हैदराबाद : डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई की आज 101वीं वर्षगांठ है. डॉ साराभाई के नाम को भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम से अलग नहीं किया जा सकता. डॉ साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है.
- उनका जन्म 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद के एक समृद्ध जैन परिवार में हुआ. उनके पिता अंबालाल साराभाई एक संपन्न उद्योगपति थे और गुजरात में कई मिलों के मालिक थे.
- विक्रम साराभाई ने विभिन्न क्षेत्रों में बड़ी संख्या में संस्थानों की स्थापना की. साथ ही अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL) को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
प्रभाव
साराभाई अपने जीवन में महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर, जे कृष्णमूर्ति, मोतीलाल नेहरू, वी. श्रीनिवास शास्त्री, जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सी.एफ. एंड्रयूज और सीवी रमन जैसे महान पुरुषों से बहुत प्रभावित थे. उनके घर अक्सर इन व्यक्तित्वों का आना-जाना बना रहता था. उनके साथ बातचीत कर साराभाई को विभिन्न विषयों में रुचि आने लगी.
शिक्षा
विक्रम साराभाई की प्रारंभिक शिक्षा उनकी माता सरला साराभाई द्वारा मैडम मारिया मोन्टेसरी की तरह शुरू किए गए पारिवारिक स्कूल में हुई. गुजरात कॉलेज से इंटरमीडिएट तक विज्ञान की शिक्षा पूरी करने के बाद वे 1937 में कैम्ब्रिज (इंग्लैंड) चले गए जहां 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में ट्राइपोज डिग्री प्राप्त की.
अनुसंधान (रिसर्च)
उन्हें कॉस्मिक रेज के बारे में जानने में विशेष रुचि थी. उन्होंने इसी विषय पर शोध भी किया. उन्होंने पूना सेंट्रल मेट्रोलॉजिकल स्टेशन में कुछ समय के लिए कॉस्मिक रेज पर शोध किया और बाद में अपने शोध को जारी रखने के लिए वे कश्मीर चले गए.
- उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर में सीवी रमन के मार्गदर्शन में भी कॉस्मिक रेज पर शोध किया.
- कैम्ब्रिज से लौटने के कुछ समय बाद, उन्होंने अहमदाबाद में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की. यहां कॉस्मिक रेज और बाहरी अंतरिक्ष का अध्ययन होता था.
- 1955 में साराभाई ने कश्मीर के गुलमर्ग में भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला की एक शाखा स्थापित की.
उपलब्धियां
वे परमाणु ऊर्जा विभाग में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष भी रहे. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (आईएसआरओ) का विस्तार करके उन्होंने भारत को अंतरिक्ष युग में ले जाने के लिए अहम योगदान दिया.
साराभाई भारत में दवा उद्योग के भी अग्रणी थे. वह फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री के उन लोगों में से थे, जिन्होंने यह माना कि गुणवत्ता के उच्चतम मानकों को किसी भी कीमत पर बनाए रखा जाना चाहिए.
यह साराभाई ही थे जिन्होंने सबसे पहले फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री में इलेक्ट्रॉनिक डेटा प्रोसेसिंग और ऑपरेशंस रिसर्च टेक्निक्स को लागू किया था. उन्होंने भारत के फार्मास्युटिकल उद्योग को आत्मनिर्भर बनाने और देश में कई दवाओं और उपकरणों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की स्थापना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी. उन्होंने भारत जैसे विकासशील देश के लिए रूस स्पुतनिक के सफलतापूर्वक प्रक्षेपण के बाद अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर सरकार को राजी कर लिया. डॉ साराभाई के अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व पर यह वक्तव्य बल प्रदान करता है:
'कुछ लोग प्रगतिशील देशों में अंतरिक्ष क्रियाकलाप की प्रासंगिकता के बारे में प्रश्न चिन्ह लगाते हैं. हमें अपने लक्ष्य पर कोई संशय नहीं है. हम चन्द्र और उपग्रहों के अन्वेषण के क्षेत्र में विकसित देशों से होड़ का सपना नहीं देखते किंतु राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थपूर्ण भूमिका निभाने के लिए मानव समाज की कठिनाइयों के हल में अति-उन्नत तकनीक के प्रयोग में किसी से पीछे नहीं रहना चाहते.'
भारत के परमाणु विज्ञान कार्यक्रम के जनक डॉ होमी जहांगीर भाभा ने भारत के पहले राकेट प्रमोचन केंद्र की स्थापित करने में डॉ साराभाई का समर्थन किया. यह केंद्र मुख्य रूप से भूमध्य रेखा के लिए अपनी निकटता के कारण अरब सागर के तट पर तिरुवनंतपुरम के निकट थुम्बा में स्थापित किया गया था. अवसंरचना, कार्मिक, संचार लिंक, और लांच पैड की स्थापना में उल्लेखनीय प्रयास के बाद, सोडियम वाष्प पेलोड के साथ 21 नवंबर, 1963 को प्रारंभिक उड़ान को लांच किया गया था.
1966 में नासा के साथ डॉ. साराभाई की बातचीत के परिणाम स्वरूप, 1975 जुलाई से जुलाई 1976 के दौरान (जब डॉ साराभाई नहीं रहे) - उपग्रह निर्देशात्मक दूरदर्शन प्रयोग (साइट) शुरू किया गया था.
डॉ साराभाई ने भारतीय उपग्रह के संविरचन और प्रक्षेपण के लिए परियोजना शुरू कर दी थी. नतीजतन, पहले भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट को 1975 में रूसी कास्मोड्रम से कक्षा में रखा गया था.
संस्थानों की स्थापना
- उन्होंने सामाजिक और शिक्षा समस्याओं के अध्ययन के लिए 1963 में नेहरू फाउंडेशन फॉर डेवलपमेंट की स्थापना
- साइंस सेंटर, जो ज्ञान देने और रुचि पैदा करने, छात्रों-बच्चों के बीच प्रयोग को बढ़ावा देने और विज्ञान से संबंधित विषयों को बढ़ावा देने के लिए स्थापित
- केरल के थुम्बा में अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी केंद्र
- अहमदाबाद में प्रायोगिक उपग्रह संचार पृथ्वी केंद्र
- 1947 में अहमदाबाद टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज रिसर्च एसोसिएशन
- दर्पण एकेडमी फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स, अहमदाबाद (अपनी पत्नी के साथ)
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद
- फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफबीटीआर), कल्पक्कम
- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रोन प्रोजेक्ट, कोलकाता
- इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल), हैदराबाद
- यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल), बिहार
पुरस्कार
- शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार (1962)
- 1966 में पद्म भूषण
- 1972 में पद्म विभूषण (मरणोपरांत)
महत्तवपूर्ण पद
- भारतीय विज्ञान कांग्रेस के फिजिक्स सेक्शन के अध्यक्ष (1962)
- आई.ए.ई.ए., वेरिना के महा सम्मलेनाध्यक्ष (1970)
- उपाध्यक्ष, 'परमाणु ऊर्जा का शांतिपूर्ण उपयोग' पर चौथा संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (1971)
रुचियां और विचारधारा
साराभाई का व्यक्तित्व गहरे सांस्कृतिक हितों से जुड़ा था. संगीत, फोटोग्राफी, पुरातत्व, ललित कला आदि में उनकी रुचि थी.
उनका मानना था कि एक वैज्ञानिक को समाज की समस्याओं को समझना चाहिए. साराभाई का देश में विज्ञान शिक्षा की स्थिति से गहरा संबंध था जिसको सुधारने के लिए उन्होंने सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की थी.
वे, व्यक्ति को देखकर उसकी क्षमता को पहचान जाते थे और वे उनके साथ काम करने वाले सभी लोगों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत थे.