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अयोध्या में है अनोखा वृक्ष, जिसके तने पर स्वत: उभरता है राम का नाम

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में एक अजूबा वृक्ष है, जिसमें राम नाम खुद ही उभरता है. इस वृक्ष पर किसी व्यक्ति ने राम का नाम नहीं लिखा है, फिर भी वृक्ष के तने पर राम का नाम साफ दिखाई देता है. हालांकि वैज्ञानिक दृष्टि से इस वृक्ष पर शोध चल रहा है.

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Published : Mar 15, 2020, 12:01 AM IST

राम नामी वृक्ष
राम नामी वृक्ष

लखनऊ : राम नगरी यानी अयोध्या को यूं ही नहीं धर्म और आस्था का केंद्र कहा जाता. यहां कई ऐसे भौतिक साक्ष्य हैं, जो इसे धार्मिक नगरी साबित करते हैं. ईटीवी भारत आपको अयोध्या के एक ऐसे ही जीते जागते साक्ष्य से रूबरू करा रहा है, जिसे आपने शायद ही कभी देखा या सुना होगा. दरअसल, राम नगरी में एक ऐसा वृक्ष मौजूद है, जिसके तने पर स्वत: ही राम नाम लिख जाता है.

कदंब प्रजाति का है वृक्ष
यह वृक्ष आज तक शोध का विषय बना हुआ है. बताया जाता है कि यह वृक्ष कदंब प्रजाति का है. इस वृक्ष से करीब 100 मीटर की दूरी पर ऐसा ही एक और वृक्ष था, जो सूख गया. इसके बाद यह वृक्ष खुद ही उग गया. इस रामनामी वृक्ष के तने पर खुद राम नाम उभर रहा है. मौजूदा समय में इसकी पत्तियां झड़ चुकी हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो इस वृक्ष की पत्तियों पर भी राम नाम लिखा रहता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इस वृक्ष पर नहीं बैठते बंदर
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस इलाके में बंदर आते हैं, लेकिन वह राम नामी वृक्ष पर नहीं बैठते. यह वृक्ष राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 के पास स्थित अयोध्या के तकपुरा गांव में है. जब लोगों को इस वृक्ष की जानकारी हुई, तब से यहां लगातार प्रतिदिन सफाई होती है और सुबह पूजा की जाती है. रामनामी वृक्ष के आसपास सफाई करने वाली स्थानीय महिला की मानें तो यह वृक्ष लंबे समय से इस गांव में है. पिछली कई पुस्तों से लोग इस पेड़ को देखते आ रहे हैं. इस गांव में नव विवाहित जोड़े यहां मत्था टेकने आते हैं. मान्यता है कि यह वही स्थल है, जहां से राम राज्य की राजधानी की परिधि शुरू होती थी. वाल्मीकि रामायण की मानें तो राम नामी वृक्ष ने अयोध्या की पुनर्स्थापना में मील का पत्थर का काम किया था.

क्या है रामनामी वृक्ष का महत्व?
शास्त्रों में लिखित तथ्यों पर गौर करें तो भगवान श्री राम के महाप्रयाण के बाद त्रेता युगीन अयोध्या उजड़ सी गई थी. इसकी पूरब पुनर्स्थापना ईसा से लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने की थी. बताया जाता है कि शिकार करने निकले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या पहुंचे और वह थकान के कारण नदी के किनारे ठहरे थे. अचानक सुस्ती के कारण उन्हें नींद आ गई. स्वप्न में तीर्थराज प्रयाग ने अयोध्या में राम की जन्मभूमि चिन्हित करने का निर्देश दिया. महाराजा विक्रमादित्य ने तीर्थराज प्रयाग से प्रश्न किया कि अयोध्या उजड़ सी गई है और उसकी सीमा का पता कैसे लगाया जाएगा. इस पर तीर्थराज ने राम जन्मभूमि स्थल की जो स्थिति बताई वह आज भी ठीक उसी स्थल पर सिद्ध हुई है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है.

धर्म नगरी में है रामनामी पेड़
स्थानीय लोगों का कहना है कि शायद इसी वजह से बंदर रामनामी पेड़ पर नहीं बैठते हैं. रामनामी पेड़ धर्म नगरी में है. भौतिक साक्ष्य अयोध्या राम ही नहीं जैन धर्म के 5 तीर्थंकरों की जन्मस्थली भी रही है. उस समय इस नगर को साकेत के नाम से जाना जाता था. यह प्राचीन स्थल युगों से आस्था का केंद्र रहा है. रामनामी वृक्ष भौतिक रूप से करोड़ों वर्ष बाद वर्तमान में भी राम की मौजूदगी का आभास करा रहा है.

पढ़ें- असम: उदलगुरी जिले में टाटा डीआई की पेड़ से हुई टक्कर, 5लोगों की हुई मौत

अवध विश्वविद्यालय रामनामी वृक्ष पर कर रहा शोध
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिकों की मानें तो राम नगरी में रामनामी वृक्ष पर उभर रहा राम नाम प्राकृतिक है. यह शोध का नया विषय है. विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सिद्धार्थ शुक्ला का कहना है कि विभाग इस विषय पर शोध कर रहा है. फिलहाल अभी तक इस प्राकृतिक अजूबे का रहस्य स्पष्ट नहीं हो पाया है.

राम नगरी में राम नवमी वृक्ष लंबे समय से है, लेकिन यह आज भी शोध का विषय है. आस्था का पक्ष प्रबल है. वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो वनस्पति वैज्ञानिक भी अजूबे के विषय में कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं. फिलहाल कुछ भी हो वाल्मीकि रामायण, रामनामी वृक्ष और मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट का फैसले का तुलनात्मक अध्ययन करें तो जिस राम जन्म भूमि को सिद्ध करने में 7 दशक का समय लग गया, उसकी स्थिति पहले से ही तय थी.

लखनऊ : राम नगरी यानी अयोध्या को यूं ही नहीं धर्म और आस्था का केंद्र कहा जाता. यहां कई ऐसे भौतिक साक्ष्य हैं, जो इसे धार्मिक नगरी साबित करते हैं. ईटीवी भारत आपको अयोध्या के एक ऐसे ही जीते जागते साक्ष्य से रूबरू करा रहा है, जिसे आपने शायद ही कभी देखा या सुना होगा. दरअसल, राम नगरी में एक ऐसा वृक्ष मौजूद है, जिसके तने पर स्वत: ही राम नाम लिख जाता है.

कदंब प्रजाति का है वृक्ष
यह वृक्ष आज तक शोध का विषय बना हुआ है. बताया जाता है कि यह वृक्ष कदंब प्रजाति का है. इस वृक्ष से करीब 100 मीटर की दूरी पर ऐसा ही एक और वृक्ष था, जो सूख गया. इसके बाद यह वृक्ष खुद ही उग गया. इस रामनामी वृक्ष के तने पर खुद राम नाम उभर रहा है. मौजूदा समय में इसकी पत्तियां झड़ चुकी हैं. स्थानीय लोगों की मानें तो इस वृक्ष की पत्तियों पर भी राम नाम लिखा रहता है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इस वृक्ष पर नहीं बैठते बंदर
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस इलाके में बंदर आते हैं, लेकिन वह राम नामी वृक्ष पर नहीं बैठते. यह वृक्ष राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 27 के पास स्थित अयोध्या के तकपुरा गांव में है. जब लोगों को इस वृक्ष की जानकारी हुई, तब से यहां लगातार प्रतिदिन सफाई होती है और सुबह पूजा की जाती है. रामनामी वृक्ष के आसपास सफाई करने वाली स्थानीय महिला की मानें तो यह वृक्ष लंबे समय से इस गांव में है. पिछली कई पुस्तों से लोग इस पेड़ को देखते आ रहे हैं. इस गांव में नव विवाहित जोड़े यहां मत्था टेकने आते हैं. मान्यता है कि यह वही स्थल है, जहां से राम राज्य की राजधानी की परिधि शुरू होती थी. वाल्मीकि रामायण की मानें तो राम नामी वृक्ष ने अयोध्या की पुनर्स्थापना में मील का पत्थर का काम किया था.

क्या है रामनामी वृक्ष का महत्व?
शास्त्रों में लिखित तथ्यों पर गौर करें तो भगवान श्री राम के महाप्रयाण के बाद त्रेता युगीन अयोध्या उजड़ सी गई थी. इसकी पूरब पुनर्स्थापना ईसा से लगभग 100 वर्ष पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने की थी. बताया जाता है कि शिकार करने निकले उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या पहुंचे और वह थकान के कारण नदी के किनारे ठहरे थे. अचानक सुस्ती के कारण उन्हें नींद आ गई. स्वप्न में तीर्थराज प्रयाग ने अयोध्या में राम की जन्मभूमि चिन्हित करने का निर्देश दिया. महाराजा विक्रमादित्य ने तीर्थराज प्रयाग से प्रश्न किया कि अयोध्या उजड़ सी गई है और उसकी सीमा का पता कैसे लगाया जाएगा. इस पर तीर्थराज ने राम जन्मभूमि स्थल की जो स्थिति बताई वह आज भी ठीक उसी स्थल पर सिद्ध हुई है. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है.

धर्म नगरी में है रामनामी पेड़
स्थानीय लोगों का कहना है कि शायद इसी वजह से बंदर रामनामी पेड़ पर नहीं बैठते हैं. रामनामी पेड़ धर्म नगरी में है. भौतिक साक्ष्य अयोध्या राम ही नहीं जैन धर्म के 5 तीर्थंकरों की जन्मस्थली भी रही है. उस समय इस नगर को साकेत के नाम से जाना जाता था. यह प्राचीन स्थल युगों से आस्था का केंद्र रहा है. रामनामी वृक्ष भौतिक रूप से करोड़ों वर्ष बाद वर्तमान में भी राम की मौजूदगी का आभास करा रहा है.

पढ़ें- असम: उदलगुरी जिले में टाटा डीआई की पेड़ से हुई टक्कर, 5लोगों की हुई मौत

अवध विश्वविद्यालय रामनामी वृक्ष पर कर रहा शोध
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिकों की मानें तो राम नगरी में रामनामी वृक्ष पर उभर रहा राम नाम प्राकृतिक है. यह शोध का नया विषय है. विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर सिद्धार्थ शुक्ला का कहना है कि विभाग इस विषय पर शोध कर रहा है. फिलहाल अभी तक इस प्राकृतिक अजूबे का रहस्य स्पष्ट नहीं हो पाया है.

राम नगरी में राम नवमी वृक्ष लंबे समय से है, लेकिन यह आज भी शोध का विषय है. आस्था का पक्ष प्रबल है. वहीं वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो वनस्पति वैज्ञानिक भी अजूबे के विषय में कोई तथ्य प्रस्तुत नहीं कर पा रहे हैं. फिलहाल कुछ भी हो वाल्मीकि रामायण, रामनामी वृक्ष और मौजूदा समय में सुप्रीम कोर्ट का फैसले का तुलनात्मक अध्ययन करें तो जिस राम जन्म भूमि को सिद्ध करने में 7 दशक का समय लग गया, उसकी स्थिति पहले से ही तय थी.

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