दोबारा आने पर उससे लड़ सकें. उन एंटीबॉडीज को जब किसी अन्य बीमार व्यक्ति मे इंजेक्ट किया जाता है तो वह वायरस पर हमला करने के लिए पहले से ही तैयार रहते हैं. कोरोना वायरस के मामले में, वैज्ञानिकों का कहना है कि एंटीबॉडी वायरस के बाहर स्पाइक्स पर हमला करते हैं और वायरस को मानव कोशिकाओं में घुसने से रोकते हैं.
फायदे और नुकसान
डॉ पाठक ने बताया कि यह कोई चमत्कार वाला उपचार नहीं है. बल्कि यह एक उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है. अन्य उपचारों के साथ यह भी उनमें से एक है. इसमें जोखिम भी है. जैसे कि एलर्जी हो सकती है. धमनी संबंधी समस्याएं आ सकती हैं. कई बार यह फेफड़ों में समस्या पैदा कर सकती है, हालांकि यह बहुत दुर्लभ है. लाभ यह है कि वर्तमान में इसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं. अन्य देशों ने इस पर प्रयोग शुरू कर दिए हैं. आने वाले दिनों में सकारात्मक प्रतिक्रिया की उम्मीद है.
मैक्स हेल्थ केयर के डॉ संदीप बुद्धिराजा ने इस बारे में यह बताया कि यह एक ऑफ लेबल संकेत है. इसलिए अगर किसी व्यक्ति की जान को खतरा है और कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है. और आपको यह जानकारी मिलती है कि दुनिया के किसी हिस्से के खास इलाके में अमुक तरीके से उपचार किया जा रहा है. हालांकि, वो भी कोई पुख्ता तरीका नहीं है. ऐसे में मरीज और उनके परिवार वाले मानवीय आधार पर डॉक्टर से अपील करते हैं. उन्हें उसी तरीके से इलाज किया जाए. वे रजामंदी से इलाज करवाने के लिए तैयार होते हैं. प्लाज्मा थेरेपी को आप उसी तरीके से देख सकते हैं.