गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के नायक तो थे ही, लेकिन बहुत कम लोगों को पता होगा कि वह एक आहार विशेषज्ञ भी थे. सत्याग्रह के रूप में उन्होंने जो रास्ता चुना था, उसके लिए मानसिक मजबूती के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य भी खासा महत्व रखता है. जाहिर है, ऐसे में अपने को बिना चुस्त-दुरुस्त रखे कोई भी सत्याग्रही लंबी दूरी तय नहीं कर सकता था. गांधी इसे बखूबी जानते थे. इसलिए वह अपने को फिट रखते थे.
अपने को फिट रखने के लिए खान-पान की आदतों पर नियंत्रण लगाना बहुत जरूरी होता है. गांधी को अपना लक्ष्य पता था. उन्हें लंबा रास्ता तय करना था. लिहाजा शुरू से उन्होंने भोजन की आदतों पर नियंत्रण लगा रखा था.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब गांधी को पूना के आगा खान पैलेस में कैद कर रखा गया था, उन्होंने अपने स्वास्थ्य संबंधी सुझावों को संकलित किया था. इसका अंग्रेजी अनुवाद सुशीला नायर ने किया था.
गांधीजी ने हमेशा हमारे प्राचीन धर्मग्रंथों की प्रशंसा की, जो एक स्वस्थ जीवन शैली पर मनुष्यों को शिक्षित करने के लिए उपलब्ध प्रचुर मात्रा में अंशों के कारण थे.
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गांधी ने योगी जैसा जीवन व्यतीत किया और ब्रह्मचर्य का पालन किया. यह आहार-नियंत्रण के माध्यम से इंद्रिय अंगों को नियंत्रित करने पर जोर देता है. उपवास भोजन को प्रतिबंधित करने का पर्याय नहीं है, लेकिन यह अस्वास्थ्यकर जंक से खुद को रोकने के बराबर है.
उन्होंने मानव शरीर को पृथ्वी, जल, रिक्ति, प्रकाश और वायु की संरचना के रूप में वर्णित किया. जिसमें पांच इंद्रियों की क्रिया शामिल हैं. यानी हाथ, पैर, मुंह, गुदा और जननांग और पांच इंद्रियां अर्थात त्वचा से स्पर्श की भावना, नाक से गंध, जीभ के माध्यम से स्वाद की, देखने की आंखों के माध्यम से और कानों के माध्यम से सुनने की. उन्होंने अपच को सभी प्रमुख बीमारियों का एकमात्र कारण बताया, जो तत्वों में विकार का एक लक्षण है और कई पारंपरिक उपचार का सुझाव दिया.
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गांधी ने एक सख्त शाकाहारी भोजन की आदतों का पालन किया. जिसमें अनाज, दाल, खाद्य जड़, कंद, हरी पत्तियां, ताजे और सूखे फल और दूध और दूध से बने उत्पाद शामिल थे.
उन्होंने हमेशा दवा लेने से इनकार कर दिया और अपने आहार में परिवर्तन के माध्यम से अपनी बीमारी को ठीक करने की कोशिश की. उनके भोजन की आदतें उनके उद्धरण में स्पष्ट थीं - 'भोजन को कर्तव्य के रूप में लिया जाना चाहिए-यहां तक कि दवा के रूप में-शरीर को बनाए रखने के लिए, जीभ की संतुष्टि के लिए कभी नहीं.'
उन्होंने हमेशा हर्बल चाय जैसे गर्म पेय पदार्थों के सेवन की वकालत की. और कॉफी लेकिन कम मात्रा में. वह शराब, तंबाकू और ड्रग्स जैसे नशे के पूरी तरह से खिलाफ थे, क्योंकि उनका मानना था कि वे हमारे शरीर में नियमित चयापचय गतिविधियों की तर्क क्षमता और असंतुलन को प्रभावित करते हैं.
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गांधीजी इस तथ्य पर विश्वास करते थे कि स्वस्थ मस्तिष्क स्वस्थ शरीर की ओर ले जाता है. उन्होंने कहा कि इसे प्राप्त करने का एकमात्र तरीका यह है कि दिमाग को कभी निष्क्रिय न रखें और समाधान के रूप में भगवान के नाम की पुनरावृत्ति का सुझाव दिया.
उन्होंने हमेशा सत्य और अहिसा के अनुयायियों को कामुक साहित्य और अश्लील बातचीत से दूर रहने के लिए याद दिलाया. इसी तरह उन्होंने कहा कि शरीर को योग और अन्य व्यायाम जैसे कार्यों में भी डूबा होना चाहिए क्योंकि सुस्ती बीमारी की ओर ले जाती है. उनका मानना था कि स्वास्थ्य वह धन है जो उनके अर्क में प्रकट होता है - 'यह स्वास्थ्य है जो वास्तविक धन है और ये कोई सोने और चांदी के टुकड़े नहीं हैं.'
लेखक- डॉ सीके अभिषेक (आंध्र विश्वविद्यालय)
(आलेख के विचार लेखक के निजी हैं. इनसे ईटीवी भारत का कोई संबंध नहीं है)