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कोरोना महामारी के दौर में गरीबों के सामने पर्याप्त पोषण बड़ी चुनौती

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Published : Sep 6, 2020, 1:30 PM IST

भारत में बच्चों एवं महिलाओं के लिए पर्याप्त पोषण सुनिश्चित करने के लिए कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. लेकिन आज भी करोड़ों बच्चों व महिलाओं को पर्याप्त आहार नहीं मिल पा रहा है. पहले से ही असहाय परिवारों की आजीविका कोविड-19 के बाद बर्बाद हो गई है, करोड़ों भारतीयों पर भूख का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. विस्तार से पढ़ें यह रिपोर्ट...

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पर्याप्त पोषण बड़ी चुनौती

हैदराबाद : आज के बच्चों को कल के कुशल मानव संसाधनों की शक्ल देने के लिए संतुलित आहार का सबसे अधिक महत्व है. लेकिन, वैश्विक पोषण सूचकांकों पर भारत लगातार निचले स्तर पर बना हुआ है. केंद्र सरकार ने सभी बच्चों एवं महिलाओं को पूरी तरह से पर्याप्त पोषण मिलना सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2018 के मार्च में पोषण अभियान (नेशनल न्यूट्रीशन मिशन) शुरू किया. जब से यह कार्यक्रम शुरू हुआ है, सितंबर को 'राष्ट्रीय पोषण माह' के रूप में मनाया जाता है. प्रधानमंत्री ने अपने 'मन की बात' में कहा कि सरकार इस साल भी उस आदर्श का पालन करेगी.

इसी बीच, भारतीय चिकित्सा एवं शोध परिषद (आईसीएमआर) ने आहार से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसमें जौ, बाजरा जैसे मोटे अनाज, फलिया, डेयरी उत्पाद, सब्जियों और फलों के सेवन पर जोर दिया गया है. परिषद ने गर्भवती महिलाओं, शिशुओं की परवरिश करने वाली माताओं और बच्चों के लिए भोजन से संबंधित राशन की विस्तृत सूची जारी की है. दुर्भाग्य से पोषण तत्वों से युक्त भोजन अधिकतर भारतीयों की पहुंच से दूर है.

पहले राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे) ने बच्चों में विटामिन, आयोडीन, जिंक, आयरन और फोलेट की कमी का आकलन करने के लिए पूरे देश से रक्त और मूत्र के एक लाख 12 हजार नमूने एकत्र किए थे. उन रिपोर्ट्स से उनके बौने होने, कमजोर होने और कम वजन का खुलासा हुआ. अब बेरोजगारी और भुखमरी के दुख के मौजूदा दौर में महामारी भी जुड़ गई है तो सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है कि वंचितों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मिले.

वर्ष 2017 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट (ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2017) से यह खुलासा हुआ है कि 51 फीसदी भारतीय महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने 19 करोड़ भारतीयों की पहचान की है जिन्हें पोषण तत्वों की गंभीर रूप से कमी है. पर्याप्त आहार नहीं मिलने की वजह से देश की करीब 70 फीसदी आबादी का शरीर गठीला नहीं है.

यह भी पढ़ें- कोरोना काल में एक करोड़ बच्चे हो सकते हैं कुपोषण के शिकार

नीति आयोग ने पोषण को राष्ट्रीय विकास के एजेंडा के तहत लाने के लिए एक राष्ट्रीय पोषण कार्य नीति (नेशनल न्यूट्रीशन स्ट्रेटेजी ) जारी की है. जब से स्वतंत्र भारत का गठन हुआ, तभी से खून की कमी (एनीमिया) और कुपोषण की खतरनाक स्थिति बनी हुई है. प्रदूषित जल निकायों की वजह से लाखों बच्चे एवं जवान डायरिया एवं टेपवर्म के संक्रमण के खतरे का सामना करते हैं. स्वास्थ्यवर्धक भोजन नहीं मिल पाने की वजह से 14 से 49 साल तक उम्र की महिलाएं रक्ताल्पता की शिकार हैं. आयोग की कार्य नीति में कुपोषण के मूल कारण की पहचान कर ली लेकिन यह वास्तविक स्थिति में सुधार के लिए बहुत कम है.

पहले से ही असहाय घरों की आजीविका कोविड-19 के बाद बर्बाद हो गई है, करोड़ो भारतीयों पर भूख का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. इस अभूतपूर्व स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में शामिल कर लिया है, ताकि उन्हें हर महीने पांच किलो खाद्यान्न मिलना सुनिश्चित हो सके.

इसी तरह केंद्र और राज्य सरकारें अनिवार्य रूप से किसानों की उपज की खरीद करे और उन्हें लाभकारी मूल्य का भुगतान कर एक निर्बाध आपूर्ति चेन बनाए रखें. इसके अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों को अनिवार्य रूप से सुदृढ़ करें ताकि समग्र रूप से पोषण एक वास्तविकता बन सके.

हैदराबाद : आज के बच्चों को कल के कुशल मानव संसाधनों की शक्ल देने के लिए संतुलित आहार का सबसे अधिक महत्व है. लेकिन, वैश्विक पोषण सूचकांकों पर भारत लगातार निचले स्तर पर बना हुआ है. केंद्र सरकार ने सभी बच्चों एवं महिलाओं को पूरी तरह से पर्याप्त पोषण मिलना सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2018 के मार्च में पोषण अभियान (नेशनल न्यूट्रीशन मिशन) शुरू किया. जब से यह कार्यक्रम शुरू हुआ है, सितंबर को 'राष्ट्रीय पोषण माह' के रूप में मनाया जाता है. प्रधानमंत्री ने अपने 'मन की बात' में कहा कि सरकार इस साल भी उस आदर्श का पालन करेगी.

इसी बीच, भारतीय चिकित्सा एवं शोध परिषद (आईसीएमआर) ने आहार से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसमें जौ, बाजरा जैसे मोटे अनाज, फलिया, डेयरी उत्पाद, सब्जियों और फलों के सेवन पर जोर दिया गया है. परिषद ने गर्भवती महिलाओं, शिशुओं की परवरिश करने वाली माताओं और बच्चों के लिए भोजन से संबंधित राशन की विस्तृत सूची जारी की है. दुर्भाग्य से पोषण तत्वों से युक्त भोजन अधिकतर भारतीयों की पहुंच से दूर है.

पहले राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (नेशनल न्यूट्रीशन सर्वे) ने बच्चों में विटामिन, आयोडीन, जिंक, आयरन और फोलेट की कमी का आकलन करने के लिए पूरे देश से रक्त और मूत्र के एक लाख 12 हजार नमूने एकत्र किए थे. उन रिपोर्ट्स से उनके बौने होने, कमजोर होने और कम वजन का खुलासा हुआ. अब बेरोजगारी और भुखमरी के दुख के मौजूदा दौर में महामारी भी जुड़ गई है तो सरकार के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है कि वंचितों को स्वास्थ्यवर्धक भोजन मिले.

वर्ष 2017 की वैश्विक पोषण रिपोर्ट (ग्लोबल न्यूट्रीशन रिपोर्ट 2017) से यह खुलासा हुआ है कि 51 फीसदी भारतीय महिलाएं खून की कमी से जूझ रही हैं. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट ने 19 करोड़ भारतीयों की पहचान की है जिन्हें पोषण तत्वों की गंभीर रूप से कमी है. पर्याप्त आहार नहीं मिलने की वजह से देश की करीब 70 फीसदी आबादी का शरीर गठीला नहीं है.

यह भी पढ़ें- कोरोना काल में एक करोड़ बच्चे हो सकते हैं कुपोषण के शिकार

नीति आयोग ने पोषण को राष्ट्रीय विकास के एजेंडा के तहत लाने के लिए एक राष्ट्रीय पोषण कार्य नीति (नेशनल न्यूट्रीशन स्ट्रेटेजी ) जारी की है. जब से स्वतंत्र भारत का गठन हुआ, तभी से खून की कमी (एनीमिया) और कुपोषण की खतरनाक स्थिति बनी हुई है. प्रदूषित जल निकायों की वजह से लाखों बच्चे एवं जवान डायरिया एवं टेपवर्म के संक्रमण के खतरे का सामना करते हैं. स्वास्थ्यवर्धक भोजन नहीं मिल पाने की वजह से 14 से 49 साल तक उम्र की महिलाएं रक्ताल्पता की शिकार हैं. आयोग की कार्य नीति में कुपोषण के मूल कारण की पहचान कर ली लेकिन यह वास्तविक स्थिति में सुधार के लिए बहुत कम है.

पहले से ही असहाय घरों की आजीविका कोविड-19 के बाद बर्बाद हो गई है, करोड़ो भारतीयों पर भूख का बड़ा खतरा मंडरा रहा है. इस अभूतपूर्व स्थिति को देखते हुए केंद्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों को भी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के दायरे में शामिल कर लिया है, ताकि उन्हें हर महीने पांच किलो खाद्यान्न मिलना सुनिश्चित हो सके.

इसी तरह केंद्र और राज्य सरकारें अनिवार्य रूप से किसानों की उपज की खरीद करे और उन्हें लाभकारी मूल्य का भुगतान कर एक निर्बाध आपूर्ति चेन बनाए रखें. इसके अलावा आंगनवाड़ी केंद्रों को अनिवार्य रूप से सुदृढ़ करें ताकि समग्र रूप से पोषण एक वास्तविकता बन सके.

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