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कोरोना : महामारी खत्म होने पर कई मायनों में बदल जाएगी दुनिया

कोरोना को एक दिन समाप्त होना ही है और उसके बाद दुनिया भी कई मायनों में बदल जाएगी. क्या-क्या बदलाव हो सकते हैं, इसके लिए पढ़ें पूरी खबर....

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Published : Apr 6, 2020, 8:15 AM IST

Updated : Apr 6, 2020, 12:35 PM IST

पेरिस : एक न एक दिन इंसान कोरोना वायरस की महामारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, लेकिन इसके बाद जो दुनिया होगी निश्चित रूप से महामारी से पहले वाली नहीं होगी.

विश्लेषकों का कहना है कि कोरोना वायरस से लोगों की दर्दनाक मौत के साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर भी अनगिनत खतरे पैदा हो गए हैं जिसकी कीमत चुकानी पड़ेगी और इन से होने वाले बदलाव आने वाले दिनों में दुनिया को दिशा देंगे.

उनका कहना है कि कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन से कुछ अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह से तबाह हो जाएंगी, वित्तीय बाजार संकट से पहले वाली स्थिति में कभी नहीं लौट पाएगा.

विश्लेषकों के मुताबिक आवाजाही पर रोक कुछ सरकारों को निरंकुश नियंत्रण स्थापित करने में मदद करेगी और नागरिक स्वतंत्रता कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के नाम पर कमजोर होगी.

कई लोग पहले ही बहुस्तरीय संगठन जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)और संयुक्त राष्ट्र की इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट में समन्वय की कमी को लेकर सवाल उठा चुके हैं.

कार्नेज इंडाउमेंट फॉर इंटरनेशल पीस के वरिष्ठ सदस्य एरोन डेविड मिलर ने कहा कि ये बदलाव बहुत व्यापक होने के साथ अप्रत्याशित भी होंगे.

उन्होंने कहा, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कबतक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं इस तूफान के आगे टिकी रहती हैं और इस खतरे से निपटने में सरकारें कितनी सफल होती है.

चीन, जहां से संक्रमण फैला था गर्व से दावा कर रहा है कि उसने महामारी पर काबू पा लिया है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुरुआत में इसे गंभीरता से नहीं लिया और अब बड़े संकट का सामना कर रहे हैं.

भारत में संक्रमितों के आधिकारिक आंकड़े पश्चिमी देशों के मुकाबले बहुत कम है लेकिन आने वाले और बुरे दिनों को लेकर चिंता है.

जब मिलर से पूछा गया कि क्या यह नेतृत्व या नेतृत्व की अनुपस्थिति दुनिया भर के देशों को मौका या खतरा प्रदान करेगी?

उन्होंने कहा, अमीर देश संकट के समय कामगारों को क्षतिपूर्ति देकर और आर्थिक गतिविधियों को बहाल कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रख सकते हैं लेकिन गरीब देशों के लोगों के पास ऐसी सुरक्षा नहीं है और ऐसे में वंचित लोगों के सड़कों पर उतरने का खतरा है.

जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के अतिथि प्रोफेसर जोशुआ ग्जेटजर ने कहा, उन देशों में संघर्ष बढ़ने की आशंका है जहां पर लोगों को नौकरी जाने पर सामाजिक सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जाती है। इससे शासन और अन्य पर संभावित असर पड़ेगा.

उन्होंने कहा, रूस और तुर्की जहां पर दो दशक से मजबूत नेता शासन कर रहे हैं उनको उम्मीद है कि वायरस और किसी राजनीतिक असर से निपटने की उनकी तैयारी पर्याप्त है.

हालांकि, इस महामारी के बाद अधिकतर उदारवादी लोकतांत्रिक समाजों ने नागरिक अधिकारों पर पाबंदी लगाई है और अपूतपूर्व तरीके से निकट भविष्य के लिए सीमा बंद दी है.

दकार स्थित टिम्बकटू इंस्टीट्यूट के निदेशक बाकरे सांबे ने कहा, लंबे समय से उदारवाद और वैश्वीकरण पर भाषण देने वाले सभी कुलीनों ने सबसे पहले अपनी सीमाएं बंद की.

भारत में अशोक विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता ने कहा कि व्यापार प्रणाली में विवाद उत्पन्न होने का खतरा है.

कोविड-19 संबंधी जांचों के लिए अस्पताल में भर्ती हुए बोरिस जॉनसन

पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय एवं रणनीतिक अनुसंधान संस्थान में शोधकर्ता बर्थेलेमी कोर्टमोंट ने कहा कि लगता है कि डब्ल्यूएचओ को और किनारे कर दिया जाएगा.

पेरिस : एक न एक दिन इंसान कोरोना वायरस की महामारी पर विजय प्राप्त कर लेगा, लेकिन इसके बाद जो दुनिया होगी निश्चित रूप से महामारी से पहले वाली नहीं होगी.

विश्लेषकों का कहना है कि कोरोना वायरस से लोगों की दर्दनाक मौत के साथ सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर भी अनगिनत खतरे पैदा हो गए हैं जिसकी कीमत चुकानी पड़ेगी और इन से होने वाले बदलाव आने वाले दिनों में दुनिया को दिशा देंगे.

उनका कहना है कि कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन से कुछ अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह से तबाह हो जाएंगी, वित्तीय बाजार संकट से पहले वाली स्थिति में कभी नहीं लौट पाएगा.

विश्लेषकों के मुताबिक आवाजाही पर रोक कुछ सरकारों को निरंकुश नियंत्रण स्थापित करने में मदद करेगी और नागरिक स्वतंत्रता कोरोना वायरस को फैलने से रोकने के नाम पर कमजोर होगी.

कई लोग पहले ही बहुस्तरीय संगठन जैसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)और संयुक्त राष्ट्र की इस अभूतपूर्व स्वास्थ्य संकट में समन्वय की कमी को लेकर सवाल उठा चुके हैं.

कार्नेज इंडाउमेंट फॉर इंटरनेशल पीस के वरिष्ठ सदस्य एरोन डेविड मिलर ने कहा कि ये बदलाव बहुत व्यापक होने के साथ अप्रत्याशित भी होंगे.

उन्होंने कहा, बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि कबतक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाएं इस तूफान के आगे टिकी रहती हैं और इस खतरे से निपटने में सरकारें कितनी सफल होती है.

चीन, जहां से संक्रमण फैला था गर्व से दावा कर रहा है कि उसने महामारी पर काबू पा लिया है। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने शुरुआत में इसे गंभीरता से नहीं लिया और अब बड़े संकट का सामना कर रहे हैं.

भारत में संक्रमितों के आधिकारिक आंकड़े पश्चिमी देशों के मुकाबले बहुत कम है लेकिन आने वाले और बुरे दिनों को लेकर चिंता है.

जब मिलर से पूछा गया कि क्या यह नेतृत्व या नेतृत्व की अनुपस्थिति दुनिया भर के देशों को मौका या खतरा प्रदान करेगी?

उन्होंने कहा, अमीर देश संकट के समय कामगारों को क्षतिपूर्ति देकर और आर्थिक गतिविधियों को बहाल कर अर्थव्यवस्था को पटरी पर बनाए रख सकते हैं लेकिन गरीब देशों के लोगों के पास ऐसी सुरक्षा नहीं है और ऐसे में वंचित लोगों के सड़कों पर उतरने का खतरा है.

जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय के अतिथि प्रोफेसर जोशुआ ग्जेटजर ने कहा, उन देशों में संघर्ष बढ़ने की आशंका है जहां पर लोगों को नौकरी जाने पर सामाजिक सुरक्षा मुहैया नहीं कराई जाती है। इससे शासन और अन्य पर संभावित असर पड़ेगा.

उन्होंने कहा, रूस और तुर्की जहां पर दो दशक से मजबूत नेता शासन कर रहे हैं उनको उम्मीद है कि वायरस और किसी राजनीतिक असर से निपटने की उनकी तैयारी पर्याप्त है.

हालांकि, इस महामारी के बाद अधिकतर उदारवादी लोकतांत्रिक समाजों ने नागरिक अधिकारों पर पाबंदी लगाई है और अपूतपूर्व तरीके से निकट भविष्य के लिए सीमा बंद दी है.

दकार स्थित टिम्बकटू इंस्टीट्यूट के निदेशक बाकरे सांबे ने कहा, लंबे समय से उदारवाद और वैश्वीकरण पर भाषण देने वाले सभी कुलीनों ने सबसे पहले अपनी सीमाएं बंद की.

भारत में अशोक विश्वविद्यालय में राजनीतिक शास्त्र के प्रोफेसर प्रताप भानु मेहता ने कहा कि व्यापार प्रणाली में विवाद उत्पन्न होने का खतरा है.

कोविड-19 संबंधी जांचों के लिए अस्पताल में भर्ती हुए बोरिस जॉनसन

पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय एवं रणनीतिक अनुसंधान संस्थान में शोधकर्ता बर्थेलेमी कोर्टमोंट ने कहा कि लगता है कि डब्ल्यूएचओ को और किनारे कर दिया जाएगा.

Last Updated : Apr 6, 2020, 12:35 PM IST
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