71वें गणतंत्र दिवस की तैयारियां जोरो पर हैं. इस मौके पर ईटीवी भारत ने 1968 बैच के आईएएस अधिकारी वी. के. अग्निहोत्री से खास बातचीत की. अग्निहोत्री 2007 से 2012 तक राज्यसभा के महासचिव भी रह चुके हैं. ईटीवी भारत से खास बातचीत में अग्निहोत्री ने संसद के अपने सफर के साथ-साथ संविधान की ताकत और कमजोरियों के बारे में बात की.
सवाल : जब हमने पहली बार संविधान लिखा तो हमारे मन में कई सपने, आशाएं और प्रेरणा थी. आपको क्या लगता है आज वह किस हद तक पूरे हो चुके हैं?
जवाब : मेरे हिसाब से संविधान कुछ आशाओं, प्रेरणा और दिशानिर्देशों का एक दस्तावेज है. यह इस बात को निर्धारित करता है कि संसद, न्याय पालिका और कार्य पालिका को कैसे कार्य करना चाहिए. हमारा संविधान दुनिया का सबसे लंबा संविधान है. इसमें 395 अनुच्छेद हैं. हालांकि इसमें कई बार बदलाव किये गए हैं लेकिन ये समाज और लोगों की मांगों को देखते हुए किए गए हैं.
सवाल : तो क्या इसीलिए हम भारतीय संविधान को एक जीवंत दस्तावेज कहते हैं क्योंकि यह समय की गतिशीलता के साथ बदलता रहता है ?
जवाब : हां, यह एक जीवंत दस्तावेज है क्योंकि इसमें संशोधन के लिए भी सख्त नियम बनाए गए हैं. यहां तक की भारतीय संविधान में कुछ ऐसे भी प्रावधान हैं, जिन्हें सरकार संविधान में संशोधन किये बिना ही संशोधित कर सकती है. जैसे की अनुच्छेद 370. लेकिन कई कुछ ऐसे भी प्रावधान हैं, जिन्हें हमें दोनों सदनों के सदस्यों की सहमति के साथ पारित कराना पड़ता है. हालांकि, हमारा संविधान ऑस्ट्रेलिया या स्विट्जरलैंड के जितना भी सख्त नहीं है, जहां किसी संशोधन के लिए जनमत संग्रह की जरूरत पड़ती हो.
सवाल : नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में करीब 60 से ज्यादा रिट याचिकाएं दाखिल की गईं हैं. इनमें से सबसे ज्यादा याचिकाओं में संविधान के समानता के अधिकार पर सवाल उठाए गए हैं. आप इसे कैसे देखते हैं?
जवाब : सबसे पहले तो ये कि नागरिकता संशोधन कानून संविधान का हिस्सा नहीं है. ये एक सामान्य कानून है, जिसे संशोधित किया गया है. इसमें संविधान में संशोधन करने जैसा कुछ भी नहीं है. लेकिन इसे दो कारणों से चुनौती दी गई है. पहला धर्मनिरपेक्षता के आधार पर और दूसरा समानता के कारण, क्योंकि संविधान में कहा गया है कि कानून की नजर में सभी एक बराबर हैं. लेकिन हमें ये देखना होगा कि अदालत इसमें क्या फैसला लेती है क्योंकि सरकार और दोनों सदनों ने इस पूरी प्रक्रिया का संज्ञान लिया है.
सवाल : आप अपने समय और वर्तमान में हो रही बहस की गुणवत्ता को कैसे देखते हैं? आप इन्हें कैसे अंक देना पसंद करेंगे ?
जवाब : यह एक बड़ी चिंता का विषय है. हमारे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी इस बात पर चिंता जाहिर करते आ रहे हैं. उनका कहना है कि वर्षों से बहस की गुणवत्ता में कमी आई है. ऐसा माना जाता है कि राज्यसभा में बुद्धिजीवियों के बीच चर्चा की जाती है, लेकिन अब उस बहस में पहले जैसी गुणवत्ता नहीं बची है. देखा जाए तो अब तकनीकी रूप से यह राज्यसभा नहीं रही है क्योंकि इससे पहले केवल राज्य के मूल निवासी को ही राज्यसभा में सदस्य बनाया जाता था. लेकिन अब जिस तरह से लोग चुने जाते हैं, उन्हें शासन और सामाजिक कार्यों का उतना बेहतर अनुभव नहीं होता है.
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सवाल : आपके अनुसार संविधान का सबसे मजबूत और कमजोर पहलू क्या है?
जवाब : संविधान के बारे में जो सबसे मजबूत बिंदु है, वही उसकी सबसे कमजोर बिंदु भी है. भारतीय संविधान शासन करने के सभी पहलुओं का ख्याल रखता है. इसलिए हमें किसी ओर तरह से सलाह या मार्गदर्शन लेने की जरूरत नहीं होती है. जब भी आपको कही भी संदेह हो आप सिर्फ संविधान को देखे और आपको सारे जवाब मिल जाते हैं. इसके अलावा मौलिक अधिकारों से जुड़े अनुच्छेद हमारे संविधान के एक और मजबूत बिंदु हैं. ऐसे कुछ मामले सामने आए हैं जिनमें न्यायालय ने यह निर्णय दिया है कि मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं किया जा सकता है. लेकिन 24वें संशोधन के बाद संसद ने कहा कि इन अधिकारों में भी संशोधन किया जा सकता है. और इसके बाद ये मामला सर्वोच्च न्यायालय में भेज दिया गया.
सवाल : हाल के दिनों में नए सिरे से जोर दिया गया है कि मौलिक कर्तव्यों पर भी बहुत जोर देने की जरूरत है. आप इसके बारे में क्या महसूस करते हैं?
जवाब : हां, मौलिक कर्तव्यों को संविधान में सूचीबद्ध किया गया है लेकिन उन्हें अनिवार्य नहीं बनाया गया है. जिस तरह से अब उनकी संरचना है, उन्हें अनिवार्य बनाना संभव नहीं है. मौलिक अधिकारों के सभी पहलुओं को अनिवार्य नहीं बनाया जा सकता है. विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति और पुनर्विचार होने पर इसे संशोधित किया जा सकता है. इसमें राष्ट्रीय ध्वज के सम्मान और सामाजिक समरसता जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं.
सवाल : हमारे पास राज्य की नीति के निर्देशक सिद्धांत हैं. क्या यह कुछ हद तक इस विचार के समान हैं?
जवाब : हां, क्योंकि नीति निर्देशक सिद्धांतों से हमें दिशानिर्देश मिलता रहा है. लेकिन उन निर्देशों में से कई सिद्धांत कानूनों में परिवर्तित हो गए हैं. जैसे शिक्षा के अधिकार का केवल निर्देश सिद्धांतों में उल्लेख किया गया था और बाद में यह एक कानून बन गया.
इस तरह यहां भी मौलिक कर्तव्यों के मार्गदर्शक सिद्धांत हैं, लेकिन या तो उन्हें कुछ विधेयकों द्वारा समर्थित होना चाहिए, या उन्हें सुव्यवस्थित और विशेष रूप से बनाया जाना चाहिए ताकि वे अधिक निष्पक्ष रूप से देखे जा सकें.
सवाल : आपके अनुसार भारतीय संविधान की प्रमुख चुनौतियां क्या हो सकती हैं?
जवाब : आपके सामने चुनौतियां हैं. अनुच्छेद 370 के लिए आंदोलन और नागरिकता अधिनियम में संशोधन से हमें संकेत मिल रहे हैं कि हमें किस तरह की बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन जैसा कि मैंने कहा कि यदि संसद संविधान की मूल संरचना का अवलोकन करे, तो भविष्य में कोई चुनौती नहीं होगी. संविधान बाइबिल, गीता, और कुरान का शासन है.