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दुनिया देख चुकी है अनेक महामारियां, क्वारंटाइन का भी है इतिहास - History of quarantine

विश्वभर में कोरोना वायरस फैला हुआ है. इसकी वजह से लाखों लोग क्वारंटाइन में हैं. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि लोगों को कई दिनों तक क्वारंटाइन में रखा गया हो. इससे पहले भी कई बार बेहद संक्रामक और जानलेवा बीमारियां फैली हैं. उस समय भी लोगों को क्वारंटाइन किया गया था. आइए जानते हैं क्या है क्वारंटाइन का इतिहास...

History of quarantine
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Published : May 12, 2020, 7:35 PM IST

Updated : May 12, 2020, 8:39 PM IST

हैदराबाद : क्वारंटाइन, इसका मतलब है उन लोगों, जानवरों और वस्तुओं को अलग करना जो किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित हों. 14वीं शताब्दी से क्वारंटाइन ही रोग-नियंत्रण रणनीति की आधारशिला रहा है. इसमें अलगाव, सेनेटरी कॉर्डन, धूमन, कीटाणुशोधन आदि शामिल हैं.

चीन के वुहान शहर से कोरोना वायरस के फैलने के बाद हर कोरोना संक्रमित को क्वारंटाइन किया गया. देश महीनों से लॉकडाउन में हैं. लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है. लोगों को क्वारंटाइन करने की जरूरत पहले भी कई बार पड़ी है. क्वारंटाइन का भी इतिहास है.

वेनिस में बूबोनिक प्लेग (1370)
इस प्लेग को ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाता है. 14वीं शताब्दी में इससे 20 मिलियन यूरोपीय लोगों की मौत हो गई थी. वेनिस एक प्रमुख व्यापार बंदरगाह था. वेनिस प्रशासन ने फैसला लिया कि यदि बंदरगाह पर आने वाले किसी भी जहाज में किसी को भी प्लेग होने की आशंका होती है तो उस जहाज को बंदरगाह पर आने के बाद 40 दिन तक इंतजार करना पड़ेगा. इस अवधि के बाद ही यात्री उतरते थे और सामान को जहाज से उतारा जाता था.

वेनिस ने अपने तट से दूर एक द्वीप पर एक अस्पताल / क्वारंटाइन केंद्र का निर्माण किया, जहां प्लेग-संक्रमित जहाजों के नाविकों को भेजा जाता था.

इस 40-दिवसीय अवधि को (40 के लिए इतालवी शब्द 'क्वारंटा' है) क्वारेंटिनारियो के रूप में जाना जाने लगा. जैसे-जैसे बीमारी के बारे में राय बदलती गई, इंतजार की अवधि ट्रेंटिनारियो हो गई (30 दिन), लेकिन इसे क्वारेंटिनारियो ही कहा जाता था.

फिलाडेल्फिया में पीला बुखार (1793)
अमेरिका के इस शहर की आबादी के दसवें हिस्से के बराबर, दो साल के दौरान लगभग 5,000 लोग मारे गए थे. हजारों लोग पलायन कर रहे थे. महामारी के चरम पर लगभग 100 लोग हर रोज मर रहे थे. उस समय सरकार भी गिर गई थी. फिलाडेल्फिया उस समय देश की राजधानी थी, लेकिन संघीय सरकार ने संकट का सामना करने के बजाय शहर को खाली करा दिया.

उस समय सबसे अच्छा इलाज था कि संक्रमित मरीजों के शरीर से संक्रमित रक्त को बहने दिया जाए और उन्हें वाइन पिलाई जाए. इसके अलावा लोगों का मानना था कि यदि नाविकों को क्वारंटाइन कर दिया जाए तो बीमारी नहीं फैलेगी. इसलिए उन्हें शहर के बाहर एक अस्पताल में क्वारंटाइन कर दिया जाता था. लेकिन यह बीमारी मच्छरों से फैलती है, इसलिए लोगों को क्वारंटाइन इतना प्रभावी नहीं था.

न्यूयॉर्क में टाइफस
अमेरिका के न्यूयॉर्क में 1892 में कई रूसी यहूदी अप्रवासियों को लेकर एक जाहज एलिस द्वीप पर पहुंचा. चिकित्सा इतिहासकार हॉवर्ड मार्कल के अनुसार यात्रियों के शरीर में जूं के ऐसे केस विकसित हो गए थे कि हार्बर इंस्पेक्टर ने कहा उसने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा. उन यात्रियों ने जहाज के सबसे सस्ते टिकट खरीदे थे और उनके कैबिन की हालत बेहद खराब थी.

जूं से टाइफस फैल गया, लेकिन जब तक बीमारी का पता चला, तब तक यात्री न्यूयॉर्क के लोअर ईस्ट साइड में फैल गए थे. पूर्वी नदी में नॉर्थ ब्रदर द्वीप पर टेंट में कम से कम 70 लोगों को क्वारंटाइन किया गया था.

इसके बाद रूसी यहूदी अप्रवासियों को लाने वाले जहाज से न्यूयॉर्क में हैजा फैल गया था.

सैन फ्रांसिस्को में बूबोनिक प्लेग (1900)
अमेरिका के शहर के चाइनाटाउन में एक चीनी मूल के व्यक्ति के होटल के तहखाने में मृत पाए जाने के बाद शहर के अधिकारियों ने उस क्षेत्र को बंद कर दिया था. उन्हें बूबोनिक प्लेग का डर था. कुछ दिनों के बाद क्वारंटाइन हटा लिया गया था. समाचारों में यह बूबोनिक ब्लफ के नाम से प्रचलित था.

न्यूयॉर्क शहर में टाइफाइड (1907)
अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में मैरी मैलन नाम की एक महिला थी, उसे 'टाइफाइड मैरी' के नाम से जाना जाता है. वह आयरलैंड में पैदा हुई थी और पेशे से रसोइया थी. उसके शरीर में साल्मोनेला बैक्टीरिया था. साल्मोनेला से बुखार, दस्त और मृत्यु तक हो सकती है, लेकिन मैलन खुद इस बीमारी से प्रतिरक्षित थी.

जब अधिकारियों को पता चला कि रसोइए के रूप में उसके काम से शहर के टाइफाइड का प्रकोप फैल गया है, तो उसे तीन साल के लिए नॉर्थ ब्रदर आइलैंड पर क्वारंटाइन में भेज दिया गया. उसने फिर कभी दूसरों के लिए खाना नहीं बनाने का वादा किया. लेकिन उसने अपना वचन तोड़ दिया और जब इसके बारे में पता चला तो 1915 में उसे जीवनभर के लिए द्वीप पर वापस भेज दिया गया.

अमेरिका में जननांग रोग (1917)
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना की चिंता तब बढ़ गई जब बहुत सारे आवेदकों को सिफलिस और गोनोरिया जैसी यौन संचारित बीमारियों के कारण अयोग्य करार देना पड़ रहा था.

सेना के अधिकारियों का ध्यान अमेरिकी प्रशिक्षण केंद्रों और सैन्य भर्ती केंद्रों के आसपास घूमने वाली वेश्याओं और अन्य महिलाओं पर गया. सरकार ने उन्हें क्वारंटाइन करने का आदेश दिया. आदेश में यह भी कहा गया कि जब तक वह एसटीडी-मुक्त नहीं हो जातीं तब तक उन्हें क्वारंटाइन केंद्रों में ही रखा जाए.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल इतिहासकार एलन ब्रांट का अनुमान है कि कम से कम 30,000 महिलाओं को छापे में पकड़ा गया था. हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इससे प्रसार की दरें प्रभावित हुईं थी.

यूरोप और अमेरिका में फ्लू महामारी (1917-1919)
मेडिकल इतिहासकार मार्केल के अनुसार इस वैश्विक महामारी से तकरीबन 50 मिलियन लोगों की मौत हुई थी. इसकी वजह से लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा था. यूरोप में स्कूल बंद हो गए थे और अमेरिका में सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे. हालांकि इससे बीमारी से निपटने में ज्यादा मदद नहीं मिली.

इन्फ्लुएंजा दुनिया में सबसे अधिक संक्रामक रोगों में से एक है. खांसते और छींकते रोगी के साथ कुछ मिनट बीमारी को फैलाने के लिए पर्याप्त होते हैं.

कनाडा में सार्स (2003)
2003 के गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (SARS) के कारण दुनिया के कई देशों में लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा था. इसको लेकर कनाडा की प्रतिक्रिया सबसे अलग थी.

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, कनाडा ने देश में हर पुष्ट सार्स केस पर लगभग 100 लोगों को क्वारंटाइन किया. राजधानी टोरंटो में केवल 250 संभावित केस थे, लेकिन लगभग 30,000 लोग अस्पतालों और उनके घरों में क्वारंटाइन थे.

चीन में बूबोनिक प्लेग (2014)
चीन में प्लेग से एक व्यक्ति की मौत हो गई. वह अपने कुत्ते को कृंतक (एक तरह का जीव) खिला रहा था. वह कृंतक प्लेग से संक्रमित था. उस व्यक्ति के संपर्क में आए 150 लोगों को क्वारंटाइन किया गया था. कई जिलों को सील कर दिया गया था. हालांकि दो दिन बाद कोई नया केस न आने पर क्वारंटाइन खत्म कर दिया गया था.

लाइबेरिया और सिएरा लियोन में इबोला (2014)
लाइबेरिया को अगस्त 2014 में 10 दिनों के लिए बंद कर दिया गया था. यह फैसला स्थानीय लोगों द्वारा संदिग्ध रोगियों के लिए एक केंद्र पर छापा मारे जाने के बाद लिया गया था. मरीज घनी आबादी वाले एक स्लम में भाग गए, जिसके बाद सरकार ने इलाके को 21 दिनों के लिए आइसोलेट कर दिया था.

पड़ोसी सिएरा लियोन में सितंबर में तीन-दिवसीय क्वारंटाइन में सभी को घर पर रहने के लिए कहा गया. इस दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर, बीमार लोगों की तलाश करते और लोगों की मदद करते थे.

पढ़ें-मरीजों को जीवन देने वाली दुनिया की नर्सों को समर्पित है आज का दिन

हैदराबाद : क्वारंटाइन, इसका मतलब है उन लोगों, जानवरों और वस्तुओं को अलग करना जो किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित हों. 14वीं शताब्दी से क्वारंटाइन ही रोग-नियंत्रण रणनीति की आधारशिला रहा है. इसमें अलगाव, सेनेटरी कॉर्डन, धूमन, कीटाणुशोधन आदि शामिल हैं.

चीन के वुहान शहर से कोरोना वायरस के फैलने के बाद हर कोरोना संक्रमित को क्वारंटाइन किया गया. देश महीनों से लॉकडाउन में हैं. लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है. लोगों को क्वारंटाइन करने की जरूरत पहले भी कई बार पड़ी है. क्वारंटाइन का भी इतिहास है.

वेनिस में बूबोनिक प्लेग (1370)
इस प्लेग को ब्लैक डेथ के नाम से जाना जाता है. 14वीं शताब्दी में इससे 20 मिलियन यूरोपीय लोगों की मौत हो गई थी. वेनिस एक प्रमुख व्यापार बंदरगाह था. वेनिस प्रशासन ने फैसला लिया कि यदि बंदरगाह पर आने वाले किसी भी जहाज में किसी को भी प्लेग होने की आशंका होती है तो उस जहाज को बंदरगाह पर आने के बाद 40 दिन तक इंतजार करना पड़ेगा. इस अवधि के बाद ही यात्री उतरते थे और सामान को जहाज से उतारा जाता था.

वेनिस ने अपने तट से दूर एक द्वीप पर एक अस्पताल / क्वारंटाइन केंद्र का निर्माण किया, जहां प्लेग-संक्रमित जहाजों के नाविकों को भेजा जाता था.

इस 40-दिवसीय अवधि को (40 के लिए इतालवी शब्द 'क्वारंटा' है) क्वारेंटिनारियो के रूप में जाना जाने लगा. जैसे-जैसे बीमारी के बारे में राय बदलती गई, इंतजार की अवधि ट्रेंटिनारियो हो गई (30 दिन), लेकिन इसे क्वारेंटिनारियो ही कहा जाता था.

फिलाडेल्फिया में पीला बुखार (1793)
अमेरिका के इस शहर की आबादी के दसवें हिस्से के बराबर, दो साल के दौरान लगभग 5,000 लोग मारे गए थे. हजारों लोग पलायन कर रहे थे. महामारी के चरम पर लगभग 100 लोग हर रोज मर रहे थे. उस समय सरकार भी गिर गई थी. फिलाडेल्फिया उस समय देश की राजधानी थी, लेकिन संघीय सरकार ने संकट का सामना करने के बजाय शहर को खाली करा दिया.

उस समय सबसे अच्छा इलाज था कि संक्रमित मरीजों के शरीर से संक्रमित रक्त को बहने दिया जाए और उन्हें वाइन पिलाई जाए. इसके अलावा लोगों का मानना था कि यदि नाविकों को क्वारंटाइन कर दिया जाए तो बीमारी नहीं फैलेगी. इसलिए उन्हें शहर के बाहर एक अस्पताल में क्वारंटाइन कर दिया जाता था. लेकिन यह बीमारी मच्छरों से फैलती है, इसलिए लोगों को क्वारंटाइन इतना प्रभावी नहीं था.

न्यूयॉर्क में टाइफस
अमेरिका के न्यूयॉर्क में 1892 में कई रूसी यहूदी अप्रवासियों को लेकर एक जाहज एलिस द्वीप पर पहुंचा. चिकित्सा इतिहासकार हॉवर्ड मार्कल के अनुसार यात्रियों के शरीर में जूं के ऐसे केस विकसित हो गए थे कि हार्बर इंस्पेक्टर ने कहा उसने ऐसा कुछ पहले कभी नहीं देखा. उन यात्रियों ने जहाज के सबसे सस्ते टिकट खरीदे थे और उनके कैबिन की हालत बेहद खराब थी.

जूं से टाइफस फैल गया, लेकिन जब तक बीमारी का पता चला, तब तक यात्री न्यूयॉर्क के लोअर ईस्ट साइड में फैल गए थे. पूर्वी नदी में नॉर्थ ब्रदर द्वीप पर टेंट में कम से कम 70 लोगों को क्वारंटाइन किया गया था.

इसके बाद रूसी यहूदी अप्रवासियों को लाने वाले जहाज से न्यूयॉर्क में हैजा फैल गया था.

सैन फ्रांसिस्को में बूबोनिक प्लेग (1900)
अमेरिका के शहर के चाइनाटाउन में एक चीनी मूल के व्यक्ति के होटल के तहखाने में मृत पाए जाने के बाद शहर के अधिकारियों ने उस क्षेत्र को बंद कर दिया था. उन्हें बूबोनिक प्लेग का डर था. कुछ दिनों के बाद क्वारंटाइन हटा लिया गया था. समाचारों में यह बूबोनिक ब्लफ के नाम से प्रचलित था.

न्यूयॉर्क शहर में टाइफाइड (1907)
अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में मैरी मैलन नाम की एक महिला थी, उसे 'टाइफाइड मैरी' के नाम से जाना जाता है. वह आयरलैंड में पैदा हुई थी और पेशे से रसोइया थी. उसके शरीर में साल्मोनेला बैक्टीरिया था. साल्मोनेला से बुखार, दस्त और मृत्यु तक हो सकती है, लेकिन मैलन खुद इस बीमारी से प्रतिरक्षित थी.

जब अधिकारियों को पता चला कि रसोइए के रूप में उसके काम से शहर के टाइफाइड का प्रकोप फैल गया है, तो उसे तीन साल के लिए नॉर्थ ब्रदर आइलैंड पर क्वारंटाइन में भेज दिया गया. उसने फिर कभी दूसरों के लिए खाना नहीं बनाने का वादा किया. लेकिन उसने अपना वचन तोड़ दिया और जब इसके बारे में पता चला तो 1915 में उसे जीवनभर के लिए द्वीप पर वापस भेज दिया गया.

अमेरिका में जननांग रोग (1917)
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना की चिंता तब बढ़ गई जब बहुत सारे आवेदकों को सिफलिस और गोनोरिया जैसी यौन संचारित बीमारियों के कारण अयोग्य करार देना पड़ रहा था.

सेना के अधिकारियों का ध्यान अमेरिकी प्रशिक्षण केंद्रों और सैन्य भर्ती केंद्रों के आसपास घूमने वाली वेश्याओं और अन्य महिलाओं पर गया. सरकार ने उन्हें क्वारंटाइन करने का आदेश दिया. आदेश में यह भी कहा गया कि जब तक वह एसटीडी-मुक्त नहीं हो जातीं तब तक उन्हें क्वारंटाइन केंद्रों में ही रखा जाए.

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मेडिकल इतिहासकार एलन ब्रांट का अनुमान है कि कम से कम 30,000 महिलाओं को छापे में पकड़ा गया था. हालांकि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इससे प्रसार की दरें प्रभावित हुईं थी.

यूरोप और अमेरिका में फ्लू महामारी (1917-1919)
मेडिकल इतिहासकार मार्केल के अनुसार इस वैश्विक महामारी से तकरीबन 50 मिलियन लोगों की मौत हुई थी. इसकी वजह से लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा था. यूरोप में स्कूल बंद हो गए थे और अमेरिका में सार्वजनिक समारोहों पर प्रतिबंध लगा दिए गए थे. हालांकि इससे बीमारी से निपटने में ज्यादा मदद नहीं मिली.

इन्फ्लुएंजा दुनिया में सबसे अधिक संक्रामक रोगों में से एक है. खांसते और छींकते रोगी के साथ कुछ मिनट बीमारी को फैलाने के लिए पर्याप्त होते हैं.

कनाडा में सार्स (2003)
2003 के गंभीर तीव्र श्वसन सिंड्रोम (SARS) के कारण दुनिया के कई देशों में लोगों को क्वारंटाइन करना पड़ा था. इसको लेकर कनाडा की प्रतिक्रिया सबसे अलग थी.

अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार, कनाडा ने देश में हर पुष्ट सार्स केस पर लगभग 100 लोगों को क्वारंटाइन किया. राजधानी टोरंटो में केवल 250 संभावित केस थे, लेकिन लगभग 30,000 लोग अस्पतालों और उनके घरों में क्वारंटाइन थे.

चीन में बूबोनिक प्लेग (2014)
चीन में प्लेग से एक व्यक्ति की मौत हो गई. वह अपने कुत्ते को कृंतक (एक तरह का जीव) खिला रहा था. वह कृंतक प्लेग से संक्रमित था. उस व्यक्ति के संपर्क में आए 150 लोगों को क्वारंटाइन किया गया था. कई जिलों को सील कर दिया गया था. हालांकि दो दिन बाद कोई नया केस न आने पर क्वारंटाइन खत्म कर दिया गया था.

लाइबेरिया और सिएरा लियोन में इबोला (2014)
लाइबेरिया को अगस्त 2014 में 10 दिनों के लिए बंद कर दिया गया था. यह फैसला स्थानीय लोगों द्वारा संदिग्ध रोगियों के लिए एक केंद्र पर छापा मारे जाने के बाद लिया गया था. मरीज घनी आबादी वाले एक स्लम में भाग गए, जिसके बाद सरकार ने इलाके को 21 दिनों के लिए आइसोलेट कर दिया था.

पड़ोसी सिएरा लियोन में सितंबर में तीन-दिवसीय क्वारंटाइन में सभी को घर पर रहने के लिए कहा गया. इस दौरान स्वास्थ्य कार्यकर्ता घर-घर जाकर, बीमार लोगों की तलाश करते और लोगों की मदद करते थे.

पढ़ें-मरीजों को जीवन देने वाली दुनिया की नर्सों को समर्पित है आज का दिन

Last Updated : May 12, 2020, 8:39 PM IST
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