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जमशेदपुर में आदिवासी महिलाओं ने फूल-पत्तों से बनाई झारखंडी राखी

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Published : Jul 22, 2020, 1:52 PM IST

झारखंड की आदिवासी महिलाओं ने अपने हाथों से दाल, फटे-पुराने कपड़े, बेकार हो चुके ताड़-खजूर से पत्तों के अलावा घास और जूट से गूंथकर झारखंडी राखी का निर्माण किया है. यह राखी ना सिर्फ अनोखी है बल्कि आम राखियों के मुकाबले सस्ती भी है.

झारखंडी राखी
झारखंडी राखी

जमशेदपुर: रक्षाबंधन तीन अगस्त को है. बहनों ने राखी की तैयारी शुरू कर दी है. बाजारों में तरह-तरह की राखियां देखी जा रही है. सभी राखी किसी न किसी ब्रांड की है. इन सब के बीच जमशेदपुर की कला संस्कृति संस्था 'कला मंदिर' झारखंडी राखी बना रहा है. यह राखी स्थानीय आदिवासी माहिलाओं के हाथों से निर्मित है. इन राखियों को दाल, कटे कपड़े, बेकार हो चुके कुछ ताड़-खजूर के पत्तों के अलावा गोंधा घास और जूट से तैयार किया जा रहा है.

यह राखी ना केवल सस्ती है बल्कि अनोखी भी है. फिलहाल इन्हें बेंगलुरु की संस्था ने 10,000 राखी बनाने का ऑर्डर दिया है. यहां बन रही राखियों की कीमत 5 रुपए से 40 चालीस रुपए तक रखी गई है. जो लोग आराम से खरीद सकते हैं. इन राखियों को बेचने के लिए सोशल मिडिया प्लेटफार्म का उपयोग किया जा रहा है. वहीं कुछ जान पहचान वाले सीधे कार्यालय में आकर राखी खरीद रहे हैं. राखी बना रही महिलाओं का कहना है कि एक राखी बनाने में कम से कम दो मिनट लगते हैं और पूरे दिन में 500 के करीब राखियां बना लेते हैं.

कला मंदिर के संस्थापक और अध्यक्ष अमिताभ घोष का कहना है कि लॉकडाउन के कारण कई कलाकार बेरोजगार हो गए हैं. खास कर इसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिला है. उसी को ध्यान में रखते हुए उन्हे आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से यह राखी बनाए जा रहे हैं. इन राखियों की मांग काफी है. यहां से करीब 10,000 राखी जमशेदपुर के सोनारी, आर्मी कैप, रामगढ, दीपाटोली और नामकुम आर्मी भेजे जाएंगे.

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी सखी मंडल के माध्यम से 5 रुपए प्रति राखी बेचने की तैयारी की जा रही है. इसमें राखी बेचने वाली माहिलाओं को एक रूपया प्रति राखी कमीशन भी दिया जाएगा. लॉकडाउन के समय कई कंपनियों की हालात खराब होते जा रही है. वैसे वक्त में कला संस्कृति की संस्था 'कला मंदिर' ने झारखंड के कला संस्कृति को पहचान के साथ-साथ, यहां के महिलाओं को रोजगार देकर आत्मनिर्भर करने का काम किया है, जो निश्चित ही काबिल-ए-तारीफ है.

जमशेदपुर: रक्षाबंधन तीन अगस्त को है. बहनों ने राखी की तैयारी शुरू कर दी है. बाजारों में तरह-तरह की राखियां देखी जा रही है. सभी राखी किसी न किसी ब्रांड की है. इन सब के बीच जमशेदपुर की कला संस्कृति संस्था 'कला मंदिर' झारखंडी राखी बना रहा है. यह राखी स्थानीय आदिवासी माहिलाओं के हाथों से निर्मित है. इन राखियों को दाल, कटे कपड़े, बेकार हो चुके कुछ ताड़-खजूर के पत्तों के अलावा गोंधा घास और जूट से तैयार किया जा रहा है.

यह राखी ना केवल सस्ती है बल्कि अनोखी भी है. फिलहाल इन्हें बेंगलुरु की संस्था ने 10,000 राखी बनाने का ऑर्डर दिया है. यहां बन रही राखियों की कीमत 5 रुपए से 40 चालीस रुपए तक रखी गई है. जो लोग आराम से खरीद सकते हैं. इन राखियों को बेचने के लिए सोशल मिडिया प्लेटफार्म का उपयोग किया जा रहा है. वहीं कुछ जान पहचान वाले सीधे कार्यालय में आकर राखी खरीद रहे हैं. राखी बना रही महिलाओं का कहना है कि एक राखी बनाने में कम से कम दो मिनट लगते हैं और पूरे दिन में 500 के करीब राखियां बना लेते हैं.

कला मंदिर के संस्थापक और अध्यक्ष अमिताभ घोष का कहना है कि लॉकडाउन के कारण कई कलाकार बेरोजगार हो गए हैं. खास कर इसका सबसे ज्यादा असर ग्रामीण क्षेत्रों में देखने को मिला है. उसी को ध्यान में रखते हुए उन्हे आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से यह राखी बनाए जा रहे हैं. इन राखियों की मांग काफी है. यहां से करीब 10,000 राखी जमशेदपुर के सोनारी, आर्मी कैप, रामगढ, दीपाटोली और नामकुम आर्मी भेजे जाएंगे.

इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी सखी मंडल के माध्यम से 5 रुपए प्रति राखी बेचने की तैयारी की जा रही है. इसमें राखी बेचने वाली माहिलाओं को एक रूपया प्रति राखी कमीशन भी दिया जाएगा. लॉकडाउन के समय कई कंपनियों की हालात खराब होते जा रही है. वैसे वक्त में कला संस्कृति की संस्था 'कला मंदिर' ने झारखंड के कला संस्कृति को पहचान के साथ-साथ, यहां के महिलाओं को रोजगार देकर आत्मनिर्भर करने का काम किया है, जो निश्चित ही काबिल-ए-तारीफ है.

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