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केदारनाथ धाम के ऊपर बन रही झील की सच्चाई जानने के लिए भेजी गई वैज्ञानिकों की टीम

केदारनाथ घाम से ऊपर बन रही झील का निरीक्षण करने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने वैज्ञानिकों की एक टीम भेजा है. ऐसा दावा किया जा रहा है कि चोराबड़ी झील पुर्नजीवित हो रहा है. 2013 में इसी से भारी तबाही मची थी.

केदारनाथ धाम मंदिर
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Published : Jun 28, 2019, 3:12 PM IST

देहरादून: उत्तराखंड के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक केदारनाथ धाम से ऊपर बन रहे झील का निरीक्षण कर रहे हैं. ऐसा दावा किया जा रहा है कि साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा की मुख्य वजह रही चोराबाड़ी झील दोबारा पुर्नजीवित हो रही है. वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद सांई ने कहा कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए वैज्ञानिकों की टीम को जांच के लिए भेजा गया है.

बता दें कि डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को एसडीआरएफ, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था. डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बनी एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया था. जिसके बाद इस झील की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी गई.

जानकारी देते वैज्ञानिक

पढ़ें: चोपता में प्रशासन की कार्रवाई पर यूकेडी कार्यकर्ताओं ने मंत्री को सौंपा ज्ञापन

वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद सांई ने कहा कि इस मामले को गंभीरता से लेते वैज्ञानिकों की एक टीम को जांच के लिए भेजा गया है. साथ ही कहा कि अभी इस झील की ज्यादा जानकारी नहीं हैं. लेकिन कुछ दिन में ये टीम वापस आ जायेगी, जिसके बाद झील की जानकारी मिल पाएगी.

डॉ. कालाचांद ने कहा कि अगर ये झील अगर चोराबाड़ी झील हुई या फिर कोई अन्य झील भी हुई तो जांच के लिए दूसरी टीम को भी भेजा जाएगा. साथ ही कहा कि इस तरह के झील पिछले 5-6 सालों से छोटी-छोटी जगहों पर चोराबड़ी झील के नीचे बनी हुई है.

देहरादून: उत्तराखंड के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक केदारनाथ धाम से ऊपर बन रहे झील का निरीक्षण कर रहे हैं. ऐसा दावा किया जा रहा है कि साल 2013 में केदारनाथ में आई आपदा की मुख्य वजह रही चोराबाड़ी झील दोबारा पुर्नजीवित हो रही है. वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद सांई ने कहा कि इस मामले को गंभीरता से लेते हुए वैज्ञानिकों की टीम को जांच के लिए भेजा गया है.

बता दें कि डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को एसडीआरएफ, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था. डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बनी एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया था. जिसके बाद इस झील की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी गई.

जानकारी देते वैज्ञानिक

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वहीं, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ. कालाचांद सांई ने कहा कि इस मामले को गंभीरता से लेते वैज्ञानिकों की एक टीम को जांच के लिए भेजा गया है. साथ ही कहा कि अभी इस झील की ज्यादा जानकारी नहीं हैं. लेकिन कुछ दिन में ये टीम वापस आ जायेगी, जिसके बाद झील की जानकारी मिल पाएगी.

डॉ. कालाचांद ने कहा कि अगर ये झील अगर चोराबाड़ी झील हुई या फिर कोई अन्य झील भी हुई तो जांच के लिए दूसरी टीम को भी भेजा जाएगा. साथ ही कहा कि इस तरह के झील पिछले 5-6 सालों से छोटी-छोटी जगहों पर चोराबड़ी झील के नीचे बनी हुई है.

Intro:साल 2013 में केदारनाथ धाम में आयी आपदा के बाद तहस-नहस हो गई केदारघाटी को यू तो फिर से खड़ा कर दिया गया है। हालांकि केदारनाथ में आयी आपदा के मुख्य वजह वाले  चोराबाड़ी झील को बीते दिनों दोबारा पुर्नजीवित होने का दावा किया गया था। जिसके बाद केदारनाथ घाट से ऊपर बन रहे झील का निरीक्षण करने वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक पहुचे है। और केदार घाटी से ऊपर बन रहे झील का निरीक्षण कर रहे है। 


Body:गौर हो कि डॉक्टरों की टीम ने 16 जून को राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस और जिला प्रशासन की एक टीम के साथ चोराबाड़ी झील का दौरा किया था, और डॉक्टरों ने केदारनाथ धाम से करीब 5 किलोमीटर ऊपर ग्लेशियर में बने एक झील को चोराबाड़ी झील होने का दावा किया गया था। जिसके बाद इस झील की जानकारी वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों को दी गयी थी। और उस दौरान वह झील लगभग 250 मीटर लंबी और 150 मीटर चौड़ी बताई जा रही थी।

वही वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के निदेशक डॉ कालाचाँद साँई ने बताया कि इस मामले को गंभीरता से लेते एक डॉक्टरों की टीम भेजी गई है। जो इस झील की जांच कर रही हैं। साथ ही बताया कि जो ये झील बना है, इसकी अभी जानकारी नही आ पाई हैं, लेकिन कुछ दिन में ये टीम वापिस आ जायेगी, उसके बाद ही झील की जानकारी मिल पाएगी और अगर ऐसी जानकारी मिली कि ये झील अगर चौराबाड़ी हुई या फिर कोई अन्य झील बन रही होगी तो उसके जांच के लिए दूसरी टीम भेजी जाएगी। साथ ही कहा इस तरह के झील पिछले पांच- छ सालों से छोटी छोटी कई जगहों पर चौड़ाबड़ी झील के नीचे बनी हुई है। क्योकि जब ग्लेशियर ज्यादा पिघलती है तो इन छोटी-छोटी झीलों में पानी ज्यादा होती है और जब ग्लेशियर कम पिघलते है तो इन झीलों में पानी कम होती हैं। 


Conclusion:
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