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आत्मनिर्भर बिहार या 10 लाख रोजगार, किस पर करेंगे युवा ऐतबार!

बिहार विधानसभा चुनाव में जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आत्मनिर्भर बिहार का नारा लिए प्रचार कर रहे हैं. वहीं तेजस्वी यादव ने 10 नौकरियों का वादा किया है. यह साफ है कि सबकी नजरें बिहार के युवाओं पर लगी हुई हैं. इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि इस चुनाव में युवाओं के मत ही जीत और हार तय करेंगे.

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Published : Oct 20, 2020, 6:36 PM IST

पटना : इस बार बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास है. पहला जहां संक्रमण काल में पहली बार देश में आम चुनाव हो रहे हैं. जबकि, दूसरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार अपने चौथे कार्यकाल के लिए जनता के बीच हैं. इन सब के बीच जहां एनडीए स्किल डेवलपमेंट के जरिए आत्मनिर्भर बिहार का नारा दे रही है. वहीं, महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव पहली कैबिनेट में ही 10 लाख स्थायी नौकरी का वादा कर रहे हैं. दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बिहार के युवा इस बार आत्मनिर्भर बिहार के साथ चलने को तैयार होगें या फिर तेजस्वी के 10 लाख नौकरी के वादे पर ऐतबार करेंगे.

मिलेगा रोजगार या फिर केवल चुनावी शिगूफा!
बिहार का चुनाव हमेशा से सबसे ज्यादा रोचक और कई मायनों में अलग रहता है. यही वजह है कि बिहार के चुनाव पर पूरे देशभर की निगाहें टिकी रहती हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो देशभर में बिहार में सबसे अधिक बेरोजगार युवा हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में युवा मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं. युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एनडीए गठबंधन और महागठबंधन ने वादों की बौछार कर दी है. एक तरफ जहां नीतीश कुमार युवाओं को स्किल्ड बनाकर उन्हें नौकरी दिलाने की बात कर रहे हैं. वहीं, तेजस्वी ने युवाओं की सरकार और 10 लाख नौकरी देने का वादा कर नया दांव खेल दिया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'युवा मतदाताओं के कारण चुनाव परिणाम पर असर'
इस मामले पर सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार का कहना है कि बिहार में उद्योग धंधों की कमी की वजह से रोजगार हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. यही वजह है कि प्रदेश की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में राज्य के बाहर निवास करती है. उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद बिहार वापस लौटने वाले मजदूरों के आंकड़े ने सब कुछ उजागर कर दिया है कि कितनी बड़ी संख्या में बिहार के लोग अन्य राज्यों में नौकरी या फिर मजदूरी कर रहे हैं. संजय कुमार ने कहा कि आत्मनिर्भर बनकर अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेचना इतना आसान नहीं और बिहार जैसे राज्य में यह काम काफी मुश्किल है. ऐसे में जो भी दल सीधे तौर पर नौकरी देने की बात करेगा. वही युवा मतदाताओं के वोट को अपने पक्ष में करने में सफल रहने वाला है.

'बिहार के युवा दूसरों को देंगे रोजगार'
आत्मनिर्भर बिहार के चुनावी स्लोगन के दम पर बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के साथ उतरे भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता निखिल आनंद का कहना है कि एनडीए सरकार के कारण बिहार में बड़ी तब्दीली हुई है. आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बीते 15 साल में बिहार के आधारभूत संरचना के विकास पर तेजी से काम हुआ है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं. भाजपा नेता ने आगे कहा कि हम युवाओं को स्किल डेवलपमेंट के जरिए आत्मनिर्भर बना रहे हैं. आने वाले समय में प्रदेश के युवा सैकड़ों लोगों को रोजगार भी देंगे.

'सरकारी नौकरियों में अवसर हुए कम'
आंकड़ों की बात करें तो पिछले 10 साल में बिहार में सरकारी नौकरियों के अवसर लगातार कम हुए हैं. शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सरकार ने नियमित शिक्षकों के पद समाप्त कर दिए हैं. यही नहीं शिक्षा विभाग में ग्रुप सी और डी के पदों पर भी नियमित बहाली को खत्म कर दिया गया है. लोगों को संविदा पर रखा जा रहा है. बता दें कि, प्रदेश में संविदा कर्मियों की संख्या बढ़कर लगभग 10 लाख हो चुकी है.

तेजस्वी ने खेला है बड़ा दांव
10 लाख संविदा कर्मियों के मुद्दा को ही राजद ने चुनावी मुद्दा बनाया है. मिल रही जानकारी के मुताबिक राजद नये रोजगार के सृजन की बात नहीं, बल्कि बिहार में संविदा पर काम कर रहे 10 लाख कर्मियों की स्थायी नौकरी करने की बात कर रहे हैं. हालांकि, तेजस्वी अपने चुनावी सभाओं में 10 लाख नए रोजगार देने की बात भी कर रहे हैं. बता दें कि राजद ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में चार लाख नियोजित शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देने की बात भी कही है. इस वजह से शिक्षक वर्ग के लोग भी खासे उत्साहित नजर आ रहे हैं. इन सब के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या फिर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सरकारी नौकरी देने के सवाल पर अपनी चुप्पी साधे हुए हैं.

गौरतलब है कि, दोनों पार्टियों के नेता के वादों को लेकर अपने-अपने विरोधी पर हमला बोल रहे हैं. बता दें कि, राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादा करना कोई नई बात नहीं है. यह प्रारंभ से ही होता आया है. बहरहाल, प्रदेश की राजनीति में स्किल्ड युवा का नारा या फिर 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा के बीच बिहार के युवा किस करवट अपना रुख बदलेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा.

पटना : इस बार बिहार विधानसभा चुनाव कई मायनों में खास है. पहला जहां संक्रमण काल में पहली बार देश में आम चुनाव हो रहे हैं. जबकि, दूसरा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार अपने चौथे कार्यकाल के लिए जनता के बीच हैं. इन सब के बीच जहां एनडीए स्किल डेवलपमेंट के जरिए आत्मनिर्भर बिहार का नारा दे रही है. वहीं, महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव पहली कैबिनेट में ही 10 लाख स्थायी नौकरी का वादा कर रहे हैं. दोनों के चुनावी वादों से साफ है कि दोनों पार्टियों की नजर बेरोजगार युवाओं को आकर्षित करने की है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि बिहार के युवा इस बार आत्मनिर्भर बिहार के साथ चलने को तैयार होगें या फिर तेजस्वी के 10 लाख नौकरी के वादे पर ऐतबार करेंगे.

मिलेगा रोजगार या फिर केवल चुनावी शिगूफा!
बिहार का चुनाव हमेशा से सबसे ज्यादा रोचक और कई मायनों में अलग रहता है. यही वजह है कि बिहार के चुनाव पर पूरे देशभर की निगाहें टिकी रहती हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें तो देशभर में बिहार में सबसे अधिक बेरोजगार युवा हैं. ऐसे में इस बार के चुनाव में युवा मतदाता निर्णायक साबित हो सकते हैं. युवा मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए एनडीए गठबंधन और महागठबंधन ने वादों की बौछार कर दी है. एक तरफ जहां नीतीश कुमार युवाओं को स्किल्ड बनाकर उन्हें नौकरी दिलाने की बात कर रहे हैं. वहीं, तेजस्वी ने युवाओं की सरकार और 10 लाख नौकरी देने का वादा कर नया दांव खेल दिया है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'युवा मतदाताओं के कारण चुनाव परिणाम पर असर'
इस मामले पर सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक संजय कुमार का कहना है कि बिहार में उद्योग धंधों की कमी की वजह से रोजगार हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है. यही वजह है कि प्रदेश की बड़ी आबादी रोजगार की तलाश में राज्य के बाहर निवास करती है. उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमण के बाद बिहार वापस लौटने वाले मजदूरों के आंकड़े ने सब कुछ उजागर कर दिया है कि कितनी बड़ी संख्या में बिहार के लोग अन्य राज्यों में नौकरी या फिर मजदूरी कर रहे हैं. संजय कुमार ने कहा कि आत्मनिर्भर बनकर अपने प्रोडक्ट को बाजार में बेचना इतना आसान नहीं और बिहार जैसे राज्य में यह काम काफी मुश्किल है. ऐसे में जो भी दल सीधे तौर पर नौकरी देने की बात करेगा. वही युवा मतदाताओं के वोट को अपने पक्ष में करने में सफल रहने वाला है.

'बिहार के युवा दूसरों को देंगे रोजगार'
आत्मनिर्भर बिहार के चुनावी स्लोगन के दम पर बिहार चुनाव में नीतीश कुमार के साथ उतरे भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता निखिल आनंद का कहना है कि एनडीए सरकार के कारण बिहार में बड़ी तब्दीली हुई है. आंकड़ों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि बीते 15 साल में बिहार के आधारभूत संरचना के विकास पर तेजी से काम हुआ है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं. भाजपा नेता ने आगे कहा कि हम युवाओं को स्किल डेवलपमेंट के जरिए आत्मनिर्भर बना रहे हैं. आने वाले समय में प्रदेश के युवा सैकड़ों लोगों को रोजगार भी देंगे.

'सरकारी नौकरियों में अवसर हुए कम'
आंकड़ों की बात करें तो पिछले 10 साल में बिहार में सरकारी नौकरियों के अवसर लगातार कम हुए हैं. शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सरकार ने नियमित शिक्षकों के पद समाप्त कर दिए हैं. यही नहीं शिक्षा विभाग में ग्रुप सी और डी के पदों पर भी नियमित बहाली को खत्म कर दिया गया है. लोगों को संविदा पर रखा जा रहा है. बता दें कि, प्रदेश में संविदा कर्मियों की संख्या बढ़कर लगभग 10 लाख हो चुकी है.

तेजस्वी ने खेला है बड़ा दांव
10 लाख संविदा कर्मियों के मुद्दा को ही राजद ने चुनावी मुद्दा बनाया है. मिल रही जानकारी के मुताबिक राजद नये रोजगार के सृजन की बात नहीं, बल्कि बिहार में संविदा पर काम कर रहे 10 लाख कर्मियों की स्थायी नौकरी करने की बात कर रहे हैं. हालांकि, तेजस्वी अपने चुनावी सभाओं में 10 लाख नए रोजगार देने की बात भी कर रहे हैं. बता दें कि राजद ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में चार लाख नियोजित शिक्षकों को समान काम के लिए समान वेतन देने की बात भी कही है. इस वजह से शिक्षक वर्ग के लोग भी खासे उत्साहित नजर आ रहे हैं. इन सब के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या फिर उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी सरकारी नौकरी देने के सवाल पर अपनी चुप्पी साधे हुए हैं.

गौरतलब है कि, दोनों पार्टियों के नेता के वादों को लेकर अपने-अपने विरोधी पर हमला बोल रहे हैं. बता दें कि, राजनीतिक दलों का चुनाव से पहले घोषणाएं और वादा करना कोई नई बात नहीं है. यह प्रारंभ से ही होता आया है. बहरहाल, प्रदेश की राजनीति में स्किल्ड युवा का नारा या फिर 10 लाख सरकारी नौकरी देने का वादा के बीच बिहार के युवा किस करवट अपना रुख बदलेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा.

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